भरत, भगवान, भक्त, भक्ति, भरोसा, भावना आदि ‘भ’ अक्षर से प्रारंभ होने वाले अनेक ऐसे शब्द है, जो भारतीय संस्कृति में अपना विशिष्ट महत्व रखते हैं। भारतीय महीनों में भाद्रपद भी ऐसा माह है, जो सर्व सामान्य को भद्र बनने की प्रेरणा देता है। पावस ऋतु में आने वाले इस भाद्रपद माह के अवसर पर ‘भ’ अक्षर से ही प्रारंभ होने वाले तीन शब्द भाषा, भूषा तथा भोजन विशेष रूप से विचारणीय है। इन तीनों शब्दों पर विचार कर इनका महत्व समझकर अपने आचार—विचार तथा व्यवहार मेंं इनका समुचित प्रयोग हमें भी भक्त से भगवान बनने की राह का पथिक बना सकता है, भद्र बना सकता है, भव्य बना सकता हैै। भारतवर्ष अपनी संस्कृति के लिये विश्वविख्यात है। वस्तुत: भारतीय संस्कृति संस्कारों की आधारभूमि है। अपनी संस्कृति की रक्षार्थ भद्र बनने के लिये हमें भाषा, भूषा और भोजन के विषय में विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।
भाषा — भाषा मनुष्य के लिये प्रकृति का अनमोल उपहार है, जगत के समस्त प्राणियों में मनुष्य ही भाषा के माध्यम से अपने विचारों और भावनाओं की अभिव्यक्ति दे सकता है, किसी भी अन्य प्राणी को इस रूप में भाषा प्राप्त नहीं है। भाषा वह माध्यम है, जो संसार के किसी भी प्राणी से मित्रता का संबंध स्थापित कर सकता है और भाषा का ही दुरुपयोग विवादों का मूल कारण बन जाता है। अतएव जैन शास्त्रों में पंच समितियों में से एक भाषा समिति का पालन कर शिष्ट बनने पर, दशलक्षण पूजन में ’कठिन वचन मत बोल परनिन्दा अरु झूठ तजि। सांच जवाहर खोल सतवादी जग में सुखी’ कहकर दूसरों की निंदा का त्याग, झूठ का त्याग कर, कठोर वचन न कहने का प्रण लेकर सत्य और मृदु वचन कहने की प्रेरणा दी है, सन्त कबीर ने वाणी का ही महत्व प्रतिपादित करते हुए कहा है।ऐसी वाणी बोलिये मन का आपा खोय, औरन को शीतल करे आप ही शीतल होय। निस्सन्देह मृदु और मधुर वचन बोलने और सुनने वाले दोनों के ही मन को शांत करते हैं जबकि कटु और कठोर वचन क्रोध की उत्पत्ति का कारण बनकर दोनों के ही मन को अशांत कर देते हैं। निम्नांकित सुप्रसिद्ध कथन भी वाणी के प्रभाव से ही इंगित करता है—मधुर वचन है औषधि, कटुक वचन है तीरयह कथन भी प्रसिद्ध ही है कि कदाचित् गोली लगने से हुआ घाव भर जाता है किन्तु बोली अर्थात् कटु वचन का घाव कभी नहीं भरता, वह आजीवन शल्य की तरह चुभन पैदा करता रहता है।
इतना ही नहीं कभी—कभी तो वह भयावह प्रतिशोध का रूप भी धारण कर लेता है। अत: परस्पर व्यवहार करते समय हमें भाषा प्रयोग पर विशेष ध्यान देना चाहिए। व्यवहार रूप में यदि सर्वेक्षण किया जाये तो ९० से ९५ प्रतिशत विवादों की जड़ बोली अर्थात् भाषा ही होती है। नीतिग्रन्थ में कहा गया निम्नांकित श्लोक अनुकरणीय है :—
सत्यं ब्रूयात् प्रियं ब्रूयात मा ब्रूयात सत्यमप्रियम् ।
अर्थात् सत्य बोले, प्रिय बोले, असत्य प्रिय कदापि न बोले। हमें चाहिए कि हम हित—मित —प्रय वचनों के प्रयोग से ईश्वर द्वारा प्रदत्त अनमोल उपहार का सदुपयोग करें, आदर करें।
भूषा—मनुष्य के विकास क्रम में भूषा अर्थात् वस्त्र सर्वप्रथम सर्दी, गर्मी, हवा, पानी आदि से शरीर रक्षा का आधार बनी। शनै: शनै: मनुष्य की कलात्मक अभिरुचि में वृद्धि के फलस्वरूप भूषा सुंदरता का मापक बनी और आधुनिक युग में यही भूषा तथाकथित फैशन का अभिन्न अंग बन गयी है। खेद का विषय है कि विगत कुछ वर्षों से हम भारतीयों में आधुनिकता का बाना ओढ़ने वाले अनेक लोगों द्वारा पाश्चात्य संस्कृति का अंधानुकरण करते हुए परिधानों का उपयोग अनुचित ढंग से किया जाने से किया जाने लगा है। विशेष रूप से महिलाओं, युवतियों और बालिकाओं द्वारा धारण किये जाने वाले चुस्त और आकार में छोटे होते जा रहे परिधान भारतीय संस्कृति और सामाजिक मर्यादाओं का