एकमुखी Rudraksha का संबंध शिव से है जिसे, धारण करने ब्रह्महत्या जैसे दोष तक समाप्त हो जाते है।
इससे व्यक्ति के घर में सुख-समृद्धि आती है और उस घर से सभी तरह के उपद्रव नष्ट हो जाते हैं।
वहां लक्ष्मी सदैव के लिए निवास करती है।
रूद्र सहिंता में इसका वर्णन कुछ इस प्रकार दिया गया है कि जिस घर में एक मुखी Rudraksha का वास होता है उस घर में दरिद्रता, आर्थिक संकट का वास नहीं होता है।
इसकी सबसे बड़ी पहचान यह है कि यह आधे काजू के आकार में दिखाई देता है और इसमें एक ही धारी होती है।
एक मुखी रुद्राक्ष को गर्म पानी में उबालें अगर वह रंग छोड़ने लगे तो वह असली नहीं है।
सरसों के तेल में डुबोकर रखने से भी इसकी असली पहचान की जा सकती है यदि रुद्राक्ष का रंग गहरा दिखाई दे।
2 मुखी रुद्राक्ष का सम्बन्ध चन्द्रमा से हैं।
और, जैसा की आपको पता होंगा की “चंद्रमा मनसो जात:” यानी चंद्रमा मन का कारक हैं।
इसलिए 2 मुखी रुद्राक्ष का सीधा सम्भंध मन से हैं।
और, अर्द्धनारीश्वर से भी हैं। तथा, इसे देवेशवर भी कहाँ जाता हैं।
माता पार्वती और शिव का एकत्र रूप हैं अर्द्धनारीश्वर
२ मुखी रुद्राक्ष धारण करने का शुभ दिन – सोमवार!
क्युकी, सोमवार से चन्द्रमा का सम्बन्ध हैं।
धारण मंत्र–‘ॐ नम:’
इसके फायदों की बात करें तो द्विमुखी Rudraksha धारण करने से जन्मों के संचित पाप खत्म हो जाते हैं।
जो भी व्यक्ति इस प्रकार के Rudraksha को पहनता है वह ग्यारह वर्षों में भगवान शिव के बराबर समता प्राप्त कर लेता है।
जो व्यक्ति पांच वर्षों तक इसे धारण कर स्तोत्र का पाठ करता है उसकी कोई कामना बचती नहीं है सब पूर्ण हो जाती है।
नारद पुराण के अनुसार जो भी द्विमुखी Rudraksha को धारण करता है वह अक्षत यौनदृढ़ता को प्राप्त करता है।
यह रचनात्मकता और सफलता के लिए बहुत लाभकारी है।
2 मुखी रुद्राक्ष को पहनने से 108 गाय दान का पुण्य मिलता है।
महा शिव पुराण के अनुसार, इसे धारण करने से हर परेशानी दूर हों जाती है।
यह रुद्राक्ष सुखी पारिवारिक जीवन के लिए भी लाभकारी है।
2 मुखी रुद्राक्ष का सीधा सम्भंध मानसिक स्थिति से है। इसलिए एक बेहतर सोच-विचार के लिए बहुत उपयोगी है।
इसके फायदों को यदि एक श्लोक में समेटा जाए तो ये कुछ इस प्रकार है
द्विवस्त्रों देव देवेशो गोबधं नाश्येदध्रुवं
तीन मुख वाले Rudraksha का संबंध अग्नि से है। यह त्रि-शक्तियों ब्रह्मा-विष्णु-महेश से संबंधित है जिस कारण इसकी व्याख्या संस्कृत में कुछ इस प्रकार की गई है :
त्रिवक्योग्निस्य विज्ञेयःस्त्री हत्या च व्यपोहति
धारण मंत्र- ‘ॐ क्लीं नम:’
तीन शक्तियों का सम्मिश्रण होने के कारण यह धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को प्रदान करने वाला माना जाता है।
इसे केवल धारण करने से व्यक्ति कई प्रकार की विधाओं और कलाओं में निपुण हो जाता है।
ऐसा माना जाता है कि जो भी व्यक्ति त्रिशक्ति रुपी प्राण- प्रतिष्ठित रुद्राक्ष धारण करता है उसकी सभी मनोकमनाएं पूरी होती है।
इससे पिछले जन्म और इस जन्म के पाप कर्मों से मुक्ति मिलती है।
इसके अलावा नकारात्मक विचार, अपराध बोध, हीनभावना कम होती है।
इससे रक्तचाप की समस्या, कमजोरी और पेट से संबंधित बीमारी का भी उपचार होता है।
चार मुखी rudraksha का संबंध ब्रह्मा जी से माना जाता है। इस संसार के सभी पदार्थों के जड़-चेतन स्वामी ब्रह्मा जी को ही बताया गया है।
धारण मंत्र-‘ॐ ह्रीं नम:’
इसे धारण करने वाला व्यक्ति ब्रह्मा जी की भांति निर्माण कार्यों में लीन हो जाता है और उसी दिशा में कार्य करना आरम्भ कर देता है।
चार मुखी rudraksha व्यक्ति को चार फलों धन, काम, धर्म और मोक्ष प्रदान करता है।
इस प्रकार के rudraksha का प्रयोग किये जाने से प्रेत बाधा, नक्षत्र बाधा, तनाव और मानसिक समस्याएं दूर हो सकती हैं।
स्वास्थ्य के लाभों के सन्दर्भ में इसे देखें तो इससे पीत ज्वर, श्वांस रोग, गर्भस्थ शिशु दोष, बांझपन और नपुसंकता जैसी बीमारियां दूर हो जाती है।
चार मुखी रुद्राक्ष से व्यक्ति को मेधावी आँखें प्राप्त होती है और वह तेजस्वी बनता है।
इसका सबसे बड़ा फायदा यह है कि इससे मानसिक संतुलन स्थिर रहता है।
रुदाक्ष की धारियों के अनुसार पहचान होती हैं जैसे, एक रुद्राक्ष मे जितनी धारिया पड़ी होती हैं वह उतने मुखी रुद्रक्षा कहलाता है।
इसलिए 4 मुखी रुदाक्ष की पहचान उसमें पड़ी 4 धारिया से होती है।
इंडोनेशिया और नेपाल में मुख्यतः 4 मुखी रुद्राक्ष के पेड़ पाए जाते है।
इंडोनेशिया के 10 मुखी रुद्राक्ष के पेड़ के दाने 4 से 15 मिलीमीटर व्यास वाले होते हैं।
नेपाल के 10 मुखी रुद्राक्ष के पेड़ के दाने 10 से 33 मिलीमीटर व्यास वाले होते हैं। [source]
5 mukhi rudraksha का संबंध भगवान शिव के सबसे कल्याणकारी स्वरुप महादेव से है जो वृष पर विराजमान है और जिनके पांच मुख है पांच मुखों में से चार मुख सौम्य प्रवृति के हैं जबकि दक्षिण की ओर किया हुआ मुख भयंकर रूप धारण किये हुए है।
महादेव के पांच कार्य हैं- सृष्टि, पालन, संहार, तिरोभाव, अनुग्रह। यह सभी कार्य करने के लिए भगवान शिव के पांच मुख है और इन्हीं पांच मुखों से ॐ नमः शिवाय मंत्र का उद्भव हुआ है।
बताते चलें कि यही मंत्र पंचमुखी rudraksha का प्राण मंत्र माना जाता है।
धारण मंत्र–ॐ ह्रीं क्लीं नम:
पंचमुखी rudraksha कालाग्नि नामक रूद्र है,यह भौतिक और दैहिक रोग को समाप्त करने में सहायक है।
यह सभी बुरे कर्मों को नष्ट कर देता है।
यह मधुमेह के रोगियों, स्तनशिथिलता, हृदय रोग, उच्च रक्तचाप, एसिडिटी जैसी बिमारियों से बचाव करने में सहायता करता है।
अगर इस तरह की पूरी माला धारण करना संभव न हो तो केवल पांच पंचमुखी rudraksha को गूंथ कर धारण कर लेना चाहिए
गुरु के प्रतिकूल प्रभाव से छुटकारा पाने के लिए इसका प्रयोग किया जाना चाहिए।
1. 5 मुखी रुद्राक्ष को सोने या चांदी में मढ़वाकर या बगैर मढ़वाये भी पहन सकते है।
2. सर्वप्रथम इसे गंगाजल या दूध से शुद्ध करना चाहिए।
3. उसके बाद भगवान शिव की प्रतिमा के आगे धूप और दीपक जलाकर उपासना करें।
4. उपासना के पश्चात इस मंत्र का 108 बार जाप करें।
‘ॐ ह्रीं नम:’
5. इसे धारण करने के लिए श्रावण माह या सोमवार का दिन अधिक शुभ है।
6 . ध्यान रखने वाली यह है कि इसे पहनकर शमशान में या किसी शव यात्रा में नहीं जाना चाहिए।
