Indore Talk recently interviewed me on IIST's COVID readiness plan
क्यों होता है ऐसा
जब किसी मोड़ पर
ज़िन्दगी ठहरी सी लगती है
बेमज़ा, फीकी सी
निरर्थक सी
या कहे कुछ
अर्थहीन सी
लगता है कही कुछ है "कमी"
लेकिन किसकी है
किस अहसास की?
किसके साथ की ?
ये पता नहीं
तैरते रहते है कुछ
बेशर्म से प्रश्न
लगातार , बार -बार
लहरों की तरह उठती ,
गिरती रहती हैं
जिज्ञासायें
पौ फटने से पहले
आ खड़ी हो जाती हैं
बेचैन बच्चों सी
और हम बस
करवटें बदलते रह जाते हैं
कैसे पूरी हो यह रिक्तता
कैसे बूझे उन अनसुलझे
सवालों को
जो होकर, भी नहीं हैं ,
रोजमर्रा की ज़िन्दगी के
हिस्से नहीं हैं
लेकिन है उनका वजूद
पूरे जोश-ओ-ख़म से
बेचैन किया है इंसानियत को
हर बार, सदियों से
ये सवाल हैं ज़िन्दगी के
अपनी पहचान के
या
उसकी पहचान के
तब लगता है कोई
ऐसा मिल जाए
जिसने पिया हो
आबे ज़मज़म
और पहुँच गया हो
उस मुक़ाम पर
जहां विराम हो गया हों
उसके सारे सवाल
जो हमारे भी हैं
हो गया हो वह रूबरू
उससे
जिसकी हमें है तलाश
और जब उसके
वजूद में
हम अपना वजूद
खो देते हैं तब
बस रह जाती है
एक गहरी सी निस्तब्धता
एक विचार शून्यता
और एक अहसास
जहां हम होकर भी नहीं हैं
बस एक समर्पण है
या कहें
द्वैत में अद्वैत ही शेष है
या मृत्यु है
इस सीमितता की
और नव जीवन है
असीमितता का
विराटता का !!
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