हिंदी की कुछ संज्ञाएँ – परिभाषाओं एवं उदाहरणों के साथ : ११ - २०

११) नवनिर्माण = नए सिरे से निर्माण करने की क्रिया या भाव | जैसे, “बुनियादी रुप से शासन में भ्रष्ट आचरण को लेकर जेपी यह मानते थे कि देश की जनता के साथ छलावा किया जा रहा है | जिस उद्देश्य से गांधी और अन्य नेताओं ने आजादी की लड़ाई लड़ी थी उसे इंदिरा औऱ कांग्रेस ने महज सत्ता तक सीमित करके रख दिया है। असल में गांधी मौजूदा कांग्रेस को सेवा संघ में बदलने की बात कर रहे थे उसे नेहरू और इंदिरा ने परिवार की विचारशून्य पैदल सेना बना दिया। सम्पूर्ण क्रांति भारत के उसी नवनिर्माण को समर्पित एक जनांदोलन था जिसमें गांधी के सपनों को जमीन पर उतारने की बचनबद्धता भी समाई हुई थी। नवनिर्माण आंदोलन ने इंदिरा गांधी की सत्ता को उखाड़ा| देश ने एक वैकल्पिक सरकार भी देखी, लेकिन यह एक असफल विकल्प भी था जो असल में इस आंदोलन के अग्रणी नेताओं के नैतिक स्खलन का परिणाम भी था। जेपी की विरासत है तो बहुत लंबी, पर आज निष्पक्ष होकर कहा जा सकता है कि जो वैचारिक हश्र गांधी का कांग्रेस की मौजूदा पीढ़ियों ने किया है वही मजाक जेपी और समाजवादी आंदोलन के लोहिया, नरेंद्र देव, बिनोवा, अच्युत पटवर्द्धन, अशोक मेहता, मीनू मसानी, जनेश्वर मिश्र जैसे नेताओं के साथ उनके काफिले में पीछे चलने वाले समाजवादी नेताओं ने बाद में किया।आज लालू यादव, नीतीश कुमार, शरद यादव, हुकुमदेव यादव, सुशील मोदी, रविशंकर प्रसाद, मुलायम सिंह, विजय गोयल, रेवतीरमण सिह, केसी त्यागी से लेकर उतर भारत और पश्चिमी भारत के सभी राज्यों में जेपी आंदोलन के नेताओं की 60 प्लस पीढ़ी सक्रिय है। इनमें से अधिकतर केंद्र और राज्यों की सरकारों में महत्त्वपूर्ण पदों पर रहे है। सवाल यह उठाया ही जाना चाहिये कि जिस नवनिर्माण के लिये जेपी जैसी शख्सियत ने कांग्रेस में अपनी असरदार हैसियत को छोड़कर समाजवाद और गांधीवाद का रास्ता चुना उस जेपी के अनुयायियों ने देश के पुनर्निर्माण में क्या योग दिया है? लालू यादव, नीतीश कुमार, मुलायम सिंह के रूप में जेपी के चेले सिर्फ इस बात की गवाही देते है कि राजनीतिक क्रांति तो हुई लेकिन सिर्फ मुख्यमंत्री और दूसरे मंत्री पदों तक। जेपी और लोहिया का नारा लगाकर यूपी, बिहार, ओडिसा, गुजरात, कर्नाटक जैसे राज्यों के सीएम बने नेताओं ने भारत के भीतर उस व्यवस्था परिवर्तन के लिये क्या किया है जिसके लिये सम्पूर्ण क्रांति की अवधारणा और अपरिहार्यता को जेपी ने अपने त्याग और पुरुषार्थ से प्रतिपादित किया था। क्या जातियों की गिरोहबंदी, अल्पसंख्यकवाद, जातीय प्रतिक्रियावाद, भाई भतीजावाद, भ्रष्टाचार, शैक्षणिक माफ़ियावाद जैसी उपलब्धियां नही है जेपी के वारिसों के खातों में? क्या सामाजिक न्याय के नाम पर लालू, मुलायम, बीजू, देवगौडा, अजीत सिंह, ने शासन के विकृत संस्करण इस देश को नही दिए? माँ-बेटे (इंदिरा-संजय) के सर्वाधिकार को चुनौती देने वाली जेपी की समग्र क्रांति से सैफई, पाटिलीपुत्र, भुवनेश्वरऔर हासन के समाजवादी सामंत किस राजनीतिक न्याय की इबारत लिखते है? यह सवाल क्या आज पूछा नही जाना चाहिए?” https://www.prabhasakshi.com/currentaffairs/jps-overall-revolution-for-indias-parliamentary-democracy-is-still-timely

१२) गैर सरकारी संगठन = एक संगठन जो स्थानीय या राज्य या संघीय सरकार का हिस्सा नहीं है | जैसे कि, “भारत में वर्ष 2010 से 2019 की अवधि में गैर सरकारी संगठनों को मिलने वाले विदेशी चंदे की वार्षिक आमदनी दोगुनी हुई है। खास बात यह है कि 2016-17 और 2018-19 में 58 हजार करोड़ रुपये विदेशों से भारतीय एनजीओ के खातों में आए हैं। यह राशि भारत सरकार के कुछ कल्याणकारी विभागों से अधिक है। देश में करीब 22,500 ऐसे एनजीओ हैं, जो इस धनराशि को अपने कार्यक्रमों के नाम पर अमेरिका, चीन, जापान, यूरोप से लेकर इस्लामिक देशों से प्राप्त करते हैं। अध्ययन के नाम पर कुछ एनजीओ ने यूरोपीय आयोग, आयरलैंड सरकार और सयुंक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम जैसे संगठनों से भी बड़ा चंदा हांसिल किया। पिछले साल गृह मंत्रालय ने 12 एनजीओ की पहचान की जो रोहिंग्या मुसलमानों को भारत में अवैध रूप से प्रवेश कराने और उन्हें सयुंक्त राष्ट्र शरणार्थी प्रावधानों के अनुरूप कतिपय दस्तावेज उपलब्ध कराने का काम कर रहे थे। इन संगठनों में एमेनेस्टी इंटरनेशनल के भारतीय पदाधिकारियों के अलावा कोलकाता का बोंदी मुक्ति संगठन भी शामिल था। रोहिंग्या के मामले में सक्रिय अधिकतर एनजीओ दिल्ली में समाजकर्म के नाम पर पंजीकृत हैं। इस मामले में जामिया मिलिया के एक प्रोफेसर के साथ भारतीय विदेश सेवा के एक पूर्व अधिकारी प्रमुख भूमिका में थे।“ “एनजीओ के गठबंधन ने देश के मैदानी क्षेत्रों में तो अपना प्रभाव स्थापित किया ही, समानांतर रूप से शासन और राजनीति को भी लंबे समय से अपनी जकड़ में ले रखा है। ग्रीन पीस और फोर्ड फाउंडेशन समेत अनेक मिशनरीज और जेहादी उद्देश्यों वाले एनजीओ भारत में न केवल गरीबी और अशिक्षा का फायदा उठा रहे हैं, बल्कि भारतीय शासन और राजनीति को भी सीधे प्रभावित कर रहे हैं। नागरिकता संशोधन कानून को लेकर देशभर में माहौल को विषाक्त करने में इसी वर्ग की भूमिका संदेह में है।देश के कई राज्यों में अब राजनीतिक एजेंडे को भी यह एनजीओ आधारित समूह अपने हिसाब से चलाने की कोशिश कर रहा है। एक सरकारी रिपोर्ट के अनुसार परमाणु बिजली घर, कोयला बिजली घर, यूरेनियम खदान, जीएम तकनीक, पनबिजली परियोजना के मामलों में एनजीओ आधारित कानूनी अड़ंगों व धरना-प्रदर्शन के चलते भारत को तीन फीसद जीडीपी का घाटा उठाना पड़ता है।मोदी सरकार ने 2014 से अभी तक 20 हजार से अधिक एनजीओ के लाइसेंस रद किए हैं। देशभर में संचालित करीब 33 लाख एनजीओ में से केवल 10 फीसद ही सरकार को नियमित रिपोर्ट करते हैं।“ https://www.jagran.com/editorial/apnibaat-the-new-fcra-law-will-determine-accountability-foreign-funds-targeted-jagran-special-20859546.html

