भारत की नई शिक्षा नीति पर केंद्रित शैक्षिक उन्मेष पत्रिका के आगामी विशेषांक खंडों (ई-पत्रिका) के लिए आलेख आमंत्रण
क्या वर्तमान शिक्षा हमारे नागरिकों का वह सब जरूरतों पूरी कर रही है ,जिसके द्वारा व्यक्ति समाज में अपनी कार्यशीलता या सृजनात्मकता से समाज को लाभान्वित करता है, ऐसे हजारों सवालों का जवाब यदि नही है तो इन सवालों को ठीक करने के लिए 34 सालों के बाद नई शिक्षा प्रणाली सरकार के द्वारा घोषित की गई है। यह शिक्षा नीति 138 करोड़ भारतीयों के लिए देश का आधार औऱ भविष्य निर्माण करेगी , इसलिए पार्टी हितों से ऊपर उठकर शिक्षा नीति पर चर्चा करनी होगी, तभी हम सक्षम मजबूत शिक्षा नीति बना पाएगें । इस संदर्भ में टी एन नायनन ने अपने एक लेख में 1 अगस्त 2020 को कहा कि " मोदी सरकार की नयी राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) कोठारी की रिपोर्ट से कहीं ज्यादा महत्वाकांक्षी दस्तावेज़ है. इसमें कई सकारात्मक बातें भी हैं- (टी एन नायनन आर्टिकल the Print , 1 August, 2020) नई शिक्षा नीति के ड्राफ्ट में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले मानव संसाधन मंत्रालय के सचिव श्री अमित खरे द्वारा कहा गया कि " उच्च शिक्षा में कई सुधार किए गए हैं। सुधारों में ग्रेडेड अकैडमिक, प्रशासनिक और वित्तीय स्वायत्त्तता आदि शामिल है। नई शिक्षा नीति और सुधारों के बाद हम 2035 तक 50 फीसद सकल नामांकन अनुपात (GER) प्राप्त करेंगे। अमित खरे ने कहा कि मल्टिपल एंट्री और एग्ज़िट सिस्टम में पहले साल के बाद सर्टिफिकेट, दूसरे साल के बाद डिप्लोमा और तीन-चार साल बाद डिग्री दी जाएगी। नए सिस्टम में ये रहेगा कि एक साल के बाद सर्टिफिकेट, दो साल के बाद डिप्लोमा, तीन या चार साल के बाद डिग्री मिल सकेगी। 4 साल का डिग्री प्रोग्राम फिर M.A. और उसके बाद बिना M.Phil के सीधा PhD कर सकते हैं। नई शिक्षा नीति के तहत एमफिल कोर्सेज को खत्म किया गया । (jagran.com/politics) वर्तमान शिक्षा नीति की खामियों को दुर करने के लिए शिक्षा नीति ने प्रमुख तौर पर चार- पांच केंद्र बिंदु पर फोकस किया है। लेकिन हम इस लेख में स्नातक शिक्षा व्यवस्था की समस्याओं , उसमे सुधार तथा उसकी चुनौतियों पर चर्चा करेंगे । आल इंडिया सर्वे ऑफ हायर एजुकेशन (ऐश) की वर्ष 2018-19 में प्रस्तुत रिपोर्ट के अनुसार पूरे भारत में उच्च शैक्षिक संस्थानों को तीन वर्गों में विभाजित किया जा सकता है- विश्वविद्यालय, कॉलेज और प्राइवेट (स्टैंड-अलोन) संस्थान जो डिप्लोमा प्रदान करते हैं। वर्तमान भारत की यूनिवर्सिटी और कॉलेज व्यवस्था पर इस रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 993 विश्वविद्यालय, 39,931 कॉलेज और 10,725 स्टैंड-अलोन संस्थान हैं. 