किसी भी मत पंथ की पहचान निम्न बातों पर निर्भर करता है --
1. मत पंथ के प्रवर्तक ..............(आदि गुरु संतपति शिवनारायण स्वामी )
2. .मत पंथ का सिद्धांत और नियम
3 . मत पंथ का साहित्य ........ ( गुरु अन्यास ज्ञान दीपक , संत विलास ,----आदि )
3 .मत पंथ की साधना.......... ( सूरत -शब्द योग ) .
4 .वर्तमान सद्गुरु .............. संत सद्गुरु श्री हृदयालाल जी महाराज (मनेर, पटना,)
प्रत्येक संस्था को चलाने का एक निश्चित सिद्धांत और नियम होता है । शिवनारायणी संत मतपंथ तो एक विशाल मतपंथ है इसके अनुयायी देश विदेशों में मौजूद है तो इस संतमत पंथ जैसे संस्था का भी एक सिद्धांत और नियम जरूरी है । परम पूज्य ब्रह्मलीन लखन लाल बाबा (सालमारी ) ने पूज्य गुरुदेव (शिवनारायणी संत मतपंथ के विश्व संरक्षक और वर्त्तमान सद्गुरु-- संत सद्गुरु श्री हृदयालाल जी महाराज ) की सहमति से सिद्धांत और नियम दिए हैं जो पूज्य गुरुदेव द्वारा मनोनीत है | मैं (बासुदेव शर्मा ) इसे सहयोगियों की मदद से संशोधित कर आपलोगों के बीच रख रहा हूँ | यह मत पंथ की रीढ़ है इसे सभी अनुयायी अपनाएँ | यह किसी का व्यक्तिगत मत नहीं है इसलिए अभिमान छोड़कर सभी एक रूपता में आएँ और अपना तथा मतपंथ का शान बढ़ाएं | सिद्धांत को पढकर मत पंथ का रूप रेखा और वास्तविकता का पता चलता है । इसलिए एक सिंद्धांत और नियम आवश्यक है ।
शिवनारायणी संतमत पंथ के सिंद्धांत
1 . यह एक संतमत है ।
2 .इस संतमत में सच्चिदानंद परमात्मा जो ब्रह्म स्वरुप हैं ,जो निर्विकार ,अनादि , अनुपम , अजन्मा एवम् अनाम पद पर अवस्थित हैं ,और शांति एवम् मुक्ति का आधार है, उस सर्वेश्वर की उपासना की जाती है ।
3.इस संत मत में , परमात्मा को प्रत्येक मानव के भीतर द्वादश स्थान (सहश्रार ) में ठहराया है ,जिसे आतंरिक ध्यान से ही जाना जा सकता है इसका दूसरा कोई उपाय नहीं है ।
4. ध्यान द्वारा उस निर्गुण परमात्मा को पाना या पाने का प्रयास करना ही इस संत मत का लक्ष्य है । इसे पाने वाला ही मुक्त कहलाता है
5 .इस संतमत में गुरु का स्थान सर्वोपरि है और गुरु द्वारा बताई गई साधना ही सबसे बड़ी उपासना है ।
6 . इस मत पंथ में कोई भी बाहरी पूजा , पाठ ,तीर्थ ,ब्रत, उपवास आदि किसी भी आडम्बर को मोक्ष ( मुक्ति ) का आधार नहीं माना जाता है ।
7. यह संतमत किसी भी प्रकार के मांसाहार और मादक पेय पदार्थ ( शराब ,ताड़ी , चिलम ,गांजा ,भांग ,बीड़ी,सिगरेट आदि ) के सेवन का विरोध करता है |
8 .इस संत मत में जाति ,धर्म ,एवम् लिंग के आधार पर किसी को छोटा बड़ा नहीं समझा जाता है बल्कि यह माना जाता है की मन ,कर्म और वचन से पवित्र रहने वाला सभी मानव को मुक्ति पाने का समान अधिकार है ।
9 .इस संत मत में संसार के सभी संत मत पंथों और उसके अनुयायियों के साथ समान श्रद्धा , प्रेम और आदर रखता है ।
शिवनारायणी संत मतपंथ के नियम
जब दो संत मिले तो दोनों हाथ जोड़कर जयगुरु संतपति कहना चाहिए |