१३) पत्रकारिता = समाचार पत्र, पत्रिका से जुड़ा. व्यवसाय, समाचार संकलन, लेखन, संपादन, स्पष्ट विचारों की अभिव्यक्ति | जैसे, “हाल ही में देश की राजधानी में ऑनर किलिंग का मामला सामने आया। मोहम्मद अफरोज और मोहम्मद राज ने अपने साथियों के साथ मिलकर 18 साल के राहुल की पीट-पीटकर हत्या कर दी थी। आरोपित अफरोज को अपनी 16 साल की नाबालिग बहन के एक हिन्दू युवक राहुल के साथ प्रेम प्रसंग से आपत्ति थी। इस पर तमाम समाचार समूहों ने ख़बर प्रकाशित की इंडियन एक्सप्रेस, हिन्दुस्तान टाइम्स और इंडिया टुडे लेकिन इन समाचार समूहों ने ख़बर के मूल तथ्यों को सामने नहीं रखा। न तो आरोपितों की पहचान को आगे रखा, न ही हत्या की असल वजह को और न मृतक की पहचान को। यह सिलसिला नया नहीं है, बीते कुछ समय में इन दिग्गज समाचार समूहों की मज़हबी पत्रकारिता का रवैया कुछ ऐसा ही रहा है। तथ्य खुद में कितना हास्यास्पद है कि जब एक अल्पसंख्यक समुदाय के व्यक्ति की हत्या होती है, तब सारे मीडिया संस्थान हर ज़रूरी/गैर ज़रूरी तथ्य को आगे रखते हैं (भले उससे कितना ही सौहार्द क्यों न बिगड़े)। दिल्ली की इसी घटना पर इंडिया टुडे ने ख़बर प्रकाशित की, ख़बर के शीर्षक में ही बताया गया कि वह दिल्ली विश्वविद्यालय का छात्र था। उसकी पीट पीट कर हत्या कर दी गई, इसकी वजह थी एक लड़की से दोस्ती। यहाँ न तो यह बताया गया कि लड़का हिन्दू था और न ही ये बताया गया कि लड़की और उसके हत्यारे भाई का मज़हब क्या था। वहीं दूसरी तरफ 2019 के जून महीने में झारखंड स्थित खारसवान जिले में भीड़ ने एक युवक को बुरी तरह पीटा तब इंडिया टुडे की ख़बर के शीर्षक में उसका मज़हब भी था और पिटाई की तथा कथित वजह भी।“ https://hindi.opindia.com/opinion/media-opinion/media-hides-hindu-identity-when-hindus-are-lynched-and-murdered-rahul-rajasthan/

१४) प्रगतिशील = प्रगति करनेवाला या जो बराबर उन्नति करता हुआ आगे बढ़ता हो |   जैसे, “तीन तलाक के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में कानूनी जंग लड़ने वाली सायरा बानो ने भारतीय जनता पार्टी का दामन थाम लिया है। सायरा बानो देश की पहली मुस्लिम महिला हैं, जिन्होंने तीन तलाक के खिलाफ कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। उत्तराखंड की रहने वाली सायरा बानो ने ही पहली बार तीन तलाक (Triple Talaq), बहुविवाह (Polygamy) और निकाह हलाला पर प्रतिबंध लगाने की माँग करते हुए फरवरी 23, 2016 में सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की थी। इस कानूनी लड़ाई में उन्हें जीत हासिल हुई। बीजेपी में शामिल होने पर सायरा बानो ने कहा कि पीएम