नई शिक्षा नीति : एक विमर्श

डॉ. पूजा रानी

किसी समाज के अंदर जितनी भी कमियां होती हैं चाहे वह गरीबी हो बेरोजगारी हो नैतिक मूल्यों का पतन, उन्हें दूर करने का एकमात्र सबसे बड़ा हथियार होती है "शिक्षा"!

लेकिन यह भारत का दुर्भाग्य है कि स्वतंत्रता प्राप्ति के समय कुछ स्वार्थी लोगों ने अंग्रेजों की राष्ट्र विरोधी शर्तों को सशर्त स्वीकार कर लिया था जिसमें से एक भाषा नीति भी थी! अंग्रेज यह अच्छी तरह जानते थे कि यह देश अपनी भाषाओं के बल पर खूब तरक्की कर सकता है इसी तरक्की को रोकने के लिए अंग्रेजों ने कुछ अंग्रेजी प्रिय भारतीयों के साथ मिलकर भारतीय शिक्षा पद्धति में संस्कृत को स्थान न देने जैसी राष्ट्र विरोधी शर्ते शामिल की! मैकाले नामक अंग्रेज के ही वह जहरीले भी हैं जो अब फलीभूत हो रहे हैं अंग्रेजों द्वारा भारत की सामाजिक और आर्थिक स्थिति का सर्वेक्षण करने के बाद जो शिक्षा नीति भारत को गुलाम बनाए रखने के लिए बनाई थी वही नीति स्वतंत्रता के बाद भी जारी रखी गई, जिसका परिणाम है कि आज हमारी शिक्षा व्यवस्था रोजगार की गारंटी नहीं रही उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद भी आधुनिक पीढ़ी के मन में भारतीय इतिहास के बारे में गौरव की भावना नहीं है और वह स्वयं को दबे कुचले महसूस करते हैं! इसका कारण है, उनका पाठ्यक्रम जिसमें ज्ञान विज्ञान का संपूर्ण स्रोत है पश्चिमी विद्वान! बड़ी दुख की बात है कि उन्हें भारतीय वैज्ञानिकों का नाम भी नहीं पता!

इन सब कुंठाओं से निजात पाने का केवल एक ही उपाय था शिक्षा नीति में बदलाव व भारतीय भाषाओं का शिक्षा नीति में स्थान! और इसकी मांग भारत के सांस्कृतिक सामाजिक उत्थान के लिए लंबे समय से भारत के प्रबुद्ध जनों द्वारा की जा रही थी सरकार द्वारा इस दिशा में अब कुछ विशेष कदम उठाए गए हैं और वह है मंत्रिमंडल द्वारा नई शिक्षा नीति 2020 को हरी झंडी दिखाना

देर से ही सही लेकिन सरकार ने एक अच्छी पहल की है! मेरा मानना है कि शिक्षा समाज की सबसे महत्वपूर्ण कड़ी है अगर शिक्षा व्यवस्था मजबूत होगी तो संपूर्ण राष्ट्र मजबूत होगा! अतः इस नई शिक्षा नीति को लाने में इतना समय नहीं लगना चाहिए था हर 5 साल बाद नई शिक्षा नीति का अन्वेष होना चाहिए और ऐसा गुणवत्ता के आधार पर हो तो अत्यंत सुखद होगा, अतः कहा जा सकता है शिक्षा का बुनियादी ढांचा मजबूत हो !

नई शिक्षा नीति-- नई शिक्षा नीति सरकार का एक सराहनीय कदम है! नई शिक्षा नीति के अंतर्गत स्कूली शिक्षा को 5 + 3 + 3 + 4 फार्मूले के तहत पढ़ाया जाएगा और यह है विद्यार्थी के मनोविज्ञान को ध्यान में रखकर बनाई गई है! नई शिक्षा नीति के अंतर्गत 3 से 8 साल तक का बच्चा दूसरी क्लास तक, 9 से 11 साल तक का बच्चा पांचवी क्लास, 12 से 14 साल का बच्चा आठवीं क्लास ,व 15 से 18 साल का बच्चा 12वीं क्लास के लिए उपयुक्त होगा!

अब सिर्फ 12वीं कक्षा में ही विद्यार्थियों को बोर्ड की परीक्षा देनी होगी! पांचवी तक के छात्रों को मातृभाषा स्थानीय भाषा और राष्ट्रभाषा में ही पढ़ाया जाएगा बाकी विषय चाहे वह अंग्रेजी ही क्यों ना हो सब्जेक्ट के तौर पर पढ़ाया जाएगा!

