मधुशाला में पर्यावरण संतुलन की बात

Yin-Yang, Sahara-Amazon and Butterfly effect

Madhushala Podcast, Episode 17

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In the previous episode, we time-travelled to Mahabharat era where Guru Drona was testing his students and then we spoke about Koyal’s penance, how it turned from white to black. In this episode, we take a walk in the nature and discuss how far and distant objects in the universe are all linked with each other – as displayed in the first Rubaai today.


पिछले एपिसोड में हमने थोड़ा टाइम-ट्रैवल किया था और हम चले गए थे महाभारत युग में जहां गुरु द्रोणाचार्य अपने शिष्यों की परीक्षा ले रहे थे, और एक बात बताई थी कि कोयल सफेद से काली क्यों हो गई और उसने ऐसी क्या तपस्या की थी। आज हम मधुशाला में प्रकृति की बात कर रहे हैं कि कैसे दूर सुदूर तक के हिस्से एक दूसरे से जुड़े हुए हैं, जैसे आज की पहली चतुष्पदी में सुनते हैं –


सूर्य बने मधु का विक्रेता, सिंधु बने घट, जल, हाला,

सूर्य बने मधु का विक्रेता, सिंधु बने घट, जल, हाला,

बादल बन-बन आए साकी, भूमि बने मधु का प्याला,

झड़ी लगाकर बरसे मदिरा रिमझिम, रिमझिम, रिमझिम कर,

बेलि, विटप, तृण बन मैं पीऊँ, वर्षा ऋतु हो मधुशाला (30)


मधुशाला की खास बात है – कवि ने हाला प्याला मदिरा साकी को कितने रूप दिए हैं – हर रुबाई में वो ज़िंदगी के किसी एक पहलू का रूप अपना लेते हैं!


यहाँ कवि कहते हैं सूर्य आज मधु का विक्रेता यानी wine seller बना है, और हाला हैं नदियां और सागर। उड़ते लहराते बादल साकी के रूप में हैं जो धरती रूपी मधु के प्याले को भरते जाते हैं। और बादलों की गड़गड़ाहट में रिमझिम-रिमझिम की झड़ी लगाकर बरस रही है वो मदिरा है – और प्रकृति का हर पत्ता-पत्ता, बेल-लताएं-पौधे, हर तिनका-तिनका इस मदिरा को पीकर झूम रहा है – और ये जीवंत वर्षा ऋतु ही मधुशाला है!


यहाँ कवि ने आकाश और सूरज से लेकर धरती और तिनके-तिनके को मधुशाला के प्रतीकों से जोड़ दिया है – वैज्ञानिक दृष्टिकोण से सोचें तो environmental ecosystem की भी बात है – सूरज की रोशनी, गर्मी, सागर जल, रिमझिम बारिश, तिनके-तिनके – ये सब interdependent तो हैं ही – एक दूसरे से जुड़े हुए!


अब एक विज्ञान और भूगोल (geography) का किस्सा सुनिए – सहारा रेगिस्तान की धूल और अमेज़न (Amazon) के गहन वर्षा जंगलों में क्या रिश्ता है? सहारा जो दुनिया का सबसे बड़ा रेगिस्तान है – और अमेज़न वर्षा वन (Amazon rain forest) जो दुनिया के सबसे गहन-घने जंगल हैं। सहारा और अफ्रीका के रेगिस्तानों से हर साल रेत के विशाल तूफान उठते हैं और उनसे जो धूल उड़ती है – वो अफ्रीका होते हुए, अटलांटिक महासागर के ऊपर से उड़ते हुए दूर सुदूर अमेज़न के जंगलों में जा कर ठहरती है – और धूल कितनी? हर साल औसतन करीब 180 मिलियन टन! यानी 7 लाख बड़े ट्रक के बराबर! इसमें से करीब 30 मिलियन टन ही अमेज़न के जंगलों तक पहुँचती है, और वो भी एक लाख ट्रक के बराबर है! करीब 50 मिलियन टन अटलांटिक / अंध महासागर में गिर जाती है। अब एक रोचक बात ये है कि सहारा रेगिस्तान में करोड़ों साल पुरानी मृत झीलें हैं जिनके अवशेषों में अरबों खरबों (billions and billions) मृत जीवाश्म (micro-organism) हैं जो अब फास्फरस (phosphorus) में परिवर्तित हो चुके हैं और आपको पता ही होगा कि पेड़-पौधों के विकास में फास्फरस का कितना महत्वपूर्ण योगदान होता है – जो कि अमेज़न में शॉर्ट सप्लाइ में है क्यूँकि वहाँ की ज़िद्दी और घनघोर बारिश काफी कुछ बहा देती है। तो ऐसे में सोचिए के सहारा से उड़ी हुई फास्फरस मिली धूल कितना काम आती है! ये है हमारी धरती की चमत्कारी interdependence – या छोटी से छोटी और बड़ी से बड़ी चीजों की, जीवों की, इंसानों की एक दूसरे पर निर्भरता – आप किसी एक भी हिस्से को निकाल दीजिए, उसका असर सारी सृष्टि में देखने को मिलेगा। Yin और Yang की बात भी है – यहाँ सब एक दूसरे के पूरक ही तो हैं! Butterfly effect भी ये ही होता है कि प्रकृति के किसी भी हिस्से में कितनी ही छोटी हलचल क्यों न हो, उसका कहीं न कहीं, कोई न कोई असर अवश्य होगा!


