अपराह्न एवं सांयकालीन विनती भावार्थ

भावार्थ:- हे सद्गुरू शिवनारायण स्वामी! मैं हाथ जोड़कर • आपसे विनय कर रहा हूँ। आप मेरी अर्ज सुन लिजिए और मुझे अपनी प्रेमा-भक्ति दीजिए।

        ** हे पतितन तारन स्वामी! मुझमें न दया (करुणा) है और न माया (छलपूर्ण कार्य)। मैं इन दोनों से परे हो गया हूँ। अतः दानों हाथ जोडकर कहता हूँ कि आपकी दया दृष्टि मेरी ओर बनी रहे।

       ** हे गुरूदेव! मैं युगों-युगों से जन्म ले-लेकर भ्रमता (भटकता) रहा हूँ और गर्भवास के दुखों (महाकष्टों) को पाता रहा हूँ। इतना ही नहीं, बुढ़ापे के कष्टों को भी झेलता रहा हूँ और मरने पर शरीर अग्नि में जलता रहा है।

       ** हे  गुरूवर!  काम, क्रोध, मद, लोभ और चौदह इन्द्रियों ( पाँच कर्म इन्द्रियाँ हस्त, पद, वाक, उपस्थ एवं गुदा, पाँच ज्ञान इन्द्रियाँ आँख, कान, जिह्वा, नाक और त्वचा) और चतुष्य मन, बुद्धि, चित्त एवं अहंकार) के विषय सताते रहते हैं और नित्य सर्वदाभ्रमाते (भटकाते) रहते हैं। इन्हीं कारणों से आपकी भक्ति बिसर जाती है-लोग कर नहीं पाते हैं।

      ** हे गुरूदेव जगदाधार! बार बार  भ्रम (जो सत्य नहीं है। उसको सत्य मानकर) के फन्दे (बन्धन) में पड़कर सर्वदा यमदण्ड़ (यम की मार) पाता  रहा हूँ। हेगुरूदेव ! इससे बचने- बचाने के लिए आप मुझे अपनी शरण में लगालें रखले ।

   **  हे गुरूदेव! मुझे कनक (रूपया-पैसा, धन सम्पत्ति), कामिनी (काम-वासना), खान-पान (सुस्वादु भोज्यपदार्थ) और सम्मान (प्रतिष्ठा) अर्थात् वित्तेषणा, स्त्रैषणा व लोकेषणा के लोभ सताते हैं। इन्हीं के कारण पत्नी, पुत्र, परिवार (के अन्य सदस्य) और वित्त अच्छे नहीं लगते हैं।

    ** हे नाथ!  गुरूदेव स्वामी! अब आप मुझे दया करके अपना लिजिए ताकि मैं नित (प्रतिदिन) नित (सर्वदा) आपके चरण में रहूँ।

   ** हे गुरूदेव! मेरा चंचल मन स्थिर हो और मेरी सुरत (आत्मा की चेतन सत्ता) नित्यप्रति गगन मंडल में चढ़कर 'सार शब्द' में समाहित होकर विलीन हो जाय एवं मेरा विवेक विमल हो जाय।

विनय

भावार्थ:- हे अन्तर्यामी (सबके अन्तः करण में व्याप्त परमेश्वर)!  घट-घट में गमन करनेवाले, त्रिलोक के गुरू शिवनारायण स्वामी    नमस्कार है, नमस्कार है। आदि अनादि अगोचर, निरालम्ब मम स्वामी । 

      ** हे गुरूदेव!आप आदि, अनादि, अगोचर, निरालम्ब, करूणा-सिन्धु, जगत के हितैषी और मेरे स्वामी हैं।मैं आपको नमन करता हूँ

     ** हे गुरूदेव!  आप युगों-युगों और जन्मों-जन्मों के निष्कामी पारब्रह्म गुरूदेव हैं। आप मुझे अपने श्री चरण की प्रेमाभक्ति में विश्वास (दृढ़ता) दें। मैं आपको नमन करता हूँ।

     ** हे गुरूदेव! आप दुष्टों को दण्ड देनेवाले, पतितों को तारनेवाले और अपने भक्तों को उद्धार करने वाले स्वामी हैं। अतः दया करके अपनी शरण दीजिए। मैं आपको नमन करता हूँ।

     ** हे गुरूदेव! मेरे स्वामी आप संतों गुरुभाक्तों की ओर निहारें - उन पर दया करें !  हे सद्गुरु शिवनारायण स्वामी !  मैं आपको नमन करता हूँ -- बार बार नमन करता हूँ

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