रुद्राक्ष को पहचानने के दो तरीके हैं जिसमें से पहला तरीका तो, यह कि रुद्राक्ष को पानी में थोड़े समय के लिए उबाले यदि वह रंग न छोड़े तो वह असली है।
दूसरा तरीका है रुद्राक्ष को सरसों के तेल में रख दें और यदि रुद्राक्ष का रंग उसके रंग से थोड़ा गहरा दिखे तो भी यह उसके असली होने की एक निशानी है।
छः मुख वाले rudraksha का संबंध कार्तिकेय से है, इस प्रकार के rudraksha को धारण करने से भ्रूण हत्या जैसे पापों से व्यक्ति को मुक्ति मिल जाती है। कार्तिकेय के बारे में रूद्र सहिंता में वर्णन है कि इनका पालन पोषण 6 स्त्रियों द्वारा किया गया है जिस कारण उन्हें 6 मुख धारण करने पड़े थे ताकि वे सभी को वात्सलयता प्रदान कर सकें।
धारण मंत्र-’ॐ ह्रीं ह्रुं नम:’
भगवान कार्तिकेय 6 विधाओं पूरब, पश्चिम, उतर, दक्षिण, उर्धव और पाताल के धनी है जिस कारण जो भी इसे धारण करता है वो इन 6 प्रतिभा का स्वतः ही धनी बन जाता है।
इस का संबंध शुक्र ग्रह से है जो भोग विलास के मालिक हैं अतः जिस भी व्यक्ति का जन्मनक्षत्र शुक्र हो उन्हें यह धारण करना चाहिए।
नेत्र से संबंधित रोग जैसे मोतियाबिंद, दृष्टि दोष, रतौंधी आदि से निजात मिल सकती है।
इस प्रकार की rudraksha माला को बच्चों को पहनाने से उनकी नेत्र ज्योति हमेशा बनी रहेगी।
इससे बुद्धि का विकास और अभिव्यक्ति में कुशलता आती है।
इसे धारण किये जाने से व्यक्ति में इच्छाएं व आत्मविश्वास में बढ़ोतरी होती हैं।
व्यक्ति को शौर्य और प्रेम हासिल होता है।
मुख, गले और मूत्र रोग से छुटकारा पाने में लाभकारी है।
सात मुखों वाली rudraksha माला के बारे में कहा जाता है कि यह अनंत है इसलिए इसे महासेन अन्तादि गणों के नाम से भी जाना जाता है।
धारण मंत्र-’ॐ हुं नम:’
सप्तमुखी रुद्राक्ष का प्रतिनिधित्व शनिदेव करते हैं यदि शनि के प्रतिकूल प्रभाव से कोई व्यक्ति पीड़ित है तो इसके प्रयोग से समस्या से निजात पाया जा सकता है।
सेवा, नौकरी और व्यापार करने वालों के यह लाफ़ी लाभदायक है।
यह शारीरिक दुर्बलता, अंगहीनता, विकलांगता, लकवा, मिर्गी आदि रोगों से छुटकारा दिलाने में सहायक है।
इससे व्यक्ति के जीवन में प्रगति, कीर्ति और धन की वर्षा होती है।
इसे धारण करने वालो को गुप्त धन की प्राप्ति होती है।
अष्टमुखी rudraksha का सीधा सम्बन्ध सिद्धिविनायक भगवान गणेश से है और, संसार के सभी जघन्य पापों को माफ़ कर देने वाले विनायक अपने भक्तों की रक्षा के लिए सदैव तत्पर रहते है।
धारण मंत्र-’ॐ हुं नम:’
अष्टमुखी rudraksha छायाग्रह से सम्बन्ध रखता है अर्थात इसके प्रयोग से राहु दोष से पीड़ित लोगों को राहत मिलती है। साथ ही भगवान गणेश की कृपा बानी रहती है।
इस rudraksha को पहनने वाला व्यक्ति तेजस्वी, बलशाली, बुद्धिमान व्यक्तित्व वाला बनता है।
इसके प्रयोग से फेफड़े का रोग, चर्म रोग, सर्पदंश भय से मुक्ति मिलती है।
यह rudraksha सौंदर्य वृद्धि करता है यह दोनों ही रूपों बाहरी और आंतरिक सुंदरता बढ़ाने में सहायक है।
यह बुद्धि विकास और गणना शक्ति प्रदान करता है।
कला में निपुणता और प्रतिनिधित्व कौशल में वृद्धि होगी।
इससे नाड़ी संबंधित रोग से छुटकारा मिलता है।
