Indore Talk recently interviewed me on IIST's COVID readiness plan
सवाल बस यही है,
कि जियें कैसे ?
अंतर्द्व्न्दों के झंझावातों
को सहे कैसे ?
विकल्पों की विविधता
में चुने कैसे ?
बस यूं ही खुश
रहे कैसे ?
अनवरत चले है
अबतक
कभी ठहरे भी
कभी थके भी
और फिर उठकर
चले भी
कभी जानी हुई सी,
कभी अनजानी
डगरों पर
जो कभी बहुत
सपाट थी,
कभी उबड़ खाबड़
मिलती थी
पर कभी कभी
रपटीली बन जाती थी
शायद अपनी ही
तृष्णा को फुहारों से
लोभ की बोंछारों से
और फिर मीलों चलकर
वहीँ पहुंच जाते
जहां से शुरू की थी
यात्रा
अपनी जीवन यात्रा
बस इन्हीं घुमावदार
पगडंडियों को
हम, महसूस किये जाते है
रंग बदलते आयामों का
अहसास किये जाते है
यात्रा के इन्हीं किन्ही पड़ावों
पर
चाह की थी, पद की
प्रतिष्ठा की
गरिमा की
मान की, सम्मान की
एक वैभवशाली
समृद्धिशाली दुनिया की
बस यही चाह थी
कि कुछ ऐसा हो जाये
कि भविष्य के इतिहास में
स्वर्णक्षारो में बस
मेरा ही नाम लिख जाये
पर सवाल बस यही है
कि इन तथाकथित उपलब्धियों के बाद भी
आपदा का हल्का सा
अनचाहा सा झोंका
क्योँ व्यथित कर देता
हमकों
क्यों अशांत कर देता
मन को
क्यों नही बन पा रहे
निर्भय व निश्चल
आत्मविश्वासी, अविकल
क्यू अब भी लगती है
खाली खाली सी जिन्दगी
किसकी चाह में अब
भी बेताब जिन्दगी
क्यों है अबतक अतृप्त,
मन का कोई कोना
क्यों नहीं बिछ सका
संतृष्टि का बिछोना
क्यों नही मिल पा रही
गहन, सघन सी
मखमली शान्ति
जहां पूर्णता का आभास हो जाये
अतृप्त इच्छाओं पर
विराम हो जाये
और खोज पाये उन
बैचेन से सवालों
के जवाब
कि जिये कैसे ?
बस यूंही खुश रहे कैसे ?
इन्हीं सवालों के
विप्लव में
अन्ततः थककर
जबरन देखा
बहुत गहरे उतरकर
तब एक नया आयाम मिला
जीने का एक
नया अंदाज मिला
लगा शायद यह भी
एक रास्ता है
चिर प्रतिक्षित
असीम शान्ति को पाने का
आनंद की चरम अनुभूति का
कि बस साक्षी
बन रह जाये
स्व की विभिन्न
भूमिकाओं के प्रति
नित नये उतार चढ़ावों के प्रति
होश पूर्वक संपादित हो जीवन क्रियायें
चैतन्यपूर्ण मन से ही जाग्रत क्रियाये
तभी प्राप्त है वह दशा
जहां न हर्ष है न विषाद है
न अतृप्त इच्छाओं का विस्तार है
बस जीवन की सहज स्वीकार्यता है
या कहें कि स्थित प्रज्ञता है !!
अतिरेकता है आनन्द की
और मालकियत है बस स्वयं की !!