(GOVERNMENT SERVANTS CONDUCT RULES 1956)
नियुक्ति (ख) विभाग
विविध
21जुलाई, 1956
सं0 2367/2-बी -118-54—भारत के संविधान के अनुच्छेद 307 के प्रतिबंधात्मक खण्ड (Proviso) द्वारा प्रदत्त अधिकारों का प्रयोग करके, उत्तर प्रदेश के राज्यपात, उत्तर प्रदेश राज्य के कार्यों से सम्बद्ध सेवा में लगे सरकारी कर्मचारियों के आचरण को विनियमन करने वाले निम्नलिखित नियम बनाते हैं:
ये “नियम उत्तर प्रदेश सरकारी कर्मचारी आचरण नियमावली 1956” कहलाएगें ।
(क) “सरकार” से तात्पर्य उत्तर प्रदेश सरकार से है ;
(ख) “सरकारी कर्मचारी” से तात्पर्य उस व्यक्ति से है, जो उत्तर प्रदेश राज्य कार्यों से सम्बद्ध लोक सेवाओं और पदों पर नियुक्त हो ।
स्पष्टीकरण – इस बात के होते हुए भी कि उस सरकारी कर्मचारी का वेतन उत्तर प्रदेश की संचित निधि के अतिरिक्त साधनो से लिया जाता है, ऐसा सरकारी कर्मचारी भी, जिसकी सेवाएँ उत्तर प्रदेश ससरकार ने किसी कंपनी, निगम, संगठन(organization), स्थानीय प्राधिकारी(local authority), केन्द्रीय सरकार या किसी अन्य राज्य सरकार को अर्पित कर दी हों (placed at the disposal of), इन नियमों के प्रयोजन के लिए, सरकारी कर्मचारी समझा जाएगा ।
(ग) किसी सरकारी कर्मचारी के सम्बन्ध मे, “परिवार का सदस्य” के अंतर्गत निम्नलिखित व्यक्ति सम्मिलित होंगे:-
(i) ऐसे कर्मचारी की पत्नी, उसका पुत्र सौतेला पुत्र, अविवाहित पुत्री या अविवाहित सौतेली पुत्री चाहे वह उसके साथ रहती/रहता हो अथवा नाही और किसी महिला सरकारी कर्मचारी के सम्बन्ध में उसके साथ रहने या न रहने वाला तथा उसपर आश्रित उसका पति, पुत्र, सौतेला पुत्र,अविवाहित पुत्रियाँ या अविवाहित सौतेली पुत्रियाँ, तथा
(ii) कोई भी अन्य व्यक्ति, जो रक्त सम्बन्ध से या विवाह द्वारा उक्त सरकारी कर्मचारी का सम्बन्धी हो या ऐसे सरकारी कर्मचारी की पत्नी का या उसके पति का सम्बन्धी हो, और जो ऐसे कर्मचारी पर पूर्णतः आश्रित हो;
किन्तु इसके अंतर्गत ऐसी पत्नी या पति सम्मिलित नहीं होगी/सम्मिलित नही होगा जो सरकारी कर्मचारी से विधितः पृथक की गई हो / पृथक किया गया हो या ऐसा पुत्र सौतेला पुत्र, अविवाहित पुत्री या अविवाहित सौतेली पुत्री सम्मिलित नहीं होगी/होगा जो आगे के लिए, किसी भी प्रकार उस पर आश्रित नही है या जिसकी अभिरक्षा से सरकारी कर्मचारी को, विधि द्वारा, वंचित कर दिया गया हो ।
टिप्पणी – कण्टींजेंसी से भुगतान किए जाने वाले कर्मचारी सरकारी कर्मचारी नहीं होते जैसा कि लक्ष्मी बनाम मिलिटरी सचिव बिहार राज्य, AIR 1956 पटना 398 में निर्णीत किया गया है ।
(1) प्रत्येक सरकारी कर्मचारी, सभी समयों मे, परम सत्यनिष्ठा तथा कर्तब्यपरायणता से कार्य करता रहेगा ।
(2) प्रत्येक सरकारी कर्मचारी, सभी समयों पर, व्यवहार तथा आचरण को विनियमित करने वाले प्रवृत्त विशिष्ट (specific) या ध्वनित (Implied) शासकीय आदेशो के अनुसार आचरण करेगा ।
टिप्पणी – (1) शासन अपने कर्मचारियों से एक विशिष्ट स्तर का आचरण चाहता है जैसा कि एल0 एन0 पाण्डे बनाम जिलाधिकारी बलिया AIR 1960 इलाहाबाद 55 में प्रतिपादित किया गया है ।
(2) कर्मचारी को अपना व्यवहार पदीय कार्य में ही नहीं वरन अपने व्यक्तिगत व्यवहार में भी उचित रखना है ।
(3) प्रतिनियुक्ति पर होने पर भी उपयुक्त आचरण अपेक्षित है । (एस0 गोविंद मेनन बनाम संघ सरकार AIR 1967 SC 1274)
(4) पुलिस अधिकारी का व्यक्तिगत जीवन में भी दुर्व्यवहार अनुचित व दण्डनीय है। (माधो सिंह बनाम बम्बई राज्य AIR 1960 बम्बई 285 तथा शारदा प्रसाद तिवारी बनाम मध्य रेलवे नागपुर क्षेत्र AIR 1961 बम्बई 150)
(5) रिश्वत प्रार्थना मात्र भी इस नियम का उल्लंघन है। (मद्रास राज्य बनाम जी0 एस0 राज गोपाल AIR 1950 मद्रास 613)
(6) यदि आपराधिक कार्यवाहियों में संदेह का लाभ पाकर मुक्त होने वाले के विरुद्ध विभागीय कार्यवाही कर पृथक्करण करना उचित है (एन0 वसुदेवन नायर बनाम केरल राज्य AIR 1962 केरल 43)
(7) पूर्ण सत्यनिष्ठा – सच्चाई, ईमानदारी या शुद्धता हे सत्यनिष्ठा है। यदि लोक अधिकारी से पूर्ण सत्यनिष्ठा बनाए रखने की अपेक्षा की जाए तो उससे केवल यही कहा जाएगा कि वह अपने को उस प्रशासकीय शिष्टता के घेरे में रखे जिसको सभ्य प्रशासन कहा जाता है। (श्रीपत रंजन विश्वास बनाम कलेक्टर आफ कस्टम, ए0आई0आर0 1964 कलकत्ता 415)
i. घूस या अवैध पारितोषण की माँग करना – घूस की माँग करना, घूस या अवैध पारितोषण प्राप्त करने का प्रयास है और वह भारतीय दण्ड संहिता के अधीन एक अपराध होता है। यह इन नियमो के अधीन भी एक दुराचरण है। जहाँ कोई धन नहीं दिया गया, किन्तु यह सिद्ध हो गया कि उत्तरवादी द्वारा 100 रू0 का घूस माँगा गया था, वहाँ उत्तरवादी को अपने आचरण का स्पष्टीकरण देने का अवसर प्रदान करके बर्खास्त कर दिया गया। (मद्रास राज्य बनाम सी0एस0 राजगोपाला, ए0आई0आर0 1950 मद्रास 613)
ii. घूस या अवैध पारितोषण लेना – यह भारतीय दण्ड संहिता के अधीन एक अपराध होता है। यदि अवैध पारितोषण लेने का पर्याप्त साक्ष्य मौजूद है तो यह सिद्ध करना जरूरी नहीं है कि घूस किस प्रकार माँगा गया। (तपेश्वरी प्रसाद, ए0आई0आर0 1917 इलाहाबाद)
एक लेखपाल कोई पक्षपात का कार्य करने के बदले गल्ला लेता है तो वह अवैध पारितोषण प्राप्त करने का दोषी है। यदि लेखपाल गाँव वालों से कहे कि उसने उन लोगों को तकाबी दिलवाने में रात-दिन काम करके कठिन परिश्रम किया है और उसके बदले में वह उसको एक रुपये प्रति व्यक्ति के हिसाब से दे, तो यह भी एक दुराचरण होगा। यदि सरकारी सेवक अपने अधीनस्थ से रु0 200 मंदिर की मरम्मत के लिए लेकर उसको सेवा में बहाल कर देता है तो वह अवैध पारितोषण प्राप्त करने का दोषी है। प्रतिकर की धनराशि का वितरण करने के लिए गाँव वालों से धन का एकत्र किया जाना उक्त प्रकार का एक दुराचरण है। (मद्रास राज्य बनाम सी0एस0 राजगोपाला, ए0आई0आर0 1950 मद्रास 613)
iii. अपनी आय के अनुपात से अधिक सम्पत्ति का अर्जन व कब्जा – अपनी आय के अनुपात से अधिक सम्पत्ति अर्जित करने तथा अपने कब्जे में रखने वाले सरकारी सेवक से यह अपेक्षा की जाएगी कि वह इस उपधारण का खण्डन करे की उसने सम्पत्ति बेईमानी के साधने से प्राप्त किया है। जबतक कि समुचित साक्ष्य से ऐसी उपधारणा का खण्डन न कर दे, सरकार उसके विरुद्ध कार्यवाही कर सकती है। आय के ज्ञात साधनो से थोड़ी बहुत धनराशि के बारे में यह नहीं कहा जा सकता कि वह एक व्यक्ति की आय के अनुपात में अधिक है। आस्तियों का अनुपात से अधिक होना तभी कहा जाएगा जब कि वह पर्याप्त रूप में अधिक मूल्य की हों।
