~ संत - शरण ~
शिवनारायणी संत मतपंथ
शिवनारायणी संत मतपंथ की सारी जानकारी, ग्रन्थ इस Website में उपस्थित है| यदि आपको जानकारी ना मिले तो कुछ दिन में उपस्थित हो जायेगा Website कार्यरत है |
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शिवनारायण स्वामी जीवनी
आदि गुरु संतपति शिवनारायण जी महाराज का पदार्पण धरती पर तब हुआ जब चारो ओर अशांति और अराजकता फैली हुई थी । मुग़ल शासक शाह मोहम्मद रंगीला के अराजक शासनकाल में स्वामी जी आकर हम मानवों को शांति का पाठ पढाये । स्वामी जी का पदार्पण धरती पर संवत् सत्रह सौ तिहत्तर (१७७३ ) या सन् 1716 ई० में कार्तिक मास कृष्ण पक्ष तिथि -तीज ( तृतीया ) दिन गुरूवार आधी रात को पूर्ण चन्द्र प्रकाश में हुआ । कुछ अधिक जानकार लोग समझते हैं जब कृष्ण पक्ष है तो पूर्ण चंद्रमा कहाँ से होगा अत: शुक्ल पक्ष होना चाहिए जो बिल्कुल गलत बात है । शुक्ल पक्ष में चाँद का उदय अमावश्या के बाद होता है अत: पहले दिन का चाँद बहुत छोटा या पतला होता है और यह लगभग 45 मिनट रहकर हट जाता है । प्राय: यह यह चाँद नहीं दिखता है । फिर 45 मिनट बढते हुए तीन दिन में 135 मिनट या 2 घंटा 15 मिनट रहकर हट जायेगा कार्तिक में लगभग संध्या 6 बजे लें तो ( 6 +2 .15 = 8 .15 ) होगा तो आधी रत को कौन सा चाँद दिखेगा और तीन घटी का चाँद कितना बड़ा होगा जरा विचार करेंगे ।फिर कृष्ण पक्ष शुरू होने के पूर्व पूर्णिमा होता है जिसमें पूर्ण चाँद होता है शाम से तीन तीन घटी (2 .15 ) अर्थात 8 .15 के बाद चाँद पूरी रात चमकता रहेगा । इसलिए कृष्ण पक्ष तीज तिथिं ही जन्म दिन है ।
स्वामी जी का जन्म बलिया जिला ( U. P.) के चंद्रवार नामक स्थान में हुआ । इनके पिता - श्री बाघराय और माता -सुंदरी देवी थी । बाघराय का जन्म भूमि कनऊज ( कन्नौज ) देश (अभी कन्नौज शहर है ) था । बाघराय वहाँ के राजा थे । बाघराय का जन्म संवत् १६८८ (सन् 1631 ) में हुआ था । अकाल पड़ने के कारण बाघराय चन्द्रवार अपने मित्र चन्दीराय के घर आये और यही बस गए । यहीं चंद्रवार में स्वामी जी का जन्म हुआ । कुछ लोग अभी भी समझते हैं स्वामी जी का जन्म कन्नौज में हुआ , जो गलत है ।
इनकी पत्नी सुमति कुमारी थीं । एक पुत्र -जयमल सिंह और पुत्री -सलिता थी । इनके ह्रदय में सात वर्ष में ही गुरु धारण करने की ललक उठी । इसने दुःखहरण नामक सिद्ध संत से 7 वर्ष ( सन् 1723 ) में ही दीक्षा ग्रहण किये । ये शरीरी गुरु संभवत:बहादुरपुर (ससना धाम के निकट ) के रहने वाले थे । जब उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ तो उसने सत्य पुरुष को भी दुःखहरण से संबोधित किये जो अशरीरी थे । सोलह वर्ष (16 ) की अवस्था (विक्रम संवत् १७८९ (1789 ), ई० सन 1732) में इन्हें सत्य पुरुष से साक्षात्कार हुआ और इन्हें सत्य की प्राप्ति हुई ।
भूमि कर नहीं जमा करने के कारण इसे शाह मोहम्मद रंगीला (मुग़ल शासक ) के दरवार ( सन्1732 ) में जाना पड़ा । शाह मोहम्मद संत विरोधी थे । दरवार में बादशाह से स्वामी जी कहे - राजा तो भगवान के सामान होता है जो सबकी रक्षा करते हैं । इस संकट में आपको भी प्रजा के हित में सोचना चाहिए और कर को माफ़ कर देना चाहिए अथवा कुछ समय देना चाहिए ।सोलह वर्ष के बच्चे के मुँह से इसप्रकार की बातें सुनकर ,बादशाह ने इनसे परिचय पूछा । स्वामी जी अपना परिचय संत के रूप में दिए । संत का नाम सुनते ही बादशाह तुरंत इसे कैद खाने में डालने का आदेश दिए और अन्य संतों से अधिक 10 सेर गेहूं पिसने का आदेश दिए । आदेशानुसार इसे कैदखाने में चक्की देकर 10 सेर अनाज पीसने दे दिया । स्वामी जी वहाँ बारह भेष ( बारह पंथ )के साधुओं को चक्की पीसते देख बोले आप संत सुजान झूठे यह कंठी माला ले रखें हैं । चक्की पीसना छोड़कर दुःखहरण का ध्यान विश्वास से लगाइए । ऐसा ही हुआ सभी लोग चक्की छोड़कर ध्यान में बैठ गए । दुःखहरण परमात्मा की कृपा से चक्की स्वत: चलने लगी । यह देखकर पहरेदार आश्चर्य चकित हो गए और सूचना बादशाह को दिए । बादशाह भी चमत्कार देखकर हतप्रभ थे । सभी संतों को कैदखाना से आजाद किया गया । फिर सबों को भोजन के लिए आमंत्रित किये और मांस युक्त भोजन परोसा । स्वामी जी बोले ये सब काग ( कौआ ) का भोजन है संत तो मोती चुगते (सात्विक आहार करते ) हैं । बादशाह को क्रोध आ गया और थाल में मोती परोसने कह दिया । थाल में मोती परोस दिया गया । स्वामी जी की परीक्षा अभी बाँकी थी । स्वामी जी ने सबों को अपना -अपना गमछा थाल पर ढक देने को बोले और दुःखहरण भगवान का ध्यान करने बोले । ऐसा ही हुआ प्रभु की प्रार्थना के बाद गमछा हटाया गया मोती सात्विक भोजन में बदल गया और फिर सबों ने रूचि अनुसार भोजन किये और शेष भोजन को दुःखहरण परमात्मा की कृपा पुन: मोती में बदलकर दे दिया । इसप्रकार के चमत्कार को देखकर दरवारी और बादशाह रंगीला संत के शक्ति को स्वीकार किये । इससे प्रभावित होकर शाह मोहम्मद रंगीला स्वामी जी से दीक्षित हुए । उसने इनका कर तो माफ किये ही साथ में एक ठप्पा (मुहर ) दिए जो मत पंथ के प्रचार का अनुमति था ।
वहाँ से आने के बाद पिता बाघराय इसी वर्ष विक्रम संवत् १७८९ ( 1789 ) अर्थात सन् 1732 में 101 वर्ष की आयु में संतदेश चले गए । इसके बाद ये ज्ञान को फैलाने में लग गए । इनके मुख्य पांच शिष्य हुए 1 . रामनाथ 2. लखन राम 3. सदाशिव 4 . युवराज 5. लेखराज । इनके दो शिष्य और हैं - 6. शाह मोहम्मद रंगीला तथा 7. राजा जयमल | शाह मोहम्मद तो प्रथम शिष्य हुए ये मुग़ल शासक थे और चमत्कार देखकर स्वामी जी से नत मस्तक होकर शिष्यत्व ग्रहण किये | आगे शाह मोहम्मद और राजा जयमल प्रचार प्रसार में आगे नहीं आये न ही बृहत् साधना में ही अग्रसर हुए | स्वामी जी शिष्यों के साथ सद्ज्ञान को फैलाये और संसार के लिए ज्ञान को ग्रंथों में संकलित कर गए । स्वामी जी द्वारा द्वारा रचित ग्रन्थ --1 .गुरु अन्यास ज्ञान दीपक 2. संत विलास 3. शब्दावली 4. संताक्षरी 5 संत सुन्दर 6 . संत महिमा 7 . लव परवाना 8 . बारह बानी 9. जबाब सवाल 10. ब्रह्म विचार 11 . मूल सागर 12. ज्ञान चाचरी 13 . रुपसार ।
अंत समय में ये ससना में एक गुफा में रहने लगे । संवत् 1848 (सन् 1791 )में श्रावण (सावन ) मास के शुक्ल पक्ष सप्तमी को संत लोक चले गए ।
शिवनारायण स्वामी जीवनी
