नींव तो अब पक्की होगी ...

प्रो0 बीना शर्मा

नई शिक्षा नीति का आधार भूत सिद्धांत ऐसी शैक्षिक प्रणाली का विकास करना है जिसका उद्देश्य अच्छे इन्सानो का विकास करना है. जो तर्क संगत विचार और कार्य करने में सक्षम हो, जिसमें करुना, सहानुभूति, साहस और लचीलापन, वैग्यानिक चिन्तन और रचनात्मक कल्पना शक्ति और नैतिक मूल्य हों. एक अच्छी शैक्षणिक व्यवस्था वह होती है जिसमें प्रत्येक छात्र का स्वागत किया जाता है और उसकी देखभाल की जाती है, जहाँ एक सुरक्षित और प्रेरणादायक शिक्षण वातावरण मौजूद होता है, जहाँ सभी छात्रों को सीखने के लिए विभिन्न प्रकार के अनुभव उपलब्ध कराये जाते हैं और जहाँ सीखने के लिए अच्छा बुनियादी ढांचा और उपयुक्त संसाधन उपलब्ध है. स्कूली शिक्षा में बुनियादी साक्षरता और संख्या ग्यान को सर्वाधिक प्राथमिकता दी गई है. ईसीसीई (प्रारम्भिक बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा) में मुख्य रूप से लचीली, बहुआयामी, बहु स्तरीय, खेल आधारित, गतिविधि आधारित, खोज आधारित शिक्षा को शामिल किया गया है. जैसे अक्षर, भाषा, संख्या, रंग, आकार, पहेलिया, तार्किक सोच, समस्या सुलझाने की कला जैसी गतिविधियां सम्मिलित हैं. इसका समग्र उद्देश्य सर्वान्गीन विकास के साथ-संवाद के लिए प्रारम्भिक भाषा, साक्षरता और संख्यात्मक जानकारी के साथ के विकास में अधिकतम परिणामो को प्राप्त करना है.

प्राथमिक शिक्षा के लिए बडी खबर .... 'प्राथमिक कक्षाओ में बालक अपनी मातृभाषा में पढ़ सकेंगेअर्थात कम से कम पांचवी क्लास तक के बच्चों को उनकी मातृभाषा या क्षेत्रीय भाषा में पढाया जा सकेगा 'से बच्चों के चेहरे खुशी से चमक गये हैं, उनका उत्साह दुगुना हो गया है, वे प्रसन्न इसलिए भी हैं कि जिस भाषा में वे कम्फ़र्ट महसूसते हैं, घर और बाहर चपर चपर बोल लेते हैं उसी भाषा में कोर्स की पुस्तक पढ़ पायेन्गे, उसी भाषा में लिख पायेन्गे. उन्हें फ़र्राटेदार अंग्रेजी न बोल पाने के लिए सजा नहीं मिलेगी. अभिभावक भी ट्यूशन के अनावश्यक प्रेशर से बच जायेन्गे. सारा ध्यान अपनी भाषा सीखने और उसी भाषा में विषय सीखने पर होगा. ए फ़ार एप्पिल और बी फ़ार बाल रटते -रटते सिर के बाल नहीं नोचने पडेन्गे, गली मोहल्ले में कुकरमुतो की तरह उगते तथाकथित कान्वेंट स्कूल की फ़सल मठरा जायेगी. बाल वृन्द को अंग्रेजी न जानने की शरम से मुक्ति मिल जायेगी .अपनी भाषा में सीखना सरल और मजेदार होगा .

