Indore Talk recently interviewed me on IIST's COVID readiness plan
रात के अंधेरे हों ,
या दिन के उजाले
लोगों का हुजूम हो
या हों हम अकेले
अपनी बैचनियों का
ओढ़ी हुई बेचारगियों
का न इनसे कोई वास्ता है
न ही कोई राबता है
ये बदस्तुर ,जोंक की तरह
दिलो दिमाग से चिपटी रहती हैं
और हम इन्हीं से जनित
खालीपन को
अकेलेपन के संत्रास को ,
जिये जाते हैं
बे वजहा की कमजोरियों को
महसूस किये जाते हैं
उनका एहसास किये जाते हैं
ठहर कर सोचेंगे तो पायेगें
कि ये बैचेनियाँ
ये बेचारगी का आलम
हमारे अपने ही मन के
प्यारे और दुलारे सपने हैं
जिन्हें हमने अपने ही
ख्यालों की खुराक से
बड़े एहतियात से
ऐतराम से
पालपोस कर बड़ा किया है
और यही बिगड़े बच्चों की मानिंद
जब देखो मुहं बाये
आ खड़े हो जाते हैं
और इन्ही के
बुने हुये तिलिस्म में
उलझकर
बेवजहा फंसकर
दबावों और तनावों
के बोझ तले
हम जिये जाते हैं
अपने को,
अपने ही बनाये हुये
अंधेरे कमरों में
बन्द किये जाते हैं
क्या करें क्या न करें
कैसे इस मायाजाल से
स्वनिर्मित मकड़जाल से
अपने को मुक्त करें
आओ मन में दिया जलायें
ज्ञान की,
इल्म की ज्योति जलायें
जिसकी रोशनी से
लौ की तेज तपन से
लपट से
ये तन्तु जाल
भस्म हो सकें
तिरोहित हो सकें
और एक दूधिया उजाला
अन्दर तक पसर जाये
उसी की आभा में
हम अपने को जान पायेगें
अपने व्यास्तित्व को
आस्तित्व को पहचान पायेगें
उस रब को भी खोज पायेंगे
जो वहीं कही छुपा बैठा है
पर अनन्त इच्छाओं के
भारी भरकम पर्दों से ढका है, दबा है |