आदि गुरु संतपति शिवनारायण जी महाराज का पदार्पण धरती पर तब हुआ जब चारो ओर अशांति और अराजकता फैली हुई थी । मुग़ल शासक शाह मोहम्मद रंगीला के अराजक शासनकाल में स्वामी जी आकर हम मानवों को शांति का पाठ पढाये । स्वामी जी का पदार्पण धरती पर संवत् सत्रह सौ तिहत्तर (१७७३ ) या सन् 1716 ई० में कार्तिक मास कृष्ण पक्ष तिथि -तीज ( तृतीया ) दिन गुरूवार आधी रात को पूर्ण चन्द्र प्रकाश में हुआ । कुछ अधिक जानकार लोग समझते हैं जब कृष्ण पक्ष है तो पूर्ण चंद्रमा कहाँ से होगा अत: शुक्ल पक्ष होना चाहिए जो बिल्कुल गलत बात है । शुक्ल पक्ष में चाँद का उदय अमावश्या के बाद होता है अत: पहले दिन का चाँद बहुत छोटा या पतला होता है और यह लगभग 45 मिनट रहकर हट जाता है । प्राय: यह यह चाँद नहीं दिखता है । फिर 45 मिनट बढते हुए तीन दिन में 135 मिनट या 2 घंटा 15 मिनट रहकर हट जायेगा कार्तिक में लगभग संध्या 6 बजे लें तो ( 6 +2 .15 = 8 .15 ) होगा तो आधी रत को कौन सा चाँद दिखेगा और तीन घटी का चाँद कितना बड़ा होगा जरा विचार करेंगे ।फिर कृष्ण पक्ष शुरू होने के पूर्व पूर्णिमा होता है जिसमें पूर्ण चाँद होता है शाम से तीन तीन घटी (2 .15 ) अर्थात 8 .15 के बाद चाँद पूरी रात चमकता रहेगा । इसलिए कृष्ण पक्ष तीज तिथिं ही जन्म दिन है ।
स्वामी जी का जन्म बलिया जिला ( U. P.) के चंद्रवार नामक स्थान में हुआ । इनके पिता - श्री बाघराय और माता -सुंदरी देवी थी । बाघराय का जन्म भूमि कनऊज ( कन्नौज ) देश (अभी कन्नौज शहर है ) था । बाघराय वहाँ के राजा थे । बाघराय का जन्म संवत् १६८८ (सन् 1631 ) में हुआ था । अकाल पड़ने के कारण बाघराय चन्द्रवार अपने मित्र चन्दीराय के घर आये और यही बस गए । यहीं चंद्रवार में स्वामी जी का जन्म हुआ । कुछ लोग अभी भी समझते हैं स्वामी जी का जन्म कन्नौज में हुआ , जो गलत है ।
इनकी पत्नी सुमति कुमारी थीं । एक पुत्र -जयमल सिंह और पुत्री -सलिता थी । इनके ह्रदय में सात वर्ष में ही गुरु धारण करने की ललक उठी । इसने दुःखहरण नामक सिद्ध संत से 7 वर्ष ( सन् 1723 ) में ही दीक्षा ग्रहण किये । ये शरीरी गुरु संभवत:बहादुरपुर (ससना धाम के निकट ) के रहने वाले थे । जब उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ तो उसने सत्य पुरुष को भी दुःखहरण से संबोधित किये जो अशरीरी थे । सोलह वर्ष (16 ) की अवस्था (विक्रम संवत् १७८९ (1789 ), ई० सन 1732) में इन्हें सत्य पुरुष से साक्षात्कार हुआ और इन्हें सत्य की प्राप्ति हुई ।
भूमि कर नहीं जमा करने के कारण इसे शाह मोहम्मद रंगीला (मुग़ल शासक ) के दरवार ( सन्1732 ) में जाना पड़ा । शाह मोहम्मद संत विरोधी थे । दरवार में बादशाह से स्वामी जी कहे - राजा तो भगवान के सामान होता है जो सबकी रक्षा करते हैं । इस संकट में आपको भी प्रजा के हित में सोचना चाहिए और कर को माफ़ कर देना चाहिए अथवा कुछ समय देना चाहिए ।सोलह वर्ष के बच्चे के मुँह से इसप्रकार की बातें सुनकर ,बादशाह ने इनसे परिचय पूछा । स्वामी जी अपना परिचय संत के रूप में दिए । संत का नाम सुनते ही बादशाह तुरंत इसे कैद खाने में डालने का आदेश दिए और अन्य संतों से अधिक 10 सेर गेहूं पिसने का आदेश दिए । आदेशानुसार इसे कैदखाने में चक्की देकर 10 सेर अनाज पीसने दे दिया । स्वामी जी वहाँ बारह भेष ( बारह पंथ )के साधुओं को चक्की पीसते देख बोले आप संत सुजान झूठे यह कंठी माला ले रखें हैं । चक्की पीसना छोड़कर दुःखहरण का ध्यान विश्वास से लगाइए । ऐसा ही हुआ सभी लोग चक्की छोड़कर ध्यान में बैठ गए । दुःखहरण परमात्मा की कृपा से चक्की स्वत: चलने लगी । यह देखकर पहरेदार आश्चर्य चकित हो गए और सूचना बादशाह को दिए । बादशाह भी चमत्कार देखकर हतप्रभ थे । सभी संतों को कैदखाना से आजाद किया गया । फिर सबों को भोजन के लिए आमंत्रित किये और मांस युक्त भोजन परोसा । स्वामी जी बोले ये सब काग ( कौआ ) का भोजन है संत तो मोती चुगते (सात्विक आहार करते ) हैं । बादशाह को क्रोध आ गया और थाल में मोती परोसने कह दिया । थाल में मोती परोस दिया गया । स्वामी जी की परीक्षा अभी बाँकी थी । स्वामी जी ने सबों को अपना -अपना गमछा थाल पर ढक देने को बोले और दुःखहरण भगवान का ध्यान करने बोले । ऐसा ही हुआ प्रभु की प्रार्थना के बाद गमछा हटाया गया मोती सात्विक भोजन में बदल गया और फिर सबों ने रूचि अनुसार भोजन किये और शेष भोजन को दुःखहरण परमात्मा की कृपा पुन: मोती में बदलकर दे दिया । इसप्रकार के चमत्कार को देखकर दरवारी और बादशाह रंगीला संत के शक्ति को स्वीकार किये । इससे प्रभावित होकर शाह मोहम्मद रंगीला स्वामी जी से दीक्षित हुए । उसने इनका कर तो माफ किये ही साथ में एक ठप्पा (मुहर ) दिए जो मत पंथ के प्रचार का अनुमति था ।
वहाँ से आने के बाद पिता बाघराय इसी वर्ष विक्रम संवत् १७८९ ( 1789 ) अर्थात सन् 1732 में 101 वर्ष की आयु में संतदेश चले गए । इसके बाद ये ज्ञान को फैलाने में लग गए । इनके मुख्य पांच शिष्य हुए 1 . रामनाथ 2. लखन राम 3. सदाशिव 4 . युवराज 5. लेखराज । इनके दो शिष्य और हैं - 6. शाह मोहम्मद रंगीला तथा 7. राजा जयमल | शाह मोहम्मद तो प्रथम शिष्य हुए ये मुग़ल शासक थे और चमत्कार देखकर स्वामी जी से नत मस्तक होकर शिष्यत्व ग्रहण किये | आगे शाह मोहम्मद और राजा जयमल प्रचार प्रसार में आगे नहीं आये न ही बृहत् साधना में ही अग्रसर हुए | स्वामी जी शिष्यों के साथ सद्ज्ञान को फैलाये और संसार के लिए ज्ञान को ग्रंथों में संकलित कर गए । स्वामी जी द्वारा द्वारा रचित ग्रन्थ --1 .गुरु अन्यास ज्ञान दीपक 2. संत विलास 3. शब्दावली 4. संताक्षरी 5 संत सुन्दर 6 . संत महिमा 7 . लव परवाना 8 . बारह बानी 9. जबाब सवाल 10. ब्रह्म विचार 11 . मूल सागर 12. ज्ञान चाचरी 13 . रुपसार ।
सदाशिव बाबा तीन वाणी ग्रन्थ लेकर पूरब मकसुदाबाद ( बंगाल ) की ओर प्रचार के लिए गए किन्तु इनके एक शिष्य गोपाल के लोभ और अज्ञानता के कारण इसके पार्थिव शरीर को जला दिए | सम्बत 1841 ( सन 1784 ) को संत देश चले गए |
अंत समय में ये ससना में एक गुफा बनाकर रहने लगे । संवत् 1848 (सन् 1791 ) में श्रावण (सावन ) मास के शुक्ल पक्ष सप्तमी को संत लोक चले गए । इनके पार्थिव शरीर का कोई जिक्र नहीं है और न ही अलग कोई समाधि स्थल ही है | ससना का गुफा के निकट ही समाधि स्थल वर्तमान में बनाया गया है जिसके संरक्षक बाबा अमरजीत हैं | शिष्य जन्म स्थल और समाधि स्थल दर्शन के लिए जाते हैं | इस मत पंथ के पर्वों पर यहाँ सत्संग का आयोजन होता है |
शिवनारायण स्वामी जीवनी विडियो
भाग 1 - कौन थे शिवनारायण स्वामी ?
