शिक्षा के क्षेत्र में एक क्रांतिकारी परिवर्तन की शुरुआत

नई शिक्षा नीति - 2020

सरिता सुराणा

'नई शिक्षा नीति का उद्देश्य हमारे बच्चों को उनकी जड़ों से जोड़े रखकर उनमें ग्लोबल सिटीजन बनने की क्षमता विकसित करना है। देश के आगे बढ़ने में इनोवेशन और रिसर्च बेहद जरूरी है इसलिए नई शिक्षा नीति में नेशनल रिसर्च फाउंडेशन का प्रावधान रखा गया है।' - प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी

हाल ही में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने 29 जुलाई 2020 को नई शिक्षा नीति को मंजूरी दी थी। यह 34 वर्ष पुरानी शिक्षा नीति का स्थान लेगी। हमारे देश में समय-समय पर शिक्षा नीति में बदलाव किए जाते रहे हैं। सबसे पहली शिक्षा नीति पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने सन् 1968 में शुरू की थी। उसके बाद राजीव गांधी की सरकार ने सन् 1986 में दूसरी शिक्षा नीति बनाई, जिसमें नरसिम्हा राव सरकार ने सन् 1992 में कुछ बदलाव किए थे।

परिवर्तन समय की मांग है इसलिए पुरानी शिक्षा नीति जो कि एक तरह से लाॅर्ड मैकाले की सस्ते क्लर्क तैयार करने की नीति पर आधारित थी, बदलते परिप्रेक्ष्य में प्रभावहीन हो रही थी। उससे देश में बेरोजगारी बढ़ रही थी, ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट छात्रों की फौज तैयार हो गई थी लेकिन उनके पास कोई हुनर या कौशल नहीं था। वे सब सरकारी नौकरी पाने के इच्छुक थे लेकिन कोई भी अपना पुश्तैनी कारोबार या अन्य काम नहीं करना चाहता था। ये वह पढ़ा-लिखा वर्ग था जो शारीरिक श्रम को हेय दृष्टि से देखता था। उसे बदलने के लिए मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने नई शिक्षा नीति का ड्राफ्ट तैयार करके उसके बारे में जनता से राय मांगी थी। इससे पूर्व नई शिक्षा नीति तैयार करने के लिए 31 अक्‍टूबर, 2015 को सरकार ने पूर्व कैबिनेट सचिव टी.एस.आर. सुब्रह्मण्यन की अध्यक्षता में पांच सदस्यों की एक कमेटी बनाई थी। उसने 27 मई, 2016 को अपनी रिपोर्ट दी। इसके बाद 24 जून, 2017 को इसरो के पूर्व प्रमुख रहे वैज्ञानिक के कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता में नौ सदस्यों की कमेटी को नई शिक्षा नीति का ड्राफ्ट तैयार करने की जिम्मेदारी दी गई थी। 31 मई, 2019 को उनके द्वारा तैयार ड्राफ्ट एचआरडी मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक को सौंपा गया। ड्राफ्ट पर एचआरडी मंत्रालय ने लोगों के सुझाव मांगे थे। इस पर दो लाख से ज्यादा लोगों के सुझाव आए और इसके बाद 29 जुलाई को केंद्रीय कैबिनेट ने नई शिक्षा नीति के ड्राफ्ट को मंजूरी दे दी। आइए जानते हैं कि इस नई शिक्षा नीति 2020 के प्रमुख बिन्दु क्या हैं-

स्कूली शिक्षा में बदलाव

* नई शिक्षा नीति में पहले जो 10+2 की पंरपरा थी, अब वो खत्म हो जाएगी। अब उसकी जगह सरकार 5+3+3+4 की नई व्यवस्था लेकर आई है। 5+3+3+4 में 5 का मतलब है - तीन साल प्री-स्कूल के और क्लास 1 और 2 उसके बाद के 3 का मतलब है क्लास 3, 4 और 5 उसके बाद के 3 का मतलब है क्लास 6, 7 और 8 और आख़िर के 4 का मतलब है क्लास 9, 10, 11 और 12।

यानी अब बच्चे 6 साल की जगह 3 साल की उम्र में फ़ॉर्मल स्कूल में जाने लगेंगे। अब तक बच्चे 6 साल में पहली क्लास में जाते थे, तो नई शिक्षा नीति लागू होने पर भी 6 साल में बच्चा पहली क्लास में ही होगा, लेकिन पहले के 3 साल भी फ़ॉर्मल एजुकेशन वाले ही होंगे। प्ले-स्कूल के शुरुआती साल भी अब स्कूली शिक्षा में जुड़ेंगे।इसका मतलब यह है कि अब राइट टू एजुकेशन का विस्तार होगा।पहले 6 साल से 14 साल के बच्चों के लिए आरटीई लागू किया गया था, अब 3 साल से 18 साल के बच्चों के लिए इसे लागू किया गया है। ये फार्मूला सरकारी और प्राइवेट सभी स्कूलों पर लागू होगा।

* अभी हमारा स्कूली सिस्टम 10+2 है, यानी 10वीं तक सारे सब्जेक्ट और 11वीं में स्ट्रीम तय करनी होती है। नए सिस्टम को 5+3+3+4 बताया गया है, इसमें स्कूल के आखिरी चार साल यानी 9वीं से लेकर 12वीं तक को एक समान माना गया है, जिसमें सब्जेक्ट गहराई में पढ़ाए जाएंगे, लेकिन स्ट्रीम चुनने की जरूरत नहीं होगी, मल्टी स्ट्रीम पढ़ाई होगी। फिजिक्स वाला चाहे तो हिस्ट्री भी पढ़ पाएगा या कोई एक्स्ट्रा करिक्यूलम एक्टिविटी, जैसे म्यूजिक या कोई गेम है, तो उसे भी एक सब्जेक्ट की तरह ही शामिल कर लिया जाएगा। ऐसी रुचि वाले विषयों को एक्स्ट्रा नहीं माना जाएगा।

* सभी बच्चे 3, 5 और 8 की स्कूली परीक्षा देंगे। ग्रेड 10 और 12 के लिए बोर्ड की परीक्षा जारी रखी जाएंगी, लेकिन इन्हें नया स्वरूप दिया जाएगा। एक नया राष्ट्रीय आकलन केंद्र ‘परख’ स्थापित किया जाएगा।

* 3 से 6 साल के बच्चों के लिए अलग पाठ्यक्रम तय होगा, जिसमें उन्हें खेल के तरीकों से सिखाया जाएगा। इसके लिए टीचर्स की भी अलग ट्रेनिंग होगी।

* कक्षा एक से तीन तक के बच्चों को यानी 6 से 9 साल के बच्चों को लिखना-पढ़ना आ जाए, इस बात पर खास ज़ोर दिया जाएगा, इसके लिए नेशनल मिशन शुरू किया जाएगा।

* कक्षा 6 से ही बच्चों को वोकेशनल कोर्स पढ़ाए जाएंगे, यानी जिसमें बच्चे कोई स्किल सीख पाएं। इसमें बाकायदा बच्चों की इंटर्नशिप भी होगी, जिसमें वो किसी कारपेंटर के यहां हो सकती है या लॉन्ड्री की हो सकती है। इसके अलावा छठी क्लास से ही बच्चों की प्रोजेक्ट बेस्ड लर्निंग होगी, उन्हें कोडिंग सिखाई जाएगी।

* स्कूलों के सिलेबस में बदलाव किया जाएगा। नए सिरे से पाठ्यक्रम तैयार किए जाएंगे और वो पूरे देश में एक जैसे होंगे। इस बात पर जोर दिया जाएगा कि कम से कम पांचवीं कक्षा तक बच्चों को उनकी मातृभाषा या क्षेत्रीय भाषा में पढ़ाया जा सके। किसी भी विद्यार्थी पर कोई भी भाषा नहीं थोपी जाएगी।भारतीय पारंपरिक भाषाएं और साहित्य भी विकल्प के रूप में उपलब्ध होंगे। स्कूल में आने की उम्र से पहले भी बच्चों को क्या सिखाया जाए, ये भी पैरेंट्स को बताया जाएगा।

