हिन्दूस्तान 11.12.2009
बौद्धकालीन खातुन का बदला नाम है खनवाँ गाँव
खनवाँ से प्राप्त पुातत्वों से हो रही मगध के खानुमत की पुष्टि, भगवान बुद्ध से कुटदन्त ने ली थी त्रिविधि
अशोक प्रियदर्शी, नवादा
अब तक जिले के नरहट प्रखंड के खनवां गांव की पहचान बिहार के पहले मुख्यमंत्री डॉ. श्रीकृष्ण सिंह की जन्मस्थली के रूप में रही है। लेकिन नव नालंदा महाबिहार (मानित विश्वविद्याल) के पाली विभाग के अध्यक्ष डॉ. विश्वजीत कुमार ने एक शोध में खनवां गांव की पहचान बौद्धकालीन मगध के खानुमत के रूप में की है।
मगध क्षेत्र के त्रिपिटक में खनुमत का जिक्र मिलता है। लेकिन प्रामाणिक रूप से इसकी पहचान नहीं हो पाई थी । पर खनवां से मौर्यकाल से गुप्तकाल तक का वलय कूप, मौर्यकाल से पालकाल तक का लाल मृदभंड, छठी से दूसरी बीसी, समय का धूसर मृदभंड, कृश्णमर्जित मृदभंाड, लाल एवं काले मृदभंड, उत्तरी कृर्श्णमर्जित मृदभंड, उतरी कृष्णमार्जित मृदभांड, उत्तरी कृश्णमार्जित मृदभंड के सहवर्ती मृदभांड प्राप्त हुए हैं, जो खानुमतगांव होने के प्रमाण हैं ।
त्रिपिटक में उल्लेख है कि भगवान् बुद्ध तेरहवें वर्षवास के उपरांत खानुमत ग्राम स्थित अम्बलट्टिका (आम्रवन) में 500 भिक्षुओं के साथ पहुंचे थे । उस समय सम्पूर्ण शास्त्रों के ज्ञाता कूटदन्त नामक ब्रहा्रण वहां निवास करता था । मगध नरेश बिबिसार ने ज्ञान के प्रसार हेतु खानुमत ग्राम उन्हें ‘ब्रहा्रदेय’ के रूप में दिया था।
भगवान बुद्ध जब वहां पहुंचे तो उस समय वहां यज्ञ की तैयारी चल रही थी। उसके यज्ञ के स्थूण-स्थान पर 700 बैल, 700 बछड़े, 700 बाछियां, 700 बकरियां और 700 भेंड़ बलिकर्म के लिए बंधे थीं । कूटदन्त के जब भगवान बुद्ध के पहुंचने की जानकरी मिली तब उसने सोलह परिष्कार वाले यज्ञ की विधि पूछने का विचार किया । लेकिन यज्ञ में भाग लेने आये ब्राहा्रणों ने विरोध किया कि यदि आप बुद्ध के पास जायेंगे तो आपकी लघुता सिद्ध होगी । इस पर कूटदन्त ने कहा कि आप लोग बुद्ध की महिमा नहीं जानते वे तीर्थकरों में अग्रणी हैं, इससे भी खास कि वे अतिथि हैं जिनका सत्कार करना हमारा धर्म है। तब ब्राहम्ण राजी हो गए और कूटदन्त उनसे सोलह परिष्कार सहित त्रिविध यज्ञ-सम्पदा के बारे में जानकारी मांगी । भगवान बुद्ध ने महाविजित राजा की कहारी के माध्यम से अहिंसक यज्ञ की विधि बताई थी, जिसके बाद कूटदन्त संघ में प्रवेश पाकर श्रेष्ठ भिझुओं की श्रेणी में अपना नाम शुमार कराया था।
डॉ विश्वजीत कुमार बताते हैं कि हिस्टोरिकल ज्योग्राफी एंड टोपोग्राफी ऑफ बिहार में मिथिला शरण पांडे ने खानपुर से इस गंाव की पहचान की थी लेकिन सिलाव प्रखंड के अन्तर्गत खानपुर नाम का कोई गांव नहीं हैं । पालि त्रिपिटक में बड़ी अबादी वाले गांव की चर्चा मिलती है जो मगध श्रेत्र में खानुमत से मिलता जुलता खनवां के सिवा दूसरा कोई गांव नहीं है।