भाग 2 - दो शिवनारायण स्वामी की कथा
भाग 3 - शिवनारायण स्वमी और शाह मुहम्मद रंगीला बातचीत
भाग 4 - शिवनारायण स्वमी के चमत्कार
भाग 5 - शिवनारायण स्वमी के प्रमुख्य शिष्य
भाग 6 - शिवनारायण स्वमी शिष्य
भाग 7 - उलटे नाम का रहस्य
भाग 8 - सदाशिव को पानी में क्यों फेंका
भाग 9 - सदाशिव की दुर्गति
भाग 10 - सदाशिव संतलोक गमन
भाग 11 - शिवनारायण स्वामी जीवनी अंतिम भाग
🔆शिवनारायणी संत मतपंथ का आरम्भ🔆
संतपति स्वामी शिवनारायण जी महाराज का पदार्पण बलिया जिला अंतर्गत चंद्रवार नामक स्थान में हुआ ! बलिया जिला भारतवर्ष देश के उत्तरप्रदेश (UP) में है। इनका जन्म विक्रम संवत १७७३ (1773) या सन् 1716 में हुआ। 7 (सात) वर्ष की अवस्था में दीक्षा ग्रहण किए। इनके गुरु दुःखहरण स्वामी थे। इन्होने सोलह (16)वर्ष की अवस्था में संवत १७८९ (1789) या सन् 1732 में पूर्णता प्राप्त कर लिए। सन् 1732 में ही मुगल शासक शाह मोहम्मद (दिल्ली के शासक) स्वामी जी से दीक्षा ग्रहण कर प्रथम शिष्य बने। तब शाह मोहम्मद रंगीला ने संत वाणी का प्रचार करने के लिए मोहर (आदेश)प्रदान किए। इसके बाद (1732 के बाद) अपने आध्यात्म ज्ञान को फैलाने लगे।इसी के साथ शिष्यों को बनाये। इसप्रकार शिवनारायणी संत मत पंथ का प्रारम्भ हुआ। इसप्रकार संत परम्परा मे भूले ज्ञान को संसार के बीच फिर से स्थापित करने का असाधारण काम किए।।
🙏🙏 ऐसे महान संत को दंडवत कोटी प्रणाम! 🙏🙏
🔹तब और अब🔹
महावीर , बुद्ध , पतंजलि , नानक , दादू , पलटू ,कबीर , सूर , तुलसी , रैदास आदि महान संत परम्परा मे संतपति शिवनारायण स्वामी जी महाराज एक महान संत हुए ! इनके द्वारा चलाये गये मत शिवनारायणी संत मतपंथ है, इस मत पंथ को मानने वाले या अनुयायियों को शिवनारायणी कहते हैँ। स्वामी जी के बाद उनका शिष्य रामनाथ , लखन राम, सदाशिव , लेखराज ,युवराज, गेंदाराम , राजरूप साधना पद्धति को आगे बढाये । लखन राम बाबा ने इसमें गद्दी पूजन को प्रवेश कराये । इसके बाद अनेक संतों ने अपने विवेक से मतपंथ को अर्थात स्वामी जी के साधना पद्धति को आगे बढाये। रामचंद्र तिवारी के शोध ग्रन्थ के अनुसार चंद्रवार धाम में स्वामी जी के बाद लखन राम बाबा फिर बाबा गुरुदयाल ---बोधाराम (स्त्री )-(चंद्रवार में गद्दी का आरम्भ ) --रघुवर राम ---रघुनन्दन राम ---राजकली (स्त्री )। पुनः रमाशंकर सिंह पुजारी ससनाधाम (बलिया) ( 1945 में कानपूर में सर्वप्रथम बृहत अखिल भारतीय शिवनारायणी संत सम्मलेन कराया ) बाबा मंगलदास हुकुमी महंत (लाहौर ), डॉ० छंगुलाल महंत ( छावनी कानपूर ), पुजारी बेनी सिंह पथिक (कर्नेलगंज कानपूर ) । इसके बाद इसमें रघुनाथ राम (चंद्रवार) , देवराज महंत ( गाजीपुर UP ) , डॉक्टर रामरवि राम (राँची, झारखण्ड) , प्रयाग राम (मुजफ्फरपुर .बिहार)) , माधोराम (कानपूर) , लखनलाल जिला' अध्यक्ष कटिहार,(बिहार) , संत सदगुरु श्री हृदयालाल जी महाराज मनेर ,पटना (बिहार ) ने ग्रंथों का टीकाकर और विमोचन कर मत पंथ को एक नयी दिशा दिए । वर्तमान समय 2023 जो शिवनारायणी मत पंथ के प्रचार का 290 बर्ष ( 1732 - 2023 ) लगभग 300 वर्ष हो चुका है। इतने लम्बे समय बीतने पर और कोई निश्चित नियम को पालन नहीं करने के कारण इसमे अनेक बुराइयाँ ( जैसे - खान-पान दोष, वैचारिक दोष , मानसिक दोष , व्यक्तिगत अभिमान और गुरु बनने का होड़ आदि ) प्रवेश कर गई है , जिससे इस मतपंथ के विकास को दीमक पकड़ लिया है। इस विकट समय मे चंद्रवार धाम में भी निः स्वार्थी और भोजन और विचार से शुद्ध साधक देखने को नहीं मिलता है ।
आदि धाम चंद्रवार धाम (स्वामी जी के जन्म स्थल ) में विश्व महंत के पद पर जो बाबा थे वे क्रमशः ( जहां तक ज्ञात है ) 1 . ब्रह्मलीन बाबा संत शरण दास 2 .ब्रह्मलीन बाबा सरजू दास 3 .ब्रह्मलीन बाबा भोला दास थे । वर्त्तमान समय (2023) में चंद्रवार ( स्वामी जी का जन्मस्थल ) धाम में विश्व महंत बाबा केदार दास हैं ।इसके अतिरिक्त बाबा रामदयाल जोशी , बाबा अमरजीत, बाबा कपिल केशरी और अनेक बाबा लोग स्वामी जी के सेवा कार्य में लगें हैं । । इसके अतिरिक्त बाबा रमेश ( जालंधर ),बाबा हीरालाल ( दिल्ली )बाबा नागेन्द्र (नवादा),बाबा बलवंत ( हरियाणा ), बाबा शिवनारायण सिंह ( उत्तराखंड ), ,पलटन बाबा ( नेपाल ),नानन साहेब (अमेरिका), रितीश बाबा ( मॉरीशस ), मत पंथ के प्रचार में लगे हैं । इन सबों में , संत सद्गुरु श्री हृदयालाल जी महाराज (मनेर ,पटना ,बिहार ) मत पंथ के उद्धार-सुधार के लिए धराधाम में आयें हैं ।पूज्य गुरुदेव की जीवन गाथा आगे दूंगा ।
खान पान - इस मतपंथ में तामसिक भोजन बिलकुल वर्जित है । स्वामी जी तामसिक भोजन को काग का भोजन कहे । इसमें भोजन की पूर्ण शुद्धता है [ लम्बे समय के अन्तराल में ऐसे अनेक गुरु पैदा हो गए जिसका न तो खुद ही खान पान ,आचरण ,ठीक है और न ही उसमे कोई साधना ज्ञान है [ चार भजन सीख लिया ,बस गुरु बनकर चेला बनाने लगा [वह खुद तो पतित है और उसके चेले और पतित [ऐसे गुरु चेले रात भर नशा करते हैं और खूब गाते बजाते हैं । ऐसे लोग अपने को शिवनारायणी कहते हैं जो किसी भी प्रकार से ये शिवनारायणी नहीं हैं । इन्हीं जैसे शरीर पोषी लोग के कारण मत पंथ बदनाम है । ये बेवकूफ लोग समझते हैं मेरा उद्धार हो जाएगा । यह एक अलग ही संस्था है यह शिवनारायणी नहीं है ,नहीं है ।
पूज्य गुरुदेव के शिष्य -- ,बांके बाबा. चमरू बाबा,सुनील बाबा ,अम्बिका बाबा अरविन्द बाबा ,शुकदेव ,केशव बाबा , धनिकलाल बाबा ,रघु बाबा , (कटिहार) ,बालेश्वर बाबा ( किशनगंज) ,गंगा बाबू (पुर्णिया), अनेकों शिष्यों में ये सब प्रचार में लगें हुए हैं
पूज्य स्व० लखन लाल बाबा (सालमारी ,कटिहार ,बिहार ) , स्व० मोहन लाल बाबा (लालगांव ,कटिहार ,बिहार ) और स्व० मंगल बाबा (बायसी ,पूर्णिया. बिहार ) ने मत पंथ के प्रचार में जीवन खपाकर संत लोक चले गए ।
इन सभी बाबाओं के द्वारा वर्तमान समय में सत्संग और भजन के माध्यम से शिवनारायणी संत मत पंथ का प्रचार प्रसार लम्बे समय से चल रहा है , किन्तु एक रूपता कहीं दिखाई नहीं देता है । पूज्य स्व० लखन लाल बाबा ने बड़े ही प्रयास से इस मत पंथ को एक रूप में लाने के लिए कई ग्रंथों के टीका के बाद शिवनारायणी संत मत पंथ के नियम और सिद्धांत को दिए, किन्तु सभी बाबा अपने बड़प्पन के कारण इसे लागू नहीं होने दिया । मैं ( बासुदेव शर्मा ) भारत वर्ष के ऊपर लिखित लगभग सभी बाबाओ से संपर्क साधकर इस मत पंथ के एक रूपता के लिए प्रयासरत हूँ और आगे भी एकरूपता के लिए और मत पंथ के विकास के लिए कार्य करता रहूँगा । इसमें अरबिंद कुमार और रितेश कुमार पूर्ण सहयोग कर रहा है। दोनों का साथ ही पूज्य पिता और पूज्य गुरुदेव का मैं आभार प्रगट करता हूँ ।
