रुद्राक्ष पेड़ को एलियोकार्पस गनीट्रस के नाम से जाना जाता है। यह एक बड़ा सदाबहार पेड़ है जो आमतौर पर उपोष्णकटिबंधीय जलवायु में बढ़ता है। यह पेड़ मुख्य रूप से हिमालय की तलहटी में गंगा के मैदानों और इंडोनेशिया और पापुआ न्यू गिनी सहित दक्षिण पूर्व एशिया के क्षेत्रों में पाया जाता है।
रुद्राक्ष के बीज को ब्लूबेरी के बीज के रूप में भी जाना जाता है क्योंकि पूरी तरह से पकने पर बीज का बाहरी छिलका नीला होता है। भगवान शिव को भी अक्सर नीले रंग में चित्रित किया जाता है जो अनंत का प्रतिनिधित्व करता है। भगवान शिव से संबंधित होने के कारण आध्यात्मिक साधकों के बीच इस बीज का बहुत महत्व है। यह उन आंसुओं की अभिव्यक्ति के रूप में पूजनीय है जो भगवान ने एक बार बहाए थे।
इसे किसी भी लिंग, संस्कृति, जाति, धर्म के लोग पहन सकते हैं। चाहे वह छात्र, बुजुर्ग, पुरुष, महिलाएं या बच्चे हों। चाहे शारीरिक स्थिति कुछ भी हो, इसे जीवन के किसी भी चरण में पहना जा सकता है।
रुद्राक्ष की माला गतिशील ध्रुवता के गुण के कारण चुंबक की तरह कार्य करती है। यह चुंबकीय प्रभाव के कारण बंद/अवरुद्ध धमनियों और नसों जैसे हमारे शरीर सर्किट के हस्तक्षेपों को साफ करती है और हमारे शरीर में ब्लड फ्लो को सुचारू बनाती है। यह शरीर से किसी भी प्रकार के अपशिष्ट, दर्द और बीमारी को दूरकरती है और इसलिए इसका एंटी-एजिंग प्रभाव होता है।
रुद्राक्ष को रुद्र आकर्षण शब्द से भी लिया जा सकता है, जहां आकर्षण का अर्थ आकर्षित करना है। रुद्राक्ष वह है जो रुद्र या ब्रह्मांडीय कणों को आकर्षित करता है, उन्हें हमारे पूरे शरीर में एक एंटीना की तरह प्रसारित करता है। रुद्राक्ष द्वारा आकर्षित ये ऊर्जाएं नकारात्मकता को दूर करते हुए, हमारे सिस्टम में अतिरिक्त जीवन शक्ति लाती हैं।
अंत में आप कह सकते हैं कि रुद्राक्ष की माला का प्रयोग प्राचीन काल से होता आ रहा है। रुद्राक्ष का इस्तेमाल विभिन्न बीमारियों के इलाज के लिए किया जाता है और इसका मन और शरीर पर शांत प्रभाव पड़ता है। रुद्राक्ष मानसिक धैर्य को मजबूत करता है। यह अच्छा ऊर्जा प्रवाह उत्पन्न करता है और आपके मन और शरीर पर एक नया और आराम देने वाला प्रभाव डालता है।
शुद्ध रुद्राक्ष के अंदर प्राकर्तिक रूप से छेद होते है।
असली रुद्राक्ष में संतरे की तरह फांके बने होते है। जिसके आधार पर ही रुद्राक्ष का वर्गीकरण किया जाता है।
सभी रुद्राक्ष की पहचान इनमे उपस्थित लाइन्स के आधार पर या अंदर x ray करने पर बीज दिखते है उनके आधार पर किया जाता है।
एक रुद्राक्ष में जितनी धारिया या लाइन्स होती हैं वह उतने मुखी रुद्राक्ष कहलाता है।
और, x-ray करने पर उसमें उतने ही बीज दिखाई पड़ते है।
रुद्राक्ष में कीड़ा न लगा हों
कही से टुटा फूटा न हों
रुद्राक्ष में अलग से दाने उभरे न हों
ऐसे रुद्राक्ष कभी भी धारण नहीं करने चाहिए
आप किसी लैब टेस्ट की बजाए, स्वये ही रुद्राक्ष की पहचान कर सकते हैं
रुद्राक्ष की पहचान के लिए उसे सुई से खुरेदे अगर रेशा निकले तो रुद्राक्ष असली होंगे नहीं तो नकली होगा
इसके आलवा शुद्ध सरसो के तेल में रुद्राक्ष को डाल कर 10 मिनट तक गर्म किया जाए तो असली रुद्राक्ष होने पर उसकी चमक बढ़ जाएगी तथा नकली होने पर फ़ीकी हों जायगी [source]
रुद्राक्ष माला का हिन्दू परंपरा में अत्यधिक महत्व है जिसके माध्यम से भक्तजन ईश्वर के निकट रहने का प्रयास करते है। भगवान शिव को रुद्राक्ष माला सबसे अधिक प्रिय है और ऐसी मान्यता है कि जो भी जातक shiv mala 108 बार जाप मंत्र का उच्चारण कर धारण करता है उसकी सारी मनोकामनाएं पूरी होती है और उसके जीवन में भगवान शिव एक साये की तरह सदैव साथ रहते है।
shiv ji ki mala को पहनने का भी एक तरीका है जिसके अनुसार ही इसका प्रयोग किया जाए तो इसके लाभ अनगिनत है। नीचे उन्हीं तरीकों का वर्णन किया गया है |
ईशानः सर्वभूतानां मंत्र
यदि japa-mala सिद्ध करनी हो तो पंचामृत में डुबोएं, फिर साफ पानी से उसे अच्छी तरह धो लें। ध्यान रहे कि हर मणि पर ईशानः सर्वभूतानां मंत्र 10 बार बोलें। यह shiva mala rules के अनुसार ही किसी भी रुद्राक्ष को धारण किया जाना चाहिए।
मेरू मणि पर स्पर्श करते हुए ‘ऊं अघोरे भो त्र्यंबकम्’ मंत्र का जाप करें और अगर एक ही रुद्राक्ष सिद्ध करना हो तो पहले उसे पंचामृत से स्नान कराएं। बाद में उसकी षोडशोपचार विधान से पूजा-अर्चना करें, फिर उसे चांदी के डिब्बे में रखें। ध्यान रहे कि उस पर प्रतिदिन या महीने में एक बार इत्र की दो बूंदें अवश्य डालें। इस तरह से किसी रुद्राक्ष की japa-mala या किसी एक रुद्राक्ष को सिद्ध किया जा सकता है। [2]
दरअसल, रुद्राक्ष कूल मिला कर 21 प्रकार के होते है। जिनमे से मुख्यता 14 प्रकार के रुद्राक्ष को उपयोग में लाया जाता है।
Rudraksha के कई प्रकार के मुख हैं और इन मुखों में अलग-अलग नक्षत्रों, देवताओं तथा ऋषियों का वास होता है और इनकी विशेषता के ही अनुसार इन Rudraksha से बनी वस्तु जैसे माला आदि का प्रयोग किया जाता है। आज हम इन्हीं विशेषताओं का विस्तार से वर्णन करेंगे ताकि पाठकों को Rudraksha के संबंध में विस्तृत जानकारी प्राप्त हो सके।
वैसे तो नक्षत्रों के हिसाब से रुद्राक्ष 16 और 21 मुखी भी पाए गए हैं लेकिन, 14 मुखी तक का रुद्राक्ष बड़ी ही कठिनाइयों से पाया जाता है।