नौ मुख वाले इस rudraksha का सम्बन्ध भैरव से है, इसकी अधिष्ठात्री देवी अम्बे है और अष्टमुखी का यह स्वरुप कपिल है। नौ देवियों के रूप वाला यह रुद्राक्ष नवदुर्गा के सभी नौ रूपों की शक्तियों को समाहित किये हुए है।
धारण मंत्र–’ॐ ह्रीं ह्रुं नम:’
यह rudraksha के प्रयोग से वैवाहिक बाधा, संतानोत्पत्ति में बाधा, व्यापार में किसी तरह की अड़चन समाप्त हो जाती है।
इससे राहु पीड़ित दोष, नेत्र रोग, फोड़े-फुंसी आदि से छुटकारा मिल सकता है।
किसी बच्चे के गले में 9 मुखी rudraksha माला को पहनाने से बच्चे के निकट श्वांस और नेत्र सम्बन्धी बीमारियां नहीं आती है।
दसमुखी rudraksha भगवान विष्णु यानी जनार्दन का प्रतिनिधित्व करता है जो पूरे ब्रह्माण्ड के संचालक है।
दसमुखी rudraksha माला को धारण करने वाला व्यक्ति और उसका परिवार सदैव भगवान विष्णु की छत्रछाया में रहता है और विष्णु जी एक सरंक्षक के तौर पर उनकी रक्षा करते हैं।
इस rudraksha पर यमराज की भी कृपा दृष्टि बनी हुई है, इसके प्रयोग से व्यक्ति अकाल मृत्यु के भय से मुक्त हो सकता है।
प्रसव काल (प्रसव का अर्थ होता है जनन या बच्चे को जन्म देना से ठीक पहले) यदि इस दसमुखी rudraksha माला को स्त्री की कमर में बाँध दिया जाए तो इससे प्रसव क्रिया कम कष्ट पूरी होती है।
मिर्गी, हकलाना, सूखा रोग जैसी बिमारियों से व्यक्ति को छुटकारा मिलता है।
दस मुखी रुद्राक्ष काला जादू, भूत-प्रेत और अकेलेपन आदि के भय से छुटकारा दिलाता है।
तनाव और अनिद्रा की शिकायत रखने वालों के लिए यह लाभकारी है।
नवग्रह की शान्ति और वास्तु दोषों को समाप्त करने में मुख्य भूमिका निभाता है।
किसी भी प्रकार की कानूनी समस्या से निपटने के लिए और व्यापार में हो रही समस्याओं से निजात दिलाता है।
सम्मान शांन्ति और सौंदर्य मिलता है।
कान और हृदय की बीमारियों में राहत मिलती हैं
विवाह में परेशानी और बृहस्पति ग्रह से सम्बन्ध रखने वालों को दसमुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए।[4]
10 धारियों वाला रुद्राक्ष 10 मुखी रुद्राक्ष कहलाता हैं। रुद्राक्ष के पेड़ मुख्यता इण्डोनेशिआ और नेपाल में होते हैं।
इंडोनेशिया के 10 मुखी रुद्राक्ष के पेड़ के दाने 4 से 15 मिलीमीटर व्यास वाले होते हैं।
नेपाल के 10 मुखी रुद्राक्ष के पेड़ के दाने 10 से 33 मिलीमीटर व्यास वाले होते हैं। [5]
पहले 10 मुखी रुद्राक्ष को गंगाजल में स्नान करवाए
इसके बाद 10 मुखी रुद्राक्ष को चन्दन लगाए, धूप दिखाए और सफ़ेद फूल चढ़ाए
इसके बाद 10 मुखी रुद्राक्ष को शिव जी की मूर्ति या शिवलिंग से स्पर्श करवाए
और धारण मंत्र-’ॐ नम:शिवाय’ का 11 बार जाप करे [6]
ग्यारह मुखी rudraksha के बारे में स्कंदपुराण में भगवान शिव ने वर्णन करते हुए कहा कि इसका संबंध भगवान के रूद्र स्वरुप से है। जो भी जातक इसे धारण करते हैं उसे हज़ार अश्वमेध यज्ञ करने, सौ बाजपेय यज्ञ करने और चंद्रग्रहण में दान करने के बराबर फल प्राप्त होता है। इसमें भगवान शिव के सर्वश्रेष्ठ 11 अवतारों की शक्तियां समाहित हैं।
धारण मंत्र–’ॐ ह्रीं ह्रुं नम:’