993 विश्वविद्यालयों में से 298 विश्वविद्यालय ऐसे हैं जिनसे संबद्धता प्राप्त कॉलेज भी जुड़े हुए हैं, 385 प्राइवेट विश्वविद्यालय हैं और 394 विश्वविद्यालय ग्रामीण अंचलों में स्थित हैं. कुछ अत्यंत प्रतिष्ठित संस्थानों को छोड़ दें तो यह सभी मुख्य रूप से पारंपरिक/प्रत्यक्ष माध्यम से ही शिक्षा दे रहे हैं.इनमें से केवल एक सेंट्रल ओपन विश्वविद्यालय, 14 स्टेट ओपन विश्वविद्यालय, 1 स्टेट प्राइवेट ओपन विश्वविद्यालय और 110 विश्वविद्यालय ही हैं जो दूरस्थ/ऑनलाइन माध्यम से शिक्षा प्रदान करने में संलग्न हैं. (The Print ,आर्टीकल 07-07-2020)। नई शिक्षा नीति में 4 वर्षीय स्नातक पाठ्यक्रम को लागू करने की घोषणा की गई है यह घोषणा अपने आप में ही एक बहुत ज्यादा क्रांतिकारी और ऐतिहासिक इस संदर्भ मे हो सकती है कि वर्तमान में चल रहे 3 वर्षीय स्नातक कार्यक्रम को जब हम 4 वर्षीय स्नातक कार्यक्रम से बदलाव करेगे दुनिया भर में चल रहे विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रमों से हमारा तालमेल स्थापित ज्यादा हो पाएगा , इसका सीधा लाभ लाखों भारतीय छात्रों को विदेशी शिक्षा ग्रहण करने में सीधे तौर पर प्राप्त हो सकेगा। भारत के विश्वविद्यालयों में आर्ट्स ,साइंस तथा कॉमर्स विषय के नाम स्नातक डिग्री कोर्स चलाया जा रहा है । पिछले 10 वर्षों में इन सभी पाठ्यक्रमों में मानव संसाधन मंत्रालय के द्वारा कुछ सुधार कार्यक्रम आरंभ किए गए थे , 2015 में देशभर के विश्वविद्यालयों में सीबीसीएस पाठ्यक्रमों तथा 2009-10 में सेमेस्टर व्यवस्था को आरंभ किया गया था। , 2015 में आलोचना सीबीसीएस पाठ्यक्रमों की शिक्षाविदों तथा शिक्षकों के द्वारा विश्वविद्यालय की पाठ्यक्रम बनाने की स्वायत्तता खत्म करने के संदर्भ में की गई थी । दुनिया भर के प्रसिद्ध विश्वविद्यालयों में पाठ्यक्रम बनाने की अपने पाठ्यक्रम बनाने की आजादी रही है। 3 वर्षीय स्नातक प्रोग्रामों की समस्याओं को दूर करना ही सबसे बड़ा 4 वर्षीय कोर्स की चुनौती होगी। जिस तरह से भारतवर्ष के विश्वविद्यालय में स्नातक प्रोग्रामों ने अपनी प्रासंगिकता खोई है, हजारों रिपोर्ट भारत के स्नातक प्रोग्रामों के संदर्भ में समय-समय में यह आती रही है कि स्नातक पाठ्यक्रम के बाद किसी प्रकार का रोजगार छात्रों को नहीं मिल रहा है छात्रों को रोजगार लेने के लिए अन्य कई प्रकार के कोर्स मार्केट में निजी संस्थानों में ज्यादा लाखों रुपए देकर करने पड़ रहे है। स्नातक डिग्री प्रोग्राम की प्रासंगिकता दोबारा से 4 वर्षीय पाठ्यक्रम में किस प्रकार से सरकार तथा शिक्षाविद मिलकर स्थापित करेंगे यह सबसे बड़ी चुनौती इस नयी शिक्षा नीति की रहेगी। नई शिक्षा नीति ने तीन वर्षीय स्नातक पाठ्यक्रम की महत्वपूर्ण समस्याओं को उजागर किया है। दस्तावेज में 9.2 और 9.3 में स्नातक पाठ्यक्रमों में कौशल विकास