राष्ट्रीय शिक्षा नीति और भारत का भविष्य

डॉ. योगेश कुमार गुप्ता

संसार में ज्ञान के समान कुछ भी पवित्र नहीं है। ज्ञान ही मनुष्य की आशंकाओं और जिज्ञासाओं को दूर करता है। इस ज्ञान रूपी दिव्य अलौकिक मार्ग से मनुष्य को पूर्णता की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त होता है। भारत की प्राचीन शिक्षा पद्धति में इन सभी बातों का पहले से ही उल्लेख मिलता है। लेकिन जब देश आजाद हुआ और बाहरी आक्रांताओं व अंग्रेजों का राज हुआ तो उन्होंने भारतीय शिक्षा की पद्धति को बदलकर रख दिया। परिणामस्वरूप भारतीय जनमानस अपने विचारों, सभ्यता एवं संस्कृति की जड़ों से कटता चला गया। इस राष्ट्रीय शिक्षा नीति में वह सब कुछ वर्णित है जिससे बालक को न केवल भारत बोध होगा, वरन् वह सच्चा मनुष्य बनकर भारत माता के लिए पूर्ण रूप से समर्पित होगा। इस पूरी शिक्षा नीति में ज्ञान आधारित सृजनात्मकता व रचनात्मकता के साथ प्रारंभिक शिक्षा से लेकर उच्चतर शिक्षा का खाका है। इस नीति में न केवल शिक्षा के ढांचे को आमूल-चूल बदला गया है, बल्कि शिक्षा पद्धति में सुधार, नवाचार व अनुसंधान के साथ मनुष्य निर्माण पर जोर दिया गया है। यह शिक्षा नीति भारत केंद्रित एवं विद्यार्थी केंद्रित है। यह पूरी तरह भारतीय ज्ञान परंपरा पर आधारित है। इसमें त्रिभाषा सूत्र के साथ 'निज भाषा उन्नति अहै' की बात पर जोर दिया गया है। मातृभाषा, हिंदी एवं कोई एक अन्य भाषा व्यक्तित्व के संपूर्ण विकास में सहायक सिद्ध होगी। संस्कृत भाषा के अध्ययन व अध्यापन की इसमें प्रधानता रहेगी। सही मायने में यह शिक्षा नीति छात्र, अध्यापक व भाषा के बीच का त्रिकोण है।

इस नीति से पूर्व भारत में दो शिक्षा नीति लागू हुई, जिनसे शिक्षा व्यवस्था का संचालन हो रहा है। प्रथम शिक्षा नीति 1968 में डीएस कोठारी की अध्यक्षता में बनी। दूसरी शिक्षा नीति 1986 में बनी और 1992 में उसमें आवश्यकतानुसार संशोधन भी किए गए। अब 34 वर्षों पश्चात बहुत बड़े विमर्श के बाद 29 जुलाई, 2020 को प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा तीसरी राष्ट्रीय शिक्षा नीति की घोषणा की गई। इस शिक्षा नीति के विमर्श में 2 वर्ष का समय एवं 2 करोड़ से अधिक लोगों के सुझाव समाहित हैं। विमर्श में शिक्षक, विद्यार्थी, राजनेता, अभिभावकगण, जनप्रतिनिधि एवं समाजसेवी सभी के सुझाव समाहित किये गए हैं। इसलिए यह शिक्षा नीति सर्वस्पर्शी, सर्वव्यापी, सर्वसमावेशी एवं राष्ट्रीय विचारों से ओत-प्रोत है और कहा जाए कि लंबे समय की मेहनत के पश्चात निकला वह नवनीत है जो देश के समग्र विकास में अपनी महती भूमिका अदा करेगा। इस नीति में तकनीकी के समुचित उपयोग पर बल दिया गया है। इसका मुख्य उद्देश्य 'वाइब्रेंट नॉलेज सोसायटी' का निर्माण, उच्च गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, मानवीय व राष्ट्रीय भाव का जागरण, वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास, अंतिम छोर पर बैठे व्यक्ति को शिक्षा का लाभ मिलने की भावना समाहित है। ऐसा माना गया है कि इस शिक्षा नीति से 60 करोड़ से अधिक लोग सीधे रूप से प्रभावित होंगे।