नरेंद्र मोदी और बीजेपी की नीतियों से प्रेरित होकर वो पार्टी में शामिल हुईं हैं। वो महिलाओं को न्याय दिलाने के लिए संघर्ष करती रहेंगी। बीजेपी में शामिल होने पर प्रतिक्रिया देते हुए सायरा बानो ने पीटीआई से कहा “बीजेपी का मुस्लिम महिलाओं के प्रति प्रगतिशील दृष्टिकोण और जिस प्रतिबद्धता के साथ समावेशी विकास के दरम्यान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में ट्रिपल तलाक मुद्दे पर काम किया, उसने मुझे पार्टी में शामिल होने के लिए आकर्षित किया।” उत्‍तराखंड के ऊधम स‍िंह नगर की रहने वाली सायरा बानो (38) कहती हैं कि वह अल्‍पसंख्‍यक समुदाय के बीच बीजेपी के बारे में मौजूद ग़लतफ़हमियाँ दूर करना चाहती हैं। उन्हों ने कहा कि वह मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों के लिए लड़ने और उच्च शिक्षा तक पहुँच से वंचित करने जैसे अन्याय से छुटकारा पाने के लिए भाजपा में शामिल हुई। https://hindi.opindia.com/politics/triple-talaq-shayara-bano-joins-bjp/?crst=1602459449&wrst=1602459448

१५) कथित = जो कहा गया हो; कहा हुआ; भाषित; जिसका उल्लेख या कथन हुआ हो | जैसे, “हाथरस मामले में कथित ‘फेक भाभी’ के कथित नक्सल कनेक्शन और मार्क्सवादी कनेक्शन के बाद सोशल मीडिया पर अब इसके कॉन्ग्रेसी सम्बन्ध चर्चा का विषय हैं। मीडिया रिपोर्ट्स में इस महिला के बारे में दावा किया जा रहा था कि वह पीड़ित परिवारवालों के घर में मृतका की फेक भाभी बन कर रह रही थी। यह भी माना जा रहा है कि यह महिला मीडिया और पीड़ित परिवार से मिलने आ रहे राजनीतिक दलों से क्या और कैसे कहना है, इस बारे में परिजनों को सीखाने का काम करती थी। हाथरस में पीड़िता के घर में ‘नकली भाभी’ बनकर रहने की आरोपित डॉ राजकुमारी बंसल अब लगातार अपने बयान भी बदल रही हैं और पीड़िता की भाभी या बहन होने से भी इंकार कर रही हैं। वहीं ट्विटर यूज़र्स ने कथित नक्सली महिला का कनेक्शन कॉन्ग्रेस से भी होने का दावा किया है।“ https://hindi.opindia.com/social-media-trends/fake-bhabhi-hathras-rajkumari-bansal/  

१६) वायरल = यह शब्द मुख्य रूप से ऐसी बीमारियों के लिए प्रयोग किया जाता है जो एक से दूसरे व्यक्ति या जीव में बड़ी तेजी से फैलती हैं और देखते-देखते समाज के बड़े समूह को अपनी चपेट में ले लेती हैं। हिंदी में इसे "संक्रामक बीमारी" कहा जाता है। वहीं वायरल शब्द का हिंदी में मतलब होता है "संक्रामक" अर्थात वह जो बहुत ही तेजी से फैले। इसलिए जब कोई वीडियो बहुत ही तेजी से लोगों में फैल जाती है तो उसे वायरल वीडियो कहा जाता है। जैसे, “सोशल मीडिया पर एक बच्चे का वीडियो वायरल हो रहा है, जिसमें वो एक मौलवी द्वारा किए गए काले करतूतों को लेकर बात कर रहा है। बच्चे ने वायरल वीडियो में बताया कि वो इस्लामिया मदरसा का छात्र है। उसने बताया कि उस मदरसे में जो मौलवी