Indore Talk recently interviewed me on IIST's COVID readiness plan
मीलों तक फैली कतारें
चिलचिलाती धूप में
गर्म हवाओं के
थपेड़ों को सहती हुई
ये भीड़
या कड़कड़ाती ठंड
में कंबल में
लिपटे हुये कांपते
लोगो की मीलों
तक फैली पंक्तियां
उसकी चाहत में
उसको बस देखने
भर के लिए
प्यासी सूनी सी आँखे
उसे बस छूने भर
को लालसा लिये
सामीप्य की आकांक्षा लिये
उमड़ा यह जन'सैलाब
एक दूसरे को धकेलते हुये
रोंदते हुये लोग
बस चले जा रहे है
चले जा रहे है
उस गंतव्य की ओर
जहां उनका अपना
इष्ट है , पूज्य है
क्योंकर ये इच्छा है ?
क्या इसका मनोविज्ञान है
क्या इसके मूल में
सदियों से चली आ रही
मान्यताओं से उपजे संस्कार है ?
या भविष्य की अनिश्चितता
के भय से जन्में विचार हैं ?
या अपनी अनन्त
इच्छाओं की सिद्धि में
किये गये प्रयास हैं ?
या उस अज्ञात
के प्रति ज्ञात के
दुलार है ?
क्या आधार है
इन
वर्षो से पोषित
प्रथाओं का
संचित हो रही
परम्पराओं का
जिसके आगे
सारी वैज्ञानिक अवधारणायें
बौनी बन जाती है
नतमस्तक हो जाती है
समष्टि रूप में ये
प्रश्न अनुतरित हैं
शायद हर व्यक्ति की
अपनी सोच से जुड़े है
गुथे है ?
बहुत व्यक्तिगत से हैं !
हरेक के अपने
तर्क है , व्याख्यायें है
प्रमाण है
जिसकी कसौटी पर
उनका यह प्रयाण,
यह प्रयास
उचित है
पवित्र है
उनकी मान्यतायें
परम्परायें, प्रथायें
उनका अपना
व्यक्तिगत निर्णय है
कर्म है धर्म है
पर इतना तो
सबको संज्ञान लेना
चाहिये
कि उसको
देखपाने या
छूने पाने का
सफल प्रयास
हमें मदोन्मत न
कर दें
मिथ्या अभिमान से
ने भर दें
कि वो लोग हमें
हीन लगने लगें
तुच्छ लगने लगें
जो इन कतारों के
या इन प्रश्नों के
उत्तर कहीं ओर खोज रहे है !
उस परमसत्य की
प्रतीति ही सबका
लक्ष्य होना चाहिये
रास्तें हो अलग बेशक
तो कोई बात नही
उस अनंतता का
विराटता का
स्वयं में
व
अन्य में आभास
होना चाहिये …!!