- आयुष तिवारी
कक्षा 7 ‘ब’
मैं छोटी सी जान अकेली
ना मुझको तुम बांधो,
उड़ने की इच्छा है मेरी
मत मेरे पर काटो |
मैंने कुछ ना माँगा तुमसे
मैंने कुछ ना बोला,
पर जब-जब पिंजरे में डाला
आया मुझको रोना,
इच्छा मेरी होती है
पर खोल, खुले गगन में मैं भी उडूं
बहती नदियों से पानी पीकर
आज़ाद परिंदों सा जीवन जियूँ |
- सारा खुमुशी
7 ‘अ’
चलो आज कुछ नया सीखें हम,
उपसर्ग और प्रत्यय हैं
व्याकरण के पाठ्यक्रम।
पहले जाने उपसर्ग का खेल ,
मूलशब्द से जो खाए मेल
शब्द सचमुच बदल जाए
अर्थ में परिवर्तन लाए
इसके हैं कई उदाहरण
सु, अति, अ और अन
शुद्ध भाषा का नियम बताए व्याकरण !
अब समय करो ना व्यय,
चलो जाने प्रत्यय।
मूलशब्द के अंत में जुड़े
मानो मनके माला में फिरे
आ, ई, आवट, पन और आस
ऐसे ही हैं बहुत शब्दांश ।
यह थी इनकी छोटी सी कथा
भाषा है हमारी आस्था !
क्या आप जानते हैं भारतीय भाषाओं की वर्णमाला विज्ञान से भरी है। वर्णमाला का प्रत्येक अक्षर तार्किक है और इन्हें सटीक गणना के साथ क्रमिक रूप से रखा गया है। इस तरह का वैज्ञानिक दृष्टिकोण अन्य विदेशी भाषाओं की वर्णमाला में शामिल नहीं है। जैसे देखें -
क ख ग घ ड़ - पाँच के इस समूह को कण्ठव्य कहा जाता है क्योंकि इस का उच्चारण करते समय कंठ से ध्वनि निकलती है। उच्चारण का प्रयास करें।
च छ ज झ ञ - इन पाँचों को तालव्य कहा जाता है क्योंकि इसका उच्चारण करते समय जीभ तालू के भाग को महसूस करेगी। उच्चारण का प्रयास करें।
ट ठ ड ढ ण - इन पांचों को मूर्धन्य कहा जाता है क्योंकि इसका उच्चारण करते समय जीभ मुर्धन्य (ऊपर उठी हुई) महसूस करेगी। उच्चारण का प्रयास करें।
त थ द ध न - पाँच के इस समूह को दंतव्य कहा जाता है क्योंकि यह उच्चारण करते समय जीभ दांतों को छूती है
प फ ब भ म - पाँच के इस समूह को कहा जाता है अनुष्ठान क्योंकि दोनों होठ इस उच्चारण के लिए मिलते हैं। कोशिश करें।
क्या दुनिया की किसी भी अन्य भाषा में ऐसा वैज्ञानिक दृष्टिकोण देखा गया है? इसलिए हमें अपनी भारतीय भाषाओं पर अभिमान है |
स्वामी विवेकानन्द
स्वामी विवेकानंद जी से एक जिज्ञासु ने प्रश्न किया, माँ की महिमा संसार में किस कारण से गाई जाती है? स्वामी जी मुस्कराए, उस व्यक्ति से बोले, पांच सेर वजन का एक पत्थर ले आओ। जब व्यक्ति पत्थर ले आया तो स्वामी जी ने उससे कहा, अब इस पत्थर को किसी कपड़े में लपेटकर अपने पेट पर बाँध लो और चौबीस घंटे बाद मेरे पास आओ तो मैं तुम्हारे प्रश्न का उत्तर दूँगा।
स्वामी जी के आदेशानुसार उस व्यक्ति ने पत्थर को अपने पेट पर बाँध लिया और चला गया। पत्थर बंधे हुए दिनभर वो अपना काम करता रहा, किन्तु हर क्षण उसे परेशानी और थकान महसूस हुई। शाम होते-होते पत्थर का बोझ संभाले हुए चलना- फिरना उसके लिए असह्य हो गया । थका-मांदा वह स्वामी जी के पास पहुँचा और बोला मैं इस पत्थर को अब और अधिक देर तक बांधे नहीं रख सकूँगा। एक प्रश्न का उत्तर पाने क लिए मैं इतनी कड़ी सजा नहीं भुगत सकता स्वामी जी मुस्कराते हुए बोले, पेट पर इस पत्थर का बोझ तुमसे कुछ घंटे भी नहीं उठाया गया। माँ अपने गर्भ में पलने वाले शिशु को पूरे नौ माह तक संभालती है और ग्रहस्थी का सारा काम करती है। संसार में माँ के सिवा कोई इतना धैर्यवान और सहनशील नहीं है। इसलिए माँ से बढ़ कर इस संसार में कोई और नहीं है।