उर्दू पढ़ाता है, वो बच्चों के साथ सोता है। बच्चे ने बताया कि सुबह 4 बजे ही मदरसे में सबको उठा दिया जाता है, जिसके बाद उन्हें नमाज पढ़ाया जाता है। मदरसे की दिनचर्या बताने के क्रम में बच्चे ने कहा कि सुबह के नाश्ते के बाद पढ़ाई होती है, फिर दोपहर में नमाज के बाद वो खा कर सो जाते हैं। बच्चे ने बताया कि मदरसे में उर्दू के अलावा कुछ और नहीं पढ़ाया जाता है। इसके अलावा हदीस पढ़ाया जाता है। उक्त मौलवी के बारे में बच्चे ने बताया कि वो सीतापुर का रहने वाला है, जो हाथरस में रहता है। साथ ही वो उर्दू के अलावा कुछ और की शिक्षा नहीं देता है। बच्चे ने बड़ा खुलासा करते हुए बताया कि रात में भोजन करने के बाद मौलवी मदरसे के किसी न किसी बच्चे को लेकर अपने बिस्तर पर सो जाता है। उसने बताया कि मौलवी नहाने के समय गुसलखाने में भी लड़कों के साथ गन्दी बात करता है। वीडियो से प्रतीत होता है कि ये बच्चा किसी छोटी बच्ची को लेकर कहीं जा रहा था। उससे किसी ने पूछा कि वो इस बच्ची को लेकर क्यों जा रहा है? इसके जवाब में बच्चे ने कहा कि मौलवी उसे गन्दी बातें करने को बोलते हैं और कहते हैं कि हिन्दुओं की लड़कियों के साथ ‘गन्दी बातें’ करो। पुलिस ने इस वायरल वीडियो के बारे में अहम जानकारी दी। हाथरस पुलिस ने इस घटना को लेकर कहा कि उक्त प्रकरण में प्रभारी निरीक्षक सादाबाद द्वारा बताया गया कि उक्त वीडियो वर्ष 2018 का है। पुलिस ने बताया कि इसके संबंध में थाना सादाबाद पर वर्ष 2018 में अभियोग पंजीकृत कर 03 नामजद बालअपराधियों को बाल सुधारगृह एवं एक अन्य प्रकाश में आए अभियुक्त को गिरफ्तार कर जेल भेजा जा चुका है।“ https://hindi.opindia.com/fact-check/social-media-fact-check/maulvi-sleeps-with-madarsa-minor-students-ask-to-do-dirty-things-with-hindu-girls-viral-video-of-boy-fact-check/ 

१७) मानवाधिकार = मौलिक अधिकार एवं स्वतंत्रता, जिसके सभी मानव प्राणी हकदार है। जैसे, https://youtu.be/6vpTT5-jozs

१८) पर्दाफ़ाश = सच को सामने लाना | जैसे, https://youtu.be/C4B3E8CB2WQ

१९) कार्रवाई = किसी घटना या किसी व्यक्ति की हरकत पर आधिकारिक तौर पर कदम उठाना | जैसे, https://youtu.be/YhC9akmHgzQ

२०) नारीवाद = नारी की स्वतंत्रता, समता और अस्मिता का पक्षधर एक सिद्धांत या वाद जो स्त्री और पुरुष के बीच की असमानताओं का विरोध करता है | जैसे, “जिस नेपोटिज्म को कंगना रनौत ने उठाया है उसे सत्ता सिंडिकेट के अनुरूप समझने की भी जरूरत है। यह सिंडिकेट लिब्रलजिम के नाम पर भारतीय संस्कृति को अपमानित, लांछित और नष्ट करने वाले अभिनय को ही प्रतिभा का एक मात्र आधार मानकर चलता है। जिस सांस्कृतिक साम्राज्यवाद को हमें समझने की आवश्यकता है उसे शिकारा जैसी फिल्मों के जरिये भी समझा जा सकता है जो कश्मीरी पंडितों पर बनाई गई। इस मूवी में पंडितों को ही कट्टरपंथी और