बच्चन और चमारिन अम्मा की कहानी

Stories from Bachchan's Childhood

Madhushala Podcast, Episode 12

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In the previous episode, we discussed the story behind the name “Harivansh Rai” and of a bad experience Bachchan had as a kid for being a Kayasth, and how this experience impacted his poetry. We continue talking about some of Bachchan’s childhood memories in this episode, especially who was Chamarin Amma (aka Chamma) in Bachchan's life.


पिछले अंक में हमने बात की थी कि कविराज बच्चन जी का नाम हरिवंश राय कैसे रखा गया और सुनाया था एक किस्सा उनके बचपन का जब कायस्थ होने की वजह से उनका एक बार अपमान हुआ था और इसका असर उन पर क्या पड़ा! आज उसी सिलसिले में बच्चन जी के बचपन की कुछ और बातें। मधुशाला में कई कविताओं में देखने को मिलता है कि कैसे मधुशाला धर्म जाति और समाज के रूढ़िवादी रीति रिवाजों से दूर रहने का संदेश देती है, जैसे ये कविता सुनिए -


कोई भी हो शेख नमाज़ी या पंडित जपता माला,

बैर भाव चाहे जितना हो मदिरा से रखनेवाला,

एक बार बस मधुशाला के आगे से होकर निकले,

देखूँ कैसे थाम न लेती दामन उसका मधुशाला (51)


अब बच्चन जी के जन्म के वक्त की बात है - पंडितों ने पैसा ऐंठने के लिए उनके माता पिता से कहा कि लड़का मूल नक्षत्र में पैदा हुआ है इसलिए पितृ घातक है (यानी पिता की मृत्यु का कारण बन सकता है) लेकिन पिताजी प्रताप नारायण जी ने अपने सीमित ज्योतिष ज्ञान से साबित कर दिया कि वो मूल नक्षत्र है ही नहीं! बड़े होने पर इस घटना पर बच्चन साहब ने कभी कौतुक किया होगा और सोचा होगा के शायद ऐसा हुआ भी हो! अवश्य ही मूल नक्षत्र की पैदाइश रही होगी तभी तो जीवन और कला सृजन के क्षेत्रों में कुछ ‘मौलिक’ यानि Original, या कुछ नया करने की हमेशा आदत फितरत रही है -

मैं गाऊँ तो मेरा कंठ स्वर न दबे औरों के स्वर से, जीऊँ तो मेरे जीबन की औरों से हो अलग रवानी


और बाकी आपके पास कुछ करने की लगन हो तो कोई कैसे रोक सके – हर बात का उपाय निकल ही आएगा - एक बार बस मधुशाला के आगे से होकर निकले, देखूँ कैसे थाम न लेती दामन उसका मधुशाला!

इसी बात पर अगली कविता में देखिए मधुशाला पथिक का दामन कैसे थाम लेती है -


पथिक बना मैं घूम रहा हूँ, सभी जगह मिलती हाला,

सभी जगह मिल जाता साकी, सभी जगह मिलता प्याला,

मुझे ठहरने का, हे मित्रों, कष्ट नहीं कुछ भी होता,

मिले न मंदिर, मिले न मस्जिद, मिल जाती है मधुशाला (47)


तो क्या हुआ के आपके पास ठिकाना हो न हो, साधन इत्यादि हों न हो – या कभी हमे लगता है के जो हमें मिलना चाहिए वो नहीं मिलता है – इसका मतलब ये नहीं के संतुष्टि ही न मिले – हो सकता है हम गलत दिशा में देख रहे हों, जैसे एक मित्र ने कहा – Tangible milestones are sometime more deceptive! लेकिन अगर कुछ करने में संतुष्टि मिलती है, खुशी मिलती है तो करते जाएँ – बेबाक बेधड़क बेफ़िक्र!


एक और पहलू है - यहाँ बात है बंजारेपन की और फिर से एलिस इन वन्डर्लैन्ड वाला मैसेज – या फिर जैसा रूमी ने कहा - what you seek is seeking you. जो आप तलाश कर रहे हैं – वो भी आप को तलाश कर रहा हो सकता है। किसी भी क्षेत्र में Research students जब कोई प्रोजेक्ट शुरू करते हैं और उलझे होते हैं की कहाँ से शुरू करें तो हम उन्हें ये ही शिक्षा देते हैं कि कहीं से भी शुरू कर दो – आगे राह अपने आप बनती जाएगी – और आजकल IT वाले लोग जो Lean Mean Agile की बातें करते हैं न, वो भी तो ये ही है की खटाखट कुछ नया बनाओ, फीडबैक लो, और improve करते जाओ।


अब जैसे पॉडकास्टिंग की ही बात लीजिए - Podcasting journey के बारे में ये सवाल अक्सर पूछा जाता है कि How do you get started? वहाँ हम कहते हैं कि अगर आप ने एक Why और What को फिगर आउट कर लिया तो बस - फिर किसी भी मार्ग से चल पड़ो – मंज़िल अपने आप मिल ही जाएगी और एक सवाल ये भी पूछा जाता है कि When do you know you’re ready? यहाँ विद्वान लोग कह गए हैं - Done is better than perfect and Perfection is the enemy of good!


बजी नफ़ीरी और नमाज़ी भूल गया अल्लाताला,

गाज गिरी, पर ध्यान सुरा में मग्न रहा पीनेवाला,

शेख, बुरा मत मानो इसको, साफ़ कहूँ तो मस्जिद को

अभी युगों तक सिखलाएगी ध्यान लगाना मधुशाला (49)


अगर आप जगजीत सिंह की गजलें सुनते हैं तो एक याद होगी – शेख जी थोड़ी सी पीकर आइए, मय है क्या शय फिर हमे बतलाइए – सुदर्शन फाकिर की खूबसूरत ग़ज़ल है। एक बात कभी समझ नहीं आई के ये सारे शायर और कवि बेचारे किसी शेख जी को क्यूँ आड़े हाथों लेते रहते हैं! खैर, यहाँ कह रहे हैं के एक नफ़ीरी क्या बाजी, नमाज़ी अपनी नमाज़ भूल गया मगर दूसरी तरफ एक पीने वाला है के चाहे गाज गिरे या भूचाल आए, वो अपने सुरा के ध्यान में ही मस्त रहता है। अब मधु पान करने वाले योगी जैसे ही तो होते हैं – अपने ध्यान में मस्त – इसीलिए कहा कि मधुशाला किसी को भी ध्यान लगाना सिखला सकती है!


पुराने ज़माने में बच्चा जनाने के लिए दाई (midwife) आया करती थी, नर्स या डॉक्टर तो होते नहीं थे – तो बच्चन जी के परिवार में एक लछमिनियाँ नाम की चमारिन आती थी – चमारिन कहना इसलिए ज़रूरी है क्यूँकि ये बात जात पात की है। हुआ ये कि बच्चन जी पैदा हुए तो उनकी माँ ने उन्हें पाँच पैसे में लछमिनियाँ चमारिन के हाथों बेच दिया और उनके बतासे मँगाकर खा लिए। साल-भर पहले लछमिनियाँ का अपना एकमात्र लड़का कुछ महीने का होकर गुज़र गया था और उसने बारह दिन तक बच्चन जी को अपना दूध पिलाया – कहते हैं ऐसा करना भाग्य के लिए अच्छा होता था – कुछ बड़े हुए तो बालक हरिवंश को सिखाया गया के उसे चमारिन अम्मा कहना है लेकिन बच्चे नाम सही कहाँ ले पाते हैं तो बच्चन बाबू ने उसे संक्षिप्त करके चम्मा कहना शुरू कर दिया और अपनी खुद की माँ को अम्मा।


बालक हरिवंश को मोल लेने के बाद चम्मा की खुद की कोई सन्तान नहीं हुई - उसकी ममता और स्नेह तो बच्चन जी को मिला किंतु वो बालक उसका होकर भी उसका नहीं था! चम्मा हरिवंश राय को कितनी भाव-अभाव भरी दृष्टि से देखती होगी; ये सोचना ही बड़ी भावुक बात है।


आज यहीं विराम। अगले अंक में बात करेंगे बच्चन जी के गुरु प्रोफेसर अमरनाथ झा की और उन्होंने अपनी मृत्यु के बारे में पहले से ही क्या तय कर लिया था और एक कहानी सुख और दुख साथ आने की, और कुछ हल्की फुल्की बात ग़ालिब और इकबाल की

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