में कम बल प्रदान करना, व्यवसायिक शिक्षा का अभाव , बहु- विषयक स्नातक शिक्षा की कमी , कॉलेज स्तर पर रिसर्च शिक्षा का अभाव तथा विश्वविद्यालय से अनगिनत कॉलेजों का संबंधित होना जैसे समस्याओं का समाधान का उद्देश्य नई शिक्षा नीति में बनाया गया है। ( नई शिक्षा नीति 2020 पेज 53) इस नीति को लागू के संदर्भ में सरकार के सामने वर्तमान चुनौती यह होगी कि शिक्षा देना का कार्य जिन शिक्षकों पर है उसको एक सम्मानजनक वेतनमान तथा सुविधाएं देनी होगी, वर्तमान में भारत में शिक्षकों को वेतन और सुविधाओं देने के संदर्भ में राज्य और केंद्र सरकार के लाखों शिक्षकों को अतिथि शिक्षक, एडहॉक शिक्षक तथा शिक्षक मित्र के नाम पर बहुत ही कम न्यूनतम वेतन पर रखा गया है। इस संदर्भ में शिक्षा नीति ने विस्तार से यह नहीं बताया कि वर्तमान में चल रहे इस प्रकार के लाखों शिक्षकों को किस प्रकार से न्याय मिलेगा। एक महत्वपूर्ण बदलाव शोध क्षेत्र को नई शिक्षा नीति ने चुना है वह रिसर्च पर फोकस करते हुए एक नए शोध और रिसर्च विश्वविद्यालय स्थापना करने की बात की गई है जिसमें रिसर्च पर ज्यादा से ज्यादा फोकस और संसाधनों का उपयोग किया जाएगा । आइडिया सुनने में और लिखने में बहुत ज्यादा अच्छा हो सकता है लेकिन व्यवहारिक तरीके से जब लागू किया जाता है तो उसमें बहुत सारी खामियां उजागर होती है। रिसर्च फोकस यूनिवर्सिटी का आईडिया थोड़ा सा एक अलग हटकर कुछ करने कोशिश या प्रयास किया जा रहा है। घोषित शिक्षा नीति को एक व्यावहारिक तरीके से चार वर्षीय कोर्स के कॉलेज व्यवस्था तथा रिसर्च यूनिवर्सिटी व्यवस्था को आपस में व्यावहारिक तरीके से जोड़ने के तरीकों पर बल देना होगा। महत्वपूर्ण बदलाव इस पूरी शिक्षा नीति को लागू करने वाली संस्थाओं के निर्माण पर बात की गई है इस संदर्भ में हम यह बात करेगे कि जो वर्तमान में शिक्षा को लागू करने वाली भारत सरकार द्वारा संस्थाएं बनाई गई थी उनमें किस प्रकार की खामियां और समस्याएं पैदा हो गई थी , इस संदर्भ में दिल्ली विश्विद्यालय के पूर्व वाइस चांसलर दिनेश सिंह ने यूजीसी तथा अन्य संस्थाओं के संदर्भ में सही कहां है कि "निश्चित तौर पर, एनईपी ने एक अति महत्वपूर्ण और एकल एजेंसी- नेशनल हायर एजुकेशन रेगुलेटरी काउंसिल (एनएचईआरसी) के गठन की जरूरत पर बल दिया है, जो उस मूल भावना के अनुरूप है जिसके साथ शुरुआत में यूजीसी का गठन किया गया था. लेकिन यह नए नियामक निकाय के तौर पर अपने दायरे के आधार पर इससे कहीं आगे है. यदि यह ऐसी ही बनी रहती है जिसकी परिकल्पना की गई है, तो एजेंसी के कार्यों के माध्यम से काफी कुछ अच्छा होगा. यदि यह उसी तरह राह भटकी जैसा पिछले दशकों में यूजीसी के साथ हुआ तो एनएचईआरसी व्यापक नुकसान कर सकती है. ऐसे में, यह सुनिश्चित करना तत्कालीन सरकार की