जब कुछ लिखें तो ऊपर में पहले "संत -शरण " अवश्य लिखें |अपने घर के सामने भी "संत -शरण " लिखकर टाँगे | इस मतपंथ का यह प्रतीक चिन्ह है |
सार्वजनिक सत्संग का कार्यक्रम ग्रीष्मकाल में रात्रि में अधिकतम 8:30 बजे तक ही करें | (यह अधिकतम समय है |)
सार्वजनिक सत्संग का कार्यक्रम शीतकाल में रात्रि में अधिकतम 7:30 बजे तक ही करें |
घरेलु (व्यक्तिगत ) सत्संग (प्रतिदिन या साप्ताहिक सत्संग ) भी संध्याकाल से अधिकतम 8:30 बजे तक ही करें |
सार्वजानिक सत्संग छोटा हो या बड़ा शीतकाल में 2:30 से और ग्रीष्मकाल में 3 :00 में प्रारम्भ कर दें |
स्तुति बन्दना करते समय सिर को रुमाल तौलिया ,गमछा आदि से ढक लें |
सत्संग में काढ़ा प्रसाद न बनाएं | इसके बदले शुद्ध घी के नरम (गीले ) हलवा समय पूर्व बनाकर प्रसाद के रूप में रख दें | अन्यथा लड्डू ,फल आदि का प्रसाद बनाएं |
स्तुति विनती के बाद ग्रन्थ पाठ अवश्य करें |
अगियारी का कार्यक्रम श्राद्ध (घाट श्राद्ध ,द्वादशाह ) के दिन ही करें |
अगियारी में भी सत्संग के अधिकतम समय ( 8.30 )का पालन करें |
सम्मलेन में सत्संग प्रात:काल से शुरू करें |
सत्संग स्थल की साफ सफाई और पवित्रता पर विशेष ध्यान रखें |
सत्संग में साफ-सुथरा वस्त्र पहन कर और पवित्र तन -मन से जाएँ |संभव हो तो सफेद वस्त्र पहने |
सत्संग के नियम
1. सत्संग स्थल साफ सुथरा होना चाहिए |
2. सत्संग करने वाले संत साधक को सफ़ेद वस्त्र पहनने चाहिए । सत्संग में वक्ता कम हो और सार्थक बोलने वाला हो | वक्ता साधक या संत इस संतमत के सिद्धांत ,नियम और सत्संग के नियम को पालन अवश्य करता हो |
3. जो भी सत्संगी ( अनुयायी ) सत्संग में आयें संभव हो तो सफ़ेद वस्त्र पहने अथवा साफ़ वस्त्र अवश्य पहने ।
4 . सत्संग का प्रारम्भ दो अरजी भजन से करें ।
5 . अरजी भजन के बाद स्तुति और विनती करें |
6 .स्तुति -विनती के समय सिर पर कपड़ा ( रुमाल ,गमछा ) आदि रखे ।
7 .स्तुति -विनती के समय रीढ़ को सीधा रखें और आँखें बंद कर गुरु को आज्ञा चक्र में बैठाएं ।
8 .स्तुति -विनती के बाद ध्यानअवश्य करें ।
9 .फिर सत्संग के नियम -सिद्धांत को पढकर सुनाएँ ।
10 .इसके बाद ग्रन्थ पाठ कुछ समय (10 मिनट ) अवश्य करें ।
11 .फिर भजन और प्रवचन के माध्यम से सत्संग करे ।
12 .किसी भी प्रकार का सत्संग ,सम्मलेन ,पर्व ,अगियारी ,और सामान्य अधिकतम रात्रि 8: 30 बजे तक ही करें ।
13 .समयानुसार सत्संग में कुछ धन राशि देकर आयोजक का मदद करें ।
14 . गुरु और मतपंथ के प्रति समर्पण की भावना रखें |
साधकों के लिए दैनिक नियम
प्रत्येक साधक को ब्रह्म मुहूर्त में जागना चाहिए (सूर्योदय से लगभग 1.30 h पहले ) ।
जागने के पश्चात बिछावन पर ही दोनों हाथ सटाकर दोनों हाथ का दर्शन करना चाहिए और इस मंत्र का उच्चारण या मन से कहना चाहिए ।
मंत्र --- कराग्रे बसते लक्ष्मी: कर मध्ये सरस्वती ।
कर मूले स्थितो विष्णु . प्रभाते कर दर्शनम ।।
3 . इसके बाद जो स्वर चले उसी पैर को पहले बिछावन से नीचे रखकर चलना चाहिए ।
