वर्तमान जीवन तीन बिन्दुओं से घिरा हुआ । जिसके कारण जीवन अशांत है। अस्थिर है, भयभीत है और दुखों से भरा है। हर कोई द्वन्द्व व द्वेष में डूबा हुआ है। अविश्वास और अराजकता की आग से अग—जग आज धधक रहा है। पूजा उपासना भक्ति उसे राहत नहीं पहुँचा पा रही है । तब हम यह सोचने को मजबूर हो जाते हैं। कि आखिर ये तीन बिन्दु कौन से हैं जिनसे आज मानवता सिसक रही है और दानवता अट्टाहास करती नजर आ रही है। ये तीन बिन्दु है:— आग्रह, आकांक्षा और अहंकार। आग्रह से जीवन में कटुता आती है। आकांक्षा से अविश्वास और अहंकार से अराजकता सहज ही विस्तार पा जाती है। इनसे बचने के लिये तीर्थंकर महावीर ने हमें तीन सूत्र दिये। इन सूत्रों को अपने जीवन में जो अंगीकार कर लेता है। वह सदा सुखी रहता है। क्योंकि उसमें अतीत की समझ वर्तमान पर नियंत्रण और अनिश्चिता पूर्ण भविष्य के लिये तैयार करने की क्षमता उद्भूत हो जाती है। अंततोगत्वा हम वर्तमान की और बढ़ते हुए ‘वद्र्धमान’ को समझने में सक्षम हो जाते हैं। तीर्थंकर महावीर के तीन सूत्र हैं—अनेकांत अपरिग्रह और अहिंसा । जब हमारी दृष्टि हमारा सोच एकांगी होता है, तब एकांत उद्भूत होता है। एकांत से आग्रह पलता और बढ़ता है तो कलह का कारण बनता है घर घेर बन जाता है दीवारें खड़ी हो जाती है, मनमुटाव के समन्दर में ज्वार आ जाता है। आज घर—घर की कहानी एकांत से अनुस्यूत है वहाँ आग्रह को तरजीह दी जाती है। जो मैं कह—सोच रहा हूँ, वह ही सही है, यह ही व्यक्ति को विनाश के कगार पर ले जाता है। उसमें सोचने — समझने की दृष्टि व क्षमता संकीर्ण हो जाती है। यदि हर कोई दूसरे की बात को समझे बिना अपनी बात को ही सही मानने की जिद करे तो लड़ाई—झगड़ा होते देर नहीं लगेगी। और आज घर—बाहर यही सब कुछ हो रहा है। ऐसी स्थिति में तीर्थंकर महावीर का अनेकांत बड़ा कारगर है। इसके अनुसार पदार्थ में अनंत गुण विद्यमान हैं जिन्हें अपेक्षा के माध्यम से ही समझा जा सकता है। किस अपेक्षा से कौन सी बात कही जा रही है उसे उसी अपेक्षा से ग्रहण किया जाऐ तो जीवन में कटुता नहीं, सौहार्दता संचरित रहेगी फिर अनेकता में एकता के स्वरों की अनुगूंज व्यक्ति, परिवार व समाज को बाँटेगी नहीं बाँधे रखेगी। तीर्थंकर महावीर का दूसरा सूत्र है अपरिग्रह। आज समग्र जीवन आकांक्षाओं, इप्साओं, लालसाओं व आसक्तियों से घिरा हुआ है । आकांक्षाओं के वशीभूत व्यक्ति को अर्थ का अनर्थ करने में देर नहीं लगती। परिग्रही प्रवृत्ति व्यक्ति को भ्रष्ट बनाती है। आज समाज और देश में भ्रष्टाचार जिस द्रुतगति से पनप रहा है। उसका मूल कारण परिग्रही प्रवृत्ति है।ऐसी प्रवृत्ति से ‘तेरा—मेरा’ उभर कर मानव—मानव में खाई या दरार पैदा हो जाती है। तीर्थंकर महावीर के अपरिग्रह सूत्र से इच्छाओं पर अंकुश लगाया जा सकता है जिसमें अनीति, अत्याचार, उत्पीड़न, कालाबाजारी, रिश्वतखोरी तज्जन्य भ्रष्टाचार न केवल रूकेगा वरन् पूरी तरह से लुप्त—विलुप्त हो जायेगा और हमारा देश एक आदर्श देश के रूप में जाना जाएगा। तीर्थंकर महावीर का तीसरा सूत्र है अहिंसा। जब तक राग और द्वेष का पहिया हमारे जीवन से जुड़ा रहेगा। तब तक हिंसा का तांडव हमें दिखाई देता रहेगा। हिंसा के मूल में है अहंकार। अहंकार पतन का द्वार है। उसमें विवेक नहीं, अज्ञान आच्छादित रहता है। जिसके रहते हम अपने को उत्कृष्ट और दूसरे को निकृष्ट मानने लगते हैं। जिससे समता मिटती है और विषता उफनती है। विषमता के इस उफान से अलगाववादी प्रवृत्तियां अंततोगत्वा आतंकवाद का रूप ले लेती हैं। वास्तव में आतंकवाद अहंकार की देन है। अहंकार को मिटाने के लिये तीर्थंकर महावीर मार्दव भाव को जीवन में विकसित करने की बात करते हैं। जहाँ मार्दव भाव है, वहाँ अहिंसा है, जीवन है, खुशियाँ हैं। अंतत: उपर्युक्त इन तीन बिन्दुओं को जिस पर वर्तमान जीवन दौड़ रहा है रोकने के लिये तीर्थंकर महावीर के तीन सूत्र जहाँ उपयोगी व उपादेयी है। वहाँ सार्थक सार्वजनीन व सार्वकालिक भी हैं जो जीवन को अनंत आनंद से आप्लावित करने की अमोघ शक्ति रखते हैं इतना ही नहीं अनंत सद्गुणों से सम्पृक्त अंतस् को उघाड़ते और उभारते भी हैं।