भारत की नई शिक्षा नीति पर केंद्रित शैक्षिक उन्मेष पत्रिका के आगामी विशेषांक खंडों (ई-पत्रिका) के लिए आलेख आमंत्रण
शिक्षा वर्तमान तथा भविष्य के निर्माण का अनुपम साधन है। शिक्षा के बिना मनुष्य पशु के समान कहा जाता है। देश के आजादी के बाद देश के प्रत्येक नागरिक को साक्षर बनाने का अभियान चलाया गया है। उसमें नई शिक्षा नीतियों को जोड़ा गया है। भारत शुरू से ही समर्थ देश रहा है। भारत को सोने की चिड़िया धन संपदा के कारण कहा जाता है। भारत में संकुचित राष्ट्रीयता का फायदा उठाकर यूरोपीय व्यापारियों ने भारत में अपना व्यापार के साथ धर्म का प्रचार- प्रसार किया। भारत में शिक्षा का आरंभ अदिकाल से रहा है, किंतु लोगों का भ्रम है कि शिक्षा का सूत्रपात अंग्रेजी राज के कारण हुआ। अदिकाल में गुरुकुल पाठशाला विद्यालय आदि के माध्यम से विद्यार्थियों को शिक्षा प्रदान की जाती थी। नालंदा विश्वविद्यालय तक्षशिला आदि उनके मुख्य उदाहरण है। प्राचीन भारत में शिक्षा का मुख्य उद्देश्य मुक्ति चाह रही है। बाद में जरूरतों के बदलने और समाज विकास से आए जटिलताओं से शिक्षा के उद्देश्य बदलते गए।
आधुनिक शिक्षा पद्धति अंग्रेजी राज्य की देन है। भारतेंदु हरिश्चंद्र भारत दुर्दशा में कहते हैं”, देखो विद्या का सूरज पश्चिम से उदय हुआ चल आता है। “बदलते वैश्विक परिदृश्य में ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था की आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए शिक्षा की गुणवत्ता को बढ़ाने नवाचार और अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिए भारतीय शिक्षण व्यवस्था की वैश्विक स्तर पर पहुंच सुनिश्चित करने के लिए शिक्षा नीति में परिवर्तन की आवश्यकता थी। जीवन में शिक्षा के महत्व को देखते हुए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध कराने के उद्देश्य से वर्तमान सरकार ने शिक्षा में व्यापक बदलाव के लिए नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति को मंजूरी दे दी है। करीबन 3 दशक के बाद देश में नई शिक्षा नीति को मंजूरी दे दी है। इसका उद्देश्य २१ वी शताब्दी की आवश्यकता है। अनुकूल स्कूल और कॉलेज की शिक्षा को अधिक समग्र लचीला बनाते हुए भारत को एक ज्ञान आधारित जीवंत समाज और वैश्विक महाशक्ति में बदलकर प्रत्येक छात्र में निहित अद्वितीय क्षमताओं को सामने लाना है। जीवन में शिक्षा की आवश्यकता पड़ेगी उसके महत्व को सफदर हाशमी का यह मशहूर गीत “पढ़ो लिखा है दीवारों पर मेहनत कश का नारा, पढ़ो किताबें कहती है सारा संसार तुम्हारा।“ नई शिक्षा नीति का लक्ष्य भारत को वैश्विक ज्ञान महाशक्ति बनाना। हमारा भारत देश कृषिप्रधान देश है। आज भी बड़े पैमाने पर भारत की आबादी देहातों में निवासित है । यह नई शिक्षा नीति उन्हें सामने रखकर ही बनाई है। शिक्षा नीति शिक्षा में ज्ञान उचित आचरण और तकनीकी दक्षता शिक्षण और विद्या प्राप्त है साथ ही व्यापार या व्यवसाय एवं मानसिक नैतिक और सौंदर्य विषय पर केंद्रित है। स्वामी विवेकानंद कहते हैं” मनुष्य की अंतर्निहित पूर्णता को अभिव्यक्त करना ही शिक्षा है। “अपनी शक्तियों का जीवन से समन्वय स्थापित कर राष्ट्र के सामाजिक आर्थिक विकास तथा राष्ट्र कल्याण शिक्षा कुंजी है।
