Modern Physics

आधुनिक भौतिकी

परिचय (Introduction)

19वीं शताब्दी में भौतिकविज्ञानी यह मानते थे कि नवीन महत्वपूर्ण आविष्कारों का युग प्राय: समाप्त हो चुका है और सैद्धांतिक रूप से उनका ज्ञान पूर्णता की सीमा पर पहुँच गया है किंतु नवीन परमाणवीय घटनाओं की व्याख्या करने के लिये पुराने सिद्धांतों का उपयोग किया गया, तब इस धारणा को बड़ा धक्का लगा और आशा के विपरीत फलों की प्राप्ति हुई। आधुनिक भौतिकी में अक्सर नए सिद्धांतों के माध्यम से प्रकृति का एक अध्ययनशामिल होता है जो क्लॉसिकल विवरणों से अलग हैऔर इसमें क्वांटम यांत्रिकी और आइंस्टीनियन सापेक्षता के तत्व शामिल हैं। उदाहरण के लिए, क्वांटम प्रभाव में आमतौर पर परमाणुओं से संबंधित दूरी शामिल होती है। दूसरी ओर, सापेक्षतावादी प्रभाव में आमतौर पर प्रकाश की गति की तुलना में वेग शामिल होते हैं।जब मैक्स प्लांक ने तप्त कृष्ण पिंडों के विकिरण की प्रवृति की व्याख्या चिरसम्मत भौतिकी के आधार पर करनी चाही, तब वे सफल नही हुए। इस गुत्थी को सुलझाने के लिये उनको यह कल्पना करनी पड़ी कि द्रव्यकण प्रकाश-ऊर्जा का उत्सर्जन एवं अवशोषण अविभाज्य इकाइयों में करते हैं। यह इकाई क्वांटम कहलाती है। चिरसम्मत भौतिकी की एक अन्य विफलता प्रकाश-वैद्युत प्रभाव की व्याख्या करते समय सामने आई। इस प्रभाव में प्रकाश के कारण धातुओं से इलेक्ट्रानों का उत्सर्जन होता है। इसकी व्याख्या करने के लिये आईंस्टाइन ने प्लांक की कल्पना का सहारा लिया और यह प्रतिपादित किया कि प्रकाश ऊर्जा कणिकाओं के रूप में संचरित होती है। इन कणिकाओं को फोटॉन कहा जाता है। यदि प्रकाश तरंग की आवृति v हो तो उससे संबद्ध फोटॉन की ऊर्जा E=hν होती है। h को प्लांक स्थिरांक कहते हैं

1905 ई0 में आइंस्टीन ने विशिष्ट आपेक्षिकता नामक एक अति क्रांतिकारी सिद्धांत का प्रतिपादन किया। इसके अनुसार शून्य में प्रकाश का वेगस्थिरांक है और यह किसी भी वेग की चरम सीमा है। द्रव्य हो अथवा ऊर्जा किसी के लिये भी इससे तीव्रतर वेग संभव नहीं। इस सिद्धांत के अनुसार लंबाई तथा समय दोनों आपेक्षिक हैं। इनकी मात्राएँ प्रेक्षक की गति की दिशा में सिकुड़ा हुआ प्रतीत होगा। यहाँ तक कि प्रकाशवेग से गति करने पर दंड की लंबाई शून्य हो जायगी। इसी प्रकार समय का फैलाव होता है एवं प्रकाश की गति से चलने पर यह फैलाव इतना होगा कि प्रत्येक क्षण फैलकर असीमित हो जाएगा, अर्थात समय रूक जायगा। आईंस्टाइन के सिद्धांत का एक चमात्कारिक अंग हैं कि उर्जा और द्रव्यमान दोनों का एक दूसरे में परिवर्तन संभव है। इन दोनों का संबंध सूत्र E = mc2 से दर्शाया जाता है। यहाँ E ऊर्जा है, m द्रव्यमान और c शून्य में प्रकाश का वेग।


प्लैंक की परिकल्पना (Plank’s hypothesis)

प्लांक ