प्रश्नोत्तरी द्वारा शंका समाधान
प्रश्न -- क्या शिवनारायणी संत मतपंथ लिखना ठीक है ? क्या यह स्त्री सूचक शब्द है ?
उत्तर -- किसी भी संज्ञा शब्द के पहले संज्ञा आने पर पीछे वाला शब्द विशेषण हो जाता है । जैसे -- हमलोग विज्ञान न्यूटन नहीं लिख सकते हैं हमें लिखना होगा वैज्ञानिक न्यूटन , उसी प्रकार भारतीय लोग , वैष्णव मतपंथ , शैव मतपंथ , आदि आदि । इसलिए शिवनारायणी संत मतपंथ लिखना गलत नहीं है और न ही यह स्त्री सूचक शब्द है । थोड़ा ज्ञान को बढाएं ।
प्रश्न --क्या गद्दी पूजा , अगियारी , काढ़ा प्रसाद ,स्वामी जी द्वारा दिया गया गया है ?
उत्तर -- स्वामी जी के ग्रंथों में कहीं भी इसप्रकार का कोई भी जिक्र नहीं है | जितने भी तंत्र मंत्र वाले पुस्तक हैं सभी उनके शिष्यों द्वारा जोड़ा गया है | यदि हम स्वामी जी के सिद्धांत को मानते हैं तो उनके बताए गए मार्ग पर चलना चाहिए | काढ़ा प्रसाद खाकर ,अगियारी कर और गद्दी पूजा कर क्या मिल गया और क्या मिल जाएगा जरा विचार करें | स्वामी जी कर्म योगी थे और जीवों के लिए संत लोक गमन के मार्ग का ज्ञान दिए हैं | स्वर साधन , सुष्मना मार्ग का साधन ,त्रिकुटी साधन , उससे ऊपर का साधना , आदि आदि | हम आप क्या कर रहे हैं | गद्दी पूजा और काढ़ा प्रसाद के लिए लड़ाई | क्या स्वामी जी ससना में गुफा में काढ़ा प्रसाद बनाते थे | जरा सोचें ?
प्रश्न -- तब क्या गद्दी पूजा , अगियारी , और काढ़ा प्रसाद से कोई लाभ नहीं है |
उत्तर -- लाभ है , इन सभी में एक चीज सब में होता है वह है सत्संग | सत्संग सभी घरों में होना चाहिए जिससे घर में खुशहाली बढती है और सनातन संस्कार घर परिवार में आता है किन्तु गद्दी पूजा , अगियारी और काढ़ा प्रसाद में सत्संग का समय -असमय का ध्यान नहीं रखा जाता है जो अच्छी बात नहीं है |आप संत साधक हैं न कि नाच करने वाले नचनिया | मैं इसका विरोध करता हूँ |आप एक सत्संग करें न कि बत्संग | सत्संग के आरे आडम्बर को बढ़ावा न दें | यदि साधना लाभ करना है तो इन चीजों से कोई लाभ होने वाला नहीं है | इन सब के फेर में सत्संग की असल बातें दब जाती है और आडम्बर को बढ़ावा मिलता है | मैं इसके बिल्कुल विरोध में हूँ |
प्रश्न -- शिवनारायणी संत मतपंथ क्या सिखाता है |
उत्तर --शिवनारायण स्वामी कहते हैं - हमारे शरीर के भीतर अनामी पुरुष अर्थात परमात्मा का वास है | उस अनामी पुरुष को जानना और देखना है | इसे सूरत शब्द योग की साधना द्वारा ही जाना जा सकता है | स्वामी जी कहते हैं सूरत द्वारा शब्द को पहचाने और शब्द के पार होकर अनामी पुरुष को पहचाने अर्थात अपने सत्य स्वरूप को पहचाने | यही मूल बात है | इसके लिए मूल चीज ध्यान की क्रिया है जिसे एक सद्गुरु से सिखा जा सकते है |
अत: शिवनारायणी संत मतपंथ सिखाता है -- सद्गुरु से दीक्षा लेकर ध्यान साधना ग्रहण करें और अनाम पद की यात्रा में निकल जाएँ | प्रतिदिन सत्संग और ध्यान करें | धर्मपूर्वक मेहनत से धन का उपार्जन करें सभी से प्रेम भाव रखें , और सद्गुरु के कहे अनुसार जीवन यापन करें | संत लोक का रास्ता प्रशस्त करे और अपने को पहचाने |अपने चाल चलन , खान पान , लोगों से व्यवहार, ठीक रखें | अपने आत्म स्वरुप को जानने और पहचानने की विधि इसमें सिखाई जाती है
प्रश्न -- सत्संग क्या है ?