विशेषताएं:-1. यह शिक्षा नीति भारत की प्रगति और आर्थिक विकास के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है!

2. यह शिक्षा नीति प्रगतिशील है और छात्रों को उनकी जड़ों से जोड़ती है!

3. आधुनिकता के साथ साथ व्यवहारिक है!

4. मनोविज्ञान पर आधारित शिक्षा नीति है!

5. नई शिक्षा नीति अत्यंत लचीली प्रतीत होती है!

6. नई शिक्षा नीति की एक विशेषता यह भी है कि यह उदाहरणात्मक है है रटात्मक नहीं है!

7. नई शिक्षा नीति में सतत् सीखने की कला है!

8. नई शिक्षा नीति लागू होने पर छात्रों की खोजी प्रवृत्ति को बल मिलेगा!

9. अब तक छात्र अपने परिवेश से कटे हुए थे लेकिन नई शिक्षा नीति के कारण छात्र स्थानीय व्यवहार से जुड़ेंगे!

नई शिक्षा नीति की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें सामाजिक, सांस्कृतिक मूल्य जोड़ दिए गए हैं और अब शिक्षा केवल शारीरिक और मानसिक विकास पर ही नहीं अपितु सामाजिक आध्यात्मिक विकास पर भी बल दिया जाएगा !

उच्च शिक्षा के दृष्टिकोण से भी यह शिक्षा नीति नयापन और खुलापन लेकर आई है! इस शिक्षा नीति का खुलापन यह है कि छात्र अगर एक औरत के बीच में कोई दूसरा कोर्स करना चाहे तो पहले कोर्स से सीमित समय के लिए अलग होकर वह दूसरा कोर्स कर सकते हैं और अब कला व विज्ञान जो अलग-अलग शाखाएं थी एक दूसरे की संपूर्ण बन जाएंगी ! नई शिक्षा नीति के अनुसार महाविद्यालय की डिग्री 3 और 4 साल की होगी यानी ग्रेजुएशन के पहले साल पर सर्टिफिकेट, दूसरे साल पर डिप्लोमा और तीसरे साल में डिग्री मिलेगी! 3 साल की डिग्री उन छात्र -छात्राओं के लिए है जिन्हें उच्च शिक्षा नहीं लेना है वहीं उच्च शिक्षा लेने वाले छात्रों को 4 साल की डिग्री करनी होगी और 4 साल की डिग्री करने वाले स्टूडेंट्स 1 साल में एम. ए.भी कर सकेंगे! उच्च शिक्षा में कई सुधार भी किए गए हैं इन सुधारों में ग्रेडेड एकेडमिक, एडमिनिस्ट्रेटिव और फाइनेंशियल ऑटोनॉमी आदि शामिल है! इसके अलावा क्षेत्रीय भाषाओं में एक और शुरू किए जाएंगे नई शिक्षा नीति के तहत एक नेशनल एजुकेशनल साइंटिफिक फोरम(NETF) भी शुरू किया जाएगा!

नई शिक्षा नीति में भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों पर अधिक जोर दिया गया है इस शिक्षा नीति के अंतर्गत जब छात्र स्नातक व परास्नातक करके महाविद्यालयों से निकलेंगे तो वे अपने विषय में तो उत्कृष्ट होंगे ही साथ ही भारतीय जड़ों से भी उन्हें लगाव उत्पन्न होगा !यह नई शिक्षा नीति में अत्यंत सराहनीय है और एक नई दिशा की ओर पहला कदम भी है!

नई शिक्षा नीति के लागू करने को लेकर कुछ संदेह भी बने हुए हैं जैसे:-

1: मातृभाषा में प्राइमरी शिक्षा देना भी सरकार के लिए एक चुनौती है क्योंकि जिन बच्चों के माता-पिता सरकारी क्षेत्रों में कार्यरत हैं उन बच्चों को अपने स्थान को छोड़कर बार-बार अन्य स्थानों पर जाना पड़ता है तो इससे बच्चा माता-पिता के कार्यरत क्षेत्र में ही शिक्षा ग्रहण करेगा उसे अपनी मातृभाषा में शिक्षा मिलना लगभग मुश्किल होगा!

2. शिक्षा की गंगोत्री में प्राय सभी समान रूप से शामिल नहीं हो

पाते जैसे पिछड़ा वर्ग आदिवासी आदि तो क्या नई शिक्षा नीति इन सब को अपने में समाहित कर पाएगी?

3. नई शिक्षा नीति के सामने प्रमुख समस्या ड्रॉपआउट की भी है और इस ड्रॉपआउट के कई कारण हो सकते हैं जैसे लड़कियों के लिए विद्यालयों, महाविद्यालयों में बुनियादी सुविधाएं ना होना, आर्थिक स्थिति अच्छी ना होना विदेशों की तरफ युवा वर्ग का अधिक झुकाव होना आदि! ड्रॉपआउट का हल हमारी इस शिक्षा नीति में छिपा हुआ है या नहीं यह भी अभी तय करना मुश्किल है!

4 नई शिक्षा नीति में आठवीं कक्षा तक माध्यम भाषा हिंदी है तो एक बड़ा प्रश्न यह भी उठ कर सामने आता है कि क्या सरकार नई शिक्षा नीति को कॉन्वेंट स्कूलों या प्राइवेट स्कूलों में लागू कर पाएगी या फिर यह नीति केवल सरकारी स्कूलों पर ही सिमट कर रह जाएगी अगर ऐसा हुआ तो कॉन्वेंट स्कूलों की अपेक्षा सरकारी स्कूलों के बच्चे आठवीं कक्षा तक अंग्रेजी से अनभिज्ञ रहेंगे इसे डिवाइड पॉलिसी को बल मिलेगा! और क्या कक्षा 5 का बच्चा कंप्यूटर की भाषा पढ़ पाएगा क्योंकि कंप्यूटर की भाषा अंग्रेजी में ही है!

5. क्या नौकरियों में हिंदी को प्राथमिकता मिलेगी क्योंकि नई शिक्षा नीति में अंग्रेजी अनिवार्य है तो इसे लागू करते समय बहुत संयम और ध्यान की आवश्यकता है ताकि आदर्श और यथार्थ में अंतर न हो जाए और शहर और गांव के बीच एक लंबी खाई ना बन जाए! शिक्षा का निजीकरण सरकारी विद्यालयों ,महाविद्यालयों की घटती संख्या, घटती प्रतिष्ठा, घटते संसाधन नई शिक्षा नीति के लिए एक चुनौती है!

अतः नई शिक्षा नीति का क्रियान्वयन अच्छे से हो और यह है देश के हर गांव तक पहुंच सके, यदि ऐसा नहीं हो पाता तो नई शिक्षा नीति पर एक प्रश्न चिन्ह लग जाएगा! नई शिक्षा नीति रोजगार उन्मुख है अतः नई शिक्षा नीति के शिक्षक भी ऐसे होने चाहिए जो अपने बच्चों को तार्किक रूप से समाधान करना सिखाए !अब छात्र पाठ्य पुस्तकों की अधिकता के कारण रचनात्मक गतिविधियों में भाग नहीं ले पाते अतः पाठ्य पुस्तकों का बोझ कम हो और रचनात्मक गतिविधियां को बल मिले! स्कूलों में पर्याप्त संसाधनों को पूर्ण करने की जरूरत है और हम जानते हैं कि अगर प्रयास किए जाएं तो नई शिक्षा नीति में यह सब संभव हो सकेगा और यह राष्ट्र को एक नई दिशा दे कर नहीं युग का प्रारंभ करने में सक्षम होगी क्योंकि जब हम अपनी भाषा में ज्ञान प्राप्त करते हैं तो हम उस ज्ञान को पूर्णतया आत्मसात कर लेने में सक्षम होते हैं! भारतेंदु जी ने बिल्कुल सही कहा था-

" निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल!

बिन निज भाषा ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल!!"

आशा यही है कि अपनी भाषाओं में ज्ञान प्राप्त कर हमारे बच्चे मानसिक सामाजिक शारीरिक और आध्यात्मिक रूप से पोस्ट होंगे और अपने समाज और राष्ट्र को नव उन्नति की ओर अग्रसर करेंगे

सहायक प्राध्यापिका,

हिंदी विभाग, केवीए डीएवी कॉलेज फॉर वुमन, करनाल (हरियाणा)

ई-मेल - poojaraniramesh@gmail.com