* प्री-स्कूल से माध्यमिक स्तर तक सबके लिए एक समान पहुंच सुनिश्चित करने पर जोर दिया जाएगा। स्कूल छोड़ चुके बच्चों को फिर से मुख्य धारा में शामिल करने के लिए स्कूल के इन्फ्रॉस्ट्रक्चर का विकास किया जाएगा। साथ ही नए शिक्षा केंद्रों की स्थापना की जाएगी। नई शिक्षा नीति 2020 के तहत स्कूल से दूर रह रहे लगभग 2 करोड़ बच्चों को मुख्य धारा में वापस लाने का लक्ष्य है।

* बोर्ड की परीक्षाओं की अहमियत घटाने की बात है, साल में दो बार बोर्ड की परीक्षाएं कराई जा सकती हैं। बोर्ड की परीक्षाओं में ऑब्जेक्टिव टाइप क्वेश्चन पेपर भी हो सकते हैं।

* बच्चों के रिपोर्ट कार्ड में मूल्यांकन सिर्फ टीचर ही नहीं लिख पाएंगे बल्कि एक कॉलम में बच्चा खुद अपना मूल्यांकन करेगा और एक में उसके सहपाठी मूल्यांकन करेंगे।

* स्कूल के बाद कॉलेज में दाखिले के लिए एक सामान्य प्रवेश परीक्षा हो, इसके लिए नेशनल एसेसमेंट सेंटर बनाए जाने की भी बात है।

* बच्चा जब स्कूल से निकलेगा तो हर बच्चे के पास एक वोकेशनल स्किल होगा।

* एनसीईआरटी की सलाह से, एनसीटीई टीचर्स ट्रेनिंग के लिए एक नया सिलेबस एनसीएफटीई (NCFTE) 2021 तैयार करेगा। 2030 तक, शिक्षण कार्य करने के लिए कम से कम योग्यता 4 वर्षीय इंटीग्रेटेड बीएड डिग्री हो जाएगी।

* शिक्षकों को प्रभावी और पारदर्शी प्रक्रिया के जरिए भर्ती किया जाएगा। प्रमोशन योग्यता आधारित होगा। राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद द्वारा शिक्षकों के लिए राष्ट्रीय प्रोफेशनल मानक (एनपीएसटी) 2022 तक विकसित किया जाएगा।

* इस नई नीति के जरिए 2030 तक 100% युवा और प्रौढ़ साक्षरता के लक्ष्य को प्राप्त करना है।

ग्रेजुएशन डिग्री समेत उच्च शिक्षा स्तर में बड़े बदलाव

शिक्षा नीति में स्कूली शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक कई बड़े बदलाव किए गए हैं। उच्च शिक्षा के लिए भी अब सिर्फ एक नियामक होगा। पढ़ाई बीच में छूटने पर पहले की पढ़ाई बेकार नहीं होगी। एक साल की पढ़ाई पूरी होने पर सर्टिफिकेट और दो साल की पढ़ाई पूरी करने पर डिप्लोमा सर्टिफिकेट दिया जाएगा। उच्च शिक्षा सचिव अमित खरे के अनुसार नई नीति में मल्टीपल एंट्री और एग्जिट (बहु स्तरीय प्रवेश एवं निकासी) व्यवस्था को लागू किया गया है। अभी की व्यवस्था में अगर चार साल इंजीनियरंग पढ़ने या छह सेमेस्टर पढ़ने के बाद किसी कारणवश आगे नहीं पढ़ पाते हैं तो कोई उपाय नहीं होता, लेकिन मल्टीपल एंट्री और एग्जिट सिस्टम में एक साल के बाद सर्टिफिकेट, दो साल के बाद डिप्लोमा और 3-4 साल के बाद डिग्री मिल जाएगी। यह छात्रों के हित में एक बड़ा फैसला है।