इस शिक्षा नीति में मानव संसाधन विकास मंत्रालय का नाम परिवर्तन कर शिक्षा मंत्रालय किया गया है। जो केवल नाम परिवर्तन ही नहीं दृष्टि परिवर्तन का सूचक है।

विद्यालयी शिक्षा में परिवर्तन-

यह शिक्षा नीति विद्यालयी शिक्षा में सबसे बड़े परिवर्तन की पक्षधर है। जो पूर्व की नीतियों में 10+1 या 10+2 था। वह अब 5+3+3+4 किया गया है इसका अर्थ यह है कि बालक की प्रारंभिक अवस्था जिसे फाउंडेशन स्टेज या नींव कहा जा सकता है, उसे पूर्ण रूप से मजबूत करने की बात इस नीति में कही गई है। तीन वर्ष के बालक को विद्यालय में प्रवेश देकर प्री प्राइमरी के तीन वर्ष व प्रथम एवं द्वितीय सहित कुल 8 वर्ष की आयु पूर्ण करने तक इन प्रारंभिक 5 वर्षों में बालक के खेलकूद, संगीत, कला, योग, साहित्य, गणित कौशल के साथ शारीरिक व मानसिक विकास पर ध्यान दिया जाएगा। इन वर्षों में उसे यह सभी कुछ अपनी मातृभाषा में ही सिखाया-पढ़ाया जाएगा। बालकों के लिए मिड डे मील एवं बाल भवन की भी व्यवस्था रहेगी। कक्षा 3 से 5 तक यानी 11 वर्ष की आयु में बालक को भविष्य के लिए तैयार किया जाएगा। यह 'प्रिपरेटरी स्टेज' कहलाएगी। इन वर्षों में उसे विभिन्न विषयों का प्रारंभिक ज्ञान अपनी मातृभाषा में ही दिया जाएगा।अंग्रेजी माध्यम की अनिवार्यता को समाप्त किया जाएगा। कक्षा 6 से 8 तक यानी मिडिल स्टेज में बालक को एक निश्चित पाठ्यक्रम पढ़ाया जाएगा। साथ ही उसे इंटर्नशिप भी प्रदान की जाएगी यानी पढ़ाई के साथ-साथ वह अपनी पसंद के क्षेत्र से संबंधित उद्योग या संस्थान में अपने कौशल का व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त भी कर सकेगा, जिससे वह धीरे-धीरे अपनी क्षमताओं को पहचान कर भविष्य के लिए एक निश्चित क्षेत्र का चयन भी कर सकता है। विभिन्न विषयों की पाठ्य सामग्री भी भारतीय भाषाओं में उपलब्ध कराई जाएगी। बालकों को 'एक भारत श्रेष्ठ भारत' के माध्यम से भारतीय भाषाओं पर आधारित परियोजना में भागीदारी निभानी होगी।