जिम्मेदारी है कि संस्थान समय के साथ अपनी उपयोगिता न खोएं" (The Print आर्टिकल ,प्रोफेसर दिनेश सिंह ) उन समस्याओं और खामियों को देखते हुए नई संस्था की आवश्यकता बहुत समय से चर्चाओं में चल रही थी इसी का प्रयास कपिल सिब्बल मानव संसाधन मंत्री के द्वारा 2009 के बाद किया गया था, यूजीसी तथा अन्य संस्थाओं को खत्म करने की बात समय-समय यूपीए (2004-14) की सरकारों के द्वारा की गई थी इस संदर्भ आम सहमति है कि जो वर्तमान में यूजीसी तथा अन्य नियमित संस्थाएं कार्य कर रही है वह अपने कार्य को करने में विफल हुई है। इन्हीं सब पक्षों को देखते हुए एक नई संस्था की कल्पना की गई है, ऐसे समय में हम यह महत्वपूर्ण बात भी करेंगे कि संस्थाएं फेल नहीं हो रही है ,संस्थाओं में जिस प्रकार के गैर शिक्षक विद तथा प्रशासनिक अधिकारियों को सरकारों के द्वारा समय-समय पर नियुक्त किया जाता है। जिससे शिक्षा ओर संस्थाओं को भारी नुकसान होता रहा है। इसीलिए सरकार को इन संस्थाओं में नियुक्त व्यक्तियों के संदर्भ में भी चर्चा करनी होगी। इन शिक्षा संस्थाओं को प्रशासनिक तरीके से चलाने की मानसिकता से बाहर निकलना होगा, सरकारों को इन संस्थाओं को शिक्षा, ज्ञान तथा रिसर्च के संबंध में फैसले लेने वाले व्यक्तियों के साथ तालमेल बनाकर ही संस्था को चलाना होगा। भारत के शिक्षा संस्थाओं की वर्तमान में यही सबसे बडी समस्या है शिक्षा व्यवस्था को एक प्रशासनिक कार्य समझ कर उनको प्रशासनिक दृष्टिकोण के नजरिए से देखकर प्रशासनिक अधिकारियों के द्वारा ही किया जाता है। इसीलिए सरकार को इस दस्तावेज में किस प्रकार के व्यक्ति को नियुक्त किया जाएगा और किस प्रकार के व्यक्तियों को शिक्षा व्यवस्था से बिल्कुल भी दूर रखा जाएगा, इसकी व्याख्या भी करनी होगी। हम कई बार यह देख चुके हैं भारत के रिटायर आर्मी पर्सन या अधिकारी को विश्वविद्यालयों उपकुलपति नियुक्त कर दिया गया, नये नामकरण के साथ मंत्रालय की प्रशासनिक व्यवस्थाओं में भी शिक्षाविदों को प्रमुख पदों पर आगे लाना होगा जिससे कि शिक्षा के पक्ष में फैसले लिए जा सके। उदाहरण के तौर पर सीबीएसई , यूनिवर्सिटी रजिस्ट्रार पद , मंत्रालयों में सचिव पद जैसे सैकड़ों पदों पर प्रशासनिक अधिकारियों की नियुक्ति से सरकार को बचना होगा या ऐसे अधिकारियों की सहायता लेनी चाहिए , जिसके द्वारा उच्च शिक्षा या बड़े संस्थानों से सर्विस में आने के बाद या उससे पहले उच्च शिक्षा की डिग्री हासिल की हो तथा समय-समय में रिचार्ज के क्षेत्र में योगदान किया हो। 