स्वर्ग से उतरी रंभा, और धरती की अप्सराएं

Apsaras in real life, earth and heaven

Madhushala Podcast, Episode 19

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In the previous episode, we spoke about nostalgia and augmented reality, how we see some old faces and visuals in a different context. We also told a beautiful story of Emerald island (Markat dweep). Do you recall which country we talked about? Today, we are talking about the nymphs of the heaven and earth (Apsara) but they descend on earth when there is a Yagya, so let’s head there :)


पिछले अंक में हमने बात की थी nostalgia और augmented reality की कि कैसे कुछ पुराने चेहरे और दृश्य एक बिल्कुल अलग और नए परिप्रेक्ष्य में दिखने लगते हैं, और सुनाई थी एक सुंदर सी कहानी मरकत द्वीप की, मरकत द्वीप अर्थात emerald island, क्या आपको याद है वहाँ हमने कौन से देश का ज़िक्र किया था? बहरहाल, आज के अंक में बात करते हैं स्वर्ग और धरती की अप्सराओं की, किंतु अप्सराएं तो तभी आती हैं जब यज्ञ हो, तो चलिए पहले यज्ञ और सोम सुरा की बातों वाली ये कविता सुन लेते हैं


सोम सुरा पुरखे पीते थे, हम कहते उसको हाला,

द्रोणकलश जिसको कहते थे, आज वही मधुघट आला,

वेदिवहित यह रस्म न छोड़ो वेदों के ठेकेदारों,

युग युग से है पुजती आई नई नहीं है मधुशाला (55)


कवि कहते हैं कि हमारे पुरखे जिसका अमृत पान करते थे, वही अब हमारी हाला है, अर्थात वही काम अब हाला करती है। यहाँ आह्वान है पंडितों का, ज्ञानियों का, जो वेदों के ठेकेदार हैं कि ये यज्ञ वाली रीति चलने दो। जीवन की ये मधुशाला आज की थोड़े ही है, मधुशाला तो युगों-युगों से कायम है – समय चक्र से परे – धर्म जात आए गए हैं, बड़े-बड़े शहर और देश बने और बिखर गए, लेकिन मधुशाला है जिसकी अभिलाषा मानव को हमेशा से थी और शायद हमेशा ही रहेगी! मानव तो इसकी पूजा युगों-युगों से करते रहे हैं और करते भी रहेंगे।


यहाँ एक शब्द आया है द्रोणकलश – द्रोण का अर्थ होता है काठ का एक बर्तन, जैसे दोना या कटोरा – यज्ञ पूजा आदि में जल से भरे एक कलश की स्थापना होती है जिस को द्रोण-कलश कहा जाता है। ये एक तरह से हमारे अस्तित्व का भी प्रतीक होता है – जैसे कलश में भरा जल या सोम सुरा – जो प्रारंभ में एकदम साफ होता है, किंतु समय के साथ दूषित होता जाता है – और जो यज्ञ या हवन होता है – वो होती है एक प्रक्रिया उसे शुद्ध करने की। द्रोण कलश को ही नहीं, जीवन को और मानव मन को शुद्ध करने की प्रक्रिया! वैसे भी कहा जाता है कि जो सोम सुरा होती है - वो शरीर और इंद्रियों का शुद्धिकरण कर सकती है, मगर वही सोमरस अगर दूषित हो जाए तो? तब तो शायद यज्ञ ही करना पड़ेगा।

अब यज्ञ तो शुरू कर दिया है तो चलिए कुछ बातें अप्सराओं की –


वही वारूणी जो थी सागर मथकर निकली अब हाला,

रंभा की संतान जगत में कहलाती 'साकीबाला',

देव अदेव जिसे ले आए, संत महंत मिटा देंगे!

किसमें कितना दम खम, इसको खूब समझती मधुशाला (56)


भारतीय पुराणों में रंभा एक प्रसिद्ध अप्सरा के रूप में आती हैं – जो अपनी अप्रतिम अद्वितीय सुंदरता के लिए इतनी जानी जाती हैं कि अब हमारे साहित्य में सौंदर्य की एक प्रतीक, एक मिसाल बन चुकी है। कहा जाता है रंभा का जन्म देवताओं और असुरों द्वारा किए गए सागर मंथन से हुआ। रंभा स्वर्ग की अप्सरा थी। हर तरह की नृत्य कला में पारंगत – इंद्र की राजसभा में राज-नर्तकी भी थी। एक बार रंभा को ऋषि विश्वामित्र की तपस्या भंग करने के लिए भेजा गया था। महर्षि ने क्रोधित हो कर उसे एक सहस्त्र (हज़ार / 1000) वर्ष तक पाषाण (पत्थर) के रूप में रहने का श्राप दे दिया।


