भारत की नई शिक्षा नीति पर केंद्रित शैक्षिक उन्मेष पत्रिका के आगामी विशेषांक खंडों (ई-पत्रिका) के लिए आलेख आमंत्रण
29 जून 2020 को माननीय शिक्षा मंत्री डॉ रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ द्वारा ‘राष्ट्रिय शिक्षा नीति 2020’ का मसौदा देश के सामने रखा गया| 34 सालों के बाद बनी इस बहुप्रतीक्षित शिक्षा नीति में यद्यपि अनेकों ऐतिहासिक प्रावधान है किंतु यदि ‘राष्ट्रिय शिक्षा नीति 2020’ के मुख्य एजेंडे की बात करें तो यह बिल्कुल स्पष्ट है कि ‘2030’ तक देश में ‘समावेशी और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा’ उपलब्ध कराना, जिसका निर्धारण भारत सरकार ने 2015 में किया था जिसे ‘एस.डी.जी 2030’ के नाम से भी किया है. यह शिक्षा नीति उन लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु एक सार्थक और सकारात्मक कदम है इसके साथ ही भारत में लम्बे समय से भारतीय शिक्षा व्यवस्था में भारतीय-ज्ञान-विज्ञान, भारतीय भाषाओं और मूल्यों को स्थान दिये जाने की मांग की जाती रही है उस मांग की पूर्ति के लिए इस शिक्षा नीति में अनेकों प्रावधान हैं इस ‘राष्ट्रिय शिक्षा नीति 2020’ के मुख्य रूप से चार भाग है- पहला भाग विद्यालयीय शिक्षा, दूसरा उच्चतर शिक्षा, तीसरा भाग अन्य केन्द्रीय विचारणीय मुद्दे और चौथा भाग क्रियान्वयन की रणनीतियों से जुड़ा है इन सभी भागों में भारतीय शिक्षा व्यवस्था के सभी मुद्दों के विषय में विस्तारपूर्वक चर्चा की गई है जिन्हें कुछ शब्दों में बांधना असंभव नही, तो मुश्किल अवश्य है इसलिए इस आलेख में विद्यालय शिक्षा, विशेष रूप से पूर्व प्राथमिक शिक्षा को लिया गया है अगर बात करें विद्यालयीय शिक्षा की तो इसमें ऐसे अनेक प्रावधान है जिनकी आवश्यकता काफी समय से भारतीय शिक्षा में महसूस की जा रही थी मसलन पूर्व प्राथमिक शिक्षा को भारत की मुख्य शिक्षा के साथ जोड़ना, जोकि उस रूप में नही थी जिस रूप में इसको प्राथमिकता दिए जाने की आवश्यकता थी इस शिक्षा नीति में इसका प्रावधान आ जाने से इसकी व्यवस्था करने के लिए सरकारें गंभीर हो जाएंगी साथ ही इसके स्वरूप में भी सार्वभौमिकता आ जाएगी यद्यपि इसका संचालन देश के विभिन्न आंगनवाडी केन्द्रों और प्राइवेट स्कूलों में पहले से ही हो रहा था किन्तु नीति के निर्धारण में इसको स्थान मिलने से इसके संचालन की एक औपचारिक व्यवस्था बन जाएगी इसके पाठ्यक्रम निर्माण की जिम्मेदारी एन.सी.ई.आर.टी नई दिल्ली को दी गई है, इसके अलावा आंगनवाडी केन्द्रों को मजबूत करना, 2025 तक शिक्षक और छात्र अनुपात 1:30 से कम करना जिससे स्कूलों में संचालित कक्षाओं का बोझ कम जा सके| इस नीति में 2030 तक सभी स्कूलों के लिए सकल नामांकन अनुपात (जी.ई.आर) 100% करना, शिक्षा के अधिकार (आर.टी.ई) की सीमा को कक्षा आठवीं से बढ़ा कर कक्षा बारहवीं तक करना, विद्यालयों में छात्रों के उपस्थिति को बढ़ाने के लिए परिवहन और छात्रावास की व्यवस्था करना, जिसका प्रावधान ‘आर.