7 अगस्त 2020 को प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के द्वारा राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर यूजीसी द्वारा आयोजित राष्ट्रीय संवाद सम्मेलन में कहा कि कि ये सच है कि 34 साल बाद शिक्षा नीति में बदलाव किया गया है. ऐसे में हर बारीकी और सवालों पर ध्यान दिया गया है. उन्होंने बताया कि शिक्षा नीति को नया आकार देने से पहले दो सवालों को पर गंभीर रूप से विचार किया था. पहला सवाल था, क्या नई शिक्षा नीति भविष्य में क्रिएटिविटी, क्यूरोसिटी और कमिटमेंट मेकिंग पर लोगों को बांध कर रख पाएगी? दूसरा सवाल था. क्या हमारी शिक्षा व्यवस्था Empower ( सशक्तिकरण) करती है? प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, ''जब नर्सरी का बच्चा भी नई तकनीक के बारे में पढ़ेगा, तो उसे भविष्य की तैयारी करने में आसानी होगी. कई दशकों से शिक्षा नीति में बदलाव नहीं हुआ था, इसलिए समाज में भेड़चाल को प्रोत्साहन मिल रहा था. कभी डॉक्टर-इंजीनियर-वकील बनाने की होड़ लगी हुई थी. अब युवा क्रिएटिव विचारों को आगे बढ़ा सकेगा, अब सिर्फ पढ़ाई नहीं बल्कि वर्किंग कल्चर को डेवलेप किया गया है.'' (aajtak.in ,नई दिल्ली, 7 August, 2020) सरकार के द्वारा घोषित नए दस्तावेज में शिक्षा पर जीडीपी का 6% खर्च करने की बात की गई है यदि केंद्र और राज्य सरकारें 6% जीडीपी का खर्च नहीं कर पाती है तो आर्थिक संसाधनों के अभाव में कितनी भी अच्छी कल्पनाएं और सुंदर बातें इस दस्तावेज में की गई हो सारी की सारी धराशाई हो जाएगी। सबसे ज्यादा चिंता इस पर व्यक्त की जा रही है कि शिक्षा का निजीकरण और प्राइवेट क्षेत्रों को ज्यादा से ज्यादा इस नई नीति में मौका मिलने वाला है तो उस पर भी एक उचित कंट्रोल की व्यवस्था बनानी होगी तथा विदेशी यूनिवर्सिटी को जिस प्रकार से इसमें आने अनुमति मिली है वह अनुमति भारत के विश्वविद्यालयों की कीमत पर नहीं मिलनी चाहिए। कोचिंग संस्थान के दुष्प्रभाव पर भी नई शिक्षा नीति में चर्चा सरकारों को करनी चाहिए। लाखों छात्र कोचिंग संस्थानों के भरोसे अपने जीवन का उद्देश्य प्राप्त करने में लगे हुए है। भारत की शिक्षा व्यवस्था से इन कोचिंग संस्थानों के प्रभाव को कह करना होगा ताकि सभी लोग बराबरी के स्तर पर स्कूल ओर कॉलेज की शिक्षा को प्राप्त करके अपने जीवन के उद्देश्य को पूरा कर सके, कोचिंग संस्थानों ने भारत में सामाजिक- आर्थिक भेदभाव को पैदा किया है। नई शिक्षा नीति 2020 के मूल सिद्धांतों को यदि समय से लागू कर दिया गया तो भारत ज्ञान के क्षेत्र में विश्व गुरु अपने आप को स्थापित कर पायेगा। डॉ संजय कुमार जाकिर हुसैन इवनिंग कॉलेज दिल्ली विश्वविद्यालय की राजनीति विभाग में कार्यरत है। यह उनकी निजी राय है।
संदर्भ सूची -
राजनीतिशास्त्र विभाग, ज़ाकिर हुसैन दिल्ली सांध्यकालीन कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली
Department of Political science, Zakir Husain Delhi College Evening, University of Delhi
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