एकादशमुखी rudraksha धारण करने से भाग्योदय होता है। धन वृद्धि होती है साथ ही व्यक्ति पर भगवान शिव की कृपा सदैव बनी रहती है।
यह rudraksha अत्यंत दुर्लभ श्रेणी का है, मान्यता है कि इस प्रकार का rudraksha बहुत भाग्यवान लोगों को ही प्राप्त होता है।
इसे प्रयोग में लाने वाला व्यक्ति जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त हो सकता है।
ग्यारह मुखी rudraksha कई गंभीर और लाइलाज बिमारियों जैसे कैंसर, पित्ताश्मरी, अपस्मार आदि रोगों का शमन करता है।
बारह मुख वाले rudraksha का सीधा संबंध भगवान सूर्य से है। ऋग्वेद में सूर्य देवता के बारे में कहा गया है कि वे सभी नक्षत्रों, ग्रहों और राशिमंडल के राजा है जिनके होने से ही इस संसार में रोशनी विद्यमान है। सूर्य देवता की उपासना से बड़े से बड़े रोगों से निजात पाई जा सकती है जिसका प्रमाण सूर्य पुराण में उल्लेखित है।
धारण मंत्र-’ॐ क्रौं क्षौं रौं नम:’
द्वादशमुखी rudraksha का प्रभाव बिल्कुल एक मुखी रुद्राक्ष के सामान है, एकमुखी rudraksha न होने पर 12 मुख वाले rudraksha को धारण किया जा सकता है।
जो भी बारहमुखी rudraksha माला को धारण करते हैं या कंठ में धारण करते है वे जो हत्या, नरहत्या, अमूल्य रत्नों की चोरी आदि पापों से मुक्त हो जाते हैं।
ह्रदय, त्वचा और आँखों से जुड़े रोगों, दाद, कुष्ठादि, स्फोट, रतौंधी, रक्त विकार संबंधी बिमारियों से छुटकारा मिलता है।
उच्च रक्तचाप से पीड़ित लोगों को यह जरुर धारण करना चाहिए।
इसे धारण करने से व्यक्ति हर प्रकार के भय से मुक्त हो जाता है।
व्यक्ति निर्भीक बनता है और उसका आत्मतत्व बहुत मजबूत स्थिति में आ जाता है।
इससे जातक का आर्थिक पक्ष मजबूत होता है और वह दरिद्रता आदि से दूर रहता है
तेरह मुखी rudraksha का प्रतिनिधित्व मां लक्ष्मी करती हैं। इस rudraksha को धारण करने से मां लक्ष्मी की कृपा सदैव बनी रहती है।
धारण मंत्र-’ॐ ह्रीं नम:’
यह rudraksha साधना, सिद्धि और भौतिक उन्नति के लिए प्रयोग में लाया जाता है।
आयुर्वेद शास्त्रकारों ने त्रयोदशमुखी rudraksha को संजीवनी की संज्ञा है जिससे इसके औषधीय महत्व को समझा जा सकता है। यह कैंसर, रक्तचाप, लिंगदोष, योनिदोष आदि से बचाव करता है।
इसे धारण करने वाले व्यक्ति सभी प्रकार की महामारियों से बचे रहते है।
इस rudraksha का प्रतिनिधित्व भगवान हनुमान करते है। इसे धारण करने वालों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। भगवान शिव ने अपनी लीलाओं को संपन्न करने के लिए हनुमान रुपी अवतार लिया था। संकट मोचक बन हनुमान अपने भक्तों का आज तक उद्धार कर रहे हैं।
धारण मंत्र-’ॐ नम:’
हनुमान जी की कृपा से व्यक्ति सभी संकटों का निर्भीक होकर सामना करते है।
मनुष्य के जीवन में मौजूद सभी आपदाएं तकरीबन नष्ट हो जाती हैं और व्यक्ति दिग्विजय रूप धारण कर लेता है।
इससे ह्रदय रोग, नेत्र रोग, अल्सर, मधुमेह और कैंसर आदि रोगों से छुटकारा मिलता है।
यह rudraksha पशुपतिनाथ का स्वरुप माना गया है। भगवान पशुपतिनाथ आर्थिक मनोकामनाओं को पूरा करते है। यह अत्यंत दुर्लभ श्रेणी में आता है।
धारण मंत्र-‘ॐ श्रीं मनोवांछितं ह्रीं ॐ नमः’
