Indore Talk recently interviewed me on IIST's COVID readiness plan
कई धारणायें, कई परंपरायें
मान्यताओं के विशाल जंगल
अपने अपने विश्वास
अपने अपने इतिहास
नए नए तथाकथित सत्यों
का विचित्र सा मकड़जाल
उसमे घिरा सा मैं
खोजता रहता हूँ निरंतर
व्यथित सा, चकित सा
ढूँढता रहता हूँ मैं
अपना स्वरूप
मैं,
जो हूँ नियंता इस
सृष्टि का,
जिसका न ओर है
न छोर है
फिर भी बंधा हुआ हूँ
उन सीमित रूपों से
जो रचे समय समय पर
मानव ने अपनी सीमित सोचों से
विभिन्न दर्शनों से
अपनी अपनी व्याख्याओं से
अपने अपने धर्मों से
क्या कभी हो पाऊँगा मैं मुक्त
इन बंधनो से
इन संकीर्ण सी दी गई
परिभाषाओं से
जो मेरी रची कृतियों
में कराती रहती हैं निरंतर संघर्ष
नहीं हो सका है इसी से
अब तक मानवता का उत्कर्ष
नहीं कोई समझ सका अभी तक
मेरे सहज स्वरूप को
जो है अगाध प्रेम से भरा
निश्छल और निस्वार्थ
असीमित अनिर्वचनीय
अवाङ् मानसगोचर:
बुद्धे परतस्तु स: