है अमित सामर्थ्य मुझ में

Jobs of the future that we haven't heard of, yet

है अमित सामर्थ्य मुझ में

है अमित सामर्थ्य मुझमें, याचना मैं क्यों करूँगा

है अमित सामर्थ्य मुझमें, याचना मैं क्यों करूँगा

रूद्र हूँ विष छोड़ मधु की कामना मैं क्यों करूँगा

मेरी सामर्थ्य तो असीमित है, जो मिट नहीं सकती फिर मैं किसी से भीख क्यूँ माँगू? मैं सरकार से क्यूँ नौकरी माँगू, सब्सिडी, MSP, या आरक्षण से मिली हुई नौकरी - ये जो भी मुफ़्त की चीजें हैं, क्यूँ माँगू? मैं तो शिव की तरह रुद्र हूँ, मैं विष पी सकता हूँ, तो फिर मिठास की शर्त क्यूँ लगाऊँ?

इन्द्र को निज अस्थि पन्जर जबकि मैंने दे दिया था

घोर विष का पात्र उस दिन एक क्षण में ले लिया था

दे चुका जब प्राण कितनी बार जग का त्राण करने

फिर भला विध्वंस की कटु कल्पना मैं क्यों करूँगा

मैं याचक (मांगने वाला / Freeloader) क्यूँ बनूँ? मैं कर्ण जैसा दानवीर क्यूँ न बनूँ? वो कर्ण जिसने इन्द्र को अपना कवच कुंडल यूं ही दान में दे दिया था। क्या वो विष का पात्र पीने से कम था? जो इंसान दुनिया के भले के लिए इतनी बार बलिदान दे चुका है वो दुनिया के विनाश की कामना कैसे कर सकता है?

फूँक दी निज देह भी जब, विश्व का कल्याण करने

झौंक डाला आज भी सर्वस्व युग निर्माण करने

जगमगा दी झोंपड़ी के दीप से अट्टालिकाएँ

फिर वही दीपक, तिमिर की साधना मैं क्यों करूँगा

मैं परिश्रमी हूँ, जो केवल अपने लिए ही नहीं, दुनिया के भले के लिए भी लगा रहता हूँ। मैं उस प्रह्लाद जैसा हूँ, जो होलिका की गोद में बैठ कर जलने को तैयार हो गया था, या सती की तरह जो अपमान झेलने की जगह यज्ञ की अग्नि में कूद गई थी, या जैसे चित्तौड़ की पद्मिनी। मैंने तो अपना आज युग के निर्माण पर बलिदान कर दिया है। मैं वो मजदूर हूँ जो झोपड़ी में रहता हूँ, लेकिन अट्टालिकाओं के निर्माण के लिए पत्थर तोड़ता हूँ। मैं तो खुद जलने वाला दीपक हूँ, फिर अंधकार की कामना मैं क्यूँ करूंगा? एक भावना ये भी है कि जब आप परिश्रम करते हैं, तो आप दूसरों को भी प्रेरित करते हैं। तो सिर्फ नौकरी की ललक ही क्यूँ हो, हम खुद का कुछ क्यूँ नहीं शुरू कर सकते, जिससे दूसरों को भी रोजगार मिले?

विश्व के पीड़ित मनुज को जब खुला है द्वार मेरा

दूध साँपों को पिलाता स्नेहमय आगार मेरा

जीत कर भी शत्रु को जब मैं दया का दान देता

देश में ही द्वेष की फिर भावना मैं क्यों भरूँगा

मैं अपनी क्षमता के अनुसार दुनिया के पीड़ित मनुष्य की सहायता करता हूँ, शत्रु पर विजय पा कर मैं उन्हें क्षमा भी कर देता हूँ, शत्रु के प्रतीक साँप तक मेरा स्नेह पाते हैं। तो फिर देश में ही शत्रुता बढ़ाने की बात मैं भला क्यूँ करूंगा?

मार दी ठोकर विभव को बन गया क्षण में भिखारी

किन्तु फिर भी जल रही क्यों द्वेष से आँखें तुम्हारी

आज मानव के हृदय पर राज्य जब मैं कर रहा हूँ

फिर क्षणिक साम्राज्य की भी कामना मैं क्यों करूँगा

मैंने तो परिश्रम के रास्ते पर चलने के लिए विशेष अधिकारों को त्याग दिया है - जैसे बुद्ध ने एक बार में सब वैभव त्याग के सन्यास और जन-कल्याण की राह पकड़ ली थी, जैसे कर्ण ने अपना सब कुछ दान कर दिया था – वैसे ही है जब मैं सब त्याग चुका हूँ तो फिर तुम्हें मुझसे जलन या ईर्ष्या क्यूँ है? मुझे तो मानव के हृदय पर विजयी होना है, मुझे तो अपनी इंद्रियों पर विजय पानी है तो फिर मैं किसी क्षण-भंगुर भौतिक साम्राज्य की कामना क्यूँ करूंगा?

हरेक इंसान में इतनी असीमित सामर्थ्य है तो फिर किसी के आगे हाथ क्यूँ फैलाना है?