उत्तर -- सत्य का संग करना सत्संग है |
प्रश्न ---सत्य क्या है ?
उत्तर --- जो हर काल में एक समान रहता है अर्थात जिसका कभी विनाश नहीं होता है वह सत्य है |
प्रश्न --सत्य को कैसे जाना जा सकता है ?
उत्तर -- सत्य को सत्संग द्वारा जाना जा सा सकता है | सत्य को समझने के लिए सत्पुरुषों के साथ बैठ कर बाहरी सत्संग करना होगा | जिसमें साधक ,संत के द्वारा दिए गए आध्यात्मिक उपदेश को समझना होगा | तब सद्गुरु का मार्ग मिलेगा | शिवनारायण स्वामी कहते हैं --
सत्य पुरुष करतार को खोजहूँ धरी विश्वास ,
शिवनारायण जानहूँ आत्म रूप प्रकाश |
जब उस सत्य को जानने की ललक जागेगी तब सद्गुरु से दीक्षा लेकर आतंरिक साधना करनी होगी | सद्गुरु के बताए मार्ग पर चलकर अपने भीतर सत्य को जाना जा सकता है |
प्रश्न -- संत कौन है ?
उत्तर --- वह शरीरधारी महामानव जिसने सत्पुरुष को जाना है | जिसने अपने भीतर उस सत्य को परखा है | जो अनाम पद में स्थित रहकर भटके जीवों को अपने घर (नीज देश ,संत लोक ) लौटने का सन्देश देने आएँ हैं | जिसे अपना स्वार्थ नहीं है ,परोपकार के लिए विचरण करने वाले तथा काल के वश में फंसे जीवों के उद्धारकर्ता को संत कहते हैं |
प्रश्न --- क्या सभी दीक्षित को संत कह सकतें हैं ?
उत्तर --- नहीं , सभी दीक्षित को संत नहीं कह सकते हैं | जो अभी दीक्षा लिये हैं वे दीक्षित हैं | जब वे गुरु के बताए मार्ग पर चलेंगे तो वे शिष्य कहलायेंगे | मतपंथ के नियमों पर चलने वाले अनुयायी कहलाते हैं | गुरु प्रदत्त ज्ञान द्वारा अपनी इन्द्री और मन को साधने वाला साधक कहलाता है तथा जिसने मन और इन्द्रियों को वश में कर लिया अर्थात साध लिया वह साधु है |अपने को जानने और पहचानने वाला अर्थात आत्मद्रष्टा ,संत लोक वासी ही संत है | हम ,,आप, कहाँ हैं पहचान लें |
प्रश्न ---- क्या दीक्षा लेना जरुरी है या क्या गुरु धारण करना जरुरी है ?
उत्तर --- दीक्षा लेने का अर्थ ही है गुरु धारण करना अर्थात गुरु के शरण में जाना | हमें गुरु की हर समय आवश्यकता है |इसलिए हमें गुरु धारण करना आवश्यक है | भौतिक जगत में जन्म से लेकर मृत्यु तक गुरु की आवश्यकता है | भौतिक शिक्षा के लिए हर समय गुरु (शिक्षक ) की आवश्यकता होती है |स्कूल की शिक्षा हो या मशीन ठीक करना हो | इस मानव शरीर में आत्मा और परमात्मा का वास है | यह इस शरीर में कहाँ है , मैं कौन हूँ , इन सब प्रश्नों का उत्तर एक सदगुरु के पास ही है | हम मानव का कर्तव्य है कि स्वयं को जाने, पहचाने और मानव जीवन को सार्थक करे | इन सभी बातों को ठीक ठीक एक सद्गुरु ही बता सकते हैं | इसलिए दीक्षा लेना आवश्यक है |
Que ---- My family belongs to Shri shivnarayan samaj, but there is no knowledge or publicity of the same. I want to learn about our tradition, culture, saints, but not getting answers here. Kindly revert and help me out.
प्रश्न ---- मेरा परिवार श्री शिवनारायण समाज से है, लेकिन इसकी कोई जानकारी या प्रचार नहीं है। मैं हमारी परंपरा, संस्कृति, संतों के बारे में जानना चाहता हूं, लेकिन यहां जवाब नहीं मिल रहा। कृपया वापस आएं और मेरी मदद करें।
~ Gayatri Pardeshi (Pune)
जय गुरु संतपति गायत्री जी आप की जिज्ञासा को नमन करता हूँ | शिवनारायणी संत मतपंथ से जुड़े हैं यह अच्छी बात है | आदि गुरु संतपति शिवनारायण स्वामी इस धराधाम में काल ग्रसित जीवों को काल से बचाकर अपने नीज धाम के रास्ते को बताने के लिए आये थे | वे धराधाम में सन 1916 में आये | (इसकी जीवनी home page में उपलब्ध है |)
इस मतपंथ में अशिक्षितों की संख्या बहुत अधिक है | संत की वाणी को समझने केलिए उच्च शिक्षा और साधना की आवश्यकता है | रातभर खंजरी ( वाद्य यन्त्र ) बजाना और नशा करना इस मतपंथ की पहचान बन गयी है | इससे इस समाज का कभी समुचित विकास नहीं हो सका | अंधों में काना राजा वाला मुहावरा की तरह जो थोडा भी जानकार हैं वे दाढ़ी वाले ,जटावाले उस अंधों के समाज में महान गुरु बन कर अपना और शिष्यों का जीवन नष्ट कर रहे हैं | इसका कोई संगठन नहीं है |संगठन नहीं तो विकास नहीं | इसी कारण से इसका प्रचार सीमित है |
जब परम्परा की बात आती है तो तो हम सनातनी है ,हिन्दू हैं |एक हिन्दू की परम्परा को उपनिषद से ठीक ठीक जाना जा सकता है | जहाँ तक संत परम्परा की बात है सभी संत (मैं बाबाओं की बात नहीं कर रहा हूँ ) अपने भीतर झाकने की बात करते हैं | संत सूरत शब्द योग की साधना को देते हैं जिससे आत्म दर्शन कर मानव जीवन को सार्थक बना लें | शिवनारायणी संत मतपंथ को जानने के लिए सबसे पहले इस मतपंथ के नियम और सिद्धांत को पढ़े |
यह मतपंथ किसी भी बाहरी पूजा पाठ और आडम्बर को बढ़ावा नहीं देता है |यह मांसाहार और तामसिक भोजन तथा तामसिक पेय पदार्थ का पूर्णत: विरोध करता है | यहअपने भीतर सूरत शब्द योग की साधना द्वारा अनाम पद तक की यात्रा का मार्ग बताता है अपने को जानना ,मैं कौन हूँ इसकी खोज को बताता है |स्वामी जी कहते है --आसन पद्म लगाईं के, सुरति संवारहूँ वाट |
नयन नासिका के बीच, में उतरहूँ त्रिकुटी घाट ||
एक सद्गुरु से दीक्षा लेकर आतंरिक साधना करें और अपने आत्मस्वरूप को जाने |अपने सत्य स्वरुप को जानना ही इस मतपंथ का असल साधना है | इसके अतिरिक्त सारी बाते वेवसाईट में दी गयी है | उत्तर पढकर अपना प्रतिउत्तर अवश्य देने की कृपा करेंगे और भी प्रश्न की प्रतीक्षा रहेगी |जय गुरु संतपति |
प्रश्न ----शिवनारायण स्वामी के वह अलौकिक ज्ञान जिसे प्राप्त कर अनेकानेक शिष्य जैसे ब्रहम्लीन सदाशिव जी महाराज,रामनाथ जी महाराज ,एवं लखन राम जी महाराज ने जो दीक्षा प्राप्त किए थे।क्या वर्तमान समय में ऐसे कोई संत सदगुरु क्यों नही चन्द्रवार धाम में जन्म लिए है,?
~ Arvind Kumar Roy ,Belwari (Katihar,Bihar)
सबसे पहले अरबिंद बाबू को मेरा जय गुरु संतपति
आपने ऐसे प्रश्न को उठाया है जिसका जबाब संत समाज और मानव जाति पर प्रश्न चिन्ह है |...... हमें यह जानना चाहिए की जब कभी किसी क्षेत्र और परिवार का पूण्य उदय होता है तब संत और संतपति इस धराधाम पर आतें हैं | संतपति (परमात्मा ) स्वामी जी स्वामी बाघराय के घर किस पुण्योदय के कारण पधारे यह तो स्वामी जी ही बता सकते थे किन्तु ग्रंथों में ऐसी कही चर्चा पढ़ने को नहीं मिली है | हाँ परमात्मा जीवों पर अकारण ही कृपा करते हैं | इसलिए दु:खी जीवों को संत लोक का सन्देश और मार्ग को बताने इस काल लोक में आते है | स्वामीजी भी इसी कारण संतपति परमात्मा होते हुए भी इस मृत्यु लोक में आकर शारीरिक कष्ट उठाए |
राजा की परम्परा तो खानदानी देखी गयी है पर संत खानदानी हो यह जरुरी नहीं है | संत के पदार्पण के लिए वैसी परिस्थिति होनी चाहिए |वैसे माता पिता का भी होना परम आवश्यक है जो दिव्य आत्मा को आकर्षित (खींच) कर सके |स्वामी जी की जन्म भूमि चंद्रवार आज संत भूमि ,भक्त भूमि न रहकर लोभ, लालच और धुनी लगाने की भूमि रह गयी है | शरीर और मन जब पवित्र होता है तब साधना की बात होती है | जहाँ की भूमि में लोभ और पद की स्पर्धा चल रही है वहाँ कैसे ध्यान साधना और संत विचार आ सकता है |जो भी दिख रहा है वह एक दिखावा है |दिखावा आदमी देखता है | प्रभु तो सिर्फ प्रेम के बस में है | चंद्रवार में वैसे प्रेमी नहीं हैं ,वैसे माता पिता नहीं हैं जो संत को धरती पर ला सके | वहीं नहीं अन्यत्र भी सभी संत नहीं बल्कि चालाक संतान चाहते हैं |जो समाज में झूठ और ठगी कर सके और अधिक धन कमा सके | ऐसे में कहाँ संत और भक्त आ सकेंगे |अब वहाँ जो भी बाबा हैं उन्ही के अनुसार वैसे ही लोभी लालची और राजनीतिज्ञ वहाँ आते हैं | सम्भवत: जबाब मिल गया होगा | इससे ज्यादा आप खुद ज्ञानी हैं | इसलिए चंद्रवार में पुन: कोई संत सद्गुरु का आगमन नहीं हुआ है | आगे स्वामी जी की कृपा |जय गुरु संतपति ......|
प्रश्न .. उत्तर से प्रतीत होता है कि परम पुज्य संत सदगुरु श्री हृदया लाल जी महाराज,(मनेर, पटना,बिहार, भारत) का पदार्पण स्वामी शिवनारायण जी महाराज का अवतरण है| अरबिंद कुमार
उत्तर ..... ऐसे प्रश्न कोई ज्ञानी ही कर सकता है तथा भावबस कोई भक्त अपने गुरु के लिए कर सकता है | मैं अज्ञानी इस प्रश्न का उत्तर देने में शायद भूल भी कर सकता हूँ इसके लिए मैं पहले पूज्य गुरुदेव से फिर ज्ञानी भक्तों से क्षमा चाहता हूँ | आतें हैं छोटी छोटी कड़ी जोड़ने का प्रयास करते हैं | जब भी कोई संत आते हैं वे ज्ञान ध्यान और सूरत -शब्द योग की साधना बता जाते हैं | संतों के द्वारा दिया गया नाम रूपी बीज को जिसने भी अंकुरित कर लिया है उसे बृक्ष बनाने के लिए प्रभु को संत रूप में आना पड़ता है | संतपति शिवनारायण स्वामी संतलोक तक जाने का मार्ग बताकर और सत्य नाम रूपी बीज देकर चले गये | उसमें जब घुन पकड़ने लगा तब उसकी रक्षा के लिए किसी रूप में पदार्पण होना संभव है | पूज्य गुरुदेव संत सद्गुरु श्री हृदयालाल जी महाराज जब भ्रमण करने लगे तब वे कहते थे मैं अपने अंश और वंश को खोज रहा हूँ |ठीक इसी प्रकार राम कृष्ण परमहंस से जब स्वामी विवेकानंद की पहली मुलाकात दक्षिणेश्वर (कोलकाता) के काली मंदिर में हुई | वहाँ जो सवाल जबाब हुआ ..