भारत की नई शिक्षा नीति पर केंद्रित शैक्षिक उन्मेष पत्रिका के आगामी विशेषांक खंडों (ई-पत्रिका) के लिए आलेख आमंत्रण
प्रस्तावना: भारत सरकार ने गत तीन दशकों से लंबित शिक्षा नीति को अंतिम रुप दे दिया है। वस्तुतः मोदी जी के प्रधान मंत्रित्व काल में राष्ट्र निर्माण की दिशा में जो महत्वपूर्ण कार्य हो रहे हैरू उनमें नई शिक्षा नीति एक अत्याधिक महत्वपूर्ण कार्य है। यह कार्य आगामी वर्षो में सबसे युवा देश को सही दिशा प्रदान करने वाला एवं नई वैश्विक चुनौतियों पर विजय प्राप्त करने वाला सिद्ध होगा। वस्तुतः राष्ट्र निर्माण की दिशा में क्रांतिकारी कदम है।
आज विश्व बड़ी तेजी से बदल रहा है। ज्ञान, विज्ञान, प्रोद्यौगिकी, कम्प्यूटरीकरण और तकनीकी में नित नए प्रयोगों तथा नवोन्मेषी अनुसंधानों ने ज्ञान की दिशा ही बदल दी है। आज मनुष्य उस स्थान पर खड़ा है जहाँ से उसे बेतहासा दौड़ लगानी है। वैश्विक परिस्थितियां भूखे शेर की तरह आपका पीछा कर रही हैं। यदि आप पीछे रह जांएगे तो मृत्यु निश्चित है। अतः जीवित रहने के लिये हमें ज्ञान, विज्ञान और प्रोद्यौगिकी में विश्वस्तरीय होना होगा अन्यथा हम अपना अस्तित्व नही बचा पाएँगे।
नई शिक्षा नीति ने इस मुद्दे को आधार बना कर यह नीति तैयार की है। आने वाले वर्षो में हमारे सम्मुख आने वाली चुनौतियों को ध्यान में रख कर तैयार की गई यह शिक्षा नीति राष्ट्र के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।
शिक्षा में गुणवत्ता: आज हमारे देश में शिक्षा की गुणवत्ता में इतना पतन हो चुका है कि वैश्विक स्तर पर हम बहुत पिछड़े नजर आते हैं। शिक्षा में गुणवत्ता को नई शिक्षा नीति में प्रमुखता दी है। यह सराहनीय कार्य है व इससे शिक्षा का सही उद्देश्य सफल होगा।
शिक्षा में गुणवत्ता के प्रश्न पर काफी चर्चा परिचर्चा होती रही है परन्तु इसके समाधान के लिए कोई ठोस कदम नही उठाए गए। लेकिन इस नई शिक्षा नीति में सुधार करते हुए न केवल 360 डिग्री मूल्यांकन, बल्कि शिक्षकों के ज्ञान और योग्यता की परख व उसमें सुधार जैसे बिंदुओं को भी शामिल किया गया है।
नवीन एवं प्राचीन का सन्तुलन: नए ज्ञान, विज्ञान, सूचना प्रोद्यौगिकी व नवोन्मेषी तकनीकी के साथ-साथ नई शिक्षा नीति के निर्माण में हमारे प्राचीन ज्ञान और विज्ञान तथा दर्शन को सहेजने व उस पर गहन अध्ययन एवं शोध को भी महत्व दिया गया है। इसलिये चिंतन के धरातल पर भी नई शिक्षा नीति सर्वथा नई है। इसमें प्राचीन और नवीन का सन्तुलन बनाया गया है। अपनी जडों से जुडेऋ रहकर ज्ञान के शिखर पर पहुंचने का यह प्रभावी मंत्र है।
सबका साथ सबका विकास: हमारी वर्तमान सरकार की नीति ’’सबका साथ सबका विकास’’ के मूल सिद्धान्त को भी नई शिक्षा नीति में स्थान दिया गया है। अतः वंचित व उपेक्षित समाज के बच्चों के शैक्षणिक विकास के विभिन्न पहलुओं को भी इस शिक्षा नीति में शामिल किया गया है साथ ही दिवांगजनों के विकास हेतु पर्याप्त प्रावधान है।
नई शिक्षा नीति का उद्देश्य: संक्षेप में इस शिक्षा नीति के निर्माताओं ने आधारभूत सिद्धान्त को इस प्रकार व्यक्त किया है:-
’’शैक्षिक प्रणाली का उद्देश्य अच्छे इन्सानों का विकास करना है- जो तर्क संगत विचार और कार्य करने में सक्षम हांे, जिनमें करुणा और सहानुभूति, साहस और लचीलापन, वैज्ञानिक चिंतन और रचनात्मक कल्पना शक्ति, नैतिक मूल्य और आधार हों। इसका उद्देश्य ऐसे उत्पादक लोगों को तैयार करना है जो कि अपने संविधान द्वारा परिकल्पित -समावेशी और बहुलतावादी समाज के निर्माण में बेहतर तरीके से योगदान करें।’’
उक्त सिद्धान्तों का विवेचन करने पर यह स्पष्ट हो जाता है कि नई शिक्षा नीति एक गतिशील, विकासोन्मुखी राष्ट्र निर्माण हेतु महत्प्रयास है।
शिक्षकों का व्यवसायिक विकास: नई शिक्षा नीति 2020 के सर्वाधिक महत्वपूर्ण एव चिर प्रतीक्षित सुधारों में शिक्षकों के व्यवसायिक विकास व शैक्षिक प्रणाली में नवाचार और चिंतन के नए आयामों व विचार वैविध्य को प्रोत्साहित करने तथा भारतीयता से जुड़े रह कर गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और शोध को महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है।
नई शिक्षा नीति और भाषा: नई शिक्षा नीति में पैरा 4.11 से 4.22 तक भाषा के मुदृदे को बहुत ही संजीदगी से प्रस्तुत किया गया है। यह नई शिक्षा नीति की सबसे बड़ी उपलब्धि है ग्रेड 5 तक (अथवा इसे ग्रेड 8 तक भी बढाया जा सकता है।) के लिये भाषा सम्बंधी सुस्पष्ट नीति अपनाई गई है। यही वह अवस्था होती है। जब बच्चों में ग्रहण क्षमता सर्वाधिक होती है। इस दौरान शिक्षा का माध्यम मातृभाषा अर्थात ’’घर की भाषा’’ या स्थानीय भाषा अथवा क्षेत्रीय भाषा में निर्धारित किया है इसके दूरगामी परिणाम होगें व हमारी राष्ट्रीय भावना भी मजबूत होगी। आज अंग्रेजी सीखने में जो वक्त लग रहा है वह वक्त ज्ञान के विस्तार में लगेगा। अपनी भाषा में ग्राहयता कई गुना बढ़ जाती है तथा विषय को समझने में भी सुविधा होती है। अतः आरंभिक दौर में सरकारी व निजी विद्यालयों में शिक्षा का माध्यम बदलने से बहुत ही सकारात्मक परिणाम निकलेगें। राष्ट्रीय अपेक्षाओं को पूरा करने के लिये त्रिभाषा सूत्र को बहुत लचीले रुप में रखा जाएगा। यह त्रिभाषी विकल्प राज्यों, क्षेत्रों और विद्यार्थियों के अपने होगें । अतः भाषा विवाद की सम्भावना नगण्य है। पैरा 4.13 यह पुनः स्पष्ट कर दिया गया है कि किसी भी राज्य पर कोई भाषा थोपी नही जायेगी। भाषा सम्बंधी अन्य विवरण पैरा 4.22 तके विस्तार से समझाए गए है।
शिक्षण एवं मूल्यांकन प्रणाली में एकरूपता: सभी स्तरों पर शिक्षण और मूल्यांकन प्रणाली में एकरुपता व बहुस्तरीय मूल्यांकन (360 डिग्री मूल्यांकन) इस शिक्षा नीति की महत्वपूर्ण विशेषता है।
रोजगारोन्मुख शिक्षा: नई शिक्षा नीति की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि यह बेरोजगारों की फौज तैयार नही करेगी बल्कि हर युवा को इतना सक्षम बनाएगी कि वह नौकरी के लिये भटकने के बजाए स्वयं का कारोबार करने में सक्षम होंगे। राष्ट्र हित में युवा शक्ति का समुचित उपयोग ही इस शिक्षा नीति का अंतिम लक्ष्य है।
अनुभवी विद्वानों के ज्ञान का उपयोग: हमारे देश में दीर्घ अनुभव व ज्ञान के धनी बुजुर्ग उपेक्षित से रहते हैं। लेकिन अब नई शिक्षा नीति उनके लिए भी मेंटरिंग राष्ट्रीय मिशन के रुप में यह शिक्षा नीति एक वरदान सिद्ध होगी। पैरा 15.11 में वर्णित व्यवस्था इस प्रकार है-