है अमित सामर्थ्य मुझमें, याचना मैं क्यों करूँगा

रूद्र हूँ विष छोड़ मधु की कामना मैं क्यों करूँगा


(दुर्भाग्य-वश इस कविता के रचयिता का नाम अब याद नहीं और गूगल देवता भी नहीं बता पा रहे – अगर आपको मालूम है तो अवश्य बताइएगा)

कविता की कहानी

Jobs of the future that we haven't heard of, yet

अब से 20 साल पहले अगर आपसे कोई कहता कि उसकी नई नौकरी लगी है, और उसका काम है - Fitness Commitment Counsellor – तो शायद विस्मय होता, आश्चर्य होता कि ये भी कोई काम होता है? मगर आजकल जो नई-नई तरह की नौकरियां / जॉब्स हैं – अब से 20 साल पहले शायद किसी ने सोचा भी न था – Data Scientist को ही लीजिए या Experience Designer. अजी 20 साल कहाँ, कई जॉब तो अब से 5 साल पहले भी नहीं थे – हाल ही में WEF (World Economic Forum) ने एक लिस्ट निकाली है - Jobs of the Future – जिसमें कुछ ऐसे ही जॉब्स के नाम हैं जिनका शायद अभी अस्तित्व ही नहीं है – They don’t even exist today. जैसे ये सुनिए –

  • Futuristजी हाँ, कई बड़ी कंपनियों में आजकल एक रोल है – ये नजर रखते हैं दूसरे उद्योगों या व्यापारों में क्या हो रहा है। उसका अपने ऊपर पर क्या असर होगा। जैसे हमारी सेनाएं हर तरह की Scenario planning करती है – अगर ऐसा हो तो क्या करना है, वैसा हो तो क्या तैयारी रखनी है, इत्यादि!

  • WFH facilitator – जो आपको घर से या Remotely काम करने में मदद करता हो, Work-life balance, parenting, परिवार पर ध्यान देना, दिमाग में तनाव न हो, इत्यादि, इत्यादि!

  • Fitness commitment counsellor – ये वाला मुझे खूब पसंद है – जो exercise के लिए आपका उत्साह वर्धन करे, प्रेरणा देता रहे, motivate करे, अनुशासन लाए, आपका timetable बना के रखे।

  • Smart home designer – ये एक अलग ही हैं! घर में फर्निचर कैसा हो, Ergonomics, IOT, Feng shui, Natural light, हवा आदि का इंतजाम कैसा हो, इत्यादि।

  • Workplace environment architect - Post pandemic office / emp wellbeing, ताकि ऑफिस लौटने पर लोग आसानी से adjust हो सकें।

  • एक है Algorithm bias auditor – बहुत सारे निर्णय आजकल मशीनें लेती हैं – जैसे Bots / Robots– वहाँ सब कुछ software या algorithm से कंट्रोल होता है – उसमे कोई पक्षपात न हो जाए, bias न आ जाए! जैसे आप आजकल जब नौकरी / जॉब्स के लिए apply करते हैं तो पहला filter automated होता है, जो Artificial Intelligence या Bots करते हैं। कुछ लोग इस बात पर नज़र रखते हैं कि उनमें कोई bias न हो जाए। उसी से रिलेटेड एक और है –

  • Human machine teaming manager - seamless collaboration between robots / people / machines. जो रोबॉट्स और इंसानों के संबंध को अच्छा बनाए रखे। कहीं ऐसा न हो के रोबोट नाराज़ होके इंसान का नुकसान कर दें!

  • एक है Cyber calamity forecaster - one who can forecast things like Ransomware attack / possibility. ये नज़र रखते हैं के कोई कहीं Cyber attack तो नहीं करने वाला, Computer Virus के क्षेत्र में क्या हो रहा है, इत्यादि।

  • Tide water architect – जो Civil Engineering Projects पर नजर रखते हैं कि उनका पर्यावरण, खास कर पानी पर क्या असर हो सकता है – पर्यावरण को सुरक्षित कैसे रखा जाए, आदि, आदि।

लेकिन कविताओं की पॉडकास्ट में हम नौकरियों की बात क्यूँ कर रहे हैं? आज की कविता कुछ ऐसी ही है – जो प्रेरणा देती है – कि अपनी सामर्थ्य को पहचानो, किसी से याचना मत करो! हम बेरोजगारी का ठीकरा सरकार के सिर पर क्यूँ फोड़ देते हैं? अगर सामर्थ्य के अनुसार से काम नहीं मिल रहा और अगर वाकई काम की सख्त जरूरत है तो जो मिल रहा है, उठा लो – अपना best करो, पूरी शक्ति से करो! और वहाँ से आगे बढ़ना शुरू करो। इतनी ऊर्जा है हम में – जलाओ, तपाओ और कोयले से सोना बन के निकलो – कितने ही उदाहरण हमारे सामने हैं – जहां लोग बहुत छोटे से कितना ऊपर उठ गए – Ambani, Bill Gates, Steve Jobs. कभी Southwest Airlines की कहानी पढ़िए या KFC की।

इस कविता का शीर्षक है – “है अमित सामर्थ्य मुझ में, याचना मैं क्यूँ करूंगा” – बचपन में सुनी थी और याद रह गई। ये कविता समर्पित है हमारी मित्र डॉ उदिशा शर्मा (Dr Udisha Sharma) जी को जिनकी हाल ही में Cancer से असामयिक मृत्यु हो गई – वो स्वयं एक शिक्षक थी, बहुत अच्छी कवियत्री थी, संगीत विशेषज्ञ थी – और उन्हें ये कविता बहुत पसंद थी – उदिशा जी आप जहां भी हैं, आशा है आपको पसंद आएगी

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