कक्षा नौवीं से बारहवीं तक सेकेंडरी स्टेज में बालक में विषय के प्रति गहरी समझ का विकास किया जाएगा, जिससे उसमें अध्ययन व विश्लेषण क्षमताओं का विकास हो सके। इन 4 वर्षों के पाठ्यक्रम में सेमेस्टर सिस्टम से परीक्षाओं का आयोजन होगा। बालक को वर्ष भर सतत अध्ययन करते रहना होगा एवं सतत मूल्यांकन की भी व्यवस्था रहेगी। यहां बालक के पास अध्ययन हेतु पसंद के विषय चुनने एवं विदेशी भाषाओं के चयन की स्वतंत्रता भी रहेगी, जिससे वह विज्ञान के साथ समाजशास्त्र या संस्कृत या राजनीति शास्त्र जैसे अपने पसंद के विषयों का अध्ययन कर सकेगा जबकि पूर्व में यह व्यवस्था नहीं थी। बोर्ड की परीक्षाओं को आसान बनाया जाएगा एवं विद्यार्थी को किसी भी विद्यालय वर्ष के दौरान दो बार बोर्ड की परीक्षा देने की अनुमति दी जाएगी। कोचिंग कक्षाओं की आवश्यकता को समाप्त किया जाएगा। विद्यार्थी शिक्षक अनुपात 25:1 का रहेगा। इस नीति में जो बच्चे किसी कारण से विद्यालय छोड़ देते हैं उनकी समस्याओं का निदान कर ड्रॉपआउट को 100% खत्म करने का प्रावधान है। सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े समूह (सोशियो इकोनामिकली डिसएडवांटेज ग्रुप) जिनमें अति पिछड़ा वर्ग, अन्य पिछड़ा वर्ग, अल्पसंख्यक, बालिकाएं,विस्थापित समूह, ग्रामीण परिवेश के विद्यार्थी शामिल हैं, उनकी शिक्षा पर विशेष ध्यान देने की योजना है। अतः यह नीति कम प्रतिनिधित्व वाले समूह को लक्षित कर समग्र एवं समावेशी विकास का मार्ग प्रशस्त करती है। नया राष्ट्रीय आंकलन केंद्र 'परख' एक मानक निर्धारक निकाय के रूप में स्थापित किया जाएगा। बालकों में रटने की आदत को खत्म कर उनमें विषय की गहराई की समझ विकसित करने का प्रयास किया जाएगा, जिससे विद्यार्थियों में अंक प्रतिस्पर्धा की दौड़ खत्म हो जाएगी। मूल्यांकन 360 डिग्री के आधार पर किया जाएगा, जिसमें बालक अनेक बिंदुओं पर अपने स्वयं के भी अंक दे सकेंगे। साथ ही शिक्षकों द्वारा, सहपाठियों द्वारा भी उनके व्यवहार, चरित्र व आचरण के आधार पर अंक दिए जाएंगे। इसमें परियोजना कार्य, अनुसंधान, समूह एक्टिविटी जैसे आवश्यक बिंदु शामिल होंगे। रिपोर्ट कार्ड में यह सभी अंकित किया जाएगा जिससे उसे मालूम हो सके कि वह कहां पर कमजोर है और भविष्य में उसे सुधारने का मौका भी मिलेगा। निजी शिक्षण संस्थानों की मनमानी फीस वसूली पर भी रोक लगेगी एवं विद्यालय, महाविद्यालय की फीस भी तय की जाएगी। इस सारी प्रक्रिया के निर्माण में एनसीईआरटी की महत्वपूर्ण भूमिका रहेगी। शिक्षकों के चयन हेतु उच्च गुणवत्ता युक्त मानदंडों का ध्यान रखा जाएगा। सोर्स शेयरिंग हेतु विद्यालयों में क्लस्टर का निर्माण किया जाएगा। राष्ट्रीय आंकलन केंद्र एनसीईआरटी व एससीईआरटी के निर्देशन में छात्रों की प्रगति रिपोर्ट तैयार की जाएंगी। भारतीय संकेत भाषा अर्थात साइन लैंग्वेज को पूरे देश में मानकीकृत कर किया जाएगा। मूक-बधिर विद्यार्थियों द्वारा उपयोग किए जाने के लिए राष्ट्रीय व राज्यस्तरीय पाठ्य सामग्री विकसित की जाएगी। स्कूली शिक्षा पाठ्यक्रमों को 30 से 40% कम किया जाएगा ।

उच्च शिक्षा में बदलाव-

उच्च शिक्षा देश के विकास का दर्पण होती है। इस नीति उच्च शिक्षा हेतु पाठ्यक्रमों में समग्रता व एकरूपता लाई जाएगी। सभी पाठ्यक्रमों में भारतीय भाषाओं की प्राथमिकता रहेगी। प्रवेश हेतु स्नातक में 'राष्ट्रीय परीक्षण एजेंसी' द्वारा 12वीं के अंकों सहित उच्च गुणवत्ता वाली 'सामान्य योग्यता परीक्षा' के अंको के योग से प्रवेश होगा। विषय चयन की पूर्ण स्वतंत्रता रहेगी। संस्कृत भाषा को रूचिपूर्ण व नवाचारी तरीके से प्रारंभिक विषयों जैसे विज्ञान, गणित, दर्शन शास्त्र, मनोविज्ञान आदि के साथ जोड़ा जाएगा। भारतीय भाषाओं में प्रवीणता को रोजगार आर्हता के मानदंडों के हिस्से के रूप में शामिल किया जाएगा।

