Indore Talk recently interviewed me on IIST's COVID readiness plan
दो राहें ज़िंदगी की
एक राह भागते रहने की
ज़िंदगी की दौड़ में
अनवरत, निरंतर
विश्रामहीन, दिशाहीन
और मैं व्यथित सा
विचारों से घिरा
इच्छाओं व आशंकाओं
का लबादा ओढ़े हुए
भागता जा रहा हूँ
भागता जा रहा हूँ
दूसरी राह है
ठहर कर सोचने की
घूमा हूँ उस पर भी
देखा है ठहर कर, सोच कर
मंथन कर
लौट आया जल्दी
डर कर, सहम कर
उन प्रश्नों से
जो जनित होते हैं
ठहर कर सोचने से
प्रश्न ये दर्शन के
या कभी अध्यात्म के ?
कभी कर्म सिद़ान्त के ?
या आत्मा के अस्तित्व के
कभी अपनी पहचान के ?
कभी नियन्ता की पहचान के
कभी शास्वत मूल्यों के
या कभी जिंदगी के सार के
मिलते हैं कुछ भ्रमित
से इनके उत्तर
यदा-कदा, इधर-उधर
कुछ धर्म ग्रंथो में
लिखा था जिन्हें कभी
विभिन्न धर्म गुरुओं ने
क्या वह सत्य का प्रतिपादन था ?
या प्रकृति के रहस्यों का उद्घाटन था ?
या किसी सामाजिक उद्देश्य की थी पूर्ति
या कभी-कभी निहित स्वार्थो की थी संस्तुति
नहीं पा सका अब तक उत्तर
और फिर निराश, निरुपाय
दौड़ने लगता हूँ
उसी पहली राह पर
पर एक विचार सा लिए
कि शायद कभी बिजली कौंधेगी
जब एक बार फिर थक कर
लौटूँगा दूसरी राह पर
देखूंगा पुनः ठहर कर,
चिंतन कर, मंथन कर
तब शायद सत्य होगा अनावृत
उस अज्ञात का
मिलेंगे उत्तर
उन चिर प्रतीक्षित प्रश्नों के
तब संभव है प्राप्ति
उस परम आनंद की,
अपूर्व शांति की
जिसका नाम हो शायद
मोक्ष, निर्वाण या कैवल्य ।
अरुण एस. भटनागर,