वर्त्तमान में गुरु बनने की होड़ और आप बड़ाई में मत पंथ का विकास अवरुद्ध है ।साथ ही इसमें गद्दी पूजन एक भयंकर रोग की तरह फ़ैल रहा है । इस मत पंथ के बाबा ऐसा कहना अतिशय नहीं होगा कि शिवनारायणी संत मत पंथ में ज्ञान का भंडार तो है किन्तु यह वैसे ही ढका हुआ है जैसे बरसात में काले बादल सूरज की रोशनी को ढक लेता है । तब और अब में इस मत पंथ की व्यवस्था में विशेष अंतर नहीं आया है । अभी ज्ञान ध्यान की बातें घटती जा रही है और गुरु बनकर धन कमाने की लालसा काफी बढ़ी है ।इस मत पंथ में वर्तमान में संत संत सद्गुरु श्री हृदयालाल जी महाराज जैसे से विभूति पर ही शोभा देता है । आगे पूज्य गुरुदेव का जीवन चरित्र उपलब्ध होगा ।
मुख्य शिष्य
1. रामनाथ सिंह
2. लखन राम सिंह
3. सदाशिव
4. लेखराज
5. युवराज
अन्य शिष्य
6. शाह मोहम्मद रंगीला
7. जयमल सिंह
🌼शिवनारायण स्वामी के रचित ग्रन्थ🌼
1.गुरु अन्यास ज्ञान दीपक
2. संत विलास
3. शब्दाबली (भजनावली )
4. संताक्षरी
5. संत सुन्दरी
6. संत महिमा
7. लौ परवाना
8. बारह बाणी
9. जबाब सवाल
10. ब्रह्म विचार
11. मंत्रावली
12. मूल सागर
13. ज्ञान चाचरी
14. रूपसार
पूज्यगुरुदेव
आप बाल ब्रह्मचारी हैं , आपका खेचरी सिद्ध है , आप स्वर विज्ञान के पूर्ण ज्ञाता हैं , आपने शब्द साधना की है ,आत्म तत्व की प्राप्ति के कारण आपकी वाणी मधुर और आकर्षक है ,आप अहम् भाव से काफी दूर हैं , सादा वस्त्र , सात्विक भोजन ,सम्यक वाणी ,सम्यक विचार और सबका विकास चाहने वाले महान संत हैं ।
मेरा प्रयास
मुझे जब गुरु कृपा से कुछ ज्ञान प्राप्त हुआ तो इस मत पंथ की सार बातों को रखने का प्रयास किया है । मैंने इस मतपंथ के हर एक पहलु को विडियो , वेबसाईट,और सत्संग के माध्यम से देने का प्रयास किया है । यह प्रयास चलता ही रहेगा । अब भी लोग नहीं समझेंगे तो क्या मरने के बाद समझेंगे । दुर्भाग्य है इसके अनुयायियों का जो अमृत छोड़कर विष का सेवन कर रहें हैं । इतनी अव्यवस्था प्रभु से देखी नहीं गयी तो अपने असली बीज की रक्षा के लिए पुनः एक संत के रूप बिहार के धराधाम पर अवतरित हुए । आतें है ऐसे संत की जीवन चरित्र और साधना पद्धति को जानने और समझने का प्रयास करते हैं ।ये अपने साधना और ज्ञान को एक अलग मत पंथ का नाम दे सकते थे किन्तु यहीं से ज्ञान ध्यान लेने के कारण स्वामी जी के ज्ञान को स्वामी जी के झंडे तले रहकर बुराइयों को हटाने में अपनी साधना की शक्ति को लगा दिए ।आते है जाने ऐसे संत को ---
वर्तमान सद्गुरु
भारत की वह भूमि जहाँ बुध्द ,महावीर ,चन्द्रगुप्त मौर्य ,चाणक्य ,महर्षि बाल्मीकि ,दुर्वासा ऋषि , राजा जनक ,गुरु गोविन्द सिंह जैसे महायोगी शांति और ज्ञान को प्राप्त किये । विश्व प्रसिद्ध विक्रमशिला और नालंदा विश्वविद्यालय की पवित्र भूमि बिहार में एक महान संत का पदार्पण हुआ ।वर्तमान में इस मतपंथ में और अन्य मतपंथ में भी अनेक गुरु महाराज हैं लेकिन जीवों (मनुष्यों ) का त्रिताप हरने वाले संत सदगुरु वर्तमान में सिर्फ और सिर्फ एक संत सदगुरु श्री हृदयालाल जी महाराज हैं ।
शिवानारायणी संत मत पंथ जब अनेक बुराइयों से घिर गया तब संत सदगुरु श्री हृदयालाल जी महाराज धराधाम में आये। आपका पदार्पण उस समय हुआ जब भारत वर्ष आजादी की अंतिम लड़ाई लड़ रहे थे । देश में चारो ओर गरीबी भारत वर्ष के बिहार राज्य की राजधानी पटना से लगभग 30 Km पश्चिम में स्थित मनेर में हुआ । आप 1939 ई० में श्रावण पूर्णिमा के पुण्य तिथि में धराधाम मेंआये। आपका जन्म 13 सितम्बर 1939 (13-9-1939) में हुआ। आपके पूज्य पिता श्री रामाशीष दास थे। आपकी माता श्रीमती गंगा देवी थी । आपके दादा श्री ज्ञान दास और परदादा श्री सूरत दास थे । आपका प्रारंभिक शिक्षा घर पर ही रहकर अर्थात मनेर में ही हुआ ।आप अर्थशास्त्र (Economics) से master degree (M.A.) प्राप्त किये । आपके पिता ,दादा ,परदादा शिवनारायणी मत पंथ के अनुयायी थे । आप मात्र सोलह (16) वर्ष की अवस्था में गुरु धारण किये। आपके आध्यात्मिक गुरु श्री ज्ञान दास जी थे, जो आपके दादा जी ही थे। आप अपने जीवन में कभी धन के लिए किसी पर आश्रित नहीं रहना चाहे । आप उच्च विद्यालय (High school ) में clerk पद पर सेवारत थे। आप August 2004 ई० में सेवा से निवृत (retired ) हुए । आपको पेंशन का लाभ भी प्राप्त है । शिवनारायणी संत मत पंथ की साधना प्राप्त करने के बाद आपने साधना को पूर्णरूपेण अपने में उतारा । इसमे पूर्णता प्राप्त करने के बाद आप विवाह आदि उलझनों में नहीं परे । आप बाल ब्रह्मचारी रहकर अपने जीवन को व्यतीत कर रहे हैं । मनेर स्थित निवास में आप भाई , भतीजा और सामाजिक जिम्मेदारी को खूब ढंग से निभा रहे हैं । वर्त्तमान (2023) में आपके अनेकों शिष्य हैं । इनके शरण में जो भी आये और श्रद्धा भक्ति से इनसे जुड़े रहे उसका बुरा दिन कभी नहीं आया । सद्गुरु के रूप में ये शिष्यों के सारे दुखों को हर लेते हैं यह उनका शिष्य ही जानता है । सभी के लिए उनका दरवाजा हमेशा खुला रहता है । ऐसे सद्गुरु को मेरा सत बार नमन ,बारम्बार नमन --------
ऐसे महान विभूति के जीवन से अनेकों बातें सिखने को मिलती है । आते है इनके जीवन के विभिन्न आयाम को देखतें हैं । ये शुरू से ही दुसरे के दुःख दर्द में मदद करने वाले व्यक्ति रहें हैं । ज्ञान प्राप्त हो जाने के बाद भी इसने परिवार और समाज की जिम्मेदारी से दूर नहीं गए । माता के भरण पोषण से लेकर भाई भतीजे , और अब पोते(भाई के ) तक आपके देख रेख में हैं । शुरू से ही शिष्य और उनके संतान उनके निकट रहकर पठन पाठन किये । पूज्य गुरुदेव बाल ब्रह्मचारी है किन्तु छोटे भाई और भाई के पुत्र आपके साथ रहते हैं । आपके भतीजे निशांत और प्रशांत हैं जो मनोयोग से आपकी सेवा कर रहे हैं । ये बाह्य आडम्बर से बिल्कुल दूर हैं । सफ़ेद वस्त्र धारण करते हैं और सात्विक भोजन करते हैं।
यदि कोई शिष्य उनके धाम में जाते है तो उनकी सारी सुविधाओं का ख्याल खुद रखते हैं ।पूज्य लखन बाबा (सालमारी ) के बार बार कहने पर शिष्यों के सुविधाओं के लिए गुरुदेव ने तीन कमरे का एक मकान बनवाए । वे खुद अभी एक खपरे के घर में रहते हैं । अभी कुछ समय से अस्वस्थ हैं पर उस समय को भी मैंने देखा है जब कोई शिष्य आने पर उसके पैर धुलाई से लेकर स्नान, कपड़े की धुलाई , सम्मुख बैठाकर भोजन कराना ,सोने की जगह नहीं रहने पर खुद नीचे सोकर उसे ऊपर अच्छे बिछावन पर सुलाना आदि इनकी स्वाभाविक प्रकृति रही है इसमें गुरु होने का लेश मात्र भी अभिमान नहीं रहा हैं । उनका कहना था आप मेरे अतिथि हैं आप का सेवा करना मेरा कर्तब्य है । यही नहीं लौटने वाले शिष्यों को जरुरत के अनुसार धन और भोजन की व्यवस्था भी करके देते थे। कुछ लोग ऐसा न समझ लें की शिष्यों के घर आकर वे धोती कुर्ता और धन तो लेंगे ही ऐसा बिलकुल नहीं है । कभी भी अपने शिष्यों से कुछ नहीं मांगे । जब आप शिष्यों के घर आग्रह पर जाते हैं तो कभी भी किसी विशेष भोजन आदि के लिए नहीं कहते हैं ।