इस नीति की सबसे अच्छी बात यह है कि यदि किसी बालक ने स्नातक में किसी कारणवश 1 या 2वर्ष की पढ़ाई पूर्ण करने के पश्चात वह छोड़ देता है तो उसकी यह पढ़ाई बेकार नहीं जाएगी एवं जितने क्रेडिट इन वर्षों में उसने अर्जित किए हैं वे सभी अर्जित क्रेडिट सरकार द्वारा बनाए गए 'एकेडमिक क्रेडिट बैंक' में जमा हो जाएंगे और जब भी वह एक निश्चित समय सीमा के अंदर अपना अध्ययन या डिग्री पूरी करना चाहेगा तो यह क्रेडिट उसकी डिग्री में एकेडमिक क्रेडिट बैंक से वापस जुड़ जाएंगे। एकेडमिक क्रेडिट बैंक डिजिटल लॉकर पर आधारित होगा। इसे मल्टी एंट्री एवं मल्टी एग्जिट व्यवस्था कहा गया है। विद्यार्थी द्वारा स्नातक का प्रथम वर्ष पूर्ण करने पर 'सर्टिफिकेट' द्वितीय वर्ष पूर्ण करने पर 'डिप्लोमा' एवं तृतीय वर्ष पूर्ण करने पर स्नातक की डिग्री प्रदान की जाएगी। 4 वर्षीय स्नातक डिग्री शोध आधारित होगी। स्नातकोत्तर हेतु जिन्होंने 3 वर्ष की स्नातक डिग्री प्राप्त की है, उन्हें 2 वर्ष का पाठ्यक्रम जिसमें 1 वर्ष शोध पर आधारित होगा एवं 4 वर्षीय शोध आधारित डिग्री धारी विद्यार्थियों को 1 वर्ष में स्नातकोत्तर की डिग्री दी जाएगी। स्नातकोत्तर के बाद विद्यार्थी पीएच.डी में प्रवेश ले सकेंगे। इस शिक्षा नीति में एमफिल की डिग्री को समाप्त करने का प्रावधान रखा गया है।

उच्च शिक्षा में सकल नामांकन अनुपात को 27% से बढ़ाकर 50% किया जाएगा। उच्च शिक्षा में संकाय सदस्यों को अपने स्वयं के पाठ्यक्रम एवं शैक्षिक प्रक्रियाओं का निर्माण करने की स्वतंत्रता रहेगी। सभी उच्च शिक्षण संस्थान स्वच्छता का पालन करने के साथ-साथ आवश्यक सुविधाएं जैसे पीने हेतु स्वच्छ पानी, साफ-सुथरे शौचालय, पुस्तकालय, आईसीटी आधारित प्रयोगशाला एवं तकनीक युक्त कक्षा- कक्षा जैसे संसाधनों से पूरित होंगे। इस नीति में नीति निर्माण, विनिमय, प्रचालन तथा अकादमिक मामलों के लिए एक स्पष्ट प्रथक प्रणाली का प्रावधान रखा गया है। इस हेतु राज्य या केंद्र शासित प्रदेश स्वतंत्र 'स्टेट स्कूल स्टैंडर्ड अथॉरिटी' का गठन करेंगे।