अगली कहानी में रंभा नलकुबेर की पत्नी थी। रावण और कुबेर दोनों भाई थे और कुबेर के पुत्र का नाम था नलकुबेर। क्योंकि रंभा का विवाह नलकुबेर से हुआ था तो इस रिश्ते से वह रावण की बहू लगती थी। एक बार की बात है – एक दिन जब रावण की दृष्टि रंभा पर पड़ी तो वो रंभा की सुंदरता पर मोहित हो गया और उसने रंभा से आपत्तिजनक बातें करना शुरू कर दिया। रावण ने रंभा से पूछा कि वह इतना सज-सँवर कर किसको तृप्त करने जा रही है? रंभा ने रावण को रिश्ते-नातों की याद दिलाई और छुटकारा पाना चाहा, मगर अहंकारी और बलशाली रावण कहाँ मानने वाला था! रंभा को पता ही नहीं था कि रावण देवताओं को भी हरा चुका है। पुराणों के अनुसार और वाल्मीकि द्वारा लिखी गई रामायण’ के अनुसार, रावण ने रंभा का बलात्कार भी किया था और दुखी होकर रंभा ने रावण को श्राप दिया था कि यदि वह किसी भी महिला को उसके इच्छा के विरुद्ध स्पर्श करता है, तो उसके दसों सर उसी क्षण फट जाएगें। रावण शायद इसीलिए सीता जी को कभी नहीं छू पाया। रंभा का एक पुत्र भी हुआ था - कालयवन जो कि आगे जा के बहुत ही शक्तिशाली हुआ। कालयवन के कृष्ण से युद्ध की कहानी भी पढ़ने को मिलती है।


अब अप्सराओं की बात चली है तो बताते चलें कि बच्चन जी के जीवन में भी अलग-अलग समय पर कई अप्सराएँ आई थी – अप्सरा इसलिए कि इन्होंने बच्चन जी को मोहित तो किया ही, लेकिन बहुत कम समय टिकी - पलक मारते ही उड़कर अनंत आकाश में विलीन, बिल्कुल अप्सराओं की तरह – जो धरती पर अवतरित होती हैं और अपना काम समाप्त होते ही स्वर्ग लौट जाती हैं!


जैसे बच्चन बाबू के जीवन में – सबसे पहले मिली चंपा - Dryad of the Trees या कहें ताजगी से भरी वृक्ष परी जो कुछ पल वृक्ष पर बैठी, मोहित किया और फिर अनंत आकाश की ओर उड़ चली!

और थी उनकी पहली पत्नी श्यामा – a Joy for his suffering – कोमल, निर्मल, एक लघु कलिका निराली

आगे मिली स्वतंत्रता सेनानी रानी जिनका नाम प्रकाशो भी था और वो यशपाल की मित्र थीं। इनकी बात आगे भी करेंगे।

फिर मिली नीली आँखों वाली आइरिस – जिसकी आँखों की मृगतृष्णा ने बच्चन जी को आकर्षित तो किया किंतु स्वयं एक कभी न पाई जाने वाली मृगतृष्णा ही बनी रही।

और मिली मार्जरी बोल्टन जिसने मधुशाला का अंग्रेज़ी अनुवाद किया था, बच्चन बाबू को लंदन की सैर कराई थी। आयरलैंड में मिली, किलार्नी की सैर कराने वाली स्वप्निल सी नैन्सी जिसके साथ कविराज ने अपने सबसे प्रिय गीतों में से एक लिखा था। बात सकते हैं कौन सा?


एक थी अरमीनिया के एक क्लब की नर्तकी, एक असल साकी बाला।

और एक थी आयर-सागर के मोती सी, अंबर के तारे सी उज्ज्वला, चमकती नोरा – जिसे देखकर हिन्द महासागर के बीच तैरते जहाज पर कवि ने आह भरी और ये छोटी सी, प्यारी सी कविता भी लिख डाली जो उनकी किताब “बसेरे से दूर” में पढ़ी जा सकती है – जो मुझे स्वयं बहुत प्रिय है –


सबसे कोमल - आयर-मधुवन की कलिका का

सबसे निर्मल - आयर-सागर के मोती का

सबसे उज्ज्वल - आयर-अंबर के तारे का

सबसे सजल – मरकत के उजियारे का (ये पंक्ति कहानी के सार में मैंने जोड़ दी)

तुम नाम अगर मुझसे पूछो,

भर आह कहूँगा मैं नोरा


फिर आखिर में मिली तेजी सूरी, जिसकी आँखों में बच्चन जी को खुद के आँसू बहते दिखाई दिए – वेदना से संवेदना जुड़ी और जुड़ा जीवन में एक नया अध्याय, लेकिन वो बातें विस्तार से आगे कभी।


अगले अंक में बात करेंगे स्वाभिमान की, कुछ संकोच की, कुछ पहली हिचकिचाहट की, और उससे आगे बढ़ने की और यदि इंसान में सामर्थ्य हो तो वो क्या कुछ नहीं कर सकता – और मधुशाला के साथ सुनेंगे एक वीर रस की कविता भी।


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