आप जब पटना में शिक्षा ग्रहण कर रहे थे , तो एक लॉज में रहते थे । यह घरेलु लॉज था । उसके घर एक छोटा लड़का भी रहता था , जो आप से काफी घुल मिल गया था। रात में वह लड़का और आप एक ही बिछावन में सोते थे। विश्राम के समय आप लड़के को छोटी-छोटी साहसिक कहानियाँ सुनाया करते थे । इस क्रम में वह लड़का हूँ -हूँ की आवाज़ लगाया करता था। फिर लड़का भी कुछ किस्सा-कहानी सुनाता था, तो प्रत्युत्तर में आप भी हूँ -हूँ की आवाज लगते थे । यह प्रत्येक रात्रि का कार्य हो गया था। दोनों में खूब जम रही थी। एक रात वह लड़का कहानी सुना रहा था औरआप (पूज्य गुरुदेव) हूँ - हूँ की आवाज लगा रहे थे । थोरी देर में आपकी आवाज बंद हो गयी, तो लड़के ने आपको हिलाकर कहा, सो गये क्या ? पर आपका कोई जवाब नहीं आया वह लड़का पुनः उठाने का प्रयास किया पर आप नहीं उठे। लड़के को कुछ आजीब लगा । वह आपके साँस को जांचा तो पाया साँस नहीं चल रही थी , फिर वह आपके नाक को बंद कर देखा तो कोई प्रभाव नहीं पड़ा । वह घबरा गया और अपने मम्मी - पापा को बुलाया। उसके पापा भी साँस को देख कर बोले ये तो मर गया है फिर और भी लोग कमरे में आ गये। कोलाहल सुनकर कुछ समय पश्चात् आपकी ऑंखें खुली, लोगों से आपने पूछा किस बात का हल्ला है। तब लोगों ने कहा - आप तो मर गये थे किन्तु अब उठ गये !!! यह तो चमत्कार है ! वह लड़का हमारे आदरणीय अशोक गुप्ता जी हैं जो अभी (2023 ) में अपने निज निवास पटना में गुरु कृपा से जीवन यापन कर रहें हैं । उनके (अशोक बाबू ) विषय में और भी बातें हैं । संक्षेप में कहूँ तो गुरुदेव की कृपा से उसके आर्थिक जीवन में भी काफी परिवर्तन आया । जहाँ तक मरने की बात है तो पूज्य गुरुदेव मरने की कला अर्थात आत्मा को परमात्मा से मेल की विद्या उस समय ही प्राप्त कर ली थी। मेरा उनसे जो निकटता रही है जिससे मैं और भी बातें जानता हूँ तथा पूज्य पिता और वरिष्ट गुरुभाइयों से जो देखने सुनने को मिल रहा है ,आगे देता जाऊँगा । किसी भी त्रुटी के लिए पूज्य गुरुदेव और गुरु भाइयों से क्षमा चाहता हूँ ।
कानपुर शिवनारायणी संत मतपंथ का उस समय एक प्रमुख स्थान था । पूज्य गुरुदेव का कानपुर संत समाज से अच्छे सम्बन्ध थे । कानपुर से निकलने वाली एक पत्रिका में पूज्य गुरुदेव का एक सन्देश छपा था ---शिवनारायणी संत मतपंथ में कोई प्रश्न का उत्तर जानना हो तो इस पते पर संपर्क करें (पता - श्री हृदयालाल जी महाराज ,रसूलपुर ,मनेर पटना ) ,कटिहार जिला के सोनैली कटिहार पथ पर तिलास ग्राम के एक महंत रित लाल बाबा और शंकर डॉक्टर (नुन्गाड़ा ) ने पूज्य गुरुदेव से संपर्क कर सत्संग के लिए आमंत्रित किया । आग्रह पर पूज्य गुरुदेव 1971 में पहली बार कटिहार जिला के तिलास ग्राम में पधारे । कटिहार जिला के अंतर्गत यह आपका पहला सत्संग था, जिससे लोग काफी प्रभावित हुए । तब पुनः 1972 के अगहन त्रियोदशी (ग्रन्थ दिवस ) पर लालगाँव (झौआ ,कटिहार )में सत्संग रखा गया । इस सत्संग में आप आकर कटिहार जिला के लोगों को धन्य कर दिए ।इस सत्संग के बाद आपसे आठ (8 ) लोग दीक्षित हुए । कटिहार जिला में ये आपके प्रथम आठ शिष्य थे ।
नाम -- 1 . बांकेलाल (बदुआबारी ), 2. मोहन लाल मंडल (लालगांव ), 3 . धीरनारायण शर्मा (लालगांव) 4 . केशव शर्मा (लालगांव ) 5 . धनिक लाल (लालगांव ) 6 . पुण्यानन्द (लालगांव ) 7 . फूलकुमार (बेलराही) 8 . शालीग्राम सिंह (लालगांव) ।
अन्य मुख्य शिष्य ---
बाबा चमरू मंडल , अम्बिका प्रसाद ( डुमरिया ) , लखन लाल मिस्त्री (सालमारी ) (जिला अध्यक्ष कटिहार ) , मंगल शर्मा (बायसी ) (जिला अध्यक्ष पुर्णिया ) , गंगा बोसाक (बायसी ), बालेश्वर बाबा (पिछला ) (जिला अध्यक्ष किशनगंज ) , सुनील बाबा , डोमन बाबा, लक्ष्मण बाबा ,सुधारी , हरेराम , आदि (नुन्गाड़ा) , बासुदेव , भागवत , और समस्त परिवार (सालमारी ), अरविन्द , सुबोल ,शुकदेव, बेचन ,श्यामलाल स्व० लक्ष्मी मंडल , रघु , बोधि ,अर्जुन ,कृतु आदि । सभी शिष्यों का नाम यहाँ लिखना संभव नहीं है ।पहले आप कहा करते - थे मैं अपने अंश और वंश का खोज करता हूँ । किन्तु अब ऐसा नहीं कहते हैं ,ऐसा प्रतीत होता है उनकी खोज पूर्ण हो गयी है ।
आप सूरत शब्द योग की साधना देते हैं ।आपकी साधना में मुख्य बिंदु इसप्रकार है 1 .मानस जाप 2 . मानस ध्यान 3, दृष्टि योग साधन (सन्मुखी मुद्रा ) 4.नादानुसंधान (अनहद साधन ) , इसके साथ ही 5. काल निर्णय 6. खेचरी साधन 7 . बैराट साधन 8 . स्वर साधन
एक बार की बात है आलेपुर (बारसोई ,कटिहार ,बिहार ) में सत्संग का कार्यक्रम चल रहा था । इसी बीच किसी अविश्वासी नास्तिक व्यक्ति ने सवाल उत्त्पन्न कर दिया की मैं इन सब पर विश्वास नहीं करता हूँ कुछ चमत्कार कर दिखाएँ तो मानूं अन्यथा सब ऐसे ही हैं। । स्वामी जी कहें हैं संत को तमाशा नहीं दिखाना चाहिए और पूज्य गुरुदेव भी कभी दिखावा में नहीं रहते हैं । पर परिस्थिति ऐसी उत्त्पन्न हो गयी कि गुरुदेव को कुछ प्रकट करना पर गया । सत्संग मंच पर उनके प्रमुख शिष्य उपस्थित थे। उनमें स्व० मोहन बाबा (लालगांव ,झौआ ,कटिहार ) , स्व० लखन बाबा (सालमारी ),चमरू बाबा (डुमरिया )थे । शिष्यों को आवश्यक निर्देश देकर ( कोई मुझे touch नहीं करे , डॉक्टर किस प्रकार जाँच करे आदि ) ध्यान में बैठ गए । प्रशासनिक लोग भी वहाँ मौजूद थे । हजारों लोगों के बीच पूज्य गुरुदेव ध्यान में चले गये । लगभग 5 मिनट तक पूज्य गुरुदेव ध्यान में रहे । इस बीच में डॉक्टर साहेब गुरुदेव के सांस को जाँच किये तो पाया साँसे नहीं चल रही थी । डॉक्टर साहेब हतप्रभ थे ऐसा कैसे संभव है । जब गुरुदेव ध्यान से लौटे तो लोगों की क्या प्रतिक्रिया रही होगी आप समझ सकते है । यह मंच की बात थी अन्यथा ये लम्बे समय तक ध्यान में बैठ कर श्वांस को रोक सकते हैं।
संत पर प्रश्न चिन्ह लगाने वाले को उसकी महत्ता को स्वीकार करना पड़ा और नतमस्तक हुआ । इतना ही नहीं पूज्य चमरू बाबा पूज्य गुरुदेव के साथ एकबार श्रीकोल से आलेपुर जा रहे थे काफी धूप और गर्मी थी आलेपुर के निकट किसी ने कहा सत्संग में शक्ति होती तो वारिश होती ; गुरुकृपा से सत्संग के बाद उसी शाम काफी बारिस हुई । इन सब घटनाओं के बाद क्या सिद्ध करना रह जाता है । जिसके आँख में अपारदर्शी अभिमान और लालच रूपी काला चश्मा लगा है वह क्या समझेगा एक वास्तविक संत फ़क़ीर को !! इसी साधना विधि को पूज्य गुरुदेव शिष्यों को देते हैं । करना तो शिष्य को ही पड़ेगा । गुरु के साथ सपर्पण और पूर्ण नम्रता होने और गुरु द्वारा बताये मार्ग पर चलने पर ज्ञान और ध्यान का लाभ अवश्य मिलेगा ।
सभी शिष्यों के साथ कुछ न कुछ गुरुदेव की अनुभूति अवश्य है फर्क इतना है की मैं मूर्ख प्रकट कर रहा हूँ अन्य लोग छिपाकर रखें हैं । मेरा दावा है - जो शिष्य पूज्य गुरुदेव के शरण में पूर्ण विश्वास के साथ हैं और उनके बताये मार्ग पर चल रहे हैं उसका अवश्य की अच्छा होगा । इनके लिए यह पंक्ति चरितार्थ होती है गुरु शरण में लाग रे तेरी अच्छी बनेगी , अच्छी बनेगी तेरी बिगड़ी बनेगी ।