मुसलमानों को इंसानियत का सिपाही दिखाया गया। कंगना विवाद के अक्स में वामपंथियों के फॅमिनिज्म की असलियत भी देश के सामने आ गई है। भारत में "नारीवाद" नहीं एक तरह के "औरतवाद" के हामी हैं वामपंथी। वामपंथी नारीवाद के नाम पर भारत की मान्य मर्यादाओं को तिरोहित करके एक "भोगवादी औरत" को लोकजीवन में गढ़ना चाहते हैं। कल्पना कीजिये अगर कंगना की जगह शबाना, स्वरा, दीपिका, एकता जैसे वामप्रिये चेहरों के घर पर यूं बुलडोजर बीजेपी सरकार में चला दिया जाता। या कोई मंडल/पंचायत स्तर का नेता "हरामखोर" शब्द उपयोग करता। भारत ही नहीं दुनियाभर में हल्ला मचा दिया जाता। टाइम्स, हिन्दू, इंडियन एक्सप्रेस, टेलीग्राफ के पहले पेज सैफरॉन टेरिज्ज्म, फ़ण्डामेंटलिज्म, से लेकर संघ और मोदी के विरुद्ध कुतर्कों से गढ़ी गई जवाबदेही तय कर रहे होते। राजदीप, स्वरा, अभिसार, राणा, आरफा, कन्हैया, राजदान, व्रन्दा, आशुतोष, पुण्य प्रसून, विनोद दुआ, तवलीन सिंह, बरखा, अशोक वाजपेयी, रोमिला, हर्ष मंदर, योगेंद्र यादव, प्रशांत भूषण जैसे तमाम इंटलेक्चुअल के अलावा मायावती, ममता, सोनिया तक नारी सम्मान और समर्थन में हैशटेग चला रहे होते। कंगना के मुद्दे पर नारीवाद की दुकानें आज पूरी तरह से बंद हैं तो सिर्फ इसलिए कि कंगना उन लिबरल्स गिरोहों में नहीं हैं जो भारतीय जीवनमूल्यों को तिरष्कृत कर, इस्लामिक तत्वों को ग्लोरीफाई करते हैं। हकीकत यह है कि कंगना और राष्ट्रवाद दोनों फॅमिनिज्म में फिट नहीं हो सकते हैं क्योंकि इस वामपंथी अवधारणा में पहली शर्त ही राष्ट्र और हिंदुत्व के विरुद्ध खड़ा होना है। कंगना खंब ठोक कर राष्ट्र के साथ खड़ी हैं। लेकिन नारीवाद के ईकोसिस्टम में तो यह सब निषिद्ध है। इसलिए कंगना को वामपंथी नारीवादियों ने आइसोलेट कर दिया। लेकिन इस आइसोलेशन के अक्स में कॉमरेड वही गलती कर गए हैं, जो संसदीय राजनीति में उनके अस्तित्व को मिटा गई। वस्तुतः नए भारत की सामूहिक चेतना में आज बड़ा बदलाव आया है। सड़क-2 और छपाक के साथ दर्शकों की प्रतिक्रिया के साथ ही बॉलीवुड को इसे समझ लेना चाहिये। देश का बहुसंख्यक अब अपने अवचेतन में सांस्कृतिक साम्रज्यवाद को जगह देने के लिए तैयार नहीं है। संयोग से देश में ऐसी सरकार भी है जो अल्पसंख्यकवाद को  नहीं ढोती है। यह नैरेटिव अब देश में चलने वाला नहीं है क्योंकि बॉलीवुड का एंटी हिन्दू लिबास सिलसिलेवार उतर रहा है। कंगना रनौत प्रतीकात्मक रूप से इस स्थापित सल्तनत को खण्डित कर रही हैं और इसे संसदीय राजनीति की तरह ही भारतीय अभिनय जगत का शुद्धिकरण भी हम कह सकते हैं। पुनश्चः- इतिहास उन्हें स्मरण रखता है जो साहस का परिचय देते हैं, सत्य के साथ खड़े रहते हैं। इस सुगठित, सशक्त बौद्धिक जिहाद के विरुद्ध नव सृजन की आहट को सुन रहा है राष्ट्र। https://www.prabhasakshi.com/column/kangana-has-started-the-purification-of-bollywood