उच्च शिक्षा के पारदर्शी संचालन हेतु एक स्वतंत्र निकाय 'भारतीय उच्च शिक्षा आयोग' (एचइसीआई)के गठन की बात यह शिक्षा नीति करती है। जो उच्च शिक्षा के विनिमय, प्रत्ययन, फंडिंग एवं शैक्षिक मानकों के निर्धारण में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेगा।उच्च शिक्षा के विनिमय हेतु 'राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा विनियामक परिषद' (एनएचईआरसी), प्रत्यायन के लिए 'राष्ट्रीय प्रत्ययन परिषद'(एनएसी), अनुदान हेतु 'उच्च शिक्षा अनुदान परिषद' (एचईजीसी)एवं मानक निर्धारण हेतु 'सामान्य शिक्षा परिषद'(जीईसी) का गठन किया जाएगा, जो उच्च शिक्षा में आधारभूत सुधार का काम करेंगे। उच्च शिक्षण संस्थानों को 2040 तक विस्तृत एवं बहुविषयक विश्वविद्यालयों एवं महाविद्यालयों और उच्च शिक्षण संस्थान क्लस्टर के रूप में रूपांतरित करके खंड-खंड की उच्च शिक्षा को समाप्त किया जाएगा। इस नीति में तीन तरह के उच्च शिक्षण संस्थान जिनमें अनुसंधान केंद्रित विश्वविद्यालय, शिक्षण केंद्रित विश्वविद्यालय एवं स्वायत्तशासी डिग्री प्रदान करने वाले महाविद्यालय शामिल है। विश्वविद्यालयों से महाविद्यालयों की संबद्धता धीरे-धीरे समाप्त की जाएगी तथा महाविद्यालयों को स्वायत्त बनाने की व्यवस्था की जाएगी। नियमानुसार देश में उच्च कोटि के विदेशी विश्वविद्यालयों के परिसर स्थापित होंगे एवं उच्च कोटि के भारतीय विश्वविद्यालयों के परिसर विदेशों में बनाए जाएंगे। जिससे न केवल सांस्कृतिक आदान-प्रदान होगा बल्कि विदेशी लोग भारत में शिक्षा ग्रहण करेंगे और देख पाएंगे कि भारत कितना वैभव पूर्ण एवं समृद्धशाली देश है। विश्वविद्यालय भारतोन्मुखी एवं समाजोन्मुखी अनुसंधान करेंगे, जिससे देश और समाज को अनुसंधानों का लाभ मिल सके। शोध में ट्रांसडिसीप्लिनरी शोध को बढ़ावा दिया जाएगा। गुणवत्तापूर्ण शोध हेतु नेशनल रिसर्च फाउंडेशन (एनआरएफ) की स्थापना की जाएगी, जिसके लिए 2200 करोड़ रुपए का प्रावधान है। एसा माना गया है कि बालक में शिक्षा नीति के माध्यम से राष्ट्रीय मूल्यों का विकास कर देश के टैलेंट को देश में ही रहकर काम करने की प्रेरणा मिलेगी। इस नीति में उल्लेख किया गया है कि शिक्षा का बजट 4.4 प्रतिशत से बढ़ाकर 6% करने का प्रावधान है।

इस नीति का सूत्र वाक्य- 'नेशन फर्स्ट- करैक्टर मस्ट' है अर्थात राष्ट्रीय हित के साथ चरित्र निर्माण पर जोर रहेगाI निश्चय ही यह नीति शिक्षा व्यवस्था में व्याप्त समस्याओं एवं उद्देश्यों को पूरा करने में एक विजन डॉक्यूमेंट है। भारत का जो टैलेंट है वह भारत में ही रह सके रहकर कार्य करें अर्थात भारत का दिमाग भारतीय समाज के उत्थान के लिए कार्य करें। यह नीति देश व समाज के विकास के साथ समग्रतापूर्ण वैश्विक नागरिक बनने में यह मील का पत्थर साबित होगी। इस नीति से आत्मनिर्भर भारत, डिजिटल भारत बन सकेगा एवं विदेशों के लिए निर्माण कर सकने वाला एवं विश्व का नेतृत्व करने वाले मानव का निर्माण हो सकेगा। इस नीति को 2021 से प्रारंभ कर 2030 तक पूर्ण रुप से लागू किए जाने का विभिन्न चरणों में प्रावधान है। सही तरीके से यदि यह राष्ट्रीय शिक्षा नीति लागू होती है तो निश्चित ही भविष्य के स्वर्णिम भारत की आधारशिला साबित होगी और भारत को विश्व गुरु के शिखर तक ले जाएगी।

सहायक आचार्य,

नव मीडिया विभाग, हि. प्र. के. वि.वि., धर्मशाला

ई-मेल - dragrawalyk@gmail.com