पहले लोग इस मत पंथ का सत्संग घर के भीतर करते थे जो इसमें दीक्षित नहीं थे उसे कमरे में प्रवेश लगभग नहीं मिलता था । जिससे इसमें अनेक बुराइयाँ प्रवेश कर गयी थी । कुछ दोहे का अर्थ भी लोगों ने अपने सुविधा से लगाकर खान पान और विचार को दूषित कर लिया । जैसे - जो चाहो भवपार छाड़ो ,चाल कुचाल ; देखी देखी घर जाहू ,जो भावे सो खाहू । और भी मीन मांस जो खात है ,सो नर बैकुंठ को जात है । ऐसे दोहे का अर्थ न समझकर आज तक भी अनर्थ कर रहें हैं । पूज्य गुरुदेव जब इस क्षेत्र में आये तो उसने सबसे पहले घर के अन्दर के सत्संग को खुले में घर के बाहर लाये और ऐसे दोहे के सही अर्थ को लोगों के बीच रखे । भोजन की शुद्धता पर बहुत ठोस कदम उठाये । सात्विक भोजन , मेहनत कर धन उपार्जन . झूठ ,नसा , ठगी आदि से दूर रहकर गुरु प्रदत ज्ञान के द्वारा जीवन को संतोष से चलाने का ज्ञान देते रहे । इस पंथ में ऊपर से अपने स्वार्थ के लिए महंतों ने अपना अपना नियम बनाकर गुरु और चेला दोनों ठगने का कार्य में लगे रहे । पूज्य गुरुदेव बड़े ही मेहनत कर पैदल घुम घुम कर ( जब साधन नहीं था ) लोगों तक सत्य ज्ञान पहुँचाये । ब्रह्मचर्य की शक्ति उनके सभी कार्य में परिलक्षित होता था । जो साधना ,ध्यान ,और नाम देते थे उनको ठीक से पालन करने वाले शिष्य विकास पथ पर कभी पीछे नहीं लौटे । इनके लिए यह लाइन चरितार्थ होता है -- भगवान कहते हैं जो मेरी शरण में आएगा उसका कुशल क्षेम मैं वहन करूँगा । जो शिष्य श्रदा भक्ति से इनके शरण में हैं वे दुर्गति में नहीं हैं ।
इनका कहना है ईश्वर हमारे भीतर है तो हमें इसकी तालाश अपने भीतर करनी चाहिए बाह्य जगत में सिर्फ भटकाव है इसे भीतर खोजने की साधना विधि देते हैं । साधना विधि समझाकर नाम (बीज मंत्र ) या दीक्षा देते हैं ।
स्वामी जी द्वारा रचित ग्रन्थ गुरु अन्यास ज्ञान दीपक और शब्द ग्रन्थ संत विलास का टीका पूज्य लखन लाल बाबा ( सालमारी ) किये जिसमें प्रस्तावना पूज्य गुरुदेव किये हैं जो बहुत सुन्दर है साथ ही पूज्य लखन लाल के टीका की अति प्रशंसा भी किए हैं । साथ ही पाती परवाना के टीका पर भी प्रस्तावना दिए हैं । इनसे पहले संत समाज प्रबंधक समिति (मंत्री )कानपुर के सीताराम जैसवार ने पूज्य गुरुदेव द्वारा रचित संत साधना विधि को प्रकाशित किए ।जिसमे गुरुदेव प्रस्तावना भी दिए है । इसके बाद पूज्य गुरुदेव "गुरु स्तुति वंदना और जानकारी की बातें" नामक पुस्तक का प्रकाशन - 2008 में भोजपुर (आरा) से किये । इस पुस्तक में स्तुति विनती को भावार्थ के साथ दिया गया है । साथ ही "आदि गुरु संतपति स्वामी शिवनारायण जी महाराज का संक्षिप्त जीवन चरित्र एवं आध्यात्मिक सन्देश" नामक पुस्तक (2008) में प्रकाशित किए ।
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मत पंथ के एकरूपता के लिए शिष्यों के साथ काफी भ्रमण किये और सत्य ज्ञान से लोगों को अवगत कराये । इसी क्रम में ग्रामीण स्तरीय , प्रखंड स्तरीय ,और जिला स्तरीय कमिटी का निर्माण किये । चंद्रवार धाम के मठाधीश सरजू बाबा के बुलावा पर पूज्य गुरुदेव दो बार चंद्रवार गए। मत पंथ के एकरूपता के लिए शिष्यों के साथ काफी भ्रमण किये और सत्य से लोगों को अवगत कराये । चंद्रवार सत्संग कमिटी ने शिवनारायणी संत मतपंथ के विश्व संरक्षक की उपाधि से सम्मानित किए । वहाँ की खानपान और वैचारिक दोष तथा बृहत् राजनीति के कारण पूज्य गुरुदेव को वहाँ का वातावरण अच्छा नहीं लगा । इनके शिष्य पूज्य स्व० लखन लाल बाबा गुरु प्रेरणा से ग्रंथों का टीका किये और उसे छपवाए भी । मतपंथ के एक रूपता के लिए नियम और सिद्धांत दिए । पूज्य गुरुदेव द्वारा इनको समर्थन मिला । लखन बाबा मत पंथ के लिए सराहनीय कार्य किये अत: उनका संक्षिप्त जीवन परिचय आवश्यक है ।
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पूज्य गुरुदेव के द्वारा दिए गए सन्देश :-
पूज्य गुरुदेव का कहना है कि मानव शरीर ही साधन धाम है । इस शारीर में ही आत्मा और परमात्मा का वास है । इसे खोजने के लिए बाहर भटकने की आवश्यकता नहीं है अर्थात बाहरी पूजा ,व्रत ,उपवास ,तीर्थ यात्रा ,आदि जितने प्रकार के आडम्बर हैं इससे अपने को नहीं जाना जा सकता है । अपने को जानना अर्थात आत्मा को जानने के लिए अपना शरीर ही मंदिर और मठ है । मानव शरीर को सिर्फ हड्डी ,मांस, त्वचा, मल- मूत्र , खून ,पीव और काम वासना का पिंड न समझें । जब संतों के निकट बैठेंगे तो पता चलेगा की सारा ब्रह्माण्ड .,मैं (आत्मा ) और परमात्मा इसी शरीर में है । दुसरे शब्दों में मेरा यह शरीर आत्मा का घर ,मोक्ष का द्वार और साधना का मंदिर है ।यही आध्यात्म की पहली शिक्षा है ।जब यह शरीर आत्मा का घर है और शरीर अलग वस्तु है तो सम्पूर्ण जीव स्वत:पूज्यनीय हो जाता है और हृदय से फूट पड़ता है सर्वे भवन्तु सुखिन:और वसुधैव कुटुम्बकम । आदरणीय संत समाज जिसने आत्मा को शरीर से अलग सत्ता समझा है और शरीर को आत्मा का घर समझता है वह व्यक्ति आत्मा का रूप (soul concus ) होकर जीता है ।यही आध्यात्म है । अपने को जानना पहचानना समझना और उसके अनुसार चलना बस इतना कर लें तो जीवन का कल्याण का मार्ग शुरू हो गया ।
आत्मा, परमात्मा तो हमारे भीतर है अब प्रश्न यह उठता है वह कहाँ है और कैसे प्राप्त होगा यह एक अहम् सवाल है ।इन प्रश्नों का सही उत्तर किसी दुसरे के पास नहीं बल्कि स्वयं के पास है । जब आप को आत्मा को जानने की ललक जागेगी तो प्रभु उसके लिए रास्ता निकाल देते हैं ।इसके लिए सर्वप्रथम एक सद्गुरु को खोजकर उससे दीक्षा ग्रहण करनी होगी । शिष्य बनने पर पूज्य गुरुदेव आतंरिक साधना बताते हैं ।आते हैं शरीर के भीतर के रहस्यों को जाने ---
हमारे शारीर में मूलाधार चक्र ,आज्ञा चक्र और सह्श्रार (अनाम पद) तीन बड़े प्लेटफार्म हैं सभी साधना का मूल उद्देश्य अनाम पद तक पहुचना है । साधना मूलाधार से शुरू होता है । यह पृथ्वी से जुड़ा चक्र है।यह स्थान शरीर में गुदा (Anus) और लिंग (Penish ) के मध्य का स्थान है । साधना का प्रारम्भ इसी स्थान से करना चाहिए । मूलाधार चक्र को जागृत करने के लिए सिद्धासन में बैठना चाहिए और प्राणायाम करते हुए गुरु प्रदत्त विधि से ध्यान करना चाहिए ।ये सभी कुछ योग्य गुरु के देख रेख में करना चाहिए । मूलाधार में मुख्य तीन नाडिया इंगला ,पिंगला और सुष्मना प्रारम्भ हुई है । यह त्रिकुटी (आज्ञा चक्र ) पर जाकर समाप्त हो जाती है ।इस स्थान को स्वामी जी ने अष्ट नदियों का संगम कहा है । [ दो नाक के छिद्र "( इंगला ,पिंगला )" दो आखें , दो काने , एक मुख और सुष्मना ] इसके आगे इंगला ,पिंगला नहीं जाता है ।आगे की यात्रा सिर्फ सुष्मना में तय की जाती है । मूलाधार से आज्ञा चक्र तक छ: (6 ) चक्र हैं । 1 .मूलाधार चक 2 . स्वाधिष्ठान चक्र 3 .मणिपुर चक्र 4.अनाहत चक्र 5 .विशुद्ध चक्र 6 .आज्ञा चक्र
मूलाधार के मूल से इंगला ,पिंगला और सुष्मना तीन नाड़ियाँ ऊपर की ओर चलती हैं इसमें दो एक दुसरे को क्रोस (cross) करती हुई चलती हैं। इसमें सुष्मना सीधे आज्ञा चक्र तक चली गई है । यह छ: (6 ) स्थानों में मिलती है इसे चक्र , कमल , त्रिकुटी ( तीन का मेल ) कहते हैं । स्वामी जी कहते हैं त्रिकुटी शिखर पर आज्ञा चक्र है अर्थात सभी त्रिकुटी के शीर्ष पर या छठा त्रिकुटी ही आज्ञा चक्र है । यह छ : चक्र के रंग ,देवता ,बीज मंत्र ,आकार आदि यहाँ नहीं दिया जा रहा है । हालाँकि यह शारीर शोधन अतुलित शक्ति का एक शाधन है कम उम्र में दीक्षा लेकर ब्रह्मचर्य पालन करते हुए करना चाहिए । इससे होने वाले असंख्य लाभ का फिर कभी जिक्र करूँगा ।
संतों की साधना मुख्य रूप से आज्ञा चक्र से शुरू होती है और ऊपर की ओर बढती है । जो आत्मा की खोज करना चाहते हैं उसे आज्ञा चक्र से ऊपर निकलना होगा । थोडा स्पष्ट कर दूँ जब तक आप आतंरिक अवगुणों को नहीं मिटायेंगे तब तक आज्ञा चक्र की साधना में प्रगति नहीं होगी । जो नए दीक्षित हैं उसे यम नियम और आसन का का शाख्ति के साथ पालन करने पर ही साधना लाभ होगा । साधाना का अर्थ ही होता है अपने (2 ) आँखे (2 ) कानें , (2 ) नाक के छिद्र (1 ) जिह्वा (1 ) त्वचा (स्पर्श ) और (1 ) लिंग ( वासना ) ये नौ (9 ) के विकारों का मालिक मन अपने नीज स्वरुप को पहचानने नहीं देता है । हम मानव इसी नौ के चक्र के चक्रव्यूह में इसप्रकार उलझे हैं उसे और कोई रास्ता सुझता ही नहीं है । आज दीक्षा लेने के बाद से ही शिष्य अपने को ज्ञानी समझने लगता है । जब तक यम नियम आसन और प्राणायाम सिद्ध नहीं होगा तब तक ये नौ इन्द्रिय विकार और मन अपने पकड़ में नहीं आएगा । अपने शारीर के विकार तो मिटते नहीं हैं फिर अनेक देवी ,देवता , तीर्थ , ब्रत, पूजा , पचासो आडम्बर ढोते रहतें हैं । प्यारे भैया कब तक हम अपने को ठगेंगे जीवन का समय निकल रहा है अपना जीवन सुधारना आपके हाथ में है । दीक्षा लेने के बाद गुरु प्रदत्त ज्ञान के अनुसार चलना चाहिए और गुरु के संपर्क में रहना चाहिए क्योकि कार्य करने पर दिक्कते आएँगी और गुरुदेव या ज्ञानी गुरुजन ही इसका समाधान दे सकतें है ।
गुप्त विद्या को कितना खोला जाय जो किशोर अवस्था में गुरु धारण करतें हैं वे सारी विद्या को ग्रहण करें ( मूलाधार चक्र में कुण्डलनी शक्ति जागृत कर चक्रों का भेदन करते हुए अनाम पद तक की यात्रा ) अन्यथा संत साधना आज्ञा चक्र से ऊपर गगन गुफा में ताकें । इस आत्म कल्याण वाले ज्ञान को प्राप्त करने वाले के लिए गुरु पर आश्रित और पूर्ण समर्पित होकर आज्ञा चक्र पर या त्रिकुटी शिखर पर जम जाएँ । आगे की यात्रा सिर्फ सुष्मना में तय करना है । गुरु से सुष्मना में प्रवेश करने का ज्ञान लेकर विशाल ब्रहमांड में कूद पड़े । और फिर धीरे धीरे गुरु कृपा से अनजान राह पर चलकर अनाम पद तक की यात्रा तय करें । पुन: मैं याद दिलाऊँ इन क्रियाओं के लिए किसी आडम्बर की आवश्यकता नहीं है । स्वामी जी के अनुयायी को स्वामी जी के बताए मार्ग पर चलना चाहिए बाकी न कि आडम्बर करना चाहिए । अँधा गुरु बहरा चेला ,नरक में भी ठेलम ठेला ।
संतों ने आज्ञा चक्र से ऊपर के बारे में कुछ निम्न प्रकार दर्शाए --
जिसे अपनी अथवा आत्मा की खोज करनी है उसे अपनी दैनिक क्रिया कलाप जो संयमित करना चाहिए । सीधी सी बात है जिसे संत साधना करनी है वे किसी आडम्बर को छोड़े सद्गुरु से दीक्षा लेकर काम में लग जाएँ । समय कम है भैया और समय की रफ़्तार भी तेज है अब कब । चोर चोरी करेगा, पुजारी पूजा करेगा, और साधक आत्म कल्याण के मार्ग पर निकाल पड़ेगा । जागो भैया जागो और सही मार्ग पकड़ो । कहा है ----
यहो समैया जैतो मंगनी सुनगे सजनी ,यहो समैया जैतो मंगनी ;
मानव शारीर धारण कर हम यदि अपना कल्याण नहीं कर सकते हैं तो झूठ -मूठ का दुसरे को गद्दी पूजा ,यह पूजा ,वह पूजा समझाकर न जाने किसका क्या कल्याण कर रहें हैं सत्संग भजन के नाम पर भी जो अभी लूट मच रही है सत्य मार्ग से लोग बहुत दूर निकल चुके है। शिवनारायणी मत पंथ का सिद्धांत सीधा है अपने को पहचानो ।
अब यह जानने का प्रयास करते हैं साधना कहाँ से और कैसे शुरू करें ।
आदि गुरु संतपति शिवनारायण जी महाराज साधकों के लिए उपदेश देते हैं कि -----
प्रात: उठि के ब्रह्म जगावे ,
पाँच तत्व के मार्ग पावे ।
उठत बैठत सुरति सँवारे,
सत -सुकृत दोनों लव लावे ।
आपु तरे अवर को तारे ,
मात पिता के पार उतारे ।
अर्थ ---प्रात: समय में उठकर ब्रह्म चिंतन करें । उसी समय पाँचों तत्व ( पृथ्वी -पीला ,जल - नीला , अग्नि --लाल , वायु --हरा , आकाश -- चित्र -विचित्र ) की पहचान होती है । उठते - बैठते (हर समय ) सुरति अर्थात ध्यान चिंतन करना चाहिए । सत (ब्रह्म ) सुकृत (जीव ) दोनों को लव (एकात्मक ,एक साथ ) मिलावे अर्थात जीव को ब्रह्म में मिलावे । ऐसा करके खुद को तारे और माता- पिता को भी भवसागर से पार उतारें ।
उलट मन पवन को गमन कर गगन में,
सुनो गुरुदेव अनहद बानी ।
काम को छेमा दो क्रोध को मारी ले,
सतगुरु गहो उर अन्तर आनी ।
ब्रह्म पर चारी ले जीव ठहराई ले,
नाहीं सरवर अमर जान |
जवन जेहि जानता तवन तेहि मानता ,
शिवनारायण गुरु एक मानी ।
भावार्थ हे मन । पवन (स्वांस ) को उलट कर गगन में अर्थात ब्रह्मांड में प्रवेश कर और गुरुदेव (सत्पुरुष ) की अनहद ध्वनि सुन काम (इच्छाओं )को छोड़ दें और क्रोध को मार दें अर्थात क्रोध पर नियन्त्रण प्राप्त कर लें तथा ह्रदय के भीतर सद्गुरु को गहें अर्थात हमेशा सद्गुरु पर ध्यान रखें | गगन महल में जीव को ठहरा कर (गगन महल में रूककर ) ब्रह्म (सत्पुरुष )को पहचान लें | इस संसार में कोई अमर होकर नहीं आया है | जो जिसको जानता है वह उसी को मानता है ( साधना में जिसकी जहाँ तक पहुँच है वह वहीँ तक को श्रेष्ठ कहता है ) शिवनारायण स्वामी कहते हैं कि एक गुरु (उसके द्वारा बताये गए साधना विधि और ज्ञान ) को ही मान |
सत्य पुरुष करतार को, खोजहु धरि विश्वास ।
शिवनारायण जानहु , आत्म रूप प्रकाश ।।
भावार्थ -स्वामी जी कहते हैं सत्य पुरुष करतार हैं उसे पूर्ण विश्वास के साथ खोजो और उसे आत्म ज्योति के रूप में अपने में जानो ।
झिल -मिल तारा अगम गंभीरा ।
एक ज्योति से बरे शरीरा ।।
इतना शिष्य जाने , गुरु जब देत लखाय ।
मुक्ति संसय न ताहि को ,जो गहे दृढ़ चित लाय ।।
भावार्थ - झिल - मिल (टिमटिमाते ) तारे की भांति एक अगम गंभीर ( अवर्णनीय ) ज्योति से शरीर (आतंरिक जगत ) प्रकाशित हो रहा है । अर्थात एक आत्मिक प्रकाश से हमारा यह शरीर अपना कार्य कर रहा है उसके निकलते ही यह शरीर निष्क्रिय हो जाता है |जब गुरु घट (शरीर ) के भीतर उस दिव्य -ज्योति को लखा देते हैं और शिष्य उसे जान लेता है और चित्त लगाकर गहता है (कार्य रूप में बदलता है ) तब उसे मुक्ति होती है -- इसमें कोई संदेह नहीं है
पूज्य गुरुदेव कहते हैं मानव शरीर साधन धाम और मोक्ष का द्वार है इसे सही दिशा में लगायें | इस अनमोल जीवन को आत्म कल्याण के काम में लगायें | किसी सद्गुरु से दीक्षा लेकर अपने नीज नाम को और नीज स्वरुप को जाने | इसके लिए गुरु द्वारा बताये गए ध्यान ही प्रमुख चीज है | अब ध्यान तक पहुँचने के लिए हमें क्या करना चाहिए | सोचें ?