शिक्षण हमें तीन स्तरों में विभाजित हुआ दिखाई देता है। बोध स्तर, स्मृति स्तर, और चिंतन स्तर छात्र विषय वस्तु को आत्मसात करके छात्राओं की सहभागिता बनाकर उनमें आलोचनात्मक तथा मौलिक चिंतन उत्पन्न करना नई शिक्षा प्रणाली का ध्येय रहा है एवं वैश्वीकरण के कारण पूरी आबादी को समस्त विधाओं में गुणवत्ता परक काल परिस्थितियों के अनुरूप वांछित विधान में समग्र शिक्षा प्रदान करना शिक्षा की सभी विधाओं की समाज निर्माण में अपनी विशेष भूमिका होती है। परंतु वर्तमान मानव सभ्यता के विकास में विज्ञान व प्रौद्योगिकी का विशेषता होने के दृष्टिगत तकनीकी शिक्षा पर सबकी नजर होना स्वभाविक है। नई शिक्षा प्रणाली में अपनी बहुत संख्या में युवा आबादी के चलते भारत मानव सभ्यता के उन्नयन के लिए विज्ञान व प्रौद्योगिकी के माध्यम से संधारण विकास के लिए कटिबद्ध कराने की उम्मीद है। नई शिक्षा प्रणाली निर्माण करना जरूरी था क्योंकि शिक्षा को पुनः सर्वोपरि मानना इस परिवर्तन का मुख्य कारण है। शेष सभी बातें शिक्षा से नैसर्गिक रूप से आगे बढ़ेंगे। नई शिक्षा नीति के ड्राफ्ट को इसरो के प्रमुख के. कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता वाली विशेष इस समिति ने तैयार किया है। और भारत के प्रधानमंत्री माननीय नरेंद्र मोदी जी ने 1 मई को इसकी समीक्षा की थी। छात्राओं को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, नवाचार और अनुसंधान संबंधी आवश्यकताओं के बदलते परिदृश्य का सामना करने के लिए इसका नवानिर्माण है। नई विश्व व्यवस्था नया ग्लोबल स्टैंडर्ड तय हो रहा है। 21वीं सदी के भारत से पूरे विश्व को बहुत अपेक्षाएं हैं। भारत का सामर्थ्य है कि वह बौद्धिकता और प्रौद्योगिकी का समाधान पूरी दुनिया को देख सकता है। और इस जिम्मेदारी पर भी नई नीति में केंद्रित किया गया है। यह नीति समाज के आखिरी छोर पर खड़े छात्र तक पहुंच सकती है। कल्पना शक्ति की बढ़ावा देती है। हमें हमारे छात्राओं को ग्लोबल सिटीजन तो बनाना है, इसका भी ध्यान रखना है कि वह इसके साथ अपने जड़ों से भी जुड़े रहे जड़ से जब तक मनुष्य मानवता तक अतीत से आधुनिकता तक सभी बिंदुओं का समावेश करते हुए इस राष्ट्रीय शिक्षा नीति का स्वरूप तय किया गया है। हर विद्यार्थी को यह अवसर मिलना ही चाहिए कि वह अपनी रुचि के हिसाब से चले अपनी सुविधा और जरूरत के हिसाब से चल सके। इस नीति में यही कोशिश रही है कि छात्र को सीखने के लिए जांच परख बहस और विश्लेषण के तरीकों पर जोर दिया जाए इससे बच्चों में सीखने की ललक बढ़े। मकसद को मध्य नजर रखते हुए शिक्षा प्रणाली जरूरी है।
अब तक शिक्षा प्रणाली व्हाट टू थिंक पर आधारित थी। जबकि नई शिक्षा प्रणाली में हाउ टू थिंक पर बल दिया जा रहा है। इसमें लक्ष्य रोजगार मांगने वालों की जगह रोजगार देने वालों को तैयार करना और देश की शिक्षा प्रणाली के प्रयोजन तथा विषय वस्तु में परिवर्तन का प्रयास करना है। यह नई शिक्षा प्रणाली सिर्फ एक नीतिगत दस्तावेज नहीं है बल्कि पूर्ण भारतीयों की आकांक्षाओं का प्रतिबिंब है। बच्चों को खाली डिग्रियों अंबार नहीं उभारने है। जैसे किसी बच्चे को इसी विषय में दिलचस्पी नहीं होती, मगर अपने माता-पिता रिश्तेदार और दोस्तों के दबाव में विषय पढ़ना पड़ता है। यह तो अपने आप में अधूरापन और इस तस्वीर को बदलने का प्रयास है। उद्देश्य पूर्ति हेतु नई शिक्षा प्रणाली में शिक्षा सामाजिक और नैतिक मूल्यों के विकास में साधन बनकर छात्र की मुख्य आवश्यकता हो तथा योग्यताओं की दृष्टि में रखते हुए उसके समक्ष ऐसे अवसर प्रदान करें। उनके आधार पर उसकी मूल प्रवृत्तियां निखर जाए तथा उसकी समस्त शक्तियों एवं गुनों का समुचित विकास होकर वह एक उत्तम व्यक्ति बन जाए। शिक्षा के द्वारा देश और समाज की आवश्यकताओं की पूर्ति व्यवहार व सिद्धांत का संतुलन शिक्षा स्वायत्तता मातृभाषा में शिक्षा व्यापार- व्यवसाय ना होकर सेवा का माध्यम हो। स्वामी विवेकानंद कहते हैं “शिक्षा मनुष्य को देवत्व प्रदान करती है।“ पाठ्यक्रम का अर्थ संकुचित ना होकर व्यापक होना चाहिए। उन्हें उनके अधिकारों तथा राष्ट्र के प्रति कर्तव्य से अवगत कराया जाना चाहिए। जिससे उन्हें प्रत्यक्ष रूप से राष्ट्र सेवा की भावना जागृत हो।
सारांश में कह सकते हैं कि नई शिक्षा प्रणाली केवल काम चलाओ वस्तु नहीं केवल परीक्षा पास करने का माध्यम बल्कि इस दुनिया की चिंता से मुक्त हमारी जीवन नैया को भव सागर से पार लगाने में समर्थ है।
नई शिक्षा नीति में छात्राओं के बहुमुखी विकास के लिए कल्पनाशील और व्यापक तौर पर शिक्षण व्यवस्था बनाने की पहल होगी। चुने गए विषय और क्षेत्र में विशेषज्ञता पर जोर दिया जाएगा। स्नातक स्तर पर चुने गए विषय में गहनता और विशेषज्ञता पर जोर होगा। भाषाई विविधता को बढ़ावा और संरक्षण इसमें कक्षा पांच तक मातृभाषा या क्षेत्रीय भाषा को अध्यापन के माध्यम के रूप में अपनाने पर बल दिया गया। साथ ही इस नीति में मातृभाषा को कक्षा ८ और आगे की शिक्षा के लिए प्राथमिकता देने का सुझाव दिया गया है। भारतीय भाषाओं के संरक्षण और विकास के लिए भारतीय अनुवाद और व्याख्या संस्थान फ़ारसी, पाली और प्राकृत के लिए राष्ट्रीय संस्थान स्थापित करने के साथ उच्च शिक्षण संस्थानों में विभाग को मजबूत बनाने एवं उच्च शिक्षण संस्थान में अध्यापन के माध्यम से रूप में मातृभाषा स्थानीय भाषा को बढ़ावा दिए जाने का सुझाव दिया है। इस नीति में प्रस्तावित सुधारों के अनुसार कला और विज्ञान, व्यावसायिक तथा शैक्षणिक विषयों एवं पाठ्यक्रम गतिविधियों के बीच बहुत अधिक अंतर नहीं होगा। हिंदी, अंग्रेजी भाषाओं के अलावा आठ क्षेत्रीय भाषाओं में ई-कोर्स होगा। वर्चुअल लैब के कार्यक्रम को आगे बढ़ाया जाएगा। इसके साथ ही नेशनल एजुकेशन टेक्नोलॉजी फोरम बनाया जा रहा है। नेशनल रिसर्च फाउंडेशन ( एन. आर एफ़) की स्थापना होगी जिससे अनुसंधान एवं नवाचार को बढ़ावा मिलेगा। मानव संसाधन विकास मंत्रालय का नाम शिक्षा मंत्रालय कर दिया गया है।
नर्सरी का बच्चा भी नई तकनीक के बारे में पढ़ेगा तो उसे भविष्य की तैयारी करने में आसानी मिलेगी। कई दशकों से शिक्षा नीति में बदलाव नहीं हुआ था, कभी इंजीनियर, डॉक्टर, वकील बनाने की होड़ लगी हुई थी अब युवाओं को आगे बढ़ा सकेगा अब सिर्फ पढ़ाई नहीं बल्कि वर्किंग कल्चर डेवलप किया गया है। पुरानी नीति के 10+2 (दसवीं कक्षा तक, फिर 12 वीं कक्षा तक) के ढांचे में बदलाव करते हुए नई नीति में 5+3+3+4 का ढांचा लागू किया गया है। इसके लिए आयु सीमा क्रमश: 3 - 8 साल 8 - 11 साल 11-14 साल,14 -18 साल तय की गई है। स्नातक पाठ्यक्रम में महत्वपूर्ण सुधार किया गया है, 3 या 4 वर्ष के स्नातक कार्यक्रम में छात्र कई स्तरों पर पाठ्यक्रम को छोड़ सकेंगे और उन्हें उसी के अनुरूप डिग्री या प्रमाण पत्र प्रदान किया जाएगा। (जैसे- 1 वर्ष के बाद सर्टिफिकेट, 2 वर्ष के बाद एडवांस डिप्लोम 3 वर्ष के बाद स्नातक की डिग्री तथा 4 वर्षों के बाद शोध के साथ स्नातक फिर 1 साल पोस्टग्रेजुएट और 4 साल पीएच.डी. पहले तीन साल छात्राओं स्कूल पूर्व तालीम मिलेगी, कम से कम तीन भाषाओं में और वह भी उसे प्रशिक्षित शिक्षक देंगे। इस दौरान छात्र अंक रंग और कुतिया सीखेगा। पहेलियां हल करेगा और नाटक कठपुतली के खेल संगीत और हरकत में रूबरू होगा।
नई शिक्षा नीति के प्रारूप में प्राथमिक व इससे उच्च स्तर की कक्षाओं के विद्यार्थियों के लिए बुनियादी साक्षरता व संख्या ज्ञान से संबंधित क्षेत्रों के विकास का लक्ष्य रखा गया है। पहली व दूसरी कक्षा में भाषा व गणित पर जोर दिया। चौथी व पांचवीं कक्षा के बच्चों के साथ लेखन कौशल पर जोर देने के अलावा भाषा सप्ताह, गणित सप्ताह व भाषा मेला व गणित मेला जैसे आयोजन करने की बात की नीति में है। पढ़ने और संवाद करने की संस्कृति को प्रोत्साहित करने के लिए पुस्तकालयों के महत्व को पुनः स्थापित करने के अलावा कहानी सुनाने रंगमंच समूह में पठन लेखन व बच्चों के बनाए चित्रों व लिखी हुई सामग्री का प्रदर्शन करने जैसी गतिविधियों को आयोजित करने पर बल दिया गया है।
शिक्षकों की सुविधा के लिए तकनीक के इस्तेमाल को प्रोत्साहित करने की बात भी नयी शिक्षा नीति करती है। इसके लिए कंप्यूटर, लैपटॉप व मोबाइल फोन इत्यादि के जरिए विभिन्न एप्स का इस्तेमाल करके शिक्षण को रोचक बनाया गया। तकनीक को शिक्षकों के विकल्प के रूप में देखने के बजाय सहायक शिक्षण सामग्री के रूप में देखने का सुझाव दिया गया है। इसके साथ ही अभिभावकों की सक्रिय भागीदारी भी फोकस किया गया है। शिक्षक के लिए हर साल 50 घंटे की ट्रेनिंग जो नैनोटेक्नोलॉजी, ऑटोमेशन मिशन, लर्निंग और अंतरिक्ष