1. परिवार में वैर—विरोध की कैंची नहीं, प्रेम और मोहब्बत के सुई—धागे की जरूरत है ताकि टूटते हुए रिश्तों को फिर से बांधा जा सके।
2. हमें मालिक बनकर नहीं माली बनकर परिवार को संभालना चाहिए।मालीउपवन के छोटे से छोटे पौधे का ख्याल रखता है पर किसी पर मालिकाना हक नहीं जताता।
3. बेटी को लक्ष्मी कहते हैं पर बहू को गृहलक्ष्मी । लक्ष्मी आती है, वापस जाती भी है, पर गृहलक्ष्मी सदा घर में बनी रहे इस हेतु प्रेम का रस घोलते रहिए।
4. मंदिर में हम आधा घंटा रहते हैं पर घर में हम २४ घंटे रहते हैं। अपने धर्म की शुरूआत घर से ही कीजिए। घर में मंदिर नहीं घर को ही मंदिर बना लीजिए।
5. दुनियां में दो लोगों को सबसे ज्यादा प्यार कीजिये— पहले वे जिन्होंने आपको जन्म दिया, दूसरे वे जिन्होंने आपके लिये जन्म लिया।
6. बहू से राड मत कीजिये, उसका लाड कीजिये। ओछा नहीं अच्छा व्यवहार कीजिए, नहीं तो वक्त आने पर वह तुम्हारे पुत्र के साथ वनवास चली जाएगी पर यह कहकर कि इस सासू मां के साथ रहने की बजाय वनवास में रहना ज्यादा अच्छा है।
7. बहूरानी। अपनी सासू मां को उतने वर्ष जरूर निभा लेना जितने वर्ष का उन्होंने तुम्हें पति दिया। सास से कभी जुदा मत होना क्योंकि यही वह महिला है जिसकी कोख में तुम्हारा सुहाग पला है।
8. जिन मूर्तियों को हम बनाते हैं हम उनकी तो पूजा करते हैं, पर जिन्होंने हमें बनाया हम उन माता–पिता की पूजा क्यों नहीं करते
9. परिवार में वह बड़ा नहीं जो उम्र में बड़ा हो या पैसा ज्यादा कमाता हो, परिवार में वह बड़ा होता है जो परिवार को एक रखने के लिये वक्त आने पर बड़प्पन दिखाता है।
10. सास के कहे को बुरा मत मानिए। सास शक्कर की हो तब भी शक्कर तो मारती ही है।
11. घर का स्वर्ग है भाई—भाई के बीच प्रेम और त्याग की भावना ।घर का नरक है मनमुटाव और स्वार्थ की भावना।
12. बच्चों को कार नहीं संस्कार दीजिए इससे आपका गौरव बढ़ेगा और बच्चे बेहतर नागरिक बनेगें।
13.बुढ़ापे को विषाद नहीं प्रसाद बनाएँ । २१ के थे तो शादी की तैयारी की थी, पर ५१ के होने पर शांति की तैयारी शुरू कर दें। दादा बन जाएं तो दादागिरी छोड़ दें और परदादा बन जाएं तो दुनियादारी।
14. परिवार में जब भी धन का बंटवारा हो तो अपने हिस्से में एक धन जरूर लेना वह है माता—पिता की सेवा। दूसरे धन तो धूप —छांव के खेल की तरह हैं, पर माता—पिता की सेवा इस जन्म में भी काम आएगी और अगले जन्म में भी।
15. परिवार में सदा मधुर वाणी का उपयोग कीजिये। कड़वे वचनों के तीर घाव कर देते हैं। याद रखिए, दीवार में कील ठोककर वापस निकाल भी दी जाए फिर भी निशान जरूर शेष रहता है।।
मनुष्य जैसा संकल्प करने लगता है वैसा ही आचरण करता है, धीरे-धीरे वैसी ही इच्छाएँ हो जाती हैं और फिर उसी के अनुसार वार्ता, आचरण, कर्म और कर्मों की गति भी होती है। स्पष्ट है कि अच्छे आचरण के लिए अच्छे विचारों व चरित्र की आवश्यकता होती है, परन्तु आज के इस युग में दिखावा और अन्धविश्वास इतना बढ़ता जा रहा है कि हमें अपने मंत्रो, पाठ व देवशास्त्रगुरु पर शृ्रद्धा व विश्वास धीरे-धीरे घटता नजर आ रहा है। दोष किसे दें ? स्वयं को, आने वाली पीढ़ी को या फिर बढ़ती हुई नई तकनीकी सुविधाओं को ? या फिर इन सबसे अलग अपने कर्मों को ? कर्म अच्छे व बूरे नहीं होते हैं बल्कि हमारी मानसिकता ही उन्हें अच्छा व बुरा रूप प्रदान करती है। आज हमारी मानसिकता इतनी संकीर्ण व छोटी हो गई है कि जो हमें अच्छे व बुरे की पहचान भी नहीं करा पाती है। अन्धविश्वास का चलन भी इतना बढ़ गया है कि जिसने जो कहा या कोई भी उपाय बताया तो हम तुरन्त उसे करने लगते हैं सोचते भी नहीं है कि हम सही कर रहे हैं कि गलत, क्योंकि हम ‘‘लकीर के फकीर’’ हैं। जरा सी परेशानी हुई कि हम नारियल लेकर चल देते हैं किसी भी देवी-देवता से मन्नत माँगने, किसी मजार पर चादर चढ़ाने या कही माथा टेकने, आखिर क्यों ? हमारा विश्वास ‘‘णमोकार मंत्र’’और ‘‘भक्तामर’’ पर नहीं टिकता……… क्यों भटक जाते हैं हम ? क्यों हम इन रूढ़िवादी अन्धविश्वास को इतना महत्व देते हैं, क्या कभी किसी अजैन को हमने परेशानी में ‘‘णमोकार मंत्र’’ और ‘‘भक्तामर’’ का जाप करते देखा है ? विधान करते देखा है ? नहीं तो ? फिर क्यूं हम अपनी शृ्रद्धा व विश्वास अपने मंत्र व पाठ पर नहीं रख पाते। दुनियाँ का हर व्यक्ति केवल सुख ही चाहता है। दुख से सब दूर भागते हैं। सुख पाने की चाहत में ही वो तरह-तरह के आडम्बरों को करता रहता है और इसलिए पाप बंध को बांधता चला जाता है और पाप बंधने के कारण सुखी नहीं रह पाता है। सुखी और शान्त जीवन व्यतीत करने के लिये हमें धर्म की शरण में जाकर धर्म के मर्म को समझना चाहिये न कि कर्मकांड और आडम्बरों में फंसना चाहिए। सूरज की किरण अंधकार भगा देती है बंसत की बहार मुरझाए फूल खिला देती है ‘‘णमोकार मंत्र’’ और ‘‘भक्तामर’’ में इतनी शक्ति है कि सोये हुए भाग्य को जगा देती है। दिखावा, आडम्बरों व अन्धविश्वास के भटकाव को छोड़कर हमें अपनी आत्मा को जगाकर उसपर विश्वास करना चाहिये तभी सुख, समृद्धि व सफलता कदम चूमेगी।