कल ही प्रयास के बालक आकर कन्फ़र्म कर गये हैं ...बडी दीदी अब अंग्रेजी की कापी तो नहीं लानी है न, हाँ उससे मुक्ति है पर हिन्दी की दो लाना क्योंकि अंग्रेजी के घंटे में भी हिन्दी सीखेंगे. बस हिन्दी बोलो ,हिन्दी सीखो ,हिन्दी पढ़ो, हिन्दी लिखो, हिन्दी गाओ, हिन्दी खाओ, हिन्दी में सपने देखो, हिन्दी में सोओ ,हिन्दी में जागो,बस हिन्दी मय हो जाओ. और हाँ पांच कक्षा के बाद जो भाषा सीखने का मन हो वो सीखो. अब तो तुम सबकी बल्ले बल्ले हो गई. बस हिन्दी सीखो और अंक /नम्बर सीखो एक दो तीन चार. फ़िर कहानी ,गीत ,नैतिक शिक्षा, सामाजिक,साइन्स, कृषि सारे विषय जल्दी ही सीख जाओगे .सब हिन्दी /मातृभाषा में ही सीखना है. बस एक भाषा अच्छी तरह लिखना पढना सीख लो .और वह भी अपनी भाषा ,वही जिसमें परिवार के सारे लोग बोलते हैं, बोलना तो तुम्हें खूब आता है .बस घर पर अनौपचारिक भाषा बोलते हो.का कर रई है, नेक इतकू आ. और टीचर जी सिखायेन्गी क्या कर रही हो, जरा इधर आओ. स्कूल में अध्यापिका मानक हिन्दी सिखा देगी. घर की बोली में ही प्रश्न का उत्तर दे दोगे तब भी कोई नहीं काटेगा ,बस सही लिखना जरूरी है .जैसा बोलो वैसा ही तो लिखना है. भारत को बारत और भरत लिखने से तो गड़बड़ हो जायेगी. अब मुंह पूरा खुले तो आ का डंडा लगा दो. हे, है, हैं, में और मैं का अन्तर समझो, बड़ और बढ़ ,पड़ और पढ़ को जानो. स और श को सही बोलो, तुम तो ब्रज वासी हो तो जे गलती करोगे ही ,व को ब बोलोगे, य को ज कहोगे. यमुना होता है जमुना नहीं. सब सीखना जानना जरूरी है. बस तुम तो खाओ ,पीओ ,पढाई करो, मस्ती करो और चैन से सोओ. बस जब जिस काम का समय हो वही करो. खेल खेल में भी सीख सकते हो, अपने दोस्तों के नाम याद कर लो ,उन्हें कापी पर लिख लो. किचन में जाओ, देखो वहां क्या -क्या रखा है .सब वस्तुओं के नाम माँ से पूछ -पूछ कर लिख डालो. बगीचे में चले जाओ माली काका से पेड़ पौधो फ़ूल के नाम पूछ लो, खुरपी ,फ़ावडा, हजारा ,खाद मिट्टी सब पाँच पांच बार कापी में लिख डालो. गरमी की छुट्टी में नानी के यहाँ मस्ती करने जाओ तो वहाँ के सारे रिश्तेदारो के नाम लिख लो, लिखना बहुत सरल है .सब खेल खेल में सीख जाओगे और आगे बढ़ना चाहो तो फ़ल ,सब्जी ,मिठाई के नाम और उनका रंग ,स्वाद ,आकार लिखो .कक्षा के पाठ में भी ये ही सब होता है.

अक्षर पहचान जरूरी है ,स्वर व्यन्जन लिखने और बोलने सीखने जरूरी हैं, अर्ध रूप लिखना सीखना जरूरी है, मात्रा के बिना तो काम ही नहीं चलेगा, अनुस्वार अनुनासिकता विसर्ग जानो ,उनका सही प्रयोग करना सीखो, सन्धि समास व्याकरण समझो. लड़का जाता खाता पीता और लड़की जाती खाती पीती क्यों होता है टीचर जी से पूछो. शुद्ध लिखना सीखो, शिरोरेखा लगाना मत भूलो, सुडौल वर्ण बनाना सीखो, अनुच्छेद बदलना सीखो, निबंध कहानी पत्र सब लिखना सीखो. और जब ढन्ग से लिखना सीख जाओ, सुलेख और श्रुतलेख में पक्के हो जाओ तो अपने मन की बात लिखो, डायरी लिखो. चिट्ठी लिखो. शिकायत लिखो, समस्या लिखो ,अपने अनुभव लिखो .जो देखो वह सब लिखो. गलती किए बिना और साफ़ -साफ़ मोती जैसे अक्षर लिखना ,सही तरीके से पढना, अपनी बात स्पष्ट तरीके से रखना,वाक्य विन्यास करना, कर्ता क्रिया कर्म वाक्य में सही स्थान पर रखना आ गया,मुहावरे लोकोक्ति का प्रयोग करना आ गया तो समझो सब आ गया. हम जब तीन चार में पढ़ते थे तो पिताजी हमें बी. ए. की किताब की रीडिंग करने को देते और फ़िर मित्रों और रिश्तेदारो के आगे कहते -देखो हमारी लाली तीन में पढ़ती है पर अखबार,पत्र पत्रिका तो छोडो बी. ए. की किताब भी बांच लेती है और हम फूल कर कुप्पा हो जाते. सच बताऊ तो पढना सीखना बहुत आसान है. बस शब्दो पर थोडा ध्यान देना होता हैं, संयुक्त वर्ण क्लिष्ट होते हैं उन्हें सीखने का अभ्यास करना होता है, बार - बार दोहराना होता है. सो अपना सारा ध्यान भाषा की बारीकियाँ सीखने में लगाओ, अध्यापक को देखो वह कैसे बोलते हैं, उनके उच्चारण को पकडो .वैसा ही बोलने का अभ्यास करो. धीरे -धीरे गति बढाओ. जहाँ भी लिखा हुआ मिले, उसे पढ़ो .घूमने जाओ तो साइन बोर्ड पढ़ो, ऐतहासिक इमारते देखने जाओ तो वहाँ की इबारत पढ़ो, कहानी पढ़ो, गीत पढ़ो, घर में दादी नानी रामायण गीता बान्चती हो, कथा कहती हो तो उसमें रुचि लो .खुद पढ़ कर सुनाओ. देखो वे कितना खुश हो जायेन्गी और तुम्हारा पढ़ने का अभ्यास भी हो जायेगा.