साधना स्थल और आसन
आप जानते हैं ध्यान करने के लिए एक स्थल चाहिए | अन्यथा एक चटाई ले लिए और जहाँ जगह मिली ध्यान में बैठ गए ऐसा नहीं करनी चाहिए इससे लाभ नहीं होगा | साधना या ध्यान स्थल एक निश्चित स्थान होना चाहिए | साधना स्थल पशु ,पक्षी ,कीड़े , किसी अन्य जीव जंतु के साथ मनुष्य का भी आगमन कम हो | ध्यान करते समय मनुष्य का भी आना-- जाना लगा न रहें ,बिलकुल एकांत ,शांत हो | परिवार में हैं तो पारिवारिक व्यवस्था को ठीक रखनी चाहिए और पारिवारिक सदस्यों को ध्यान करते समय कोलाहल नहीं करने का हिदायत रहनी चाहिए | साधना स्थल की भूमि समतल ,दुर्गन्ध रहित, न अति शीतल और न अति उष्ण हो | बैठने के लिए कम्बल जैसा मोटा (ज्यादा मोटा नहीं ) आसन हो जो सुविधाजनक हो |
आसनों की संख्या सामान्यत: 84 है उनमे पूज्य गुरुदेव साधना के लिए सिद्धासन को श्रेष्ठ मानते हैं | बांये पैर की एड़ी से योनी स्थान (Anusऔर Penis के बीच का स्थान ) को दबाकर और दाहिने पैर की एड़ी से मुलेन्द्रिय (Penis के ऊपर ) को दबाकर बैठने को सिद्धासन कहते हैं |आसन में हमेशा उत्तर या पूरब की ओर मुंह कर बैठना चाहिए | आसन में सीधा बैठना चाहिए अर्थात रीढ़ की हड्डी सीधी होनी चाहिए | छाती और गर्दन सीधी होनी चाहिए | आसन में बैठने के बाद अगल - बगल और अपने को जाँच लें की सब ठीक है तब आगे ध्यान में बढें |
ध्यान की क्रिया
पूज्य गुरुदेव कहतें हैं आसन ठीक होने के बाद नेत्र को नासिकाग्र पर केंद्रीभूत (एकाग्र ) करें इसके बाद नेत्र को सावधानी से धीरे -धीरे उलट कर त्रिकुटी में स्थिर करें | ऐसा जल्दी बाजी में न करें अन्यथा लाभ के स्थान पर हानि भी हो सकती है -आँखों में दर्द और आँखें लाल हो सकती है |आँख को त्रिकुटी में एकाग्र करना एक बड़ी उपलब्धि है इस क्रिया को ठीक से नहीं करने पर या अज्ञानतावस ठीक से नहीं होने पर भीतर का कोई दृश्य दिखाई नहीं पड़ेगा |
जब नेत्र त्रिकुटी में अच्छी तरह स्थिर हो जय तब गुरु के बतलाये हुए नियमानुसार क्षर ,अक्षर , परा ,पश्यन्ति ओम ,ओहं सोहं से परे नाम चिंतन करना चाहिए | इस क्रिया को 10 मिनट से शुरू कर अभ्यास द्वारा कम से कम एक घंटे तक चिंतन में बैठना चाहिए | फिर चिंतन अर्थात ध्यान का समय बढ़ाना चाहिए | साधना के प्रारम्भ में घुप्प अन्धकार रहता है फिर बादल और फिर बादल फटता हुआ दिखाई देता है आगे अपने अपने गुरुदेव से जाने |
सबसे आवश्यक बात है बाहरी आडम्बर को छोड़कर अपने को जाने का अर्थात आत्मा को जाने | इसके लिए जो सही मार्ग है उसे तय करें तथा अपने जीवन का कल्याण करें | अब आते हैं इनके मुख्य शिष्यों के विषय में भी थोड़ा जाने |
शिष्य गण
ऐसे तो वर्तमान में इनके अनेकों शिष्य हैं किन्तु प्रचार प्रसार में मुख्य भूमिका निभाने वाले का नाम कुछ इस प्रकार हैं | बाबा बाकें लाल , बाबा चमरू मंडल ,बाबा अम्बिका प्रसाद ,बाबा लखन लाल (कटिहार जिला अध्यक्ष ), बाबा सुनील मिस्त्री ,बाबा मंगल दास (पूर्णिया जिला अध्यक्ष ) ,बाबा बालेश्वर (किशनगंज जिला अधक्ष ) |सुनील बाबा एक अच्छे गायक और प्रवचनकर्ता हैं | ये अपने भजन के माध्यम से प्रचार प्रसार कर रहें हैं इनके भजन मंत्रमुग्ध कर देते हैं | बाबा अम्बिका प्रसाद एक अच्छे वक्ता हैं धर्म शास्त्रों के ज्ञान को बड़े सुन्दर वचनों से सुनातें हैं | चमरू बाबा एक बृद्ध संत हैं और अपनी साधना को नियमित और लगन से लम्बे समय कर रहे हैं | ये अपनी संतुलित वाणी से अनुभव कथा तथा गुरु गाथा सुनाते हैं | बाकें बाबा भी एक अच्छे वक्ता हैं | बालेश्वर बाबा भजन और प्रवचन के द्वारा ज्ञान को बाँटा करते हैं | ब्रह्मलीन मंगल बाबा अपना समय प्रचार प्रसार में ही खपा दिए | देश के अनेक स्थानों तक गुरुदेव के ज्ञान को पहुचाने का बृहत् कार्य कर गए हैं | इनका कार्य अति सराहनीय है | ऐसे विभूति को मेरा नमन है |
ब्रह्मलीन लखन लाल बाबा एक शिक्षित उच्च विचारक ,संयमित ,अनुशासन प्रिय ,और एक अच्छे वक्ता थे | इसने गुरु प्रेरणा से मतपंथ को एक दिशा प्रदान किये | कटिहार जिला अध्यक्ष होने के कारण अनेको जिला सम्मलेन कराए | गुरु अन्यास ज्ञान दीपक का सरल और सटीक टीका कर मतपंथ को एक सत्य दर्शन दिए | इसके अतिरिक्त संत विलास और पाती परवाना का भी टीका किये | सबसे हट कर इस मतपंथ को नियम और सिद्धांत देकर गए जिससे मतपंथ को एकरूपता प्रदान करने में सहायक है और होगा | इनके कार्य अति नमन के योग्य हैं | मतपंथ को इनकी कमी हमेशा रहेगी |
नए टीम में अर्थात नए साधकों में प्रचारक के रूप में रामरूप विश्वास (गायक ) ,गंगा बाबू (वायसी), अरबिंद कुमार , भागवत शर्मा ,आदि हैं |
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