विवेकानन्द (परमहंस से)... क्या आपने भगवान को देखा है ? परमहंस (विवेकानंद से ).-- हाँ मैंने देखा है , ठीक वैसे ही जैसे मैं तुमको देख रहा हूँ | फिर परमहंस कहते हैं -- तुमको कितने दिनों से ढूंढ रहा हूँ तुम अब मिले हो |
पूज्य गुरुदेव सोलह वर्ष की अवस्था में दीक्षा लेकर अनाम पद तक की यात्रा किये हैं | स्वामी जी के साधना को अपने में उतारे हैं |
+ आसन पद्म लगाई के सुरति संवारहो वाट ,नयन नासिका बीच में उतरो त्रिकुटी घाट |
+ आसन पद्म लगाइके ,खेंच मकर के तार | मेरु दंड के राह से ,चढ़े संत होशियार ||
+ नौ द्वार को को बंद करावे ,त्रिकुटी घाट पर ध्यान लगावे | त्रिकुटी घाट पथ भौ भारी ,बिनु बादर बरसे बारी ||
दामिनी दमक रही घन माहीं ,मोती वरण के उर मों आहीं | तहां जाय सुरती ठहरावे ,सत्य पुरुष के दर्शन पावे ||
सार शब्द है अजपा नामा , बिन जिभ्या सुरिरे हो कामा | नैना श्रवण दोनों ठहराई ,पवन नासिका रोकहु भाई ||
ख़ट चक्र में फेरा लावे , उन्मुनि होके त्रिकुटी जावे |जैसे जल मा जल मिल जावे , वैसे ब्रह्म में आय समावे ||
झिलमिल तारा अगम गंभीरा | एक ज्योति से बरत शरीरा || इतना शिष्य जाने | जो गुरु देत लखाय ||
त्रिकुटी , सत्य पुरुष , अजपा, झिलमिल तारा ,अनाम पद की साधना ,खेचरी , आदि संत के अनेक सम्पूर्ण ज्ञान ध्यान के साथ संत सद्गुरु श्री हृदयालाल जी महाराज एक पूर्ण संत के रूप में हैं | फिर वे अंश और वंश के तालाश करते रहे |
फिर स्वामी जी कहते हैं ......
जहाँ जहाँ मैं यही जग आयउ ,तहाँ तहाँ तुम पाँचोआयउ|
तुम सब अंश हमारे अहऊ , एक एक सुनहूँ सब कहऊँ|
संत कहावत हर जुग आई , शब्द नाम लखनराम धराई|
रामनाथ सो रूप कहाये , सोहं नाम सदाशिव पाये|
जहाँ 2 जनमेउ मैं आयके, तहाँ तहाँ सब संग आये|
अब सब दु :ख से छुट गये , संतपति गुरु पाये ||
जब संत सद्गुरु श्री हृदयालाल जी महाराज धराधाम में आये तो साथ में अंश और वंश की तालाश में श्री बांके बाबा , श्री चमरू बाबा ,श्री धीरनारायण बाबा , ब्रह्मलीन पूज्य लखन बाबा (सालमारी ) , ब्रह्मलीन मंगल बाबा , ब्रह्मलीन मोहन बाबा आदि इसके संगी प्रतीत होते हैं | समय के अनुसार इसने अनेक शिष्य बनाए | जो भी इनके शिष्यत्व में हैं और साधना करते है वे उनके (गुरुदेव ) के संरक्षण में हैं | इसप्रकार यह कहना गलत नहीं होगा की संत सद्गुरु श्री हृदयालाल जी महाराज स्वामी जी के अवतरण हैं | आगे आप सभी विद्वान हैं | जय गुरु संतपति .......
प्रश्न .....काढ़ा प्रसाद क्या है ? ग्रन्थ पूजा क्या है ?
उत्तर ..... काढ़ा शब्द कढाई से आया है | अर्थात कढ़ाई में बनाए गए प्रसाद को काढ़ा प्रसाद कहते हैं | यह शब्द नानक मत से आया है | ब्रह्मलीन लखन राम पहले नानक मत में दीक्षित थे | यह काढ़ा प्रसाद उसमें प्रचलित था | गुरु नानक साहब का जन्म 1469 में हुआ जो प्रथम गुरु हुए |गुरु गोविन्द सिंह दसवें गुरु 1699 में हुए | इस बीच मुग़लों के साथ विद्रोह में बहुत कठिन समय बीता |गुरु गोविन्द सिंह पञ्च प्यारों को दीक्षा देकर खालसा पंथ की स्थापना की | सिख मानते थे सभी 10 मानव गुरुवों में एक ही आत्मा का वास था | 10 वें गुरु गुरु गोविन्द सिंह (1666 -1708 ) के निधन के बाद गुरु की अनंत आत्मा ने स्वयं को गुरु ग्रन्थ साहिब में स्थान्तरित कर लिया |इसके बाद गुरु ग्रन्थ साहिब को ही एक मात्र गुरु माना गया |गुरु नानक साहब शिष्य और अन्य भूखे लोगो के लिए बड़े कढाई में भोजन बनाते थे जिसे प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता था बाद में यह हलवा प्रकार के प्रसाद का रूप ले लिया | नानक मत में काढ़ा प्रसाद और ग्रन्थ को ही सद्गुरु मानना स्वीकार कर लिया था | तुरंत बाद ही स्वामी जी 1716 में आये और 1732 के बाद प्रचार प्रसार में लग गए | बाबा लखन सिंह इस मतपंथ के प्रमुख प्रचारक संत हुए | इसने प्रचार के लिए यह काढ़ा प्रसाद और ग्रन्थ पूजा इसमें प्रवेश कराए | स्वामी जी शुद्ध निर्गुण सूरत -शब्द योग की शिक्षा दिए हैं | बाबा लखन राम क्षत्रिय थे और अपने गुणों को लोगों में थोपना उनके लिए बहुत ही सामान्य बात थी | इसके चक्कर में शिवनारायणी ऐसे उलझे की सत्य ज्ञान को छोड़कर ग्रन्थ पूजा और काढ़ा प्रसाद में लग गए |इतना ही नहीं यही करने वाला अर्थात गद्दी पूजा करने वाला को आज सच्चा शिवनारायणी समझा जाता है| जयगुरु संतपति |
प्रश्न ....क्या दु:खहरण स्वामी , शिवनारायण स्वामी के शरीरधारी गुरु थे ?
उत्तर ....हाँ , दु:खहरण स्वामी शिवनारायण स्वामी के एक शरीरधारी गुरु थे | हलांकि सद्गुरु दु:खहरण बाबा का ग्रंथों में स्पष्ट चित्रण नहीं है किन्तु गुरु के रूप में दु:खहरण स्वामी का स्पष्ट वर्णन है | मूल ग्रन्थ के अनुसार "उमर सात वर्ष को जब होई | दु:ख हरण गुरु शब्द सुनाई || 120 || ह्रदय लगाय शब्द मोहि सुनावा | खुलि गई दृष्टि ज्ञान मोहि आवा || 121 ||" इससे स्पष्ट है कि गुरु दु:ख हरण ने सात वर्ष में शिवनारायण स्वामी को शब्द (नाम ) दिए जिससे उनकी ज्ञान दृष्टि खुल गयी | किन्तु गुरु अन्यास ज्ञान दीपक में स्वामी जी और दु:ख हरण भगवान से जो वार्तालाप है वह दु:ख हरण परमात्मा का बोध कराता है | जब शरीर धारी गुरु दु:ख हरण से दीक्षा लेकर स्वामी जी ध्यान लगाए तो ध्यान में परमात्मा से साक्षात्कार हुआ तब स्वामी जी और परमात्मा के बीच संवाद हुआ जो गुरु अन्यास में वर्णित है | परमात्मा को भी स्वामी जी दु:ख हरण नाम दिए | यह भी जाने ..बिना प्रकट अर्थात वर्त्तमान गुरु के बिना कोई भी दीक्षा और सत्य ज्ञान संभव नहीं है | ज्ञान तो ग्रंथों में भरा परा है आजकल नेट में सभी गुरु महाराज उपस्थित हैं लेकिन क्या इसके पढ़ने और सुनने से सत्य ज्ञान हो जाएगा | असंभव है |
प्रश्न ....इस संत मत में इतनी भिन्नताएं क्यों हैं
उत्तर ........ इस मतपंथ में लोग ग्रन्थ पढ़ते हैं नहीं , सिर्फ ग्रन्थ पूजा करते हैं | यदि कुछ पढ़ें भी हैं तो सिर्फ गुरु अन्यास | एक तो ग्रन्थ उपलब्ध नहीं है | जो उपलब्ध है तो गरीबी के कारण खरीद नहीं सकते ,यदि खरीद लिए तो पढ़ नहीं सकते , यदि पढ़ लिए तो सही अर्थ नहीं करते हैं और अपनी घटिया बुद्धि से घटिया अर्थ लगाते हैं | यह मैं सभी के लिए नहीं कह रहा हूँ अब इसमें शिक्षित लोग भी आ रहें हैं | मैं सामान्य लोगों की बात करता हूँ | इसमें यदि थोड़ा जानकार हुए तो अपने को गुरु तुल्य समझने लगते हैं और गुरु बन बैठते हैं | इस तरह के लोगों में स्वार्थ बुद्धि इतनी बढ़ जाती है वे अपना प्रचार करने लगते हैं | मतपंथ के नियम सिद्धांत और विकास के लिए कभी नहीं सोचते हैं | उसमें धन का लोभ आ जाता है | धोती कपड़ा और धन के लिए जैसे -तैसे लोगों को शिष्य बना लेते हैं | उसे सही ज्ञान होता नहीं है फिर उसे जो अच्छा लगता है करता है |साथ ही इसका कोई मजबूत संगठन नहीं है | जो गुरु लोग जहाँ हैं वे अपने हिसाब से अपने को बड़ा समझ कर चलते है और किसी की बात नहीं सुनते हैं | कोई अच्छा कर रहा है तो उसे मदद नहीं करते हैं बल्कि पैर खीचतें हैं | वे सोचतें हैं मैं पीछे रह जाऊँगा और दूसरा आगे बढ़ जाएगा | इसी स्वार्थ बुद्धि ने आज तक ज्ञानी विद्धान को प्रोत्साहन नहीं मिला | संत सद्गुरु श्री हृदयालाल जी महाराज पूरे भारत को एक सूत्र में बांधने निकले थे | लेकिन नतीजा सामने है |लोग ऐसे पूर्ण संत और ज्ञानी के संकल्प में सहयोग नहीं कर पाये | इन्ही सब कारण से मतपंथ बिखरा हुआ है |
प्रश्न ....स्वामी जी किन 96 पाखण्डों से बचने कहें हैं |
उत्तर ...स्वामी जी कहते हैं मानव के ये 96 अवगुण मुक्ति पथ में बाधक हैं उसे मैं यहाँ दे रहा हूँ |इससे साधक को बचना चाहिए |
1. कामवशी 2. वदफेली ( कहे बात से मुकरने वाला ) 3. कृपणी 4. परम दरिद्री 5. भ्रष्ट्राचारी 6. रोगी 7. अभिमानी 8. परघाती 9 . आप चतुराई 10 . संत विमुखी 11. बुद्धि नाशक 12 . संत द्रोही 13 .क्रोधी 14 . गुरु निंदक 15 . मदकी ( मदक अर्थात तम्बाकू जैसे पदार्थ का सेवन करने वाला ) 16. पर निंदक 17. शठ 18. अपयशी 19. जड़ता 20. कुसंगी 21. अचैताई ( चेतना रहित ) 22. कुरंगी (खराब लक्षण वाला ) 23.गावदी (अबोध ,नासमझ ) 24. कुढंगी 25. गाफिल (असावधान ) 26. कुमति 27. बेहोश 28. अधिरती ( धीरज का आभाव , बेचैनी ) 29. तोफानी ( शीघ्रता करने वाला ) 30 . छोटाई और बड़ाई करने वाला 31. शैतानी 32. तुक मिजाजी 33. बेवकूफ 34. आँख चोर 35. अहमक (जड़मति ,नासमझ ) 36 .मुंहचोर 37 अन्यायी 38. असंतोषी 39.अनितिवान 40. संगत बिगाडनेवाला 41. व्यभिचारी 42.