ऐसे ही पहले देख देख के लिखो, बोर्ड से मास्टर जी का लिखा उतारो, कापी में दी गई सुलेख को देख देख कर लिखो, टीचर इमला बोले तो ध्यान से सुनकर लिखो. किताब से दो पन्ने रोज उतार कर लिखो .अरे करो तो सही आम के आम गुठलियो के दाम मिलेंगे, खेल- खेल में सब सीख जाओगे और नामवरी होगी सो अलग.ऐसे ही बोलना सीखो सुनना सीखो. सुन- सुन कर ही तो बोलना सीखते हैं. रेडियो से सुनो चाहे टीवी से ,ध्यान लगा कर सुनो. ठीक से सुनोगे तो समझ जल्दी आयेगा. कान दे के सुनो.

अब दो बात अपने साथी मित्रों से...... ऊपर की सभी बातें सिखाने के हेतु तो आप ही होंगे तो सिखाने से पहले खुद सीखना जरूरी है. अपने को अपडेट करो. क्या लिखते हो श्वेत श्याम पट पर, खुद ही नहीं पढ़ पाते तो बालक क्या खाक पढेन्गे .अक्षर एक दूसरे में मिला कर लिखते हो, या तो हाथी जैसे लिखोगे या चींटी की तरह बे मालूम से, पढाने गये हो या बेकार टालने .खुद तो सुडौल और सुन्दर लिखना सीखो तभी छात्रों को भी कुछ नया सिखा पाओगे. सो अब बदलो स्वयम को, कोरोना काल का लाभ उठाओ. पहले खुद लिखना पढना सीखो, मत भूलो कि पूरी शिक्षा व्यवस्था की नींव तुम ही हो. जो तुम संभल गए तो सारी इमारत पुख्ता हो जायेगी. जब नींव पक्की और गहरी होती है तो डिजाइन और कन्गूरे बदले जा सकते हैं. आप उन अध्यापको को अपना आदर्श चुन सकते हैं जो बच्चों को भाषा सिखाने में अपना सारा श्रम झोंक देते हैं और बच्चों के लिए विषय सीखना बहुत आसान हो जाता है .हमारी पूरी -पूरी तैयारी,हमारा पूरा -पूरा ध्यान प्राथमिक कक्षाओ में भाषा की मजबूती है. एक बार जब भाषा के चारों कौशलो (सुनना, पढना, बोलना, लिखना) पर अधिकार हो जाए तब सारी पढाई मनभावन हो जाती है. विषय को सीखना सरल और रोचक हो जाता है.

तो अब देर किस बात की, उठाओ अपने -अपने शस्त्र, धार धरो और हो जाओ तैयार .छात्र तो उकताये बैठे हैं कि कब पाठशाला खुले और हमारी धमा चौकडी शुरू हो. तब तक ढेर सारे पाठ तैयार कर लो, चित्र और माडल का चयन करो, लिखने का अभ्यास करो. अब ये मत कहने लगना कि पहली दूसरी पढाने के लिए क्या तैयारी करनी, यहीं तो हम मात खा जाते हैं. एम.ए. बी.ए. के लिए एक बार पढ़ भी लें, नोटस बना भी लें पर छोटी कक्षाओ के नाम पर बिल्कुल खाली जाते हैं. हम ओवर कान्फ़ीडेन्ट होते हैं .इन्हें तो कुछ भी पढा दो सब चलेगा.बस इन्हें तो कक्षा में घेरे रहो बस, बहुत हुआ तो श्याम पट पर किटकिणा डाल दो, गिनती पहाडे लिख दो, उतारने के लिए कह दो ,एक बच्चे को बोलने में लगा दो और सारे बच्चों को सुनकर दोहराने में और खुद बैठ कर गप्पे मारो, कुर्सी तोडो .ऐसे थोड़े ही सीखते हैं बालक, उनके साथ श्रम करो, बच्चों के साथ बच्चा बनो. थ्री ईदियट पिक्चर के कला मास्टर बनो और देखो तुम्हारी मेहनत कैसे रंग लाती है.

अध्यक्ष, अंतरराष्ट्रीय हिंदी शिक्षण विभाग

केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा

ई-मेल - dr.beenasharma@gmail.com