iv. लेखा का गलत तैयार किया जाना – गलत लेखा तैयार करना तथा अभिलेख में गड़बड़ी करना भारतीय दण्ड संहिता के अधीन अपराध है। इनसे सरकारी सेवक के आचरण पर आंच आती है, जो कि किसी कर्मचारी के लिए अशोभनीय एवं निंदनीय है। दांडिक कार्यवाहियों में किसी व्यक्ति को यदि संदेह का लाभ मिल भी जाय और वह बरी भी हो जाय, तो भी उसके लिए दुराचरण के लिए कार्यवाही की जा सकती है। विभागीय जाँच तो केवल तथ्य का निष्कर्ष निकालने के लिए होती है। उसमे परीक्षण का मानदंड अपनाये जाने की आशा नहीं की जा सकती। (एन0 वासुदेवन नायर बनाम केरल राज्य, ए0आई0आर0 1962 केरल 43)
याची एक स्कूल में अध्यापक के पद पर कार्यरत था। स्कूल के हेड मास्टर ने याची के स्कूल के फर्नीचर का चार्ज लेने को कहा। याची ने इस आधार पर फर्नीचर का चार्ज नहीं लिया कि यह कार्य स्कूल के कार्यालय का है। दुराचार के आरोप में याची की तीन वेतन वृद्धियाँ रोक दी गयीं। अभिनिर्णीत हुआ कि याची दुराचार का दोषी नहीं है, जबकि नियमो में यह प्राविधान न हो कि मास्टर स्कूल के फर्नीचर का चार्ज ले। (तारा चन्द्र भाटिया बनाम सेंट्रल तिबतन स्कूल प्रशासन एवं अन्य, 1998(2) एस0एल0आर0 हिमांचल प्रदेश (उच्च न्यायालय)
v. लोक धन का दुर्विनियोजन – एक सरकारी सेवक के विरुद्ध अनुशासनिक कार्यवाही के लिए लोक धन का दुर्विनियोजन एक पारित किया गया (योगेंद्र चन्द्र तालुकेदार बनाम डिप्टी कमिश्नर, कामरूप ए0आई0आर0 1962 असम राज्य 28) । यदि कोई लोक सेवक अपनी उसी हैसियत से किसी दिनांक को प्राप्त करने वाले धन को रोकड़ बही में दर्ज नहीं करता है तो वह धन का दुर्विनियोजन करके ऐसे दुराचरण का अपराध करता है जिसके लिए उसके विरुद्ध कार्यवाही की जा सकती है। किसी पोस्ट मास्टर को मनीआर्डर के लिए दिये गए धन का दुर्विनियोजन आचरण नियमावली के प्रयोजनार्थ भी एक दुराचरण है। दुर्विनियोजन के लिए सेवा से हटाया जाना कृष्णा स्वामी बनाम केरल राज्य ए0आई0आर0 1960 केरल 224 के मामले में विधिमान्य पारित किया गया।
vi. गलत व्यक्ति को धन प्राप्त करने में सहायता करना – एक गलत व्यक्ति को बेईमानी से एस0डी0ओ0 के समक्ष पेश कराते हुए उसको 55000 रु0 जिसका वह हकदार नहीं था दिलवाया जाना एक दांडिक दुराचरण था। (विश्वम्भर लाल दया चंद बनाम पंजाब राज्य, ए0आई0आर0 1966 पंजाब 175
vii. अवितरित लोक धन को अपने पास रखना – अवितरित लोक धन को अपने पास रखना भी लोक-धन का अस्थायी दुर्विनियोजन होता है और उसके लिए विभागीय कार्यवाही की जा सकती है।
viii. शासकीय स्थिति का दुरुपयोग – (शासकीय स्थिति का दुरुपयोग दुराचरण का एक दूसरा रूप है। लेकिन केवल इस बात से कि उच्च अधिकारियों में विवेक का अधिकार निहित होता है, शक्ति के दुरुपयोग की उपधारणा सुगमता से नहीं की जा सकती है।)
- किसी महिला कर्मचारी के साथ असम्यक उदारता संदर्शित करना, जैसे उसको गलत ढंग से प्रोन्नत करना या अप्राधिकृत ढंग से उसको सरकारी सम्पत्ति का प्रयोग करने के लिए अनुमति देना;
- किसी सरकारी सेवक द्वारा किसी स्त्री को सरकारी जीप में उसके जन्म स्थान को ले जाना और ऐसे सेवक का उसके साथ चोचलापन का व्यवहार कराते देखा जाना;
- महिला अध्यापिका द्वारा गलत तैयार किए गए यात्रा भाता बिल का पारित करना, जबकि याची स्वयं उसको सरकारी जीप में ले गया था;
- किसी अधिकारी द्वारा अवकाश पर रहते हुए अपनी रहाईश के लिए अपना विभागीय कार्यालय खाली कराना;
- अपने अधीनस्थ व्यक्ति की धारित जीप इसलिए मंगवाना कि उसका वह अधिकारी अपनी स्थानीय यात्राओं में प्रयोग कर सके;
- सभी व्यक्तियों से भारी रकमें ऋण के रूप में प्राप्त करना और उसके बदले में उन पर अनुग्रह करना;
- गुणावगुण का विचार न कराते हुए अपने परिजनो और नातेदारों की वाद्य आधारों पर नियुक्ति करना;
- किसी दुराचरण के लिए नहीं बल्कि अपनी निजी बदले की भावना से प्रेरित होकर अपने अधीनस्थ किसी व्यक्ति के विरुद्ध अनुशासनिक कार्यवाही करना; ए0आई0आर0 1964 एस0सी0 72
- आर्थिक लाभ के लिए ऊँची बाजारी दर से बहुत कम दर पर शासकीय दबाव के अधीन किसी भूखण्ड का खरीदना।
(8) कर्तव्य के प्रति निष्ठा – सेवा के प्रति वफादारी ही कर्तव्यनिष्ठा होती है। यदि किसी लोक अधिकारी से सत्यनिष्ठा बनाए रखने तथा कर्तव्य के प्रति निष्ठा की अपेक्षा की जाय तो उससे यही कहा जाता है कि वह अपने को प्रशासनिक मर्यादा, जिसका दूसरा नाम सभ्य प्रशासन है, के दायरे के अन्दर रखे (एस0 आर0 विश्वास बनाम कलेक्टर आफ कस्टम, ए0आई0आर0 1964 कलकत्ता 415) । कोई सेवक अपनी सेवा की अवधि में स्वेछा से अपने द्वारा किए जाने वाले कार्य के विषय में स्वामी के विधिपूर्ण आदेशों का पालन करने का करार करता है। धीरे-धीरे भी काम करना एक प्रकार का दुराचरण है, जिसका अर्थ यह है कि किसी के काम में जान बूझ कर बिलम्ब करना। धीरे काम करने का पूर्णरूपेण काम बंद करने से अधिक हानिप्रद माना जाता है उसमे किसी अंश तक बेईमानी भी सामिल है, क्योंकि कर्मचारी उत्पादन में कमी करते हुए भी पूरी मजदूरी का हकदार होता है। इसको अत्यंत हानिप्रद माना गया है।
(i) कर्तव्य निर्वहन में विफल रहना – उचित रूप से कर्तव्य का निर्वहन न करने में सरकारी सेवक द्वारा ऐसे कार्य का किया जाना अथवा न किया जाना शामिल है जिनसे सरकार की स्थिति या प्रतिष्ठा को कमजोर करने की संभाव्यता हो या जिनसे सरकार के प्रति वफादारी व निष्ठा का आभास मिलता हो। कोई जांच रिपोर्ट दाखिल करने में तथ्यों का छिपाया जाना कर्तव्य के निर्वहन में विफलता है।
(ii) अवज्ञा – अवज्ञा का अर्थ है स्वामी या वरिष्ठ अधिकारियों के आदेश का अनुपालन करने में विफलता या अनुपालन करने से इन्कार। आज्ञाभंग या आदेशों की अवज्ञा एक गंभीर दुराचरण है। नियोजक तथा उसके अधिकारियों से यह अपेक्षा की जाती है कि वह सभी युक्तियुक्त एवं वैध निर्देश करेंगे। यदि उनके आदेशों की अवहेलना की जाय और कर्मचारी आज्ञा भंग करने के ढंग से व्यवहार करें तो संस्था का समुचित रूप से कार्य करना प्रायः असम्भव ही हो जाएगा। यदि कोई कर्मचारी अपने वरिष्ठ अधिकारीयों को झिड़कता है, तो उसको अनुशासनहीनता के क्षमा नहीं किया जा सकता। अपने वरिष्ठ अधिकारियों को गाली देना या उनके विरुद्ध अपमानजनक एवं अशिष्ट शब्दों का प्रयोग करना एक गंभीर दुराचरण है।
(iii) अवज्ञा कब दुराचरण नहीं होती – अपने द्वारा किए जा रहे कार्य के विषय में किसी सेवक को स्वामी द्वारा दिये गए समस्त वैध आदेशो का पालन करना ही होगा। इसमे सन्देह नहीं कि ऐसे भी मामले हो सकते हैं जहाँ ऐसे आदेशों की जानबूझ कर की अवज्ञा न्यायोचित हो सकती है, जैसे कि तब जबकि सेवक को अपने जीवन को खतरे में होने का भय हो या स्वामी की ओर से किसी व्यक्ति को हिंसा की सम्भावना हो, या जहाँ कि घर कि घर में किसी छूट की बीमारी का प्रकोप हो और सेवक का अपनी जीवन रक्षा के लिए स्वामी का घर छोड़ कर बाहर जाना पड़े।