3 साल की डिग्री उन छात्रों के लिए है जिन्हें हायर एजुकेशन नहीं लेना है और शोध में नहीं जाना है। वहीं शोध में जाने वाले छात्रों को 4 साल की डिग्री करनी होगी। 4 साल की डिग्री करने वाले स्‍टूडेंट्स एक साल में एमए कर सकेंगे। नई शिक्षा नीति के मुताबिक यदि कोई छात्र इंजीनियरिंग कोर्स को 2 वर्ष में ही छोड़ देता है तो उसे डिप्लोमा प्रदान किया जाएगा, इससे इंजीनियरिंग छात्रों को बड़ी राहत मिलेगी। पांच साल का संयुक्त ग्रेजुएट-मास्टर कोर्स लाया जाएगा। एमफिल को खत्म किया जाएगा और पोस्ट ग्रेजुएट कोर्स में एक साल के बाद पढ़ाई छोड़ने का विकल्प होगा। नेशनल मेंटरिंग प्लान के जरिये शिक्षकों का उन्नयन किया जाएगा।

नई शिक्षा नीति में बीएड 4 साल का होगा। 2030 से 4 वर्षीय बीएड डिग्री शिक्षक बनने की न्यूनतम योग्यता होगी। नीति के अनुसार, पेशेवर मानकों की समीक्षा एवं संशोधन 2030 में होगा और इसके बाद प्रत्येक 10 वर्ष में होगा। शिक्षकों को प्रभावकारी एवं पारदर्शी प्रक्रियाओं के जरिए भर्ती किया जाएगा एवं पदोन्नति योग्यता पर आधारित होगी। कई स्रोतों से समय-समय पर उनके कार्य-प्रदर्शन का आकलन किया जाएगा।

नई नीति में एमफिल (MPhil) खत्म

देश की नई शिक्षा नीति लागू होने के बाद अब छात्रों को एमफिल नहीं करना होगा। एमफिल का कोर्स नई शिक्षा नीति में निरस्त कर दिया गया है। नई शिक्षा नीति लागू होने के बाद अब छात्र ग्रेजुएशन, पोस्ट ग्रेजुएशन और उसके बाद सीधे पीएचडी करेंगे। 4 साल का ग्रेजुएशन डिग्री प्रोग्राम फिर एमए और उसके बाद बिना एमफिल के सीधा पीएचडी कर सकते हैं। नई शिक्षा नीति के तहत एमफिल कोर्सेज को खत्म कर दिया गया है, इसे शिक्षा के क्षेत्र में एक बड़ा बदलाव माना जा रहा है।

यूजीसी, एनसीटीई और एआईसीटीई की जगह एक रेगुलेटरी बाॅडी बनाई जाएगी

यूजीसी एआईसीटीई का युग अब खत्म हो गया है। उच्च शिक्षा सचिव अमित खरे की सूचनानुसार उच्च शिक्षा में यूजीसी, एआईसीटीई, एनसीटीई की जगह एक नियामक होगा। कॉलेजों को स्वायत्तता (ग्रेडेड ओटोनामी) देकर 15 साल में विश्वविद्यालयों से उनकी संबद्धता की प्रक्रिया को पूरी तरह से खत्म कर दिया जाएगा।

कॉलेजों को कॉमन एग्जाम का ऑफर

नई शिक्षा नीति के तहत उच्च शिक्षण संस्थानों में प्रवेश के लिए कॉमन एंट्रेंस एग्जाम का ऑफर दिया जाएगा। यह संस्थान के लिए अनिवार्य नहीं होगा। राष्ट्रीय परीक्षा एजेंसी यह परीक्षा कराएगी।

स्कूल, कॉलेजों की फीस पर नियंत्रण

खरे के अनुसार उच्च शिक्षण संस्थानों को ऑनलाइन स्वत: घोषणा के आधार पर मंजूरी मिलेगी। मौजूदा इंस्पेक्टर राज खत्म होगा। अभी केंद्रीय विश्वविद्यालय, राज्य विश्वविद्यालय, डीम्ड विश्वविद्यालय और प्राइवेट विश्वविद्यालय के लिए अलग-अलग नियम हैं। भविष्य में सभी नियम एक समान बनाए जाएंगे। फीस पर नियंत्रण का भी एक तंत्र तैयार किया जाएगा।

