संकल्प समारोह - 31 जनवरी 2011
उपेक्षित पड़ी है बिहार केसरी की जन्मस्थली
दानवीर श्री बाबू की पुण्यतिथि आज, श्रीबाबू की प्रतिमा लगाने का लिया गया निर्णय
पटना, सोमवार, 31जनवरी, 2011
बिहार केसरी श्री बाबू न सिर्फ अपने नेतुत्व कुश्लता के लिए प्रसिद्ध थे वरन् उनकी दानशीलता के लिए प्रसिद्ध थे वरन् उनकी दानषीलता के किस्से भी जन-जन की जुवां पर है। समाज और प्रदेश के कल्याण के लिए अपना सब कुछ न्योछावर कर देने वाले बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री श्रीकृष्ण सिंह अपनी जन्मभूमि खनवां में ही उपेक्षित हो जाएंगे, इससे बड़ी विडंबना और क्या हो सकती है।
राजकीय स्तर पर कर्पूरी ठाकुर को याद किया जाता है पर दूसरी तरफ श्रीबाबू को सम्मान देने के लिए सरकार तो क्या प्रशासन का भी कोई नुमाईदा जहमत नहीं उठाता। निराशा की स्थिति में स्थानीय लोगों ने ही अपने स्तर पर सोमवार को उनकी 50वीं पुण्यतिथि मानाने का निर्णय लिया है। स्थानीय सामाजिक कार्यकर्त्ता मसीहउदीन एवं श्रीकृष्ण फाउंडेशन के अध्यक्ष संतोष कुमार की पहल पर छोटे स्तर पर ही सही श्रीबाबू को याद करने की परंपरा निभाई जा रही है। पर प्रशसन और सरकार एकदम संज्ञा शून्य बना पड़ा है।
रोचक तथ्य यह है कि श्रीबाबू की मृत्यु के बाद उनके पास से 24,500 रूपये मिले थे । यह राषि भी उनके परिजनों से इतने अन्य लोगों के नाम कर दी गई थी । 20 हजार रूपये तो उन्होंने पार्टी फंड में ही दे डाला था, जबकि तीन हजार रूपये मुनीमी साहब की पुत्री के लिए दे दी गई थी ।
एक अन्य मित्र महेश बाबू के छोटी पुत्री उषा के शादी के लिए उन्होंने दे डाला था। जबकि शेष पांच सौ रूपये अपने विश्वास पात्र नौकर स्वर्था के नाम कर दिया था। ऐसी पुण्य आत्मा को स्मरण मात्र के जरिए सम्मान देने में भी उपकृत लोगो द्वारा कोताही बरती जा यह बहुत निराशा जनक स्थिति है। उल्लेखनीय है कि श्रीबाबू का पैतृक निवास स्थान वर्तमान शेखपूरा जिला के बरबीघा थानान्तर्गत मौर गांव में था पर उन्हें अपने ननिहाल और जन्मस्थल खनवां से गहरा लगाव था।