विज्ञान जैसे अनेक विषयों में रहेगी। लड़कियों की शिक्षा बीच में बाधित ना हो इसके लिए उनको भावनात्मक रूप से सुरक्षित वातावरण देने का सुझाव दिया गया है। कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय का विस्तार बारहवीं तक करने का सुझाव इस नीति में है। नई शिक्षा प्रणाली में ऐसी शिक्षा नीति तैयार करने पर जोर दिया गया जो विद्यार्थियों को आवश्यक कौशल और ज्ञान से युक्त कर विज्ञान, प्रौद्योगिकी शिक्षाविदों और उद्योग में जन शक्ति की कमी को पूरा कर सकें। यह नीति अभीगम्यता, निष्पक्षता, गुणवत्ता वहनीयता जवाबदेही आधारभूत संरचना के आधार पर तैयार की गई है। नई शिक्षा नीति जहां छात्रों की प्रतिभा की और अधिक निखार कर बेहतर बनाने के उपाय लेकर आई है। वही इसमें शिक्षकों को प्रशिक्षण भी खास व्यवस्था की गई है, ताकि आदर्श शिक्षक हो और उनके द्वारा बनाए गए छात्रों में भी अच्छे सामाजिक संस्कार देखने को मिले। रटटा लगाने की बजाय छात्र के विषय के मूल ज्ञान की टेस्ट को लक्ष्य बनाया गया। राष्ट्रीय शिक्षा नीति अध्यक्षता केंद्रित अथवा बाल केंद्रित शिक्षा के स्थान पर अध्ययन केंद्र तथा शिक्षण आधारित शिक्षा पर बल दे रही है। यह शिक्षकों के संबंध तथा प्रतिष्ठा को बढ़ाने वाली नीति है। शिक्षक तथा विद्यार्थी के संबंधों को ध्यान रखते हुए स्थानांतरण की व्यवस्था को भी उत्साहित करने के कठोर प्रयास नीति में हुए हैं। शिक्षक वह धुरी होंगे जिनके चारों तरफ शिक्षा की स्थिति को अंजाम दिया जा सकता है। शिक्षक को अधिकार संपन्न बनाया जाए तो यह नीति जरूर कामयाब होंगी। इसपर एन. सी. ई.आर। टी.के पूर्व डायरेक्टर जे.एस. राजपूत कहते हैं “शिक्षा और शिक्षक को उनका हक दो शिक्षकों पर भरोसा करो। उन्हें पेशेवर तौर तरीके के साथ तैयार करो और उन्हें अपने कामों को अंजाम देने में बता दो यह इस नीति के अमल की दिशा में पहला कदम होगा।
निष्कर्ष: प्राचीन काल से भारत के लिए शिक्षा के महत्व के प्रति जागरूक रखा है। वैदिक युग से गुरुकुल में पीढ़ी दर पीढ़ी से शिक्षा प्रदान की जा रही है। शिक्षा एक व्यक्ति को अपनी क्षमता का पता लगाने में मदद करती है। जो बदले में एक मजबूत और एकजुट समाज को बढ़ावा देती है। नई शिक्षा नीति ब्रिटिश विरासत को दूर करेगी और विशिष्ट आवश्यकताओं के अनुरूप अनुकूलित करेगी। भारत के शक्ति अब अपने आप में एक वैश्विक शक्ति है। यह नीति शिक्षा में परिवर्तन की दिशा में चिंतन है एवं विद्यार्थियों को आत्मनिर्भर बनाने का लक्ष्य है।
अंधकारों और बंधनों से मुक्त करती है, मार्ग प्रशस्त करवा देती है। जीवन को अलौकिक कर उसे सशक्त बनाने, बच्चों कों पढ़ते समय हमेशा याद रहेगा कि हमें एक अच्छा नागरिक बनकर, समाज का जिम्मेदार हिस्सा बनकर राष्ट्र का नेतृत्व निर्माण गुण इस नई शिक्षा नीति में समाविष्ट किया गया है।
श्रीमती दानकुँवर महिला महाविद्यालय, जालना
मु .पो. जामवाडी ता जिला जालना- 431203
ई-मेल - dr.jbwadekar@gmail.com