असत्यवादी 43. कुचाली 44. कुवचनी 45.अघ्नी (पापी ) 46. मन भंगी 47. प्रदोषी (भारी अपराधी ) 48. बे अकली 49. पातकी 50. बहु जंजाली 51. आत्मघाती 52. बे यकीनी 53. पापशाली 54. दुर्मति 55. अबुद्धि /दुर्बुद्धि 56.मगरई (जलीय जंतु सेवन करने वाला ) 57. विश्वाश्घाती 58. छिनारा 59. वाद विवादी 60. घर पेशी 61.हत्यारा 62 .परस्त्री गामी 63 .चकर साली (ज्यादा भ्रमणशील ) 64.झक्खी 65. दुरवादी 66. सूरत हरामी 67. दगाबाज 68. जुवारी 69.जुल्फी दार ( धूर्त ) 70.शराबी 71. रगरी झगरी 72. कबाबी 73. कपटी 74. पतुरिया बाज (ब्याभिचारी ) 75.छलिया 76. यार मार 77. हरामी 78. कायर 79. नमक हरामी 80. मीन आहारी 81. तोर मोर करने वाला 82. सुलफैया (पीड़ा देने वाला ) 83. बाप दादा कहने वाला 87 . लालची 88.बकवादी 89. लम्पट 90. मोह वसी 91.कुटिल 92. शर्म हीन 93.चुगलखोर 94. लज्जाहीन 95. अहंकारी 96. गरभी |
प्रश्न -- शिवनारायणी संत मतपंथ के कितने भाग हैं |
उत्तर --- अब तक शिवनारायणी संत मतपंथ को भागों में बांटा नहीं गया है किन्तु इतने लम्बे समय के बाद इसका विभाग होना संभव है |
मैं बासुदेव शर्मा ( OCT 2024 ) वर्तमान स्थिति को देखते हुए शिवनारायणी संत मतपंथ को 4 ( चार ) ..भागों में बांटता हूँ |
1 . यथार्थ वादी ---- जो शिवनारायण स्वामी के साधना विधि और नियम -सिद्धांत को पूर्णत: पालन करते हैं | जो निरामिष भोजी , बाह्य आडम्बर से दूर , ध्यानी , पाखण्ड से दूर ,और सरल होते हैं |
2 . परम्परावादी .... जो गद्दी पूजा को प्रधान मानता हो , ग्रन्थ को ही साहेब मानता हो , काढ़ा प्रसाद आवश्यक हो , खान पान अशुद्ध हो , स्वामी जी को ही गुरु मानता है |
3 . विशानक ........ जो रात भर भजन करते हैं , खान पान बिगड़ा हुआ , गद्दी पूजक ,काढ़ा प्रसाद के लिए लड़ाई करने वाला
विभिन्न बुराइयों से युक्त , ये असंत हैं जो इस मतपंथ में पनपे हुए हैं |
4 . अवसरवादी ..... जो उपर्युक्त तीनो में भ्रमण कर सत्संग करते हैं और दक्षिणा लेते हैं | इसे विशेष रूप से दक्षिणा प्रिय है मतपंथ
का जो भी हो उससे कोई मतलब नहीं है |.
प्रश्न ----आध्यात्म क्या है ?
उत्तर --- आध्यात्म शब्द का संधि विच्छेद होता है -अधि +आत्म | अधि का अर्थ है -अपने चारो ओर, और आत्म का अर्थ है -स्वयं |अर्थात स्वयं को चारो ओर अवलोकन करना | स्वयं को पहचानने की कोशिश करना या पहचानना | अत: स्वयं को पूर्ण रूप से जानना ही आध्यात्म है |
अब इन्हें अलग अलग अर्थों में समझाते हैं
आत्मा को जानना और उसके ओर चलना
प्रश्न --- सुमिरन के 5 नाम क्या हैं ? ( विजय बाबा )
उत्तर
प्रगति में जरी