’’मेंटरिंग के लिये एक राष्ट्रीय मिशन स्थापित किया जायेगा जिसमें बड़ी संख्या मंे वरिष्ठ/सेवा निवृत्त संकाय सदस्यों को जोड़ा जायेगा, इनमें वे संकाय सदस्य भी शामिल होंगे जिनमें भारतीय भाषाओं में पढ़ाने की क्षमता है और जो विश्वविद्यालय/कालेज शिक्षकों लघु और दीर्घ कालिक परामर्श/व्यवसायिक सहायता प्रदान करने के लिये तैयार होंगे।’’
इस प्रकार नई शिक्षा नीति में पूर्ण स्पष्टता है व नीति के कार्यान्वयन के संकेत भी स्पष्टता से दिए गए हैं।
शिक्षा प्रणाली का नियमन: आरंभिक साक्षरता से लेकर व्यसायिक शिक्षा तक के नियमन सम्बंधी पहलुओं पर भी नीति निर्माताओं की स्पष्ट दृष्टि रही है। उच्चतर शिक्षा की खामियों को दूर करने के उद्देश्य से नियामक प्रणाली में आमूलचूल परिवर्तन किए गए हैं। अतः नियमन में एकीकरण व केन्द्रीयकरण के सिद्धान्तों को अपनाया गया है।
शिक्षा व जीविकोपार्जन मौलिक अधिकार: नई शिक्षा नीति के पैरा 21 में बुनियादी साक्षरता, शिक्षा व जीविकोपार्जन, प्रत्येक नागरिक का मौलिक अधिकार माना गया है। अतः प्रौढ़ शिक्षा व जीवन पर्यन्त शिक्षण के लिये नवाचारी उपायों का प्रावधान भी किया गया है ताकि शतप्रतिशत साक्षरता का लक्ष्य प्राप्त हो सके।
भारतीय भाषा, कला एवं संस्कृति का विकास: भारतीय भाषा, कला और संस्कृति के संवर्द्धन के लिये भी इस नीति में व्यवस्था की गई है। ’’चार वर्षीय बहुविषयक बी.एड. डिग्री के द्वारा मिशन मोड में पूरे देश के संस्कृत शिक्षकों को बड़ी संख्या में व्यवसायिक शिक्षा प्रदान की जाएगी। ’’ (पैरा 22.15) अन्य छोटी से छोटी उपभाषाओं/बोलियों के संरक्षण एवं विकास हेतु भी स्पष्ट दिशा निर्देश दिए गए हैं।
नये दौर में शिक्षण की नई पद्धतियाँ: नए दौर में ई लर्निंग, वर्चुअल शिक्षण एवं ऑन लाइन और डिजिटल शिक्षा को बढावा देने के लिए समुचित प्रावधान किए गए हैं व इन पद्धतियों से गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा देने के लिए उचित प्रशिक्षण एवं प्रयोगशालाओं तथा मूलभूत संरचनाएं तैयार किए जाने के लिये भी प्रावधान किए गए हैं।
निष्कर्ष: नई शिक्षा नीति के विश्लेषण से यह स्पष्ट हो जाता है कि यह शिक्षा नीति समय की माँग को पूरा करने व विश्व स्तर पर भारतीय ज्ञान , विज्ञान और कला-संस्कृति को पहुंचाने की एक महत्वाकांक्षी नीति है। यह नीति रोजगार सृजन व नए विषयों तथा नए ज्ञान के क्षेत्रों में शिक्षा के द्वार खोलेगी जिससे भारत शिक्षा के क्षेत्र में भी विश्व में अग्रणी हो जाएगा।
जहां तक नीति का प्रश्न है इसमें दो राय नहीं कि यह आधुनिक युग के अनुरुप उत्कृष्ट शिक्षा नीति है परन्तु इसका कार्यान्वयन कठिन होगा क्योंकि शिक्षा संविधान की समवर्ती सूची का विषय है। अतः राज्य सरकार अपनी सोच और अपनी राजनैतिक विचारधारा के अनुरुप इसमें परिवर्तन करना चाहेंगी। यदि इस नीति में परिवर्तन की थोड़ी सी भी अनुमति दी गई तो यह नीति अपने मूल स्वरुप और मूल उद्देश्य से हट जाएगी।
अतः सरकार को इस नीति की विशेषताओं को जन-जन तक पहुंचाना होगा तथा राज्य सरकारों को विश्वास में लेकर इस शिक्षा नीति को इसी रुप में लागू करने हेतु जनमत तैयार करना होगा। इस प्रकार समस्त भारत में समान शिक्षा नीति लागू होने से हमें विकास के शीर्ष पर पहुंचने में अधिक समय नही लगेगा।
महानिदेशक, वैश्विक हिंदी शोध संस्थान
मनोजय भवन, 115 विष्णुलोक कालोनी,
तपोवन रोड, देहरादून-248008, उत्तराखंड
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