Indore Talk recently interviewed me on IIST's COVID readiness plan
जीवन का कटु सत्य,
जिसका अहसास
वादियों में
दूर कहीं
छाईं हुई
धून्ध की मानिंद,
कभी हुआ सा तो है
तप्त हवा के झोंके सा
किन्ही क्षणों में
उसने कभी छुआ सा तो है
पर जीवन की आपाधापी में
बेपनाह चाहतों को पाने की
निरंतर दौड़ में
गहरे नहीं उतर पाये
देख नही पाये
देख नही पाये उसके नग्न रूप को
सुन नहीं पाये
उसकी चीत्कार को
जो यहीं कह रही
पूरे स्वर से, सदा से
कि कुछ अपवादों को
छोड़कर, जो
विशुद्ध स्नेह की
या गहरी संवेदनशीलता की
डोर से बंधे है, गुंथे है
अस्तित्व हमारा अर्थ पूर्ण है
तभी तक
सिद्द करते रहते
हम जब तक
उपयोगिता को अपनी
सार्थकता को अपनी
जीवन के रंगमंच पर
विभिन्न भूमिकाओं में,
बदलते परिदृश्यों में,
यही तथाकथित
उपयोगिता या सार्थकता
प्रगाणता देती है
सभी सम्बन्धो को,
दुलारती रहती है,
मृद भावनाओं को
अपनेपन का अहसास भी कराती है
समीपता का बोध भी कराती है
पर ऐसा क्यूँ होता है
की इसके तिरोहित होते ही
जाने पहचाने से से चेहरे
अनजाने से क्यों बन जाते है
बेगाने से क्यों हो जाते है
क्यूँ छोड़ देते है हम
उस अनुपयोगी अस्तित्व को
अकेलेपन का संत्रास झेलने को
अतीत की यादों के
बर्फीले तूफ़ान में
ठि
जीवन का कटु सत्य,
जिसका अहसास
वादियों में
दूर कहीं
छाईं हुई
धून्ध की मानिंद,
कभी हुआ सा तो है
तप्त हवा के झोंके सा
किन्ही क्षणों में
उसने कभी छुआ सा तो है
पर जीवन की आपाधापी में
बेपनाह चाहतों को पाने की
निरंतर दौड़ में
गहरे नहीं उतर पाये
देख नही पाये
देख नही पाये उसके नग्न रूप को
सुन नहीं पाये
उसकी चीत्कार को
जो यहीं कह रही
पूरे स्वर से, सदा से
कि कुछ अपवादों को
छोड़कर, जो
विशुद्ध स्नेह की
या गहरी संवेदनशीलता की
डोर से बंधे है, गुंथे है
अस्तित्व हमारा अर्थ पूर्ण है
तभी तक
सिद्द करते रहते
हम जब तक
उपयोगिता को अपनी
सार्थकता को अपनी
जीवन के रंगमंच पर
विभिन्न भूमिकाओं में,
बदलते परिदृश्यों में,
यही तथाकथित
उपयोगिता या सार्थकता
प्रगाणता देती है
सभी सम्बन्धो को,
दुलारती रहती है,
मृद भावनाओं को
अपनेपन का अहसास भी कराती है
समीपता का बोध भी कराती है
पर ऐसा क्यूँ होता है
की इसके तिरोहित होते ही
जाने पहचाने से से चेहरे
अनजाने से क्यों बन जाते है
बेगाने से क्यों हो जाते है
क्यूँ छोड़ देते है हम
उस अनुपयोगी अस्तित्व को
अकेलेपन का संत्रास झेलने को
अतीत की यादों के
बर्फीले तूफ़ान में
ठि