भारत की नई शिक्षा नीति पर केंद्रित शैक्षिक उन्मेष पत्रिका के आगामी विशेषांक खंडों (ई-पत्रिका) के लिए आलेख आमंत्रण
राष्ट्रीय शिक्षा नीति का निर्माण हमारे देश के सभी राज्य ,सभी वर्गों यथा सामाजिक आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग, अल्पसंख्यक , सभी आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए यह नीति प्रस्तुत की गई है। जिसकी शुरुआत कस्तूरीरंगन जी की अध्यक्षता में 2016 में गठित कमेटी के द्वारा होती है। इस कमिटी में देश से जाने-माने शिक्षाविदों को शामिल किया गया। इसने अपनी रिपोर्ट 2019 में प्रस्तुत की। अपने प्रावधानों के लिए यह देश के सभी पंचायत से लेकर उच्च शिक्षण संस्थानों के शिक्षकों, अध्यक्षों से सलाह लेने के पश्चात प्रावधानों को बनाया गया है। जब इसका ड्राफ्ट प्रस्तुत किया गया तब देश के सभी नागरिकों से इस पर सुझाव मांगा गया। जिस पर लगभग लाखों नागरिकों ने अपने सुझाव दिए। जिन पर कार्य होने के पश्चात 29 जुलाई 2020 को इस राष्ट्रीय शिक्षा नीति को प्रस्तुत किया गया। इसमें अपने देश की विविधता, विषमता, एकता, बहुरूपता, धार्मिक स्वतंत्रता, संवैधानिक मूल्य, व्यवसाय आधारित शिक्षा ,समावेशी शिक्षा,भाषा की विविधता को केंद्र में रखते हुए विद्यालय शिक्षा और उच्चतर शिक्षा जैसे दो भागों में इसे प्रस्तुत किया गया है।
आज इस राष्ट्रीय शिक्षा नीति में दिए गए प्रावधानों को हम अध्यापक शिक्षा के नजरिए से देखने का प्रयास करेंगे।
हाल ही में आए इस नीति में शिक्षक शिक्षा के प्रारूप को बदला गया है जिसमें हुए बदलाव और उसके चुनौतियों को केंद्र में रखकर बात आगे बढ़ाएंगे।
भारत देश की आजादी के बाद सन् 1968 में भारत की पहली पहली शिक्षा नीति आई थी। दूसरी शिक्षा नीति 1986 में आई, जिसको 1992 में कुछ बदलाव करके फिर से लागू किया गया था। अब वर्तमान 2020 में नई व तीसरी शिक्षा नीति आई है। जिसमें विद्यालय शिक्षा के साथ-साथ अध्यापक शिक्षा के प्रारूप में भी परिवर्तन किया गया है।
*वर्तमान नीति के अनुसार 15.5 पैरा में 4 वर्षीय ,2 वर्षीय और 1 वर्षीय बीएड कार्यक्रमों की रूपरेखा प्रस्तुत की गई है। जिसके तहत 4 वर्षीय शिक्षक शिक्षा कार्यक्रम 12वीं के बाद के विद्यार्थियों के लिए रहेगा। 2 वर्षीय का B.Ed कार्यक्रम किसी विशेष विषय में 3 वर्ष का स्नातक किए एक विद्यार्थी के लिए प्रस्तुत किया जाएगा साथ ही 1 वर्षीय बीएड कार्यक्रम किसी विशिष्ट विषय में 4 वर्ष का स्नातक पूरा किए किसी विद्यार्थी के लिए शिक्षण व्यवस्था में आने का मौका प्रदान करेगा।
*इस नीति में यह भी प्रावधान किया गया है कि बी. एड. कार्यक्रम में प्रवेश के लिए राष्ट्रीय स्तर की परीक्षा का आयोजन होगा ।
*सभी शिक्षण संस्थानों को बहु विषयक आधारित बनाया जाएगा ताकि प्रशिक्षण कार्यक्रमों को संचालित किया जा सके। *अध्यापक शिक्षण संस्थानों को विशेष विषय में विशेषज्ञों की उपलब्धता सुनिश्चित करनी होगी।