4 .इसके बाद फ्रेश (मल ,मूत्र त्याग कर मुंह ,हाथ ,पैर धोना ) होना चाहिए । (इस समय स्नान जरूरी नहीं है )
5 .फ्रेश होने के बाद निर्धारित स्थान (स्वच्छ ,हवादार ,बदबू रहित ,पवित्र और समतल ) पर ध्यानाभ्यास कम से कम आधा घंटा करना चाहिए । प्रभु चिंतन के बाद स्तुति विनती , आरती करनी चाहिए |
6 . सुबह स्नान कर अपने इष्ट को दो पुष्प अर्पित करें | इसके बाद प्रभु या गुरु का नाम लेकर अपने दैनिक कार्य को ईमानदारी और पूर्ण लगन से करना चाहिए ।
7 .दो साधक (दीक्षित ) मिले तो नम्रता से दोनों हाथ जोड़कर जय गुरु संतपति कहना चाहिए ।
8 . माता -पिता और सद्गुरु की सेवा बिना स्वार्थ के नि:संकोच होकर करना चाहिए ।
9 . वरिष्ट गुरुभाई या समाज के बूढ़े बुजुर्ग को पूर्ण सम्मान देना चाहिए ।
10 . हमेशा स्वयं साफ़ सुथरा और पवित्र रहें और अपना परिवेश भी साफ रखना चाहिए ।
11 .काम करते समय गुरु मंत्र और स्वांस पर ध्यान रखें । (यह अभ्यास से हो पायेगा )
12 . भोजन शाकाहारी ,पौष्टिक और सात्विक करना चाहिए ।
13 .संध्या समय भी स्तुति -विनती और ध्यान करना चाहिए ।
14 .इस असार संसार में ;हम एक अतिथि हैं ,' इस सच्चाई को हमेशा याद् रखना चाहिए ।
15.रात्रि में जल्दी सोयें और सोने के पूर्व दिन भर में किये सभी कार्यों पर एक नजर दौराएँ ; जहाँ भूल हुई हो गुरु से क्षमा मांगे और उसका त्याग करें तथा नाम जाप करते हुए सो जाएँ
15 .पुन: अगली सुबह जगें तो प्रभु को और एक दिन के लिए धन्यवाद करें ।
कुछ सामान्य नियम ( सबों के लिए )
1. प्रतिदिन सूर्योदय पूर्व प्रात: उठकर जल का सेवन करें |
2 .इसके बाद नित्यक्रिया के बाद स्नान करें (बीमार और बृद्ध को छोड़कर ) |
2. स्नान के बाद अपने इष्ट देव की पूजा करें |
यदि काम के लिए बाहर जाना हो तो नास्ता कर के जाएँ |
वाणी में मधुरता लायें और परिवार के सभी सदस्यों के साथ अच्छा व्यवहार करें |
बच्चों को स्कूली शिक्षा के साथ धार्मिक और आध्यात्मिक शिक्षा भी अवश्य दें |
स्वयं अभक्ष भोज्य पदार्थ न खाएं और परिवार को भी इससे बचाएं |
शराब , आदि नशीली चीजों का सेवन न करें ,परिवार और समाज को इससे दूर रखने में मदद करें |
अच्छे भोजन से शरीर और बुद्धि दोनों अच्छी होती है |दिन में 3 - 5 लीटर पानी पियें |
काम को ईमानदारी से करें और खूब धन कमायें जिससे अपनी और परिवार की आवश्यकतायों की पूर्ति कर सकें |
अपने माता पिता के भोजन ,दवाई ,वस्त्र, रहने का स्थान और सेवा आदि में कमी नहीं रखें |
घर के औरत (पत्नी ) के साथ भी अच्छा व्यवहार करें |
संध्या काल के पूर्व घर पहुँचे और पत्नी और बच्चों को भी समय दें |
रात्री में जल्दी सो जाएँ |प्रभु को और एक दिन के लिए धन्यवाद दें
अगली सुबह जल्दी उठें |
यह नियम सिद्धांत वेबसाईट (शिवनारायणी संत मतपंथ ) पर उपलब्ध है और शिवनारायणी संतमत की सम्पूर्ण जानकारी यु ट्यूब (U Tube ) पर शिवनारायण स्वामी के सत्य ज्ञान या बासुदेव शर्मा (Basudeo sharma ) को खोजें |
All content
tap for read ( पढने के लिए दाबें )