राह पकड़ तू एक चला चल

What Madhushala has in common with Alice in Wonderland

Madhushala Podcast, Episode 4

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We spoke about the hardship that Bachchan went through during the time Madhushala was written. In this episode, we explore what’s common between Madhushala, MBA and Alice in Wonderland, and what is the philosophy of compensations...


पिछले अंक में हमने सुन था कि वो कौन से हालात थे, क्या कठिनाइयाँ थी और बच्चन जी के जीवन में क्या चल रहा था जब मधुशाला लिखी गई थी। इस अंक में हम मधुशाला की दो कविताएँ पढ़ रहे हैं, पहली कविता की कहानी और भावार्थ में है Theory / Philosophy of Compensations, और दूसरी कविता में हम बात कर रहे हैं कि Alice in Wonderland फ़िल्म और मधुशाला क्या एक ही संदेश नहीं देती हैं.


प्रियतम, तू मेरी हाला है, मैं तेरा प्यासा प्याला,

अपने को मुझमें भरकर तू बनता है पीने वाला,

मैं तुझको छक छलका करता, मस्त मुझे पी तू होता,

एक दूसरे की हम दोनों आज परस्पर मधुशाला ।।३।


यहाँ कवि और कविता मानो एक दूसरे से बात कर रहे हैं। वैसे भी – “कविता लिखने का उतना विषय नहीं, जितना जीने का, और कविता को जीना जीने का बड़ा ही कठिन तरीका है”

एक आइरिश कहावत है कि “कवि होना ही मृत्यु समान है”, (It is death to be a poet - an Irish proverb). किंतु शायद ये भी सच है कि कवि मरता नहीं है बल्कि मरकर के भी सचेत रहता है, और एक होती है – Philosophy of Compensations – जो कहती है कि हर त्याग और हर कमी का मुआवजा जीवन या प्रकृति किसी न किसी रूप में दे ही देते हैं – यहाँ अगर कवि ने कविता में खुद को खोया है तो कविता भी तो उस कवि की पहचान बन गई।

इश्क़ ने ग़ालिब को निकम्मा कर दिया, वरना हम भी आदमी थे काम के

इश्क़ ने ग़ालिब को बेशक निकम्मा कर दिया, पर उन्हे आला दर्जे का शायर बनाकर क्या पूरा मुआवजा नहीं भर दिया?


ऐसे ही हरिवंश राय बच्चन जी भी बचपन में चित्रकला का शौक रखते थे, कार्ड बोर्ड पर चित्र बनाते थे। लेकिन ये शौक खर्चीला था – रंग, कैनवस, कूची-ब्रश – सब महंगे और ऊपर से किसी का प्रोत्साहन भी नहीं - तो उनकी उंगलियों को बड़ी निराशा तो हुई के चित्रकार नहीं बन पाई, लेकिन अपनी लेखनी से जो कविताओं के ढेरों अमर शब्द-चित्र खींच दिए, वो किसी चित्रकला से कम थोड़े ही है!


अब रुख करते हैं Alice in Wonderland का -


मदिरालय जाने को घर से चलता है पीनेवाला,

'किस पथ से जाऊँ?' असमंजस में है वह भोलाभाला,

अलग-अलग पथ बतलाते सब पर मैं यह बतलाता हूँ -

'राह पकड़ तू एक चला चल, पा जाएगा मधुशाला ।।६।


जब मैं लंदन में MBA की पढ़ाई कर रहा था और उसमें एक विषय था Strategic Management, वहाँ हमारे प्रोफेसर होते थे Gary Piffer साहब। उनका एक गुरु मंत्र था की अगर कभी आपको नहीं सूझ रहा कि किसी प्रोजेक्ट का किसी थीसिस की शुरुआत कैसे करनी है तो Alice in Wonderland जैसा कहती है, वैसा करो!


अब अगर आपने Alice in Wonderland फिल्म देखी है तो उसका ये inherent message शायद आपको याद होगा कि, “if you don’t know which road will get you there – take any road, any road will take you there!” अर्थात अगर आपको आगे बढ़ने का रास्ता नहीं सूझ रहा है तो किसी भी एक रास्ते पर चल पड़ो – सारे रास्ते मंज़िल की तरफ़ ले ही जाएंगे!


अगर गहराई में उतरें तो इस कविता की पंक्तियों का philosophical अर्थ Alice in Wonderland जैसा ही है. मदिरालय यहाँ प्रतीक है आपके लक्ष्य का, या मंज़िल or your goal – कविराज कहते हैं अगर मंज़िल पाने का रास्ता नहीं सूझ रहा है तो किसी भी एक राह को पकड़ के बस चल पड़ो – मंज़िल खुदबखुद मिल ही जाएगी –


Disclaimer: बस इस तरीके को बैंगलोर जैसे व्यस्त शहर की सड़कों पर न आज़माएँ वरना कुछ ऐसा होगा जो कवि अपनी अगली पंक्तियों में कह रहे हैं – वो सुनते हैं अगले अंक में, और साथ ही बात करेंगे Jane Austen की भी।


फिलहाल यहीं विराम – अगले अंक में हिन्दी के एक अनोखे शब्द की बात करेंगे – ‘किंकर्तव्यविमूढ़’, और बात करेंगे कि हम हर एपिसोड के आखिर में चाय कॉफी के लिए क्यों कहते हैं, मधुशाला और मदिरा के लिए क्यों नहीं!


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