* शिक्षा संकाय सदस्यों की प्रोफाइल में विविधता रखी जाएगी। *15.9 पीएचडी प्रवेश कर्ताओं को अपने शोध के दौरान शैक्षणिक प्रक्रियाओं के साथ शिक्षण अनुभव के लिए न्यूनतम घंटे भी तय किए जाएंगे।
*शिक्षा संस्थान के संकाय सदस्यों को तकनीकी विकास के लिए प्रशिक्षण दिया जाएगा।
* कमजोर वर्ग के प्रशिक्षण के लिए स्कॉलरशिप की व्यवस्था की जाएगी
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 की चुनौतियां
इस शिक्षा नीति में अध्यापक शिक्षा को लेकर हुए रूपरेखा के बदलाव को किस प्रकार से लागू किया जाएगा इस बात पर चर्चा करना जरूरी है।
सभी संस्थानों को बहू विषयक तो बनाया जाएगा लेकिन उसकी प्रक्रिया क्या होगी ?आदर्श मानक क्या होगा? इसके बारे में कोई बात नहीं हुई है। राष्ट्रीय स्तर पर गुणवत्ता बनाए रखने के लिए छिट -पुट फैले शैक्षणिक संस्थानों में आवश्यक गुणवत्ता के शिक्षकों की भर्ती कैसे होगी? इसका कुछ भी जिक्र नहीं है जबकि यही शिक्षक भावी शिक्षकों का निर्माण करेंगे। भारत में 4 वर्षीय बीएड कोर्स यह कोर्स एनसीईआरटी की RIE में बहुत पहले से चलाया जा रहा है।इसकी क्या उपलब्धियां रही है?क्या इस पर ध्यान दिया गया है ?शिक्षक शिक्षा पोजिशन पेपर 2010 में कहा गया है कि एनसीईआरटी द्वारा संचालित B.Ed कोर्स भी शैक्षिक उद्देश्यों को पूरा नहीं कर पा रहे हैं। ऐसे में पूरे देश में 4 वर्षीय बीएड कोर्स ऑफर किया जा रहा है ।एक वर्षीय बीएड को जिन गुणवत्ता संबंधी कारणों से बंद किया गया उसे फिर से करने चालू करने संबंधी प्रावधान की तुक के पीछे का तर्क कोई नहीं समझ सका है ।
जिस तरह से देश में बीटीसी ,डीएलएड, डिप्लोमा के बीच एक अलग अलग स्तर बना हुआ है वैसे ही 4 वर्षीय, 2 वर्ष ,1 वर्ष के बी.एड.कार्यक्रम के साथ हो सकता है।
केंद्र व राज्य के हरकतों के कारण ही ये अपने को कटघरे में देखेंगे । इसमें राष्ट्रीय स्तर पर एक प्रवेश परीक्षा कराने की कोशिश है लेकिन क्या वह राज्यों के सांस्कृतिक जरूरतों के महत्व को बरकरार रखेगी? इस चुनौती पर कोई चर्चा नहीं की गई है। अध्यापक शिक्षा में प्रवेश के लिए एक राष्ट्रीय प्रवेश परीक्षा आयोजित करने का प्रावधान है जबकि सभी राज्यों द्वारा स्वयं ही पहले से अपने आवश्यकता के अनुसार इसका आयोजन होता आया है और वह अपने उद्देश्यों की प्राप्ति में सफल भी रहे हैं केंद्र को प्रवेश परीक्षा संबंधित मानक तय करना चाहिए और उसके पूर्ति के जांच के लिए एक कमेटी का गठन करना चाहिए वरना राष्ट्रीय स्तर पर होने वाली परीक्षा के सभी राज्यों के छात्र कतिनाई का अनुभव करेंगे।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 बच्चों की प्राथमिक व माध्यमिक स्तर की शिक्षा का माध्यम मातृभाषा रखने पर जोर दिया गया है जो की एक तरीके से ठीक नहीं है लेकिन मातृभाषा में पढ़ाने वाले शिक्षकों की शिक्षा में मातृभाषा का कोई जिक्र नहीं है।