नेशनल रिसर्च फाउंडेशन की तैयारी

सभी तरह के वैज्ञानिक एवं सामाजिक अनुसंधानों को नेशनल रिसर्च फाउंडेशन बनाकर नियंत्रित किया जाएगा। उच्च शिक्षण संस्थानों को बहु विषयक संस्थानों में बदला जाएगा। 2030 तक हर जिले में या उसके आस-पास एक उच्च शिक्षण संस्थान होगा। शिक्षा में तकनीक के इस्तेमाल पर जोर दिया गया है। इनमें आनलाइन शिक्षा का क्षेत्रीय भाषाओं में कंटेंट तैयार करना, वर्चुअल लैब, डिजिटल लाइब्रेरी, स्कूलों, शिक्षकों और छात्रों को डिजिटल संसाधनों से लैस करने जैसी योजनाएं शामिल हैं।

विदेशी यूनिवर्सिटी को भारत में कैंपस खोलने की अनुमति और स्कॉलरशिप पोर्टल का विस्तार

नई शिक्षा नीति में विदेशी विश्वविद्यालयों को भारत में कैंपस खोलने की अनुमति मिलेगी। एक्सपर्ट्स का कहना है कि इससे भारत के स्टूडेंट्स विश्व के बेस्ट इंस्टीट्यूट व यूनिवर्सिटी में एडमिशन ले सकेंगे। उन्हें विदेश नहीं जाना पड़ेगा।

नई शिक्षा नीति पर विशेषज्ञों के विचार

दिल्ली विश्वविद्यालय के मनोविज्ञान विभाग के पूर्व अध्यक्ष व महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा महाराष्ट्र के पूर्व कुलपति प्रो गिरीश्वर मिश्रा कहते हैं कि ये एजुकेशन पॉलिसी कई तरह के बदलावों को लेकर सामने आई है। इन बदलावों में सबसे पहले उच्च श‍िक्षा के संस्थागत ढांचे को बदलने की बात कही गई है। वे कहते हैं‍ कि मैंने जहां तक इस नीत‍ि का अध्ययन किया है, उससे साफ दिखाई पड़ रहा है कि पूरी तरह संरचना पर विचार किया गया है। इसके अलावा शिक्षा नीति को भारत केंद्र‍ित बनाया जाएगा, यानी संस्कृति के अध्ययन पर बल दिया जाएगा ताकि छात्र भारत की संस्कृति को समझें और उससे लाभ उठा सकें। इसके अलावा ये भी ध्यान दिया गया है कि श‍िक्षा सिर्फ मस्त‍िष्क ही नहीं शरीर और मन की आवश्यकताओं को पूरा कर सके।

'प्रथम' एनजीओ फ़ाउंडेशन की सीईओ रुकमणी बनर्जी के मुताबिक़ अक्सर नीतियाँ काग़ज़ पर तो अच्छी होती हैं, लेकिन लागू कैसे और कब होती हैं ये सबसे बड़ा चैलेंज होता है। उनके अनुसार प्राथमिक शिक्षा को इस नई पॉलिसी में काफ़ी अहमियत दी गई है। ये अच्छी बात है क्योंकि पहली में बच्चा सीधे स्कूल में आता था, तो उस वक़्त वो दिमाग़ी तौर पर पढ़ने के लिए तैयार नहीं आता था. तीन साल के प्री-स्कूल के बाद अगर अब वो पहली में आएगा, तो मानसिक तौर पर सीखने के लिहाज से पहले के मुक़ाबले ज़्यादा तैयार होगा। पंजाब और हिमाचल प्रदेश के कुछ इलाक़ों में स्कूलों में प्री-प्राइमरी में इस 5+3+3+4 पर काम भी चल रहा है और नतीज़े भी अच्छे सामने आए हैं। मातृ भाषा में बच्चों को पढ़ाने को भी वे एक अच्छा क़दम मानती हैं। लेकिन उनको लगता है कि इसके लिए आंगनबाड़ियों को तैयार करना होगा। हमारे देश में आंगनबाड़ी सिस्टम बहुत अच्छा माना जाता है। फ़िलहाल उनको हेल्थ और न्यूट्रिशन के लिए ट्रेन किया गया है। उनको अब बच्चों को स्कूल के लिए तैयार करने की ट्रेंनिग देनी पड़ेगी। महिला एवं बाल कल्याण मंत्रालय और शिक्षा को इसके लिए एक साथ आकर काम करने की ज़रूरत होगी।