(iv) यह मानते हुए भी कि किसी कर्मचारी को हड़ताल करने का अधिकार प्रदान नहीं किया गया है फिर भी यह नहीं कहा जा सकता कि उसके लिए चर्चा करना या उसके लिए कोई संकल्प पारित करना आचरण नियमों के विरुद्ध है। किसी कर्मचारी द्वारा सम्यक रूप से अनुमोदित किसी संकल्प का एक उचित रूप से गठित संघ में पारण मात्र कर्तव्य के प्रति निष्ठा की अपेक्षाओं का अतिलंघन नहीं करता।
(9) व्यक्त या विवाक्षित आदेशों के अनुसार आचरण – सरकारी सेवक को i- आचरण सम्बन्धी विनिर्दिष्ट नियमो के जिसमे सरकार द्वारा जारी किए गए सामान्य आदेश भी सम्मिलित होंगे, और ii- जारी किए गए सामान्य आदेशों की अधीन विवाक्षित आदेशों व अलिखित आचरण संहिता, के अनुसार अपना संचालन करना होता है।
सरकारी सेवक का यह धर्म है कि वह सरकार द्वारा समय-समय पर जारी किए गए सामान्य अनुदेशों सहित उसके द्वारा निर्मित ऐसे आचरण नियमों, जो परिभाषित नियमों से असंगत न होंगे, अनुपालन करे। वह अपने अधीनस्थ कर्मचारियों द्वारा अनुशासन तथा नियमों व विनियमों का अनुपालन किया जाना प्रवर्तित करेगा (डा0 पी0 एन0 कुलश्रेष्ठ बनाम उ0प्र0 राज्य, 1971 ALJ 324)। यह जरूरी नहीं कि किसी संविदा पत्र का निष्पादन किया जाय।
(10) राज्य अपने कर्मचारियों से आचरण के कतिपय मानक की अपेक्षा न केवल उसके शासकीय कर्तव्यों के निर्वहन में बल्कि उसके निजी जीवन में कर सकता है (लक्ष्मी नारायण बनाम जिला मजिस्ट्रेट, ए0आई0आर0 1960 इलाहाबाद 55)।
(11) आदेशों को लेने से इन्कार करना अवज्ञा है और एक गंभीर प्रकार का दुराचरण है। कर्तव्य पर फिर से आने का नोटिस प्राप्त करने से इन्कार करना, आरोप पत्र प्राप्त करने से इन्कार करना, व नियोजक से रजिस्ट्रीकृत पत्र प्राप्त करना भी दुराचरण है।
(12) व्यक्तिगत अनैतिकता – का अर्थ है मदिरापान, लिंग तथा जुआ सम्बन्धी दुष्प्रवृत्तियाँ, जो कि किसी लोक सेवक की उपयोगिता को घटाती हैं, और जजो कि प्रायः सरकार या कर्मचारी को जनमानस की दृष्टि से गिरा देती है। ऐसी प्रत्येक प्रकृति व्यक्तिगत अनैतिकता का गठन करने के लिए पर्याप्त होती है और जो इन नियमों के प्रयोजनार्थ भी दुराचरण की कोटि में आती हैं। यदि मदिरापान व जुआ खेलना युक्तियुक्त सीमा के भीतर हो तो उस पर विचार नहीं किया जाना चाहिए, किन्तु यदि वह स्वभाव ही बन जाये तो वह भली-भाती व्यक्तिगत अनैतिकता की परिभाषा के अंतर्गत आते हैं (उ0प्र0 राज्य बनाम बी0 एन0 सिंह, 1972 एस0एल0आर0 454)।
(13) संविधान के अनुच्छेद 31-घ तथा 51-क उल्लंघन एक दुराचरण होता है जिसके लिए अनुशासनिक कार्यवाही की जा सकेगी और वह अनिवार्य सेवा निवृत्ति का अच्छा आधार हो
(14) विधिमान्यता – इस नियम में प्रयोग की गई भाषा में कोई द्विविधा या अनिश्चितता नहीं है। सरकारी सेवक के लिए यह हर समय के लिए अनिवार्य किया गया है कि वह पूर्ण सत्यनिष्ठा तथा कर्तव्य निष्ठा बनाए रखे। सरकारी सेवाक को यह स्वतन्त्रता नहीं है कि वह अवैध पारितोषण लेकर धन संग्रहीत करे, भले ही ऐसा पारितोषण रजामंदी से दिया जाये। नियम में मात्र पवित्र आशा अंतर्विष्ट नहीं है, बल्कि उसमे सभी सरकारी सेवकों द्वारा आचरण नियमावली का अनुसरण करने के लिए स्पष्ट आज्ञा की गई है और इस प्रकार वह शून्य (void) नहीं है।
(1) कोई सरकारी कर्मचारी किसी महिला के कार्य स्थल पर, उसके यौन उत्पीड़न के किसी कार्य में संलिप्त नहीं होगा।
(2) प्रत्येक सरकारी कर्मचारी जो किसी कार्यस्थल का प्रभारी हो, उस कार्यस्थल पर किसी महीला के यौन उत्पीड़न को रोकने के लिए उपायुक्त कदम उठाएगा।
स्पष्टीकरण – इस नियम के प्रयोजनों के लिये “यौन उत्पीड़न” में प्रत्यक्षतः या अन्यथा कामवासना से प्रेरित कोई ऐसा अशोभनीय व्यवहार सम्मिलित है जैसे कि –
(क) शारीरिक स्पर्श और कामोदीप्त प्रणय संबंधी चेष्टाएं,
(ख) यौन स्वीकृति की मांग या प्रार्थना,
(ग) कामवासना प्रेरित फब्तियाँ,
(घ) किसी कामोत्तेजक कार्य व्यवहार या सामाग्री का प्रदर्शन या
(ङ) यौन सम्बन्धी कोई अन्य अशोभनीय शारीरिक, मौखिक या सांकेतिक आचरण।
(1) प्रत्येक सरकारी कर्मचारी, सभी लोगों के साथ, चाहे वे किसी भी जाति, पंथ (Sect) या धर्म के क्यों ण हों, समान व्यवहार करेगा ।
(2) कोई भी सरकारी कर्मचारी किसी भी रूप में अस्पृश्यता का आचरण नहीं करेगा ।
[विज्ञप्ति सं0 9/1/75 कार्मिक-1(2), दिनांक जुलाई28, 1976]
टिप्पणी - (1) अस्पृश्यता के सम्बन्ध में अस्पृश्यता (अपराध ) अधिनियम, 1955 (अधिनियम सं0 22 सन 1955) में किसी भी प्रकार की अस्पृश्यता दण्डनीय है। जाटवों से चमार कहना भी दण्डनीय है।
(2) शा0सं0 3347/H-B-138-1959, दिनांक 25.09.1959 द्वारा यह निर्देश दिये गए हैं कि कोई सरकारी सेवक अपने पदीय प्रभुत्व का प्रयोग स्वधर्म बदलवाने आदि के कार्य प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में नहीं करेगा।
कोई भी सरकारी कर्मचारी –
(क) किसी क्षेत्र मे, जहां वह तत्समय विद्यमान हो, मादक पान अथवा औषधि सम्बन्धी प्रवृत्त किसी विधि का दृढ़ता से पालन करेगा।
(ख) अपने कर्तव्यपालन के दौरान किसी मादकपान या औषधि के प्रभावाधीन नहीं होगा और इस बात का सम्यक ध्यान रखेगा कि किसी भी समय उसके कर्तव्यों का पालन किसी प्रकार ऐसे पेय या भेषज (Drug) के प्रभाव से प्रभावित नहीं होता है।
(ग) सार्वजनिक स्थान में किसी मादकपान अथवा औषधि के सेवन से अपने को विरत रखेगा।
(घ) मादक पान करके किसी सार्वजनिक स्थान में उपस्थित नहीं होगा।
(ङ) किसी भी मादकपान या औषधि का प्रयोग अत्यधिक मात्रा में नहीं करेगा।
स्पष्टीकरण I – इस नियम के प्रयोजनार्थ “सार्वजनिक स्थान” का तात्पर्य किसी ऐसे स्थान या भूगृहयादि (Premises) जिसके अंतर्गत कोई सवारी भी है, जहां भुगतान करके या अन्य प्रकार से जनता जा सकती हो या उसे आने-जाने की अनुज्ञा हो।
स्पष्टीकरण II – कोई गोष्ठी (क्लब) –
(क) जो सरकारी कर्मचारियों से भिन्न व्यक्तियों को सदस्यों के रूप में प्रवेश देती है; अथवा
(ख) जिसके सदस्य गैर सदस्यों को उसके अतिथि के रूप में आमंत्रित कराते हों यद्यपि सदस्यता सरकारी सेवकों तक ही सीमित (confined) क्यों न हो, भी स्पष्टीकरण (I) के प्रयोजनों के लिए ऐसा स्थान माना जाएगा जिसके लिए जनता की पहुँच हो अथवा पहुँच के लिए अनुज्ञप्त हो।
टिप्पणी - (1) – नियम 1068 M.G.O.
