चाँद और चंपा का संवाद

Champa on a full moon night and their chitchat

चाँद और चंपा की बात

ये कविता मेरी नहीं है, देखा जाए तो ये कविता है ही नहीं – ये तो एक संवाद है, वार्तालाप!

एक ऐसी बातचीत जो देर रात को पैदल सैर पर निकल जाने वाले ने सुन ली थी और उन शब्दों का एक कच्चा-पक्का सा खाका खींच दिया। मैं वो सिरफिरा चहलकदमी करने वाला पैदल यात्री था। और ये बातचीत हो रही थी, चाँद और चंपा के बीच – हुआ ये के पूरे चाँद की रात थी, चाँदनी हर तरफ फैली थी और ऐसे में दिखाई दिया एक चंपा का अच्छा बड़ा वृक्ष – अपने पूरे यौवन पर, सफेद रंगों के फूलों से लदा हुआ, गर्वित, उन्नत, आस पास की वायु में अपनी मनमोहक, मादक महक बिखेरता हुआ।

तब मन ने सोचा के चाँद अपने गौरव में चमक रहा है, इस ओर से उस छोर तक चाँदनी धरती पर फैली है, और इधर धरती पर चंपा भी जैसे खुद को किसी से कम न समझते हुए उन्मत्त खड़ा है। अब ऐसे में अगर चाँद और चंपा की बात हुई होती तो कैसा होता – कुछ तर्क होते, कुछ शास्त्रार्थ होता, कुछ शरारत, कुछ प्यार भारी अठखेलियाँ होती।

तो साहब, ये कविता बस उस आँखों-देखी का अनुभव और कल्पना से बना पुलाव है – जिसे हल्की सी कविताई रंगत देने की हिमाकत इस सैलानी ने कर ली।

जब चंपा और चाँद बात कर रहे थे, मैंने सुन लिया


आज रात चाँद और चंपा की बात हुई

चाँद ने कहा देख मैं चमकता हूं

चंपा ने कहा मैं खिलखिला के महकती हूं

चाँद ने अकड़ के कहा मेरी चमक में उल्लास है

चंपा भी इतरा के बोली मेरी महक में उन्माद है

चाँद ने कहा तुझ में महक है फिर भी भ्रमर तेरे पास नहीं आते क्यों?

चंपा मुस्कुराई और बोली तेरे पास तो इतने सितारे तू फिर भी अकेला क्यों?

चाँद ने कहा लेकिन मेरी चाँदनी मेरे चाहने वालों को छू जाती है

चंपा ने कहा मेरी महक की कहानी तो मेरे दीवानों से पूछ

चाँद ने छेड़ते हुए कहा देखना कहीं कोई दीवाना तेरे फूल न तोड़ ले

चम्पा ने भी पलट के कहा

मेरे फूल तो फिर आ जाएंगे, तुम्हारे चाहने वाले अपने प्रेमियों को वादा करते हैं तुम्हें तोड़ लाने का,

किसी रात किसी ने आसमान से नोच लिया तो?


चाँद ठंडी आह भर कर रह गया और भवें उठा के बोला

लेकिन तुझ में पतझड़ आता है

चंपा ने गर्व से कहा तुझ पे भी तो ग्रहण लगता है

चाँद ने नरमी से पूछा तू पतझड़ के बाद भी कैसे खुशी से खिल जाती है?

चंपा ने प्यार से देखा और कहा

जैसे तू अमावस के बाद मुस्कुराता हुआ आता है

ये बातें हुई, चाँद मुस्कुराया और उसकी चाँदनी हर ओर छितर गई

चाँदनी में नहाई चंपा की महक भी,

हर ओर बिखर गई



(कवि: अरिसूदन / Poem by: Arisudan Yadav)


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