उल्लंघन करते हुये देखे जा रहे हैं, जो दर्शकों की दृष्टि में विकारों को जन्म देते हैं और ऐसी कामुक वेशभूषा ही महिलाओं के प्रति बढ़ते जा रहे दुराचारों के प्रति भी किसी हद तक उत्तरदायी है। फैशन के इस आधुनिक दौर में छोटी—छोटी बच्चियों को सीमित आकार की वेशभूषा पहनाकर अभिभावक बहुत प्रसन्न होते हैं। बहुधा कहा भी यह जाता है कि बच्चों पर तो छोटे—छोटे वस्त्र बहुत सुंदर दिखाई देते हैं। भला, छोटी बच्चियों को इस तरह के परिधान पहनाने में कौन सी हानि है? लेकिन यह सोचना गलत होगा क्योंकि यदि बचपन से ही बच्चियों को इस तरह के खुले—खुले से परिधानों की आदत हो जाती है तो बड़े होकर वे मर्यादित वेशभूषा पहनने में असहजता का अनुभव करने लगती है। अत: अपने बच्चों को कामीजन की कुदृष्टियों से बचाने और उनकी सुरक्षा करने हेतु अभिभावकों को विशेष रूप से ध्यान रखते हुए उन्हें मर्यादित वेशभूषा ही पहनाना चाहिए। वर्तमान में तो बालिकाओं की ही नहीं, वरन आये दिन होने वाली पर्टियों या विविध आयोजनों में महिलाओं की वेशभूषा भी समाज के लिये शोचनीय विषय बनती जा रही है। देह प्रदर्शन करने वाली डिजाइन्स के परिधान पहनने वाली नवयुवतियां, महिलाएं बलात् लोगों का ध्यान आकृष्ट करती है। उत्तेजक वेशभूषा को देखकर उपजी दुर्भावनाएं ही समाज में स्त्रियों के प्रति छीटाकशी, छेड़छाड़, अपहरण, बलात्कार जैसी शर्मनाक घटनाओं का कारण बनती है। अत: हम यदि वास्तव में भारतीय संस्कृति और भारतीय मूल्यों की रक्षा करना चाहते हैं तो हमें परिवार के प्रत्येक सदस्य की वेशभूषा के प्रति सजग होना होगा। मर्यादित वेशभूषा देश में तेजी से बढ़ते जा रहे स्त्रियों के प्रति दुराचार और अत्याचारों पर अंकुश लगाने में मददगार सिद्ध होगी। भोजन — रोटी, कपड़ा और मकान, जीवन की इन तीन प्रमुख आवश्यकताओं में रोटी अर्थात् भोजन मनुष्य की प्रमुख आवश्यकता है। सुप्रसिद्ध कथन है—‘जैसा खाओ अन्न, वैसा होगा मन’ अर्थात् हम जैसा भोजन करेंगे हमारा मन वैसा ही होगा । शुद्ध सात्विक भोजन मन को निर्मल एवं शान्त रखता है, वहीं अभक्ष्य वस्तुओं से निर्मित भोजन मनुष्य की तामसिक वृत्ति को बढ़ाता है। वैज्ञानिक तथ्य है कि तामसिक वृत्ति क्रोध और वासनाओं को जन्म देती है और मन को विकारग्रस्त कर देती है। विकृत मन मनुष्य को अपराधी तक बना देता है। अत: भोजन के विषय विचार मंथन कर आवश्यकता है। हम क्या खाएं और क्या न खाएं? इस विषय में विवेक पूर्वक निर्णय लें। यथासंभव घर में बना हुआ शुद्ध भोजन निर्धारित समय पर करें। होटलों में सड़ी—गली सब्जियां बिना साफ किये खाद्यान्न, मिलावटी तेल—घी और मसालों से युक्त बिना छने जल में पकाये गये भोजन से परहेज करें। बच्चों को जंकफूड खाने से रोके। क्योंकि होटल में निर्मित भोजन स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है, जबकि घर में माता, बहन अथवा जीवन में संगिनी के हाथों यत्नपूर्वक शोधन की गयी खाद्य सामग्री से स्नेहपूर्वक बनाया गया शुद्ध, सात्विक तथा स्वादिष्ट भोजन खाने वाले की क्षुधा को शांत कर न केवल तन को हष्ट—पुष्ट और स्वस्थ बनाये रखता है वरन् मन को भी स्वस्थ और सबल बनाता है। संतुलित, शुद्ध सात्विक भोजन सदैव स्वस्थ तन—मन का आधार है। अत: भोजन के विषय में विशेष सावधानी बरतने की आवश्यकता है। इस प्रकार ‘भत्रय’ अर्थात् भाषा, भूषा और भोजन त्रियोग अर्थात् मन — वचन और काय — इन तीनों को संवारने में समर्थ है। भोजन से मन, भाषा से वचन तथा भूषा से काया की शुचिता होती है। हम मृदु, मधुर और सत्यनिष्ठ भाषा, मर्यादित एवं शालीन भूषा तथा शुद्ध शाकाहारी, सात्विक एवं संतुलित भोजन को अपनाकर अपने व्यक्तित्व को भद्रता के शृंगार से सुसज्जित कर जीवन को सफल एवं सार्थक बनाने की दिशा में कदम बढ़ा सकते हैं।