आसपास के पर्यटक स्थान
गया एवं बोधगया
हिंदू धर्म के अलावे बौद्ध धर्म मानने वालों का यह सबसे प्रमुख दार्शनिक स्थल है। पितृपक्ष के अवसर पर यहाँ दुनिया भर से हिंदू आकर फल्गू नदी किनारे पितरों को तर्पण करते हैं। विष्णुपद मंदिर, बोधगया में भगवान बुद्ध से जुड़ा पीपल का वृक्ष तथा महाबोधि मंदिर के अलावे तिब्बती मंदिर, थाई मंदिर, जापानी मंदिर, बर्मा का मंदिर
गया गया हिन्दुओं का महत्त्वपूर्ण तीर्थ स्थल है। यहाँ पूर्वजों की आत्मा की शान्ति के लिए पिण्डदान किया जाता है। भगवान श्री रामचन्द्र ने अपने पिता दशरथ का पिण्डदान यहाँ किया था।
राजगीर राजगीर गर्म झरनों के लिए जाना जाता है। शीतकाल में भ्रमण और स्वास्थ्य के लिए उत्तम है। यहाँ प्रथम विश्*व बौद्ध संगीति का आयोजन हुआ था। यहाँ जैन व हिन्दुओं के अनेक पवित्र धार्मिक स्थल हैं।
राजगीर पहाड़ियों के बिच बसा बहुत ही खुबसूरत स्थान है यहाँ घूमने लायक अनेक स्थान है
विश्व शांतिस्तुप - "रोप वे" यहाँ का प्रमुख आकर्षण है (आपको जोनी मेरा नाम का वो गाना "ओ मेरे राजा" तो याद होगा जिसमें देव आनंद और हेमा मालिनी ने नालंदा और राजगीर की सैर करवाई थी)
वेणु वन - ये कृत्रिम वन है, बेहद खुबसूरत
जरासंध का अखाडा एवं अनेक ऐसे स्थान जिनका अपना पौराणिक और पुरातात्विक महत्त्व है
पावापुरी पावापुरी पटना से 104 किमी. और नालन्दा से 25 किमी दूरी पर स्थित है। यहीं जैन धर्म के प्रवर्तक महावीर जी ने निर्वाण प्राप्त किया था। यहाँ का जल मन्दिर तथा मनियार मठ दर्शनीय स्थल हैं।
बारहवीं सदी में बख्तियार खिलजी ने बिहार पर आधिपत्य जमा लिया। उसके बाद मगध देश की प्रशासनिक राजधानी नहीं रहा। जब शेरशाह सूरी ने, सोलहवीं सदी में दिल्ली के मुगल बाहशाह हुमायूँ को हराकर दिल्ली की सत्ता पर कब्जा किया तब बिहार का नाम पुनः प्रकाश में आया पर यह अधिक दिनों तक नहीं रह सका। अकबर ने बिहार पर कब्जा करके बिहार का बंगाल में विलय कर दिया। इसके बाद बिहार की सत्ता की बागडोर बंगाल के नवाबों के हाथ में चली गई। बिहार का अतीत गौरवशाली रहा है
ऐतिहासिक और पौराणिक संदर्भों से युक्त ककोलत एक बहुत ही खूबसूरत पहाड़ी के निकट बसा हुआ एक झरना है। यह झरना बिहार राज्य के नवादा जिले से 33 किलोमीटर की दूरी पर स्थित गोविन्दपुर पुलिस स्टेशन के निकट स्थित है। नवादा से राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 31 पर 15 किलोमीटर जाने पर एक सड़क अलग होती है। इस सड़क को गोविन्दपुर-अकबरपुर रोड के नाम से जाना जाता है। यह सड़क सीधे ककोलत को जाती है। यह जिस पहाड़ी पर बसा है, उस पहाड़ी का नाम भी ककोलत है। ककोलत क्षेत्र खूबसूरत दृश्यों से भरा हुआ है। लेकिन इन खूबसूरत दृश्यों में भी सबसे चमकता सितारा यहां स्थित ठण्ढे पानी का झरना है। इस झरने के नीचे पानी का एक विशाल जलाशय है।
ककोलत मे एक जलप्रपात है। इस जल प्रपात की ऊँचाई १६० फुट है। ठण्ढे पानी का यह झरना बिहार का एक प्रसिद्ध झरना है। गर्मी के मौसम में देश के विभिन्न भागों से लोग पिकनिक मनाने यहां आते हैं।इस झरने में 150 से 160 फीट की ऊंचाई से पानी गिरता है। इस झरने के चारो तरफ जंगल है। यहां का दृश्य अदभुत आकर्षण उत्पन्न करता है। यह दृश्य आंखो को ठंडक प्रदान करता है।
खनवाँ ग्राम एक अनुपम प्राकृतिक वातावरण में अवस्थित है जहाँ प्राचीन वृक्षों के बीच सुंदर मनमोहक एवं हरा-भरा मैदान विद्यमान है। यहां का शांत वातावरण इसकी सबसे बड़ी विषेशता है। जो प्रदूषण मुक्त एवं सुख-शांति प्रदान करता है। करूणा सागर भगवान महावीर एवं भगवान बुद्ध की पावन घरती का क्षेत्र है । इस पवित्र भूमि को बिहार केसरी डॉ0 श्रीकृष्ण सिंह महान स्वतंत्रता सेनानी, बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री एवं आधुनिक बिहार के निर्माता की जन्मस्थली होने का गौरव प्राप्त है।
खनवाँ के लोग खानाराय के वंशज है और उन्हीं के नाम से इस गाँव का नामाकरण खनवाँ है। गाँव के पूर्व में रोड़ है तथा खुला मैदान रोड के बगल-बगल है मतलब रोड के एक ओर गाँव तथा दूसरा ओर मैदान है। जिससे गाँव पुरा खुला-खुला लगता है । उत्तर से दक्षिण यह गाँव फैला हूआ है। गाँव लगभग 1 किमी इसकी लंबाई है। यह रोड़ हिसूआ से सिरदला जूडा हूआ है और लगभग हिसुआ और सिरदला के मध्य खनवाँ है ।
खनवाँ गाँव महात्मा बुद्ध की तपस्या एवं ज्ञान की भूमि गया से 52 किमी, अंर्तराष्ट्रीय पर्यटन केन्द्र राजगीर से मात्र 34 किमी , अंर्तराष्ट्रीय पर्यटन केन्द्र पावापूरी से लगभग 55 किमी विश्वविख्यात पूरे विश्व की पहली विश्वविद्यालय नालांदा से लगभग 45 किमी तथा अपने जिला मुख्यालय नवादा से 27 किमी, पटना राजधानी से 100 किमी की दूरी पर है तथा राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से लगभग 1000 किमी की दूरी पर है । खनवाँ के आस पास अंर्तराष्ट्रीय पर्यटन केन्द्र के आस-पास है । इसलिए पर्यटन की दृष्टि से खनवाँ में रहकर सभी केन्द्रो को घुम सकते है यहाँ से ठंड़े जल का जलप्रपात भी ककोलत काफी नजदीक है जो कि करीब 25 किमी पर बसा है । गया से देवघर जाने की सबसे पुरानी एवं कम दूरी की रोड खनवाँ से करीब 4 किमी नरहट होकर गुजरती है । घार्मिक और पर्यटन दष्टि से यह रोड महत्वपूर्ण है क्योकि इसी रोड में सीतामढी, खनवाँ, ककोलत के रास्ते देवघर गई है।
देवी या माँ भगवती मंदिर
भिंडीडीह जगजीवन ठाकुर, खनवाँ लक्ष्मी नारायण
नरहट में हो जो पहुना ठाकुर वों हूँ अन्तरजाम
खनवाँ गाँव में देवी या माँ भगवती मंदिर की प्राचींतम मंदिर है। यह एक मंदिर यशस्वी मंदिर है । यह मंदिर गाँव के दक्षिण
दिशा में अवस्थित है । यहाँ आनेवाले भक्तों की अलग-अलग
मानोकामना अवश्य ही फलीभूत होता है। कुछ लोग पुत्र की कामना, अपने बेटे की नौकरी का कामना, या व्यपार में लाभ की कामना जैसे देवी के पास रखते है। प्रत्येक वर्ष लगभग यहाँ सैकड़ों मूंडन एवं पूजा का कार्य होता है । गाँव के बाहर के लोग भी अपनी मनोकामनाखनवाँ की देवी के पास रखते है। यह मंदिर खासकरके दशहरा में विशेष पूजा होती है। प्रत्येक वर्ष होली और दशहरा में सैकड़ों की संख्या में खस्सी (बकरा) की बलि देने की प्रथा है। कुछ लोग मनोकामना पूरण होने पर बलि द्वारा या फल का प्रसाद चड़ाकर पूजा करते है। गाँववासी प्रत्येक मंगलवार और शनिवार को मंदिर अवश्य जाते है। गाँव का कोइ भी मगलमयी कार्य इनके दरवाजे से अनुमति माँग कर ही शुरू करते है। वर्ष में सारे गाँववासीयों के द्वारा सरकारी पूजा का भी आयोजन होता है। इसमें गाँव के सभी घरों से अनाज या रूपया-पैसा की तसीली की जाती है और उससे प्राप्त राशि से देवी का प्रत्येक वर्ष का पूजा तथा भोग इत्यादि लगायें जाते है। सरकारी पूजा के दिन देवी को विशेष भोग लगाया जाता है। तथा इसका प्रसाद गाँव के एक-एक घर में वितरित किये जाते है । पारसनाथ मंदिर पारसनाथ मंदिर / शिवालय गाँव के पश्चिम दिशा में अवस्थित है। यह शिववालय भी आपरूपी है और यह शिवलिंग स्थापित नहंी है। इस शिवलिंग को गाँव के कुछ लोगो ने निकालकर गाँव मंे ही बने मंदिर में स्थापित करने का सोचा लेकिन खो
दने के क्रम में अंतिम शिरा तक नहीं पहूच पायें और अन्त में लोग हार गये । शिववालय के पास दो और शिवलिंग है जहाँ मंदिर नहीं बना हुआ है। एक शिवलिंग खेत में है और कहा जाता है की जबभी वहाँ मंदिर बनाने का प्रयास किया लोग असफल हो जाते है। इस मंदिर के प्रति भी लोगों की बड़ी श्रद्धा है। इस मंदिर के पास का दृश्य बहुत ही मनोरम है। हाल के कुछ वर्षाें में मंदिर का जिर्नोद्धार गाँव के ही
श्री पप्पू जी की सहयोग से किया गया है। मंदिर के पास
एक तलाब का भी निर्माण सरकारी सहयोग से किया गया
है लेकिन शिववालय का जिर्नोद्धार तथा तलाब निर्माण में श्री पप्पू जी तथा स्व0 सत्येन्द्र कुमार पूर्व मूखिया खनवाँ की भूमिका सराहनीय है। महाशिवरात्रि एवं सावन के महीनों में विशेष पूजा-अर्चना का आयोजन होता है । छठ के अवसर पर महिलाएं यहाँ के तलाब के पास जमा होकर सूर्य के अर्ग देते है।
वावावर पूराना विशाल वट वृक्ष /शिवालय
- यह सैकड़ो पूराना विशाल वट वृक्ष है । इस वटवृक्ष की ऐसी मान्यता रही है कि इसे कोई भी व्यक्ति नहीं काट स
कता है। पंद्रह वर्ष पूर्व यह इतना विशाल था की इसका टहनियाँ रोड़ पर फैला हुआ था यहाँ से गूजने वाली बसे को वृक्ष की टहनियाँ छूती थी और बस के उपर बैठे लोग को पुरा शिर झुकाना पडता था और तभी बस गुजरती थी । श्रद्धा से इसे बाबाबर के नाम से पुकारते है। इस बाबा-बर के नजदीक एक शिवालय तथा हनुमान मंदिर भी है। इस मंदिर में अनेक धार्मिक एवं शुभ कार्य का आयोजन हुआ करता है। यह गाँव का बड़ा बसस्टॉप भी है ।
सूर्य मंदिर
निर्माण के तहत नई मंदिर
कागेसरस्थान
कागेसरस्थान यह स्थान खनवाँ से 2 किमी की दूरी पर है । यहाँ 11 आपरूपी शिवलिंग हैं । यहां का प्राकृतिक वातावर्ण मनोरम एवं मनमोहक है । यहां हर वर्ष मेला भी लगता है । पिकनिक की दृष्टि से भी यह स्पोर्ट बेहतर है ।