कविताई बातें
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कभी कभार लिखी हुई मेरी कविताएँ
कुछ लिखी गई सुबह चलते चलते, पेड़ पौधों से, फूलों से बातें करते। कभी कविता सुनाई दी चिड़ियाओं की चहचहाहट में, कभी दौड़ लगाते बच्चों की मस्ती भरी उड़ानों में, कभी आसमान में रंग बदलते आवारा घूमते रंग बिरंगे बादलों में और कभी इन बादलों से के साथ अठखेलियाँ करते चाँद सूरज से सजे आसमानों में!
लेकिन कवि की कल्पना और कविता की उड़ानों की सीमा कहाँ होती है - ये यात्रा कहाँ कब शुरू हुई किसे पता, और इसका अन्त - अन्त तो इसका होता ही नहीं है। तो सुनते / पढ़ते हैं कुछ ऐसे ही अनुभव जो यथार्थ की धरती से उठे और उठते उठते कल्पनाओं को छूने लगे।
शहर बहारें इन दिनों / Shahar Baharein in Dino
चाँद और चंपा का संवाद / A conversation of Champa and the Moon
सवाल कर लेते हैं / Let's ask some more questions
मैं हूँ गुड़हल / An ode to Hibiscus
नदी किनारे के पत्थर / An ode to the rocks by the river
जो धरती नंगे पाँव चले / Jo Dharti Nange Paanv Chale