टी.ई 2009’ में भी किया गया था| इसके अलावा गुरुकुलों, मदरसों और पाठशालाओं को भी एन.सी.एफ के दायरे में लाना| नई शिक्षा नीति में बहुभाषिकता और मातृभाषा के संवर्धन में भी काफी बल दिया गया है जैसे कक्षा एक से पांचवीं कक्षा तक शिक्षा का माध्यम मातृभाषा करना, जोकि मातृभाषाओं के संरक्षण और संवर्धन के लिए काफी महत्वपूर्ण कदम है| ‘त्रिभाषा’ सूत्र में लचीलापन लाना जैसे छात्रों को कक्षा छ: या सात में तीन भाषाओं में किसी एक या इससे अधिक भाषा को बदलने की स्वतंत्रता, राज्य और केंद्र सरकारों द्वारा क्षेत्रीय भाषाओं के शिक्षकों की नियुक्ति करना, माध्यमिक स्तर में वैकल्पिक रूप से विदेशी भाषा के चयन की स्वतंत्रता, संस्कृत को वैकल्पिक भाषा के रूप में चयन का प्रावधान इसके साथ ही स्कूलों में तमिल, तेलुगु, मलयालम, पाली, प्राकृत, फारसी, कन्नड़ और ओड़िया आदि भाषाओं के शिक्षण की व्यवस्था होगी| इस शिक्षा नीति में 2022 तक ‘पैरा शिक्षक’ की व्यवस्था समाप्त करके, इसके स्थान पर नियमित शिक्षकों की नियुक्ति करना तथा शिक्षा की पुरानी व्यवस्था 10+2+3 के स्थान पर 5+3+3+4 किया गया है जिससे भारतीय शिक्षा में सार्वभौमिकता का समावेश होगा |ये विद्यालयीय शिक्षा हेतु कुछ प्रमुख प्रावधान है जिनका निर्धारण नई शिक्षा नीति में किया गया है इन सभी मायनों में ये शिक्षा नीति ऐतिहासिक है| अगर बात करें इस नई नवेली शिक्षा नीति 2020 के पूर्व प्राथमिक शिक्षा के लिए किये गए नवीन प्रावधानों और इसके क्रियान्वयन में होने वाली चुनौतियों की तो आगे हम इस पर चर्चा करते हैं| |
पूर्व प्राथमिक शिक्षा के विकास के लिए प्रमुख प्रावधान-
यूँ तो यह शिक्षा नीति 2020 अनेकों ऐतिहासिक प्रावधानों के लिए याद रखी जाएँगी किन्तु इस शिक्षा नीति ने पूर्व प्राथमिक शिक्षा को एक नए कलेवर में परिवर्तन में यह मील का पत्थर साबित होगी साथ ही इस शिक्षा नीति ने पुरानी शिक्षा व्यवस्था की संरचना 10+2+3 के स्थान पर 5+3+3+4 करके सर्वप्रथम पूर्व प्राथमिक शिक्षा को औपचारिक शिक्षा का ही भाग बना दिया पहले यह वैकल्पिक रूप से शिक्षा का भाग थी जिसके कारण बालक सीधे ही पहली कक्षा में प्रवेश लेता था जबकि प्राइवेट स्कूलों में बालक पहले प्री कक्षा में पढ़ कर आता था इसके कारण शिक्षा के प्रारम्भ से ही प्राइवेट और सरकारी बालकों ज्ञान में अंतर आ जाता था किन्तु इस शिक्षा नीति ने इस खाई को भरने का ऐतिहासिक कार्य किया है इसके अतिरिक्त राष्ट्रिय शिक्षा नीति 2020 में पूर्व प्राथमिक स्तर के लिए मुख्य प्रावधान अधिलिखित हैं-
· प्रत्येक आंगनवाड़ी केंद्र में समृद्ध शिक्षा के वातावरण के लिए अच्छी तरह से डिजाइन किया हुआ हवादार बाल सुलभ और निर्मित भवन होगा (1.5 राष्ट्रिय शिक्षा नीति 2020)