आहार कोई मातृभाषा में अध्यापन करना चाहता है तो उसकी अध्यापक शिक्षा विशेष तौर पर उस भाषा /मातृभाषा में होनी चाहिए ताकि वह शिक्षण निर्देशों, परीक्षाओं, शिक्षण तकनीकी ,मूल्यांकन उस मातृभाषा में कर सके। अगर ऐसा होगा तो शिक्षक शिक्षा संस्थानों पर और भी जोर पड़ेगा कि वह विभिन्न मातृभाषा में शिक्षण की शिक्षा देने की शुरुआत करें और उन्हें उस भाषा में ही शिक्षण सामग्री भी मुहैया कराएं ।जबकि हम पहले से जानते हैं कि सभी संस्थान हिंदी और अंग्रेजी भाषा के वजह से शिक्षण सामग्री संबंधी समस्याओं को पहले से झेलते आ रहे हैं। मातृभाषा में शिक्षण करने वाले शिक्षकों की भर्ती का अतिरिक्त भार केंद्र और राज्य सरकार पर ही पड़ेगा।लेकिन इसके चुनौती की शुरुआत शिक्षण संस्थानों से होगी कि वे कितने मातृ भाषाओं में शिक्षण करने वाले शिक्षकों की भर्ती करें और किस आधार पर विद्यार्थियों का नामांकन तय करें।
जिस प्रकार से शिक्षकों की प्रोफाइल में विविधता की बात की गई है साथ ही पीएचडी होने को आवश्यक नहीं बताया गया है तब आखिर क्या यह शिक्षण के गुणवत्ता के साथ समझौता नहीं है?
इस नीति के अनुसार अब शिक्षा क्षेत्रों में पीएचडी कर रहे शोधकर्ता को उसके शोध विषय पर केंद्रित कक्षाएं लेनी होंगी। इसके घंटे को आने वाले समय में तय किया जाएगा। यह प्रावधान शोधकर्ताओं के शोध में मिलने वाले समय को जाया करने जैसा है। यह शोधकर्ता द्वारा रिपोर्ट पेश करने जैसा लग रहा है वह आखिर किन - किन लोगों के पास रिपोर्ट पेश करता रहेगा और अगर यह लागू होता भी है तो उसे शिक्षण करने का समय किस आधार पर और कहां दिया जाएगा? क्या वह उन छात्रों के लिए उपयुक्त रहेगा? क्या इससे शोधकर्ता के शोध की गुणवत्ता प्रभावित नहीं होगी? हमें ऐसे सवालों के बारे में पहले से सोच लेना चाहिए।
" बहु विषयक " की बात करता यह शिक्षा नीति शिक्षकों की भर्ती पर कोई बात नहीं करता। जैसे - वर्तमान में विद्यालय शिक्षा की आवश्यकता के अनुसार शिक्षकों की योग्यता जिसमें विषयों के संयोजन की भी बात की गई है लेकिन भविष्य में भर्ती की योग्यता पर कोई बात नहीं हुई है। यदि कोई इतिहास विषय का शिक्षक अपने स्नातक में भूगोल ,अर्थशास्त्र ,राजनीति विज्ञान के स्थान पर संगीत या अन्य विषय ग्रहण करता है तो वह कक्षा - कक्ष में अपने शिक्षण विषय के साथ न्याय कर पाएगा?आखिर वह बहू - विषयक व्यवस्था के बीच सामाजिक विज्ञान की आत्मा को कैसे स्थापित करेगा? आने वाले भविष्य में यह हमारी भावी पीढ़ी के योग्यता को नकारात्मक तौर पर प्रभावित करेगा।बहू विषयक योग्यता के नाम पर यह हमें बस संख्या बल बढ़ाता हुआ दिख रहा है इसके बदले हम गुणवत्ता को खो रहे हैं।
विद्यालय व्यवस्था की आधारभूत स्तर पर प्री स्कूल के विद्यार्थियों को पढ़ाने वाले आंगनवाडी कार्य करित्रियों/ शिक्षकों के लिए 1.4 और 1.7 में कुछ प्रावधान किए गए हैं कि सभी आंगनवाड़ी कार्यकर्ता और शिक्षकों को 6 महीने का सर्टिफिकेट कोर्स या एक वर्ष का डिप्लोमा कराया जाएगा। लेकिन इस बात का जिक्र कहीं नहीं है कि उन्हें कौन और कैसे प्रशिक्षित करेगा? सिर्फ यह कहा गया है की एनसीईआरटी द्वारा बनाया गया 6 महीने का सर्टिफिकेट कोर्स कराया