(2) शासन द्वारा सरकारी कर्मचारियों के लिए निषेधाज्ञा शा0सं0 1352/II-B-96-54 नियुक्ति (ख) विभाग, दिनांक 24.06.1954 में जारी किये हैं उनका उल्लंघन इतना गंभीर होगा कि विधि न्यायालय में कार्यवाही की जा सकेगी । शा0सं0 1369/PAMS-69 डीआईएनएएएनके 11.08.69 के प्रयोजनों हेतु किसी सरकारी कर्मचारी का सार्वजनिक स्थान पर नशे की स्थिति में उपस्थिती होना ही दुराचरण है। यह वैयक्तिक अनैतिकता है।
(1) कोई सरकारी कर्मचारी किसी राजनीतिक दल या किसी ऐसी संस्था का, जो राजनीति में हिस्सा लेती है, सदस्य न होगा और न अन्यथा उससे सम्बन्ध रखेगा और न वह किसी ऐसे आन्दोलन या संस्था में हिस्सा लेगा, और न उसके सहायतार्थ चन्दा देगा या किसी अन्य रीति से उसकी मदद करेगा, जो प्रत्यक्षतः या अप्रत्यक्षतः विधि द्वारा स्थापित सरकार के प्रति उच्छेदक (Subversive) है या उसके प्रति उच्छेदक कार्यवाहियाँ करने की प्रवृत्ति पैदा करती हैं।
उदाहरण
राज्य में ‘क’, ‘ख’, ‘ग’ राजनीतिक दल हैं ।
‘क’ वह दल है जिसके हाथ में सत्ता है और जिसने उस समय सरकार बनाई है।
‘अ’ एक सरकारी कर्मचारी है।
इस उप-नियम की निषेधाज्ञाएं(Prohibitions), ‘अ’ पर सभी दलों के सम्बन्ध में लागू होंगे, जिसमे ‘क’ दल भी है, जिसके हाथ में सत्ता है, सम्मिलित होगा।
(2) प्रत्येक सरकारी कर्मचारी का यह कर्तव्य होगा कि वह अपने परिवार के किसी भी सदस्य को ऐसे आन्दोलन या क्रिया (activity) में, जो, प्रत्यक्षतः या अप्रत्यक्षतः, विधि द्वारा स्थापित सरकार के प्रति उच्छेदक (Subversive) है या उसके प्रति उच्छेदक कार्यवाहियां करने की प्रवृत्ति पैदा करती है, हिस्सा लेने, सहायतार्थ चन्दा देने या किसी अन्य रीति से उसकी मदद करने से रोकने का प्रयत्न करे, और उस दशा में जबकि कोई सरकारी कर्मचारी अपने परिवार से किसी सदस्य को किसी ऐसे आन्दोलन या क्रिया में हिस्सा लेने, सहायतार्थ चन्दा देने या किसी अन्य रीति से मदद करने से रोकने में असफल रहे, तो वह इस आशय की एक रिपोर्ट सरकार के पास भेज देगा।
उदाहरण
‘क’ एक सरकारी कर्मचारी है।
‘ख’ एक परिवार का सदस्य है, जैसी कि उसकी परिभाषा नियम 2 (ग) में की गई है।
‘आ’ वह आन्दोलन या क्रिया है, जो प्रत्यक्षतः या परोक्षतः विधि द्वारा स्थापित सरकार के प्रति उच्छेदक है या उसके द्वारा उच्छेदक कार्यवाहियाँ करने की प्रवृत्ति पैदा करती है।
‘क’ को विदित हो जाता है कि इस उप-नियम के उपबन्धों के अंतर्गत, ‘आ’ के साथ ‘ख’ का संपर्क आपत्तिजनक है । ‘क’ को चाहिए कि वह ‘ख’ के ऐसे आपत्तिजनक संपर्क को रोके। यदि ‘क’, ‘ख’ के ऐसे संपर्क को रोकने में असफल रहे, तो उसे इस मामले एक रिपोर्ट सरकार के पास भेज देनी चाहिए।
(3) विलुप्त की गई।
(4) कोई सरकारी कर्मचारी, किसी विधान मण्डल या स्थानीय प्रखिकारी (Local Authority) के चुनाव में, न तो मतार्थन (Canvassing) करेगा, न अन्यथा उसमे हस्तक्षेप करेगा, और न उसके सम्बन्ध में अपने प्रभाव का प्रयोग करेगा, और न उसमे हिस्सा लेगा;
किन्तु प्रतिबंध यह है कि –
(i) कोई सरकारी कर्मचारी, जो ऐसे चुनाव में वोट डालने का अधिकारी है, वोट डालने के अपने अधिकार को प्रयोग में ला सकता है, किन्तु उस दशा में जब कि वह वोट डालने के अपने अधिकार का प्रयोग करता है, वह इस बात का कोई संकेत न देगा कि उसने किस ढंग से अपना वोट डालने का विचार किया है अथवा किस ढंग से अपना वोट डाला है।
(ii) केवल इस कारण से कि तत्समय प्रवृत्त किसी विधि द्वारा या उसके अंतर्गत उस पर आरोपित किसी कर्तव्य के यथोचित पालन में, कोई सरकारी कर्मचारी किसी चुनाव के संचालन में मदद करता है, उसके सम्बन्ध में यह नहीं समझा जाएगा कि उसने इस उप-नियम के उपबन्धो का उल्लंघन किया है।
स्पष्टीकरण – किसी सरकारी कर्मचारी द्वारा अपने शरीर, अपनी सवारी गाड़ी या निवास-स्थान पर, किसी चुनाव चिन्ह (Electoral Symbol) के प्रदर्शन के सम्बन्ध में यह समझा जाएगा कि उसने इस उप-नियम के अर्थ के अंतर्गत, किसी चुनाव के सम्बन्ध में अपने प्रभाव का प्रयोग किया।
उदारहण
निर्वाचन के सम्बन्ध में निर्वाचन अधिकारी (Returning Officer), सहायक निर्वाचन अधिकारी, पीठासीन (Presiding) अधिकारी, पोलिंग अधिकारी या पोलिंग लिपिक के रूप में कार्य करना उप-नियम (4) के प्रावधानों का उल्लंघन नहीं करता ।
टिप्पणी – 1. पैरा 1069 M.G.O.
2. राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ राजनैतिक पार्टी है। शिक्षा निदेशक बनाम रावत प्रकाश पांडे AIR 1971 इलाहाबाद 371:1971 ALJ 155, आर्य समाज राजनैतिक दल नहीं है पश्चिम बंगाल राज्य बनाम बी0 के0 वर्मा AIR 1971 SC 158
3. सरकारी कर्मचारी का राजनीति में भाग लिया जाना अनुमत नहीं किया जा सकता है। पी0 एल0 रंगास्वामी बनाम आयुक्त कोयंबटूर 1969 SLR 75 मद्रास ,
4. किसी राजनैतिक दल विशेष के प्रति आंतरिक अच्छी भावना और उससे सरकार बनाने की आशा रखना इस नियम के अनुसार दुराचार नहीं है। के0 दक्षिणामूर्ति बनाम मद्रास राज्य AIR 1967 मद्रास 399 ,
5. ऐसी बैठके जो विशुद्ध राजनैतिक हो, भले ही सरकारी सेवक द्वारा उनकी अध्यक्षता की जा रही हो, में भाग लेना किसी राजनैतिक दल में सम्मिलित होना समझा जाएगा जो इस नियम के अधीन दुराचार है। नियुक्ति (ख) विभाग शा0सं0 19/03/65 दिनांक 27.09.65
6. राज्य विरोधी किसी आन्दोलन में भाग लेना या सहायता करना भी सरकारी कर्मचारी के पक्ष पर दुराचार है। (पैरा 1068 M.G.O.)
कोई सरकारी कर्मचारी –
(1) कोई ऐसा प्रदर्शन नहीं करेगा या किसी ऐसे प्रदर्शन में भाग नहीं लेगा जो भारत के प्रभुता तथा अखंडता के हितों, राज्य की सुरक्षा, विदेशी राज्यों के मैत्रीपूर्ण सम्बन्धों, सार्वजनिक सुव्यवस्था, भद्रता या नैतिकता के प्रतिकूल हो अथवा जिससे न्यायालय की अवमानना, मानहानि होती हो या अपराध करने के लिए उत्तेजना मिलती हो, अथवा
(2) अपनी सेवा अथवा अन्य सरकारी कर्मचारी की सेवा से संबन्धित किसी मामले के सम्बन्ध में न तो कोई हड़ताल करेगा और न किसी प्रकार की हड़ताल के लिए अग्रेसित करेगा।
टिप्पणी – 1. पैरा 1060, 1075 M.G.O. 2.
कोई सरकारी कर्मचारी किसी संघ का न तो सदस्य बनेगा और न उसका सदस्य बना रहेगा, जिसके उद्देश्य या क्रियाएँ भारत की प्रभुसत्ता तथा अखंडता या सार्वजनिक सुव्यवस्था या नैतिकता के हितो के विपरीत हों।
(1) कोई सरकारी कर्मचारी, सिवाय उस दशा के जबकि उसने सरकार के पूर्व स्वीकृति प्राप्त कर ली हो, किसी समाचार पत्र या अन्य नियतकालिक प्रकाशन का पूर्णतः या अंशतः, स्वामी नहीं बनेगा, न उसका संचालन करेगा और न उसके सम्पादन-कार्य या प्रबंध में भाग लेगा।
(2) कोई सरकारी कर्मचारी, सिवाय उस दशा के, जबकि उसने सरकार की या इस सम्बन्ध में सरकार द्वारा अधिकृत किसी अन्य प्राधिकारी की पूर्व स्वीकृति प्राप्त कर ली हो अथवा जब वह अपने कर्तव्यों का सदभाव से निर्वहन कर रहा हो, किसी रेडियो प्रसारण में भाग नहीं लेगा या किसी समाचार पत्र या पत्रिका को लेख नहीं भेजेगा और गुमनाम से, अपने नाम में या किसी अन्य व्यक्ति के नाम में, किसी समाचार पत्र या पत्रिका को कोई पत्र नहीं लिखेगा।
परन्तु उस दशा मे, जब की ऐसे प्रसारण या ऐसे लेख का स्वरूप केवल साहित्यि, कलात्मक या वैज्ञानिक हो, किसी ऐसे स्वीकृति-पत्र के प्राप्त करने की आवश्यकता नहीं होगी।
टिप्पणी – 1. पैरा 1076 M.G.O.