अनिल सदगोपाल देश के जाने माने शिक्षाविदों में से एक हैं। वे शिक्षा से जुड़ी कई समितियों में शामिल भी रहे हैं। फ़िलहाल वे अखिल भारतीय शिक्षा अधिकार मंच से जुड़े हैं और भोपाल में रहते हैं। उनके अनुसार इस शिक्षा नीति को मूलत: तीन बिंदुओं से देखने की ज़रूरत है। पहला- इससे शिक्षा में कॉरपोरेटाइजेशन को बढ़ावा मिलेगा, दूसरा इससे उच्च शिक्षा के संस्थानों में अलग-अलग 'जातियाँ' बन जाएँगी, और तीसरा ख़तरा है अति-केंद्रीकरण का। अपने इस विचार के पक्ष में वे तर्क देते हैं कि उनके मुताबिक़ मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में नीति आयोग ने स्कूलों के लिए परिणाम-आधारित अनुदान देने की नीति लागू करने की बात पहले ही कह दी है। ऐसे में जो स्कूल अच्छे होगें, वो और अच्छे होते चले जाएँगे और ख़राब स्कूल और अधिक ख़राब। ये हम सब जानते हैं कि सरकारी स्कूल प्राइवेट के मुक़ाबले कहाँ हैं तो इससे फ़ायदा प्राइवेट वालों को ही होगा। उनका मानना है कि इसी संदर्भ में नई शिक्षा नीति में स्कूल कॉम्प्लेक्स का प्रावधान किया गया है।

प्रोफेसर राकेश सिन्हा प्रोफेसर होने के साथ-साथ आरएसएस से जुड़े रहे हैं। उनके अनुसार 'ये पहली बार है कि शिक्षा नीति को व्यापक परामर्श से तैयार कर बनाया गया है। इसमें ख़ामियाँ हो सकती है, लेकिन जितने भी सुझाव आए थे, उनको मंथन का हिस्सा बनाया गया है। इस शिक्षा नीति की दूसरी विशेषता ये है कि ये नीति क्लास रूम से बाहर शिक्षा को ले जाने की पहल है। नई शिक्षा नीति ने उसे रोज़गार से जोड़ा है, वोकेशनल एजुकेशन को इस लिहाज से जोड़ा गया है। अब तक शिक्षा का मतलब फ़ॉर्मल एजुकेशन से हुआ करता था, लेकिन अब अनौपचारिक यानी इन-फ़ॉर्मल एजुकेशन को भी शिक्षा के दायरे में लाया गाया है। कोविड के दौर में जो आर्थिक संकट नज़र आ रहा है, उसकी एक वजह है लोगों में स्व-रोज़गार की भावना और उसके प्रति सम्मान की कमी। नई शिक्षा नीति इसी को दूर करेगी।'

इन सब विद्वानों के विचार जानने के बाद ऐसा प्रतीत होता है कि नई शिक्षा नीति बदलाव की दृष्टि से उचित एवं समयानुकूल है लेकिन उसके क्रियान्वयन में आने वाली अड़चनों को दूर करना होगा, तभी उसके सार्थक एवं सकारात्मक परिणाम देखने को मिलेंगे।

संदर्भित वेबसाइट्स -

https://aajtak.intoday.in

https://hindi.opindia.com

https://www.bbc.com/Hindi

https://www.livehindustan.com

www.jagranjosh.com

https://Hindi.careerindia.com

वरिष्ठ पत्रकार एवं लेखिका

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