29 अक्टूबर 1969 यह वो दिन था जिस दिन दुनिया बदल गयी रात के करीब 10.30 बजे ULCA के प्रोग्रामर चार्ली क्लीन ने 350 किलोमीटर दूर मेंलो पार्क, कैलिफ़ोर्निया में दो शब्द “I” और ” O” इलेक्ट्रॉनिकली भेजे जिसके बाद सारा सिस्टम बंद हो गया मगर इंटरनेट की इज़ात हो गयी।
यह वो दिन था जब वैज्ञानिक इस बात को जान पाये की इंटरनेट क्या है मगर उस समय इसे अरपानेट कहा जाता था। जैसा की अमूमन होता है यह अविष्कार सन्युक्त राज्य अमेरिका की सेना द्वारा संचालित था। इसी के मद्देनज़र सबसे पहले इसका नाम अरपानेट, अरपानेट – Advanced Research Projects Agency Network रखा गया।
शीत युद्ध के दौरान सुरक्षा एजेंसियों को यह खतरा था की कहीं परमाणु हमला न हो जाये इसलिए वह एक ऐसा नेटवर्क चाहते थे जिसके द्वारा सारे कम्प्यूटर्स को जोड़ा जा सके। उस समय इस आविष्कार को अंजाम देना कोई चमत्कार से कम नहीं था। उस समय कंप्यूटर बहुत कम थे और ऐसा कोई माध्यम नहीं था जिसके द्वारा एक ही जगह से सारे कम्प्यूटरों को इस्तेमाल में लाया जा सके।
मात्र 45 वर्षों में इंटरनेट ने विश्व को बदल के रख दिया और जो लोग 1980 के बाद पैदा हुए उनके लिए इंटरनेट के बिना जीवन की कल्पना करना कठिन है। इंटरनेट के आविष्कार में बदलाव बदस्तूर जारी है।
चलिए इंटरनेट में हुए बदलावों को वर्षों के क्रम अनुसार विश्लेषित करते हैं।
1969 अरपानेट की खोज – इस समय अवधि में इंटरनेट की खोज तो हो गयी थी मगर इसको आप एक शुरुआत मात्र मान सकते हैं। इंटरनेट के असल उपयोग को समझना अभी बाकि था मगर यह बात तो तय थी की कुछ ऐसा खोज लिया गया था जिसका भविष्य के निर्माण में अहम योगदान था।
1972 पहला ईमेल बनाया गया – रे टॉमलिंसन ने पहला ईमेल बनाया वो उस समय बोल्ट नमक संस्था में कार्यरत थे। उनका कहना है की वह उस संस्थान से प्रेरित थे जो उनके फ़ोन का जवाब नहीं देते थे। यही वो व्यक्ति थे जिन्होने @ का इस्तेमाल अपने नाम के बाद इस्तेमाल किया जो सन्देश भेजने वाला इस्तेमाल करता था।
1974 ARPANET को व्यावसायिक किया गया – टेलनेट पहली ऐसी कंपनी बनी जिसने ARPANET का व्यवसायिक इस्तेमाल शुरू किया और बाद में इसे इंटरनेट नाम दिया गया और अन्य लोगों की भी इसमें भागीदारी बढ़ी।
1983 वेबसाइट एड्रेस का सामान्यीकरण – यह वो समय था जब इंटरनेट पर वेबसाइट का ज़माना आ गया था और Domain Name System (DNS) का इस्तेमाल शुरू हो गया था जिसमे .edu, .gov, .com, .mil, .org, .net, और . लगाना अनिवार्य हो गया था नहीं तो उससे पहले वेबसाइट नंबर्स पर कुछ इस तरह चलती थी “123.456.789.10”
1989 में Commercial dial-up को इस्तेमाल में लिया जाने लगा और इसमें विश्व को एक वेबसाइट बना दिया गया जो की आज हास्यप्रद लगता है।
1998 में गूगल के आने के बाद इंटरनेट का चेहरा ही बदल गया जिससे हम सब वाकिफ हैं।
तो यह थी इंटरनेट के जन्म की कहानी, उम्मीद करते हैं यह लेख आपके लिए उपयोगी सिद्ध होगा।
इंटरनेट अगर यह छोटे से शब्द में छिपी यह तकनीक नहीं होती तो शायद आज का भविष्य कुछ और ही होता, यह इंटरनेट ही है जिसनें हमें अापस में जोडा है, कंप्यूटर और स्मार्ट फोन को जीवित होने का अहसास कराया है, जरा सोचकर देखिये बिना इंटरनेट के गूगल, फेसबुक और हॉ व्हाट्सएप का क्या होता ? शायद यह अस्तित्व में ही नहीं होते, तो क्या जानना नहीं चाहेंगे कि आखिर क्या है ये इंटरनेट -
इंटरनेट आज के समय में देश दुनिया की ताकत बन चूका है ! आज सरकारी से लेकर बड़े बड़े उद्योगों तक सभी ख़ुफ़िया दस्तावेज आज इंटरनेट के अधीन हो गए हैं ! आज हथियारों के साथ साथ इंटरनेट भी हमलों का बड़ा स्त्रोत बन चूका है ! इस लिहाज से अगर इंटरनेट किसी व्यक्ति या देश मात्र के अधिकार में होता तो सोचिये उसका पूरी दुनिया पर कब्ज़ा होता और वो कितना धनवान हो जाता ! लेकिन हकीकत में ऐसा नहीं है, इंटरनेट किसी भी के भी अधीन नहीं है और कोई भी इंटरनेट पर अपना मालिकाना हक़ नहीं रखता !
आज इंटरनेट में नित नए इनोवेशनों हो रहे हैं जिनमे सरकारी से लेकर कई निजी क्षेत्रों और इंजीनियर्स का हाथ है ! लेकिन जब भी इंटरनेट पर नियंत्रण पाने की चर्चा होती है तो वो काफी चिंताजनक बात होती है ! इंटरनेट पर लगातार चर्चाएं और बहस छिड़ी रहती है की इंटरनेट को नियंत्रण में लिया जाये या नहीं ! हालाँकि एक नजर से देखा जाये तो ये कहना गलत नहीं होगा की इंटरनेट पर कुछ हद तक अमेरिका का कब्ज़ा है क्योंकि इंटरनेट डोमेन यानी वेबसाइट एड्रेस जारी करने वाली संस्था, ICANN (इंटरनेट कॉरपोरेशन फॉर असाइंड नेम्स एंड नंबर्स) जैसी इंटरनेट की मूलभूत कंपनियां अमरीका में ही स्थित हैं और इसी कारण इंटरनेट पर अमेरिका का दबदबा है !
इंटरनेट पर किसी का एकछत्र राज ना हो इससे बचने के लिए इसे संयुक्त राष्ट्र के अंतर्गत किसी लोकतांत्रिक व्यवस्था में लाने के कयास जारी हैं ! हालाँकि आज कल बढ़ते साइबर क्राइम और साइबर सुरक्षा के मद्देनजर कुछ देशों का मानना की इंटरनेट को सरकार के अधीन कर देना चाहिए ताकि इसका दुरुपयोग ना हो !
दुनिया भर में करीब 3.7 बिलियन इंटरनेट यूजर्स हैं यानी पूरी दुनिया की करीब आधी जनसँख्या इंटरनेट का इस्तेमाल करती है और अलग अलग जगह के इतने यूजर्स को इंटरनेट प्रदान करने के लिए इंटरनेट एर्ड़ेसिंग सिस्टम का इस्तेमाल होता है जिन्हे सर्विस प्रोवाइडर का नाम दिया गया है !
पूरी दुनिया में इंटरनेट उपलब्ध कराने के लिए सर्विस प्रोवाइडर तीन भागों में काम करते हैं जिन्हें 3 टीयर कहा जाता है ! इन 3 टीयर में पहले स्तर पर समुद्र के नीचे केबल डालकर सर्विस प्रोवाइडर्स को दुनिया से जोड़ने वाली कंपनियां आती हैं जबकि दूसरे स्तर उन कंपनियों का योगदान होता है जो सर्विस प्रोवाइडर्स को राष्ट्रीय स्तर पर जोड़ती हैं ! इसके अलावा तीसरे स्तर पर स्थानीय प्रोवाइडर्स अपनी सहभागिता निभाते हैं जो जो बड़े प्रोवाइडर्स से जुड़ कर आम जनता तक इंटरनेट सर्विस पहुंचाते हैं !
यानी इंटरनेट किसी एक संस्था या सरकार के अधीन नहीं है दूसरे शब्दों में कहें तो इंटरनेट का असल में कोई मालिक नहीं है !