कोई सरकारी कर्मचारी किसी रेडियो प्रसारण में या गुमनाम से, या स्वयं अपने नाम में या किसी अन्य व्यक्ति के नाम में प्रकासित किसी लेख्य में या समाचार-पत्रों को भेजे गए किसी पत्र में या किसी सार्वजनिक कथन मे, कोई ऐसी तथ्य के बात या मत नाही व्यक्त करेगा:-
(i) जिसका प्रभाव यह हो कि वरिष्ठ अधिकारियों के किसी निर्णय की प्रतिकूल आलोचना हो या उत्तर प्रदेश सरकार या केन्द्रीय सरकार या किसी अन्य राज्य सरकार या किसी अन्य स्थानीय प्राधिकारी की किसी चालू या हाल की नीति या कार्य की प्रतिकूल आलोचना होती हो, या
(ii) जिससे उत्तर प्रदेश सरकार और केंद्रीय सरकार या किसी अन्य राज्य की सरकार के आपसी सम्बन्धो में उलझन(Embarrass) पैदा हो सकती हो, या
(iii) जिससे केंद्रीय सरकार और किसी विदेशी राज्य की सरकार के आपसी सम्बन्धों में उलझन (Embarrass) पैदा हो सकती हो।
किन्तु प्रतिबन्ध यह है कि इस नियम में दी हुई कोई भी बात किसी सरकारी कर्मचारी द्वारा व्यक्त किए गए किसी ऐसे कथन या विचारों के सम्बन्ध में लागू न होगी, जिन्हें उसने अपने सरकारी पद की हैसियत से या उसे सौपे गए कर्तव्यों के यथोचित पालन में व्यक्त किया हो।
(1) उप-नियम (3) में उपबंधित स्थिति के अतिरिक्त, कोई सरकारी कर्मचारी, सिवाय उस दशा के, जबकि उसने सरकार की पूर्व स्वीकृती प्राप्त कर ली हो, किसी व्यक्ति, समिति या प्राधिकारी द्वारा संचालित किसी जाँच के सम्बन्ध में साक्ष्य नाही देगा।
(2) उस दहसा मे, जब कि उप-नियम (1) के अंतर्गत कोई स्वीकृति प्रदान की गई हो, कोई सरकारी कर्मचारी, इस प्रकार से साक्ष्य देते समय, उत्तर प्रदेश सरकार, केंद्रीय करकार या किसी अन्य राज्य सरकार की नीति की आलोचना नहीं करेगा।
(3) इस नियम में दी हुई कोई बात, निम्नलिखित के सम्बन्ध में लागू नहीं होगी:-
(क) साक्ष्य, जो सरकार, केंद्रीय सरकार्, उत्तर प्रदेश के विधान-मण्डल या संसद द्वारा नियुक्त किसी प्राधिकारी के सामने दी गई हो, या
(ख) साक्ष्य, जो किसी न्यायिक जाँच में दी गई हो।
कोई सरकारी कर्मचारी, सिवाय सरकार के किसी किसी सामान्य अथवा विशेष आदेशानुसार या उसको सौपे गए कर्तव्यों का सदभाव के साथ (In Good Faith) पालन करते हुए, प्रत्यक्षतः या अप्रत्यक्षतः, कोई सकारी लेख या सूचना किसी सरकारी ऐसे अन्य व्यक्ति को, जिसे ऐसा लेख या सूचना देने या संचार (Communication) करने का अधिकार उसे न हो, न देगा और न संचार करेगा।
स्पष्टीकरण – किसी पत्रावली की टिप्पणियों को या से, अपने पदीय वारिष्ठों को किए गए अभ्यावेदनों मे, सरकारी कर्मचारी द्वारा संदर्भ इस नियम के अर्थों में सूचना का अनधिकृत संसूचना (Communication) समझा जाएगा।
कोई सरकारी कर्मचारी, सरकार की पूर्व स्वीकृति प्राप्त करके, किसी ऐसे धर्मार्थ प्रयोजन के लिए चन्दा या अन्य वित्तीय सहायता माँग सकता है या स्वीकार कर सकता है या उसके इकट्ठा करने में भाग ले सकता है, जिसका सम्बन्ध डाक्टरी सहायता, शिक्षा या सार्वजनिक उपयोगिता के अन्य उद्देश्यों से हो, किन्तु उसे इस बात की अनुमति नहीं है कि वह इनके अतिरिक्त किसी भी अन्य प्रयोजन के लिए चन्दा आदि मांगे।
उदाहरण
कोई भी सरकारी कर्मचारी, सरकार की पूर्व स्वीकृति प्राप्त करके, जनता के उपयोग के लिए किसी नल-कूप के बेधन के लिए या किसी सार्वजनिक घाट के निर्माण या मरम्मत के लिए, चन्दा जमा कर सकता है।
कोई सरकारी कर्मचारी, सिवाय उस दशा के जबकि उसने सरकार की पूर्व स्वीकृति प्राप्त कर ली हो –
(क) स्वयं अपनी ओर से या किसी अन्य व्यक्ति की ओर से, किसी ऐसे व्यक्ति से, जो उसका निकट सम्बन्धी न हो, प्रत्यक्षतः या अप्रत्यक्षतः, कोई भेंट, अनुग्रह-धन (Gratuity) या पुरस्कार स्वीकार नहीं करेगा, या
(ख) अपने परिवार के किसी ऐसे सदस्य को जो उस पर आश्रित हो, किसी ऐसे व्यक्ति से, जो उसका निकट सम्बन्धी न हो, कोई भेंट, अनुग्रह धन या पुरस्कार स्वीकार करने की अनुमति नहीं देगा।
किन्तु प्रतिबन्ध यह है कि वह किसी जातीय मित्र (Personal Friend) से 51 रू0 या उससे कम मूल्य का एक विवाहौपहार या किसी रीतिक अवसर पर इतने ही मूल्य का एक उपहार स्वीकार कर सकता है या अपने परिवार के किसी सदस्य को उसे स्वीकार करने की अनुमति दे सकता है।
उदाहरण
एक कस्बे के नागरिक यह निश्चय करते है कि ‘क’ को, जो एक सब-डिवीज़नल अफसर है, बाढ़ के दौरान में उसके द्वारा की गई सेवाओं के सराहना स्वरूप एक घड़ी भेंट में दी जाय, जिसका मूल्य 51 रूपये से अधिक है । सरकार की पूर्व स्वीकृति पूर्व स्वीकृति प्राप्त किए बिना, ‘क’ उक्त उपहार स्वीकार नाही कर सकता।
(i) न तो दहेज देगा या प्राप्त करेगा या दहेज लेन देन को प्रेरित करेगा, अथवा
(ii) वधू या वर जैसी भी दशा में हो, के माता-पिता अथवा अभिभावक से प्रत्यक्षतः या परोक्षतः कोई दहेज की माँग नहीं करेगा।
कोई सरकारी कर्मचारी, सिवाय उस दशा के जबकि उसने सरकार की पूर्व स्वीकृति प्राप्त कर ली हो, कोई मान-पत्र या विदाई-पत्र नहीं लेगा, न कोई प्रमाण-पत्र स्वीकार करेगा और न अपने सम्मान में या किसी अन्य सरकारी कर्मचारी के सम्मान में आयोजित किसी सभा या सार्वजनिक आमोद में उपस्थित होगा।
किन्तु प्रतिबन्ध यह है कि इस नियम में दी हुई कोई बात, किसी ऐसे विदाई समारोह के सम्बन्ध में लागू न होगी जो सारतः (Substantially) निजी तथा अरीतिक स्वरूप का हो, और जो किसी सरकारी कर्मचारी के सम्मान में उसके अवकाश प्राप्त करने या बदली (transfer) पर आयोजित हो, या किसी ऐसे व्यक्ति के सम्मान में आयोजित हो जिसने हाल ही में सेवा छोड़ी हो।
उदाहरण
‘क’ जो एक डिप्टी कलेक्टर है, रिटायर होने वाला है। ‘ख’, जो जिले में एक दूसरा डिप्टी कलेक्टर है, ‘क’ के सम्मान में एक ऐसा भोज दे सकता है जिसमे चुने हुए व्यक्ति आमंत्रित किए गए हों।
कोई सरकारी कर्मचारी, सिवाय उस दशा में जबकि उसने सरकार की पूर्व स्वीकृति प्राप्त कर ली हो, प्रत्यक्षतः या अप्रत्यक्षतः, किसी व्यापार या कारोबार में नहीं लगेगा और न कोई नौकरी करेगा ।
किन्तु प्रतिबन्ध यह है कि कोई सरकारी कर्मचारी, इस प्रकार की स्वीकृति प्राप्त किए बिना, कोई सामाजिक या धर्मार्थ प्रकार का अवैतनिक कार्य या कोई साहित्यिक, कलात्मक या वैज्ञानिक प्रकार का आकस्मिक (Occasional) कार्य कर सकता है, लेकिन शर्त यह है कि इस कार्य के द्वारा उसके सरकारी कर्तव्यों में कोई अड़चन नहीं पड़ती है तथा वह ऐसा कार्य, हाथ में लेने से एक महीने के भीतर ही, अपने विभागाध्यक्ष को और, यदि वह स्वयं विभागाध्यक्ष हो, तो सरकार को, इस बात की सूचना दे दे, किन्तु, यदि सरकार उसे इस प्रकार का कोई आदेश दे तो वह ऐसा कार्य हाथ में नहीं लेगा, और यदि उसने उसे हाथ में ले लिया है, तो बंद कर देगा।