· 5 वर्ष की आयु से पहले हर बच्चा एक प्रारंभिक कक्षा या बालवाड़ी जो कि कक्षा एक से पहले से में स्थानांतरित हो जाएगा (1.6 रा.शि. नी. 2020)
· 10 +2 और उससे अधिक योग्यता वाले आंगनवाड़ी आशा कार्यकर्त्री शिक्षकों को ई.सी.सी.ई के 6 महीने का पाठ्यक्रम कार्यक्रम कराया जाएगा और इससे कम शैक्षणिक योग्यता वालों को 1 वर्ष का डिप्लोमा कार्यक्रम कराया जाएगा जिसमें प्रारंभिक साक्षरता संख्या और ई.सी.सी.ई के अन्य प्रासंगिक पहलूओं को भी शामिल किया जाएगा (1.6 रा.शि. नी. 2020)
· सभी बच्चों के लिए मूलभूत साक्षरता और संख्या ज्ञान को प्राप्त कराना तत्काल रूप से एक ‘राष्ट्रीय अभियान’ बनेगा जिसे ....शिक्षा प्रणाली की सर्वोच्च प्राथमिकता 2025 तक प्राथमिक विद्यालयों में सार्वभौमिक मूलभूत साक्षरता और संख्या ज्ञान प्राप्त कराना होगा इसके लिए मानव संसाधन विकास मंत्रालय (एमएचआरडी\ शिक्षा मंत्रालय) द्वारा पूर्व प्राथमिक स्तर (फाउन्डेशनल स्टेज) पर आधारभूत साक्षरता और संख्यात्मक ज्ञान पर एक ‘राष्ट्रीय मिशन स्थापित’ किया जाएगा (2.2 रा.शि. नी. 2020)
इस प्रावधान के अनुसार सभी प्राथमिक और उच्चतर प्राथमिक विद्यालयों में बालकों को मूलभूत साक्षरता और संख्या ज्ञान देने के लिए राज्य और केंद्र सरकारें अपने स्तर एक कार्य योजनायें बनाएगी जिससे इस लक्ष्य को ‘2025’ तक प्राप्त किए जा सकें करेंगे इसके साथ ही मानव संसाधन विकास मंत्रालय (एमएचआरडी) द्वारा प्राथमिक आधार पर आधारभूत साक्षरता एवं संख्यात्मक ज्ञान पर एक राष्ट्रीय मिशन स्थापित किया जाएगा इस शिक्षा नीति में उक्त लक्ष्य प्राप्ति के लिए एक कार्ययोजना का निर्माण और अविलंब क्रियान्वयन का निर्देश दिया गया है क्योंकि इस शिक्षा नीति के निर्माताओं का दृढ विश्वास है कि यदि देश को 2030 तक 100% सकल नामांकन अनुपात का लक्ष्य पाना है तो पूर्व प्राथमिक शिक्षा को मजबूत किया जाना अत्यंत आवश्यक है|
· शिक्षकों के रिक्त पदों की को जल्द से जल्द और समयबद्ध तरीके से भरा जाएगा विशेष रूप से वंचित क्षेत्रों और उन क्षेत्रों में जहां शिक्षक बच्चों का अनुपात दर ज्यादा हो या साक्षरता की दर निम्न हो वहां स्थानीय शिक्षकों या स्थानीय भाषा के परिचित शिक्षकों को नियुक्त करने पर विशेष रूप से ध्यान दिया जाएगा यह सुनिश्चित किया जाएगा कि प्रत्येक स्कूल में शिक्षक और विद्यार्थी का अनुपात पी.टी.आर 30:1 से कम हो और सामाजिक आर्थिक रूप से वंचित बच्चों की अधिकता वाले क्षेत्रों के स्कूलों में शिक्षक विद्यार्थियों का अनुपात पीटीआर 25:1 से कम हो (2.3 रा.शि. नी. 2020)
· एन.सी.ई.आर.टी और एस.सी.ई.आर.टी के द्वारा कक्षा 1 के बच्चों के लिए अल्पकालीन 3 महीने का प्ले आधारित ‘स्कूल तैयारी मॉड्यूल’ बनाया जाएगा जिसमें विद्यार्थियों और वर्क बुक होगी जिसमें अक्सर ध्वनियां शब्द रंग आकार संख्या संख्या आदि शामिल होंगे(2.5 रा.शि. नी. 2020)