और मधुशाला की इन पंक्तियों में वर्षा का महत्व भी दिखता है कि पर्यावरण में सब कुछ वर्षा पर कितने निर्भर हैं – और ये पंक्ति तो बिल्कुल वर्ष ऋतु का भीगा मधुर सा एहसास करा देती है –

झड़ी लगाकर बरसे मदिरा रिमझिम, रिमझिम, रिमझिम कर - बेलि, विटप, तृण बन मैं पीऊँ, वर्षा ऋतु हो मधुशाला...

अब अगली चतुष्पदी सुनते हैं -


तारक मणियों से सज्जित नभ, बन जाए मधु का प्याला,

सीधा करके भर दी जाए, उसमें सागरजल हाला,

मत्त समीरण साकी बनकर, अधरों पर छलका जाए,

फैले हों जो सागर तट से विश्व बने यह मधुशाला (31)


(मत्त समीरण = वायु / बयार / Breeze)


पिछली पंक्तियों में जहाँ बात की कि कैसे धरती मधु का प्याला होती है, अब कहते हैं मणियों जैसे चमकते तारों से सुशोभित आकाश को ही उलट कर प्याला बना लें और उसे सागर जल रूपी हाला से भर लें – और कवि तो अपनी कल्पना को यहाँ तक ले जाते हैं के आसमान वास्तव में अभी उल्टा है, उसे सीधा करेंगे तो ही वो प्याला बनेगा! मगर आकाश कैसे प्याला बनता है?


यदि विज्ञान की बात करें तो गर्मी से समुद्रों और नदियों के पानी का वाष्पीकरण होता है और वो बादल बन के जा बैठते हैं आसमान की अलग-अलग ऊंचाइयों पर – और बारिश होती है दूर कहीं और! जैसे पिछली पंक्तियों में सहारा मरुस्थल के तूफान और अमेज़न का जंगलों की बारिश का रिश्ता बताया था – यहाँ भी Yin-Yang वाली बात ही है – यहाँ सब एक दूसरे के पूरक हैं – और ये सारा विश्व एक मधुशाला।


अब आकाश को उलट कर हाला से भरने की बात है तो एक कहानी सुनते हैं –


ये कहानी है बच्चन साहब के बचपन की – उनके जन्म-दिन का अवसर। पाँच प्रकार के अन्न पाँच रंगी हुई टोकरियों में भरकर आँगन में रख दिए गए हैं। परिवार के पुरोहित आए हैं, और नाई, बारी, कहार भी। चम्मा भी आई है (लछमिनियाँ चमारिन याद है न?) – उसे आज एक नई बूटीदार धोती दी गई है, जिसे पहनकर वो दरवाज़े पर एक तरफ़ सिमटी-सी खड़ी है कि उससे कोई छू न जाए, जैसे छू जाए तो अपराध उसी का समझा जाएगा। अगले दृश्य में बच्चन बाबू को नहला-धुला, नए कपड़े पहना के लाया गया है और टोकरियों को लात मारने को कहा गया! नियम ये था कि जो अन्न भूमि पर गिर जाता था, वह चमारिन का होता था, शेष बाकी लोगों का। ब्राह्मण देवता को तो थाली में सीधा सजाकर समर्पित किया जाता था। और जब टोकरियों को ठोकर लगाने आगे बढ़े तो चम्मा गिड़गिड़ा उठती है, ‘जोर से मार, मोरे राजा बेटा; जोर से, अउर जोर से!’ अब छोटे-छोटे नन्हे पाँवों में कितनी ही ताकत होगी और कितना ही अन्न बेचारी चम्मा को मिलता होगा? (बच्चन जी की आत्मकथा "क्या भूलूँ क्या याद करूँ" से)


हाँ, जब कुछ बड़े हुए तो कुछ शरारतन, कुछ चम्मा के प्रति सहानुभूति से लगभग पूरी टोकरियाँ अपनी ठोकरों से उलट दिया करते और चम्मा उन पर खूब आशीष बिखेरती और अपनी पुरानी धोती फैलाकर अन्न बटोरती – जैसे यहाँ मधुशाला की पंक्तियाँ हैं –

तारक मणियों से सज्जित नभ, बन जाए मधु का प्याला, सीधा करके भर दी जाए, उसमें सागरजल हाला


कुछ वर्षों बाद जब बच्चन ने ठोकर मारकर अन्नदान करने से इन्कार कर दिया तो वर्षगाँठों पर तुलादान किया जाने लगा। लकड़ी की टाल से बड़ी-सी तराजू आती, उसे तीन बल्लियों (wooden beams) के सहारे लटकाया जाता, आम के पल्लवों और गेंदे के फूलों से सजाया जाता और बालक बच्चन को किसी वर्ष अन्न से, किसी वर्ष फल, किसी वर्ष मिठाई से तोला जाता! …हमारे समाज की भी क्या अजीबोगरीब परंपराएँ हैं!


अगले एपिसोड में बात करेंगे मधुशाला में nostalgia और augmented reality की, कि कैसे कुछ पुराने चेहरे और दृश्य एक बिल्कुल अलग और नए परिप्रेक्ष्य में दिखने लगते हैं, और सुनाएंगे एक सुंदर सी कहानी मरकत द्वीप की, मरकत द्वीप अर्थात emerald island, ज़रा सोच कर बताइएगा यहाँ कौन से देश का ज़िक्र हो रहा है?


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