कोई सरकारी कर्मचारी, सिवाय उस दशा में जबकि उसने सरकार की पूर्व स्वीकृति प्राप्त कर ली हो, किसी ऐसे बैंक या अन्य कम्पनी के निबन्धन, प्रवर्तन या प्रबन्ध में भाग न लेगा, जो इंडियन कंपनीज़ एक्ट 1913 के अधीन या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के अधीन निबद्ध (register) हुआ है।
किन्तु प्रतिबन्ध यह है कि कोई सरकारी कर्मचारी कोआपरेटीव सोसायीटीज़ एक्ट,1912 के अधीन या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विदी के अधीन निबद्ध किसी सहकारी समिति या कोसाइटीज़ रजिस्ट्रेशन एक्ट, 1860 या तत्स्थानी प्रवृत्त विदी के अधीन निबद्ध किसी साहित्यिक, वैज्ञानिक या धर्मार्थ समिति के निबन्धन, प्रवर्तन या प्रबन्ध में भाग ले सकता है।
अग्रेतर प्रतिबन्ध यह है कि यदि कोई सरकारी कर्मचारी किसी सहकारी समिति के प्रणिधि के रूप में किसी बड़ी सहकारी समिति या निकाय में उपस्थित हो तो वह उस बड़ी सहकारी समिति या निकाय के किसी पद के निर्वाचन की इच्छा न करेगा। वह ऐसे निर्वाचनों में केवल अपना मत देने के लिए भाग ले सकता है।
कोई सरकारी कर्मचारी, अपनी पत्नी को या अपने किसी अन्य संबंधी को जो या तो उस पर पूर्णतः आश्रित हो या उसके साथ निवास करता हो उसी जिले में, जिसमे वह तैनात हो, बीमा अभिकर्ता के रूप में कार्य करने की अनुमति नहीं देगा।
टिप्पणी – किसी सरकारी कर्मचारी की अपनी पत्नी या अन्य किसी सम्बंधी को जो उस पर आश्रित हो अथवा उसके साथ रहता हो तो उसको अपनी नियुक्ति के जिले में बीमा एजेंट के रूप में कार्य करना दुराचार है यह वैधानिक रूप से माना है। उच्च अधिकारियों से अपना काम निकालने के लिए उनके आश्रितों को बीमा व्यवसाय के रूप में लाभ करा देने से उन्हें प्रसन्न कर सकते हैं।
कोई सरकारी कर्मचारी, समुचित प्राधिकारी की पूर्व स्वीकृति प्राप्त किए बिना, उसी पर आश्रित किसी अवयस्क के अतिरिक्त, किसी अन्य अवयस्क के शरीर या संपति के विधिक संरक्षक के रूप में कार्य नाही करेगा।
स्पष्टीकरण-1
इस नियम के प्रहोजन के लिए, आश्रित से तात्पर्य किसी सरकारी कर्मचारी की पत्नी, बच्चों या सौतेलों बच्चों और बच्चों के बच्चों से है और इसके अंतर्गत उनके जनक, बहिने, भाई, भाई के बच्चे और बहिन के बच्चे भी सम्मिलित होंगे, यदि वे उसके साथ निवास करतें हों और उस पर पूर्णतः आश्रित हों।
स्पष्टीकरण-2
इस नियम के प्रयोजन के लिए, समुचित प्राधिकारी वही होगा, जैसा कि नीचे दिया गया है:-
विभागाध्यक्ष, या मंडलायुक्त या कलेक्टर के लिए – राज्य सरकार
जिला जज के लिए – उच्चन्यायालय का प्रशासकीय जज
अन्य सरकारी कर्मचारी के लिए – संबन्धित विभागाध्यक्ष
टिप्पणी – अभिभावक को अपने अवयस्क पाल्य (ward) की संपति का प्रबन्ध करने का पूर्ण अधिकार है । वह पाल्य की आवश्यकता के लिए अंतरण भी कर सकता है। अवयस्क को भी अधिकार है कि वयश्यकता प्राप्त करने पर अभिभावक द्वारा संपाति के अंतरण आदि को तीन वर्ष के भीतर वाद प्रस्तुत करके निरस्त करा सकता है। अवयस्क की ओर से दायर किए वाद में असफल होने पर अवयस्क की संपति से हर्जे की वसूली नहीं की जा सकती है। यदि पहले से ही अभिभावक को जिम्मेदार ठहराने विषयक कार्यवाही कर ली हो तभी अभिभावाक की संपति को नीलाम कराया जा सकता है। अन्य अनेक प्रबन्ध विषयक कार्य करने होते हैं अतः सरकार ने कर्मचारियों पर अपने आश्रितों के अतिरिक्त अन्य का अभिभावक बनने के लिए रोक लगा दी है।
(1) जब कोई सरकारी कर्मचारी, किसी ऐसे व्यक्ति विशेष के बारे मे, जो उसका सम्बन्धी हो, चाहे वह सम्बन्ध दूर का या निकट का हो, कोई प्रस्ताव या मत प्रस्तुत करता है या कोई अन्य कार्यवाही करता है, चाहे यह प्रस्ताव, मत या कार्यवाही उक्त सम्बन्धी के पक्ष में हो अथवा उसके विरुद्ध हो, तो वह प्रत्येक ऐसे प्रस्ताव, मत या कार्यवाही के साथ, यह बात भी स्पष्ट रूप से बता देगा कि व्यक्तिविशेष उसका सम्बन्धी है अथवा नहीं है और यदि वह उसका ऐसा सम्बन्धी है, तो इस सम्बन्ध का स्वरूप क्या है?
(2) जब किसी प्रवृत्त विधि, निगम या आदेश के अनुसार, कोई सरकारी कर्मचारी किसी प्रस्ताव, मत या किसी अन्य कार्यवाही के सम्बन्ध में अंतिम रूप से निर्णय करने की शक्ति रखता है, और जब यह प्रस्ताव, मत या कार्यवाही, किसी ऐसे व्यक्तिविशेष के सम्बन्ध में है, जो उसका सम्बन्धी है, चाहे वह सम्बन्ध दूर का हो या निकट का हो, और चाहे उस प्रस्ताव , मत या कार्यवाही का उक्त व्यक्तिविशेष पर अनुकूल प्रभाव पड़ता हो या अन्यथा, वह कोई निर्णय नहीं देगा, बल्कि वह उस मामले को अपने वरिष्ठ पदाधिकारीयों को प्रस्तुत कर देगा और साथ ही उसे प्रस्तुत करने के कारण तथा सम्बन्ध के स्वरूप को भी स्पष्ट कर देगा ।
टिप्पणी – यदि पास या दूर का कोई सम्बन्धी हो जिसके विषय में कोई चयन प्रोन्नति या अन्य लाभ के कार्य में संस्तुति करनी हो तो इस बात की सुचना अपने वरिष्ठ अधिकारी को देगा। ऐसे मामले में निर्णय न लेकर मामले को उच्च अधिकारी को सौप देगा। इस नियम का उल्लंघन दंडनीय है।
(1) कोई सरकारी कर्मचारी किसी लगी हुई पूंजी (Investment) में सट्टा नहीं लगायेगा।
स्पष्टीकरण – बहुत ही अस्थिर मूल्य वाली प्रतिभूतियों की सतत (Habitual) खरीद या बिक्री के सम्बन्ध में यह समझा जाएगा कि वह इस नियम के अर्थ में लगी, हुई पूंजियों में सट्टा लगाता है।
(2) यदि कोई प्रश्न उठता है कि कोई प्रतिभूति या लगी हुई पूंजी, उप-नियम (1) में निर्दिष्ट स्वरूप की है अथवा नहीं, तो उस पर सरकार द्वारा दिया ज़ेडएलजे निर्णय अंतिम होगा।
टिप्पणी – सरकारी कर्मचारी को विषम परिस्थितियों में डालने से रोकने के नियम बने हैं। सट्टा अल्प अवधि में मनुष्य धनी अथवा कर्जदार बना सकता है वह कारी क्षमता पर प्रभाव डालेगा । इसी प्रकार ऐसा क्रय-विक्रय जिससे अत्यधिक लाभ हो अथवा ऐसी भूमि का पट्टा लेना या क्रय जिसमे मूल्यवान खनिज हों, तो वह भी अनियमित है। बैंक या डाकखाने में धन जमा करना उचित है।
(1) कोई सरकारी कर्मचारी, न तो कोई पूँजी इस प्रकार लगायेगा और न अपनी पत्नी या अपने परिवार के किसी सदस्य को लगाने देगा, जिससे उसके सरकारी कर्तव्यों के परिचालन में उलझन या प्रभाव पड़ने की सम्भावना हो।
(2) यदि कोई प्रश्न उठता है कि कोई प्रतिभूति या लगी हुई पूँजी उपनियम (1) के स्वरूप की है अथवा नही, तो उस पर सरकार द्वारा दिया गया निर्णय अंतिम होगा।
उदाहरण – कोई जिला जज, उस जिले के जिसमे वह नियुक्त है, अपनी पत्नी या अपने पुत्र को, कोई सिनेमा-गृह खोलने या उसमे कोई हिस्सा खरीदने की अनुमति नहीं देगा, और यदि वह ऐसे जिले को स्थानान्तरित कर दिया जाता है जहाँ उसके परिवार के सदस्य पहले ही ऐसा विनियोग कर चुके हैं, तो वह अपने वरिष्ठ प्राधिकारी को अविलम्ब सूचित करेगा।