· आंगनवाड़ी केन्द्रों में पढने वाले बच्चों के स्वास्थ्य रिपोर्ट कार्ड तैयार करने, 100% टीकाकरण करने, सुबह और दोपहर में बच्चों को पौष्टिक नाश्ता और भोजन दिया जाए जहां पके हुए गर्म भोजन की व्यवस्था करना संभव नहीं होगी वहां पौष्टिक विकल्प जैसे गुड़ के साथ मूंगफली/ गुड मिश्रित चना और स्थानीय स्तर पर उपलब्ध फल दिए जा सकते हैं इसके साथ ही स्कूलों में बच्चों के स्वास्थ्य की नियमित स्वास्थ्य जांच कराई जाएगी इसकी निगरानी के लिए हेल्थ कार्ड भी जारी किए जाएंगे(2.9 रा.शि. नी. 2020)
· ड्रॉपआउट बालकों के संख्या कम करना देश की सर्वोच्च प्राथमिकता होगी, इसके लिए 2030 तक प्री-स्कूल से माध्यमिक स्तर तक 100% सकल नामांकन अनुपात प्राप्त करने के लक्ष्य के साथ आगे बढ़ना होगा (3.1रा.शि.नी.2020)
· चुनौतियां – ‘राष्ट्रिय शिक्षा नीति 2020’ में संस्तुत किये गए उक्त प्रावधानों को वास्तविकता के धरातल (ग्रास रूट लेवल) पर क्रियान्वयन में कुछ चुनौतियां भी है जिन पर इसके प्रभावी क्रियान्वयन हेतु विचार किया जाना अत्यंत आवश्यक है जैसे इस राष्ट्रिय शिक्षा नीति में नए आंगनवाडी केन्द्रों के बनाने के लिए संस्तुति है इस क्रम में यदि बात करें वर्तमान में देश संचालित 13.77 लाख केंद्र है जहाँ 12.8 लाख आशा कार्यकर्त्री तथा 11.6 सहायक कार्य कर रहे हैं इसके अलावा साल 2019 में महिला एवम् बाल विकास मंत्रालय में अगले पांच वर्षों में 2.5 लाख नए आंगनवाडी केन्दों के निर्माण का लक्ष्य रखा है (दि इकॉनोमिक्स टाइम्स 17 दिसम्बर 2019.) किन्तु यह भी सत्य है जो पूर्व में ही स्थापित किये गए केंद्रों में ही मूलभूत सुविधाओं का नितांत अभाव है जैसे आंगनवाडी केन्द्रों के भवन का जर्जर हालत होना, किराये के मकान में केंद्र का सञ्चालन इत्यादि| जिससे ज्ञात होता है कि इनके सञ्चालन के लिए पर्याप्त धन की सुविधा नही हो पा रही तो नए बनाये जाने वाले आंगनवाडी केन्द्रों के लिए धन की व्यवस्था कैसे औए कहाँ से की जाएगी? इस पर भी गंभीरता से विचार किया जाना आवश्यक है इसके अतिरिक्त इन आंगनवाड़ी केन्द्रों के सञ्चालन के शिक्षकों के आवश्यकता होती इसी को ध्यान में रखकर इस शिक्षा नीति जल्दी से जल्दी नए शिक्षकों की नियुक्ति करने का प्रावधान किया है इसी क्रम में यदि देखें तो वर्तमान में सरकार द्वारा आशा कार्यकर्त्री के लिए पूर्व में स्वीकृत 13,99,697 पद में से 13,02,17 पद ही भरे गए हैं साथ इन केन्द्रों में कार्य कर रहे सहायक के 12,82,847 स्वीकृत पद में से इतने पद 11,84,954 ही भरे गए इसके अतिरिक्त बात करें इनको मिलने वाले वेतन की तो यह वेतनमान अत्यंत कम है जैसे आशाकर्त्री का वेतन 10000/ से 12000\ तक तथा सहायक का वेतन 5,500 से 70000\ रूपये पर महीना है यह वेतन भी इन्हें समय नही मिल पाता जिससे ये दूसरे विकल्पों पर विचार करने के लिए बाध्य होते हैं ऐसी विकट परिस्थिति में राष्ट्रिय शिक्षा नीति 2020 के नए प्रावधानों के क्रियान्वयन में काफी दिक्कतें होंगी अत: नीति के सफल क्रियान्वयन के लिए इन मुद्दों पर ध्यान देना अति आवश्यक है| इस शिक्षा नीति में स्कूलों में दोपहर के भोजन के साथ-साथ सुबह के नाश्तें का भी प्रावधान है इसी को ध्यान में रखते हुए हम यदि वर्तमान में संचालित मिड डे मील योजना को देखें तो ज्ञात होगा कि वर्तमान में देश के 11.4 लाख स्कूलों में 12 करोड़ छात्र इस योजना से लाभान्वित हो रहें हैं किन्तु इस योजना के ही क्रियान्वयन में ही काफी दिक्कतें आ रही है यहाँ देश के एक अखबार में एक खबर(नवभारत टाइम्स दिनांक 11 अगस्त 2020 दिल्ली एडिशन) छपी जिसे उदहरण के रूप में देखा जा सकता है इसमें बताया गया कि हाईकोर्ट में वर्तमान सरकार द्वारा एक हलफनामा दिया गया कि सरकार द्वारा 8.20 लाख छात्रों के तीन महीने के मिड डे मील के लिए 7 करोड़ रुपये भुगतान किये गए जोकि तक़रीबन प्रति बच्चा 100 (हर महीने) रुपये से भी कम जबकि इस योजना में हर बच्चे के लिए 540 रुपये (हर महीने) खर्च करने का प्रावधान है यह हाल तो देश में पूर्व में संचालित मिड डे मील योजना का है नाश्ता या अल्पाहार देने के प्रावधान का सञ्चालन कैसे संभव हो पाएगा? इसकी कल्पना ज्यादा मुश्किल नही| शोधकर्ता का उद्देश्य सिर्फ कमियां दिखाना उद्देश्य नही है बल्कि इसके क्रियान्वयन में होने वाली समस्याओं के विषय में ध्यानाकर्षण करना है जिससे इसका प्रभावी तरीके से क्रियान्वयन संभव हो सके क्योंकि किसी नीति निर्धारण से ज्यादा इसका क्रियान्वयन कराना एक जटिल एवं श्रम साध्य कार्य है इसके अलावा यदि किसी योजना के क्रियान्वयन से पूर्व उसके लिए आवश्यक संसाधनों की व्यवस्था कर ली जाये तो प्रभावी तरीके से किया जा सके| सरकारें राष्ट्रिय शिक्षा नीति 2020 क्रियान्वयन से पूर्व ही एक प्रभावी योजना का निर्माण, धन की पर्याप्त प्रबन्ध, प्रशिक्षित शिक्षकों का चयन, पूर्व चयनित शिक्षकों के लिए प्रशिक्षण की व्यवस्था इत्यादि के विषय पर अच्छी प्रकार से विचार करना चाहिए अन्यथा यह केवल यह औपचारिकता मात्र रह जाएगी| किन्तु यह भी सत्य है राष्ट्रिय शिक्षा नीति 2020 में वर्तमान में चल रही शिक्षा के सुधार के अनेकों प्रावधान है अब आवश्यकता है सिर्फ इसके सफल और प्रभावी क्रियान्वयन करने की|
संदर्भ सूची
· नवभारत टाइम्स दिनांक 11 अगस्त 2020 दिल्ली एडिशन.
· नवभारत टाइम्स दिनांक 8 अगस्त 2020 दिल्ली एडिशन.
· दि इकॉनोमिक्स टाइम्स 17 दिसम्बर 2019.
· Anganvadi Sevikas Posted on12 July 2019, ministry of Women and Child Development, Gov. of India.
· राष्ट्रिय शिक्षा नीति 2020.
डॉ ज्ञानेन्द्र कुमार
असिस्टेंट प्रोफ़ेसर, शिक्षा विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय
ई-मेल - gyanenderk78@gamil.com
डॉ मोनिका पारीक
काउंसलर, एस.ओ.एल, दिल्ली विश्वविद्यालय