जाएगा। इसके साथ ही रेगुलेटिंग बॉडी कौन होगा? शिक्षकों की नियुक्ति कैसे होगी? वह कौन लोग होंगे? या हो सकते हैं? यह कार्य कब पूरा होगा? इन सबका कुछ जिक्र नहीं है। अगर हम यह कहते हैं कि बच्चों का 85% विकास 6 वर्ष तक की आयु में हो जाता है, जिसे यह शिक्षा नीति भी मानती है, तब हम उन्हें विशेष रूप से प्रशिक्षित शिक्षकों के हवाले क्यों नहीं करते? उन्हें 12वीं की योग्यता कि लोगों को सौंपना कहां तक उचित है? अगर यह व्यवस्था सिर्फ आंगनवाड़ी के लिए है तो जो प्राइवेट प्री -स्कूल उनके लिए क्या व्यवस्था रहेगी? इस बात का कोई भी प्रावधान नहीं दिया गया है। आंगनवाड़ी को प्राथमिक विद्यालयों से जोड़ा जाएगा। उन्हें वहां के कार्यक्रमों से जोड़कर एक पुल बनाने की कोशिश होगी ,जिसे शिक्षक नेतृत्व करेगा ।लेकिन प्राइवेट स्कूलों के लिए इस संबंधी क्या प्रावधान होगा? वहां के शिक्षक कौन होंगे? क्या वे एनसीआरटी के द्वारा संचालित 6 माह के सर्टिफिकेट 1 वर्ष डिप्लोमा कोर्स करेंगे? इस बात का प्रावधान कहीं नहीं है ।
इसके अलावा 3.2 में ड्रॉप आउट रोकने के लिए प्रशिक्षित शिक्षक मुहैया कराने का जिक्र है लेकिन शिक्षक भर्ती संबंधी कुछ निश्चित प्रावधान नहीं है।
पैरा 3.7 में स्कूल के बच्चों के लिए समुदाय स्वयंसेवकों को प्रोत्साहन देते हुए उन्हें विद्यालय में शामिल किया जाने का प्रावधान है । ऐसे में यह मौका किन्हें दिया जाएगा या नहीं दिया जाएगा या ऐसे अध्यापक से शिक्षा प्रभावित नहीं होगी?
सामाजिक रुप से पिछड़े वर्ग व अल्पसंख्यक प्रशिक्षुओं के लिए स्कॉलरशिप की व्यवस्था है लेकिन सार्वजनिक या निजी स्तर के शिक्षण संस्थानों के फीस या फीस माफी का जिक्र कहीं नहीं है।
अध्यापक शिक्षा की सभी पहलुओं यथा बहु - विषयक शिक्षण ,संस्थान संकाय सदस्यों की योग्यता- गुणवत्ता की बात हुई है लेकिन इसमें समावेशी शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए विशिष्ट विद्यार्थियों के शिक्षकों के शिक्षण पर ध्यान नहीं दिया गया है साथ ही विशिष्ट विद्यार्थियों या दिव्यांग जनों को अध्यापक शिक्षा देने के मौके की बात नहीं की गई है ।
इस प्रकार से शिक्षा नीति को सिर्फ अपने प्रावधानों पर इतराने से अच्छा उसके प्रभावी होने के पहले व बाद में आने वाली चुनौतियों पर ध्यान देना जरूरी है तभी इसका बनना व सफल साबित होगा वरना यह धरातल पर उतरने से पहले ही समाप्त होने के कगार पर आ जाएगा। हमें अध्यापक शिक्षा के रूपरेखा भविष्य संस्थानों के निर्माण व मानक ,उपयुक्त मानव संसाधन की पहचान, शिक्षक संस्थानों के मूल्यांकन व कठोर जांच ,शिक्षक भर्ती के नियमों की स्थिति, समावेशी प्रवृत्ति ,शोधकर्ता व शोध की गुणवत्ता, राज्यों ,विद्यालयीशिक्षा को ध्यान में रखकर अध्यापक शिक्षा की पाठ्यचर्या निर्माण करने और भाषा संबंधी चुनौतियों के समाधान पर ध्यान देने की आवश्यकता है।
शिक्षा विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली
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