टिप्पणी – 1- अपनी पत्नी और साथ रहने वालों को अपने अधिकार क्षेत्र की सीमाओं में कोई व्यापार या उद्योग-धन्धा करना या अन्य विनियोग या व्यापार करने की अनुमति देना इस नियम का उल्लंघन है ।
2 – विनियोग में सभी प्रकार के बचत पत्र स्थायी जमा, गृह क्षचट और डाक चार जमा खाते सम्मिलित हैं। सभी मामलों में जहाँ यह संदेह हो कि अमुक विनियोग उक्त प्रकृति का है, पर शासन का निर्णय अंतिम होगा।
(1) कोई सरकारी कर्मचारी, सिवाय उस दशा के, जबकि उसने समुचित प्राधिकारी की पूर्व स्वीकृति प्राप्त कर ली हो, किसी ऐसे व्यक्ति को, जिसके पास उसके प्राधिकार की स्थानीय सीमाओं के भीतर, कोई भूमि या बहुमूल्य संपति हो, रूपया उधार नहीं देगा और न किसी व्यक्ति को ब्याज पर रूपया उधार देगा।
किन्तु प्रतिबन्ध यह है कि कोई सरकारी कर्मचारी, किसी सरकारी नौकर, किसी सरकारी नौकर को अग्रिम रूप में वेतन दे सकता है या इस बात के होते हुये भी कि ऐसा व्यक्ति (उसका मित्रा या सम्बन्धी) उसके प्राधिकार की स्थानीय सीमाओं के भीतर, रूपया उधार लेगा, और न अन्यथा, अपने को ऐसी स्थिति में रखेगा, जिससे वह उस व्यक्ति के वित्तीय आभार (Pecuniary Obligation) के अंतर्गत ही जाय, और न वह सिवाय उस दशा के जबकि उसने समुचित प्राधिकारी की पूर्व स्वीकृति प्राप्त कर ली हो, अपने परिवार के किसी सदस्य को, इस प्रकार का व्यवहार करने की अनुमति देगा,
किन्तु प्रतिबंध यह है कि कोई सरकारी कर्मचारी, किसी नीजजी मित्र या सम्बन्धी से, बिना ब्याज वाली एक छोटी रकम का एक नितांत अस्थायी ऋण स्वीकार कर सकता है।
(3) जब कोई सरकारी, इस प्रकार के किसी पद पर नियुक्त या स्थानान्तरण पर भेजा जाय, जिसमे उसके द्वारा उप-नियम (1) या उप-नियम (2) के किन्ही उपबन्धों का उल्लंघन निहित हो, तो वह तुरंत ही समुचित प्राधिकारी को उक्त परिस्थितियों की रिपोर्ट भेज देगा, और उसके बाद, ऐसे आदेशों के अनुसार कारी करेगा जिन्हें समुचित प्राधिकारी दे।
(4) ऐसे सरकारी कर्मचारी की दशा मे, जो गज़टेड अधिकारी हैं, समुचित प्राधिकारी सरकार होगी और दूसरे मामलों में, कार्यालयाध्यक्ष समुचित प्राधिकारी होगा।
सरकारी कर्मचारी, अपने व्यक्तिगत मामलों का ऐसा प्रबंध करेगा जिससे वह अभ्यासी ऋणग्रस्तता से दिवाला से बच सके। ऐसे सरकारी कर्मचारी की, जिसके विरुद्ध उसके दिवालिया होने के संबंध में कोई विधिक कार्यवाही चाल रही हो, चाहिए कि वह तुरंत ही उस कार्यालय या विभाग के अध्यक्ष को, जिसमे वह नौकरी कर रहा हो, सब बातों की रिपोर्ट भेज दे।
(1) कोई सरकारी कर्मचारी, सिवाय उस दशा के, जब कि समुचित प्राधिकारी को इसकी पूर्व जानकारी हो, या तो स्वयं अपने नाम से या अपने परिवार के किसी सदस्य के नाम से, पत्ता, रेहन, क्रय, विक्रय या भेंट द्वारा या अन्यथा, न तो कोई अचल संपत्ति अर्जित करेगा और न उसे बेचेगा।
किन्तु प्रतिबन्ध यह है कि किसी ऐसे व्यवहार के लिए, जो किसी नियमित और ख्यातिप्राप्त (Reputed) व्यापारी से भिन्न व्यक्ति द्वारा संपादित किया गया हो, समुचित प्राधिकारी की पूर्व स्वीकृति प्राप्त करना आवश्यक होगा।
उदाहरण- ‘क’ जो एक सरकारी कर्मचारी है, एक मकान खरीदने का प्रस्ताव करता है। उसे समुचित प्राधिकारी को इस प्रस्ताव की सूचना दे देनी चाहिये। यदि यह व्यवहार, किसी नियमित और ख्यातिप्राप्त व्यापारी से भिन्न व्यक्ति द्वारा संपादित किया जाना है तो ‘क’ को चाहिये कि वह समुचित प्राधिकारी की पूर्व स्वीकृति भी प्राप्त कर ले। यही प्रक्रिया उस दशा में भी लागू होगी जब ‘क’ अपना मकान भेचने का प्रस्ताव करे।
(2) कोई सरकारी कर्मचारी जो अपने एक माह के वेतन अथवा 1,000 रू0 जो भी कम हो, से अधिक मूल्य की किसी चल संपत्ति के सम्बन्ध में क्रय, विक्रय के रूप में या अन्य प्रकार से कोई व्यवहार (Transaction) करता है तो ऐसे व्यवहार की रिपोर्ट तुरंत समुचित प्राधिकारी को करेगा।
प्रतिबंध यह है कि कोई सरकारी कर्मचारी सिवाय किसी ख्यातिप्राप्त व्यापारी या अच्छी साख के अभिकर्ता के साथ या द्वारा या समुचित प्राधिकारी की पूर्व स्वीकृति से, इस प्रकार का कोई व्यापार नहीं करेगा।
(i) ‘क’ एक सरकारी कर्मचारी ही जिसका मासिक वेतन छः सौ रूपया है, सात सौ रूपये का टेप रिकार्डर खरीदता है, या
(ii) ‘ख’ एक सरकारी कर्मचारी है जिसका माकीक वेतन दो हजार रूपया है अपनी कार एक हजार पाँच सौ रूपयों में बेचता है।
प्रत्येक दशा में ‘क’ या ‘ख’ को मामला समुचित प्राधिकारी को सूचित करना चाहिये। यदि व्यवहार किसी ख्यातिप्राप्त व्यापारी से भिन्न व्यक्ति द्वारा सम्पादित किया जाता है तो उनको चाहिये कि वह समुचित प्राधिकारी की पूर्व स्वीकृति भी प्राप्त कर ले।
(3) प्रथम नियुक्ति के समय और तदुपरान्त हर पाँच वर्ष की अवधि बीतने पर, प्रत्येक सकारी कर्मचारी, सामान्य मार्ग के माध्यम से नियुक्त करने वाले प्राधिकारी को, ऐसी सभी अचल संपत्ति की घोषणा करेगा जिसका वह स्वामी हो, जिसे उसने खुद अर्जित किया हो या जिसे उसने दाय के रूप में पाया हो या जिसे वह पत्ता या रेहन पर रखे हो, और ऐसे हिस्सों के या अन्य लगी पूंजियों की घोषणा करेगा, जिन्हें वज समय-समय पर रखे या अर्जित करे, या उसकी पत्नी या उसके साथ रहने वाल्व या किसी प्रकार भी उस पर आश्रित उसके परिवार के किसी सदस्य द्वारा रखी गई हो या अर्जित की गई हो। इन घोषणाओं में संपत्ति, हिस्सों और अन्य लगी हुई पूजियों के पूरे ब्योरे दिये जाने चाहिये।
(4) समुचित प्राधिकारी, सामान्य या विशेष आदेश द्वारा, किसे भी समय, किसे सरकारी कर्मचारी, को यह आदेश दे सकता है कि वह आदेश में निर्दिष्ट अवधि के भीतर, ऐसी चल या अचल संपत्ति का, जो उसके पास अथवा उसके परिवार के किसी सदस्य के पास रही हो या अर्जित की गई हो, और आदेश में निर्दिष्ट हो, एक सम्पूर्ण विवरण पत्र प्रस्तुत करे। यदि समुचित प्राधिकारी ऐसा आदेश दे तो ऐसे विवरण पत्र में उन साधनो (Means) के या उस प्रसाधन (Source)के ब्योरे भी सम्मिलित हों, जिनके द्वारा ऐसी संपत्ति अर्जित की गई थी।
(अ) उप-नियमों (1) और (4) तक के सन्दर्भ मे समुचित प्राधिकारी, किसी ऐसी सरकारी कर्मचारी की दशा मे, जो किसी राज्य सेवा में हो, सरकार होगी, और उप-नियम (2) के मामलों में, विभागाध्यक्ष होगा।
(ब) अन्य सरकारी कर्मचारियों की दशा में उप-नियमों (1) से (4) तक के प्रयोजनों हेतु विभागाध्यक्ष होगा।
टिप्पणी – 1- किसी विभाग की संपत्ति या उत्पाद का नीलाम द्वारा विक्री की जा रही हो तो सरकारी कर्मचारी को कार्यालय अध्यक्ष की लिखित स्वीकृति बिना बोली नहीं बोलेगा और न अन्य व्यक्ति के नाम में क्रय करेगा। पैरा 1051 M.G.O.
