मधुशाला, जैसे शिव का नृत्य

Making wine, from the vineyard called ‘poet’s life’

Madhushala Podcast, Episode 3

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In the previous episode, we explored what is Madhushala and what makes it so mysterious, controversial and misunderstood. Today, let's start from the start...


पिछले अंक में हमने बात की थी - मधुशाला आखिर क्या है, क्यों इसे एक विवादित कविता कहा गया, क्यों इसे एक Misunderstood कविता कहा जाता है, और बच्चन जी को इसे लिखने की प्रेरणा कहाँ से मिली!


इस एपिसोड में मधुशाला की शुरुआती दो कविताएँ पढ़ते हैं, और उन से जुड़ी कुछ कहानियाँ। पहली कविता की कहानी और भावार्थ कुछ इस तरह हैं -

बच्चन जी अपनी आत्मकथा में बताते हैं कि उन्होंने कई बार कविताओं से दूर भागने की कोशिश की लेकिन भीतर का कवि बार-बार उन्हें अपनी ओर खींच लेता था - एक दिलचस्प बात ये है कि 1933 में जब बच्चन साहब Pioneer Press की नौकरी के लिए निकल रहे थे तो उनका कवि बनने का कोई इरादा था ही नहीं – हालांकि तब तक वो रुबाइयत उमर खय्याम का कुछ अनुवाद कर चुके थे, और कुछ रुबाइयाँ (रुबाई = चार पंक्ति की छोटी कविता, या चतुष्पदी) मधुशाला की भी लिख चुके थे, तो उन्होंने सोचा के कविताएँ आगे लिखनी ही नहीं तो कागज़ रखकर क्या करूंगा। लेकिन जब वो उन कागजों को छोड़कर जाने लगे तो अधलिखी कविताओं ने उनकी तरफ़ जैसे दयनीय आँखों से देखा और सहमी सी आवाज़ में कहा – “हमें यहाँ क्यों छोड़े जाते हो?”

कुछ सोच के बच्चन साहब ने उन्हें साथ रख लिया, और जैसा इंग्लिश में कहते हैं – and the rest is history! इस बात पर सुनते हैं -

मृदु भावों के अंगूरों की आज बना लाया हाला,

प्रियतम, अपने ही हाथों से आज पिलाऊँगा प्याला,

पहले भोग लगा लूँ तेरा फिर प्रसाद जग पाएगा,

सबसे पहले तेरा स्वागत करती मेरी मधुशाला ।।१।

(मृदु = कोमल, मुलायम)

कवि अपनी काव्य रचना मधुशाला को स्वयं अपने हाथों से वैसे ही प्रस्तुत कर रहे हैं जैसे सुरा का प्याला हो – बहुत प्रेम, निष्ठा से कवि ने ये कविता लिखी है। एक-एक अनुभव, एक-एक शब्द चुनकर – जैसे अंगूर के बाग से एक-एक अंगूर चुन के, उन्हें पका के, सैंकड़ों अंगूर निचोड़ के स्वादिष्ट हाला तैयार होती है – the process of making wine, picking each grape diligently from the vineyard called poet’s life. उसी तरह से मधुशाला ने अपना खूबसूरत रूप लिया है – और कविराज बड़े प्रेम के साथ इसे अपने पाठकों को समर्पित कर रहे हैं – जैसे साकी बाला पीने वालों को मदिरा पान करा रही हो।

अब अगली कविता की बात करते हैं -

मधुशाला की शुरुआत में बच्चन जी कहते हैं - कि जीवन की मधुता यानि मिठास तो मैं कब की छोड़ चुका हूँ, अब ये जो हाला रूपी कविता बनी है, उस मधुशाला को भी आपको समर्पित करता हूँ। यहाँ बात है तपस्या, त्याग और समर्पण की – अब यूं तो हाला / प्याला की प्रशंसा के लिए बच्चन साहब की खूब आलोचना होती थी किंतु मधुशाला को अगर डूब के पढ़ें या सुनें तो ये एक शराब और शराबी की दास्तां नहीं बल्कि इसमें जीवन-वाद और दर्शनशास्त्र यानी Philosophy की झलक मिली है जो एक तरह की तपस्या से बनी है, और जितनी मुश्किलों के दिनों में मधुशाला लिखी गई थी, वो किसी तपस्या से कम थोड़ी न है! तपस्या जैसे एक पैर पर खड़े हुए शिव का नृत्य और शिव का नृत्य कब होता है? जब प्रलय आती है – विश्व को तपा कर!

प्यास तुझे तो, विश्व तपाकर पूर्ण निकालूँगा हाला,

एक पाँव से साकी बनकर नाचूँगा लेकर प्याला,

जीवन की मधुता तो तेरे ऊपर कब का वार चुका,

आज निछावर कर दूँगा मैं तुझ पर जग की मधुशाला ।।२।


बच्चन जी के शब्दों में – “रुबाइयात के अनुवाद ने मेरे हृदय की बन्द सुराही के मुँह से ढक्कन खींच लिया था और मदिरा की धार बह चली थी - ‘मधुशाला’ के रूप में। कुजा कविता, कुजा पत्रकारिता! कुजा मधुशाला, कुजा कचहरी! कुजा साकी, कुजा अखबार का एजेन्ट! कुजा शराब के जाम, कुज़ा पैसों का हिसाब-किताब! (पुस्तक से साभार: क्या भूलूँ क्या याद करूँ)

ये वही वक्त था जब बच्चन साहब पायोनियर प्रेस में एक गश्ती एजेंट का काम करते थे - दिन भर जगह-जगह की धूल खाना, कोर्ट-कचहरी के चक्कर लगाना और विज्ञापन इकट्ठा करना, और रात को लौटकर अपने कमरे के अकेलेपन में कुछ अनुभवों और कल्पना के निचोड़ को कविता के रूप में ढालना – ये एक पैर पर खड़े तपस्या नहीं तो क्या है?

फिलहाल यहीं विराम।

अगले एपिसोड में हम बात करते हैं कि Alice in Wonderland फ़िल्म और मधुशाला में क्या समानता है और Philosophy of Compensations क्या होती है


तो मिलते हैं एक चाय की प्याली पर – तब तक आप स्वस्थ रहिए, प्रसन्न रहिए, चाय कॉफी पीते रहिए :-)

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इन दिनों हम हर रविवार को मधुशाला की एक Live गोष्ठी भी करते हैं, आप जुड़ सकते हैं Mentza App के माध्यम से। आइएगा महफ़िल में कभी।

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