सोलह मुखों वाला यह rudraksha महाकाल स्वरुप से संबंधित है। इसे धारण करने वाले काल भय से मुक्त रहते है। मान्यता तो यह भी है कि इसे धारण करने से सर्द मौसम में भी ठण्ड का एहसास नहीं होता है।
धारण मंत्र-‘ॐ हौं जूं सः’
सत्रह मुखों वाले इस rudraksha में मां कात्यायनी का वास होता है। इसे प्रकार के rudraksha को धारण करने से साधक इस लोक में रहकर अलौकिक शक्तियों को पा सकता है।
धारण मंत्र-‘ॐ ह्रीं हूं हूं नमः’
17 मुखों वाले रुद्राक्ष का संबंध पृथ्वी से है जिस कारण इसे धारण करने वाला व्यक्ति शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ तथा बुद्धिमान होता है। शिशु के रोगों से निवारण के लिए इस प्रकार के rudraksha का प्रयोग किया जाता है।
धारण मंत्र–‘ॐ ह्रीं हूं एकत्व रूपे हूं ह्रीं ॐ’
उन्नीस मुखों वाले rudraksha को क्षीर सागर में शयन कर रहे नारायण देवता का है। यह व्यापर में उन्नति और भौतिक सुखों के लिए उपयोग में लाया जाता है।
धारण मंत्र-‘ॐ ह्रीं हूं नमः’
यह 20 मुखों वाला rudraksha भी दुर्लभ श्रेणी में आने वाले रुद्राक्षों में शामिल है। इसके अंतर्गत नवग्रह- सूर्य, सोम, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, राहु और केतु समेत दिक्पालों तथा त्रिदेव की शक्तियां समाहित होती है।
धारण मंत्र–’ॐ ह्रीं ह्रीं हूं हूं ब्रह्मणे नमः’
21मुखों वाला रुद्राक्ष कुबेर का प्रतिनिधित्व करता है और कुबेर की शक्तियां निहित होने के कारण जो भी इसे धारण करता है वह संसार की सभी सुख-समृद्धि और भोग-विलास का आनंद प्राप्त करता है।
धारण मंत्र–’ॐ ह्रीं हूं शिव मित्राय नमः’
मेष : मेष राशि वालों को तीन मुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए।
वृष : वृष राशि वालों के लिए छः मुखी रुद्राक्ष धारण करना अच्छा रहता है।
मिथुन : मिथुन राशि वालों के लिए चार मुखी रुद्राक्ष अत्यंत लाभकारी है।
कर्क : कर्क राशि वालों को दो मुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए।
सिंह : सिंह राशि के जातकों को 12 मुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए।
कन्या : कन्या राशि वालों को चार मुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए।
तुला : तुला राशि वालों के आठ मुखी रुद्राक्ष धारण करना अच्छा माना जाता है।
वृश्चिक : वृश्चिक राशि वालों के लिए तीन मुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए।।
धनु : धनु राशि वालों के लिए पांच मुखी रुद्राक्ष सही रहता है।
मकर : मकर राशि के जातकों को सात मुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए।
कुम्भ : कुम्भ राशि वालों के लिए आठ मुखी रुद्राक्ष अच्छा होता है।
मीन : मीन राशि वालों को दस मुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए।
शिवपुराण में उल्लेखित ये 21 मुखी rudraksha भगवान शिव के अश्रु से बने है लेकिन इनकी विशेषताओं को गहराई से जानें तो मालूम पड़ता है कि यह केवल वृक्ष पर पाया जाने वाला फल मात्र नहीं बल्कि जीवन में मौजूद हर उस संकट का हल है जिसे खोज पाना थोड़ा कठिन तो है पर मुश्किल हरगिज़ नहीं।