2-
कोई सरकारी सिवाय उस दशा के जब उसने सरकार की पूर्व स्वीकृति प्राप्त कर ली हो, किसी ऐसे सरकारी कार्य का, जो प्रतिकूल आलोचना या मानहानिकारी आक्षेप का विषय बन गया हो, प्रतिसमर्थन करने के लिए,न तो किसी न्यायालय की या समाचार पत्रों की शरण लेगा।
स्पष्टीकरण - इस नियम की किसी बात के सम्बन्ध में यह नहीं समझा जाएगा कि किसी सरकारी कर्मचारी को, अपने वैयक्तिक चरित्र का या उसके द्वारा वैयक्तिक रूप में किए गये किसी कार्य का प्रतिसमर्थन करने से प्रतिनिषेध किया जाता है।
[ कोई सरकारी कर्मचारी, बिना पहले परिवेदना-निवारण (redress) की सभी सामान्य अधिकारीय सरणी (Official Channels)का अवलंबन किए, उन व्यथाओं (Grievances) पर, जो उसकी नौकरी या सेवा की शर्तो से उत्पन्न जेपी। लोसी विधि न्यायालय में निर्णय चाहने का प्रयास यही करेगा।
उक्त नियम 26 के निरस्तीकरण से सरकारी कर्मचारियों पर लगाए गये पुराने निर्बंधन (restriction) को समाप्त कर दिया गया है। अब सरकारी कर्मचारी सेवा सम्बन्धी मामलों पर शासन की स्वीकृति के पूर्व ही जा सकते हैं। यदि न्यायालय की शरण लेनी पड़े तो उससे पूर्व यह विचारणीय है कि सभी विभागीय स्रोतो को पहले समाप्त कर देना चाहिये। सभी स्तरों से न्याय न मिलने पर निराशा की दशा में हे न्यायालय की शरण में जाना चाहिए। रिट याचिका करने की दशा में यह परमावश्यक है अन्यथा रिट इसी आधार पर खारिज की जा सकती है। उ0प्र0 सेवा न्यायाधिकरण सन 1976 के लागू हो जाने से अब सरकारी कर्मचारी के लिए न्यायालय में आने पर प्रतिबन्ध लगा दिये गये हैं। अब न्यायालय के स्थान पर मात्र न्यायाधिकरण से ही न्याय प्राप्त किया जा सकता है या फिर रिट दायर की जा सकती है। ]
कोई सरकारी कर्मचारी, अपनी सेवा से संबन्धित मामलों के विषय में अपने हितों की वृद्धि के उद्देश्य से, किसी ज्येष्ठ अधिकारी पर कोई राजनीतिक या अन्य वाह्य प्रभाव नहीं डालेगा और न डलवाने का प्रयास करेगा।
स्पष्टीकरण- सरकारी कर्मचारी की पत्नी या पति,जैसी भी दशा हो, या उसके परिवार का किसी सदस्य द्वारा किया गया कोई कार्य जो इस नियम की सीमा (Purview) में आता हो जब तक कि इसके विपरीत प्रमाणित न कर दिया गया हो संबन्धित सरकारी कर्मचारी के अनुरोध (Instance) या मौनानुमती (Connivance) से किया गया समझा जाएगा।
कोई सरकारी कर्मचारी सिवाय उचित माध्यम से और ऐसे निर्देशों के अनुसार जिन्हें सरकार समय-समय पर जारी करे, व्यक्तिगत रूप से अथवा अपने परिवार के किसी सदस्य के माध्यम से सरकार अथवा अन्य किसी प्राधिकारी को कोई अभ्यावेदन नहीं करेगा।
[नियम 27क, विज्ञप्ति सं0 9/6=1974-कार्मिक-1,दिनांक 27.07.1976 द्वारा बढ़ाया गया]
पैरा 1052 M.G.0, -
कोई सरकारी कर्मचारी किसी अन्य सरकारी कर्मचारी के साथ या किसी अन्य व्यक्ति के साथ, कोई ऐसी वित्तीय व्यवस्था नहीं करेगा जिससे दोनों में से किसी एक को या दोनों ही को, अनधिकृत रूप में या तत्समय प्रवृत्त किसी नियम के विशिष्ट (specific) या ध्वनित (implied) उपबन्धों के विरूद्ध किसी प्रकार का लाभ हो।
(1) कोई सरकारी कर्मचारी, जिसकी एक पत्नी जीवित है, इस बात के होते हुये भी कि तत्समय उस पर लागू किसी वैयक्तिक विधि के अधीन उसे इस प्रकार की बाद की दूसरी शादी करने को अनुमति प्राप्त है, बिना पहले सरकार की अनुमति प्राप्त किये, दूसरा विवाह नहीं करेगा।
(2) कोई महिला सरकारी कर्मचारी, बिना पहले सरकार की अनुमति प्राप्त किये, किसी ऐसे व्यक्ति से, जिसकी एक फटने जीवित हो, विवाह नहीं करेगी।
कोई सरकारी कर्मचारी ऐसी सुख-सुविधाओं का कुप्रयोग नहीं करगा और न उसका असावधानी के साथ प्रयोग करेगा, जिनकी व्यवस्था सरकार ने उसके सरकारी कर्तव्यों के पालन में उसे सुविधा पहुंचाने के प्रयोजन से की हों।
उदाहरण =
कोई सरकारी कर्मचारी, उस समय तक जब तक किस्तों मूल्य देना प्रथानुसार (Customary) का विशेष रूप से उपबन्धित न हो या जब तक किसी वास्तविक (Bona fide) व्यापारी के पास उसका उधार लेखा (credit account) न खुला हो, उन वस्तुओं का, जिन्हें उसने खरीदा हो, चाहे या खरीदारियाँ उसने दौरे पर या अन्यथा की हो, शीघ्र और पूर्ण मूल्य देना रोक नहीं रखेगा।
कोई सरकारी कर्मचारी, बिना यथोचित और पर्याप्त मूल्य दिये, किसी सेवा या आमोद (Entertainment) का स्वयं प्रयोग न करेगा, जिसके लिए कोई किराया या मूल्य या प्रवेश-शुल्क लिया जाता हो।
उदाहरण
जब तक ऐसा करना कर्तव्य के एक अंश के तौर पर निर्दिष्ट रूप से निर्धारित न किया गया हो, कोई सरकारी कर्मचारी –
(1) किसी भी कियाए पर चलाने वाली गाड़ी में बिना मूल्य दिये यात्रा नहीं करेगा,
(2) बिना प्रवेश शुल्क दिये सिनेमा भी नहीं देखेगा।
टिप्पणी –
1. निःशुल्क आवाश में ठहरना, निःशुल्क टैक्सी, बस, रेल आदि सवारी का प्रयोग करना, बिना टिकट सिनेमा, सर्कस मैजिक शो या अन्य प्रदर्शनो को देखना या अपने पत्नी-बच्चों को बिना मूल्य चुकाए आमोद-प्रमोद करना दुराचार है। इससे सरकार को ही हानि नहीं होती अपितु अधिकारियों को भ्रष्ट बनाता है। जो व्यक्ति ये सुविधाएं देते हैं वे अपनी हानि को पूरा करके उससे अधिक लाभ उठाने का प्रयत्न कराते हैं।
2. बिना मूल्य चुकाये अपने अधीनस्थों के साथ उनके खर्चे पर ठहरना भी हतोत्साहित करना चाहिए । इससे सरकार एवं उनके कर्मचारियों की प्रतिष्ठा गिरती है। (शा0सं0 36-34ए /II–B-191-1964 दिनांक 30.11.1964)
कोई सरकारी कर्मचारी, सिवाय बहुत ही विशेष परिस्थितियों के होने की दशा मे, किसी ऐसी सवारी गाड़ी का प्रयोग में नहीं लायेगा जो किसी असरकारी व्यक्ती का हो या किसी ऐसे सरकारी कर्मचारी का हो जो उसके अधीन हो।
टिप्पणी 1. पैरा 1059 M.G.O. – न्यायिक अधिकारियों के द्वारा वकीलो की सवारी का प्रयोग करना आपत्तिजनक है।
कोई सरकारी कर्मचारी किसी ऐसे सरकारी कर्मचारी से, जो उसके अधीन हो, अपनी ओर से या अपनी पत्नी या अपने परिवार के अन्य सदस्य की ओर से, चाहे अग्रिम भुगतान करने पर या अन्यथा, उसी शहर में या किसी दूसरे शहर में, खरीददारियाँ करने के लिए न तो स्वयं कहेगा और न अपनी पत्नी को या अपने परिवार के किसी ऐसे अन्य सदस्य को, जो उसके साथ रह रहा हो, कहने की अनुमति देगा।
यदि इन नियमों के निर्वचन से संबन्धित कोई प्रश्न उठ खड़ा हो, तो उसे सरकार के पास भेज देना चाहिए और उस पर सरकार का, जो भी निर्णय हो वह अंतिम होगा।
इन नियमों के प्रारम्भ होने से ठीक पूर्व प्रवृत्त कोई भी नियम, जो इन नियमों के तत्स्थानी (corresponding) थे और उत्तर प्रदेश की सरकार के नियंत्रण के अधीन सरकारी कर्मचारियों पर लागू होते थे, एतद द्वारा निरसित किये जाते हैं।
किन्तु प्रतिबंध यह है की इस प्रकार निरसित किये गये नियमों के अधीन जारी हुए किसी आदेश या की गई कार्यवाही के संबंध में यह समझा जायेगा कि वह आदेश या कार्यवाही इन नियमों के तत्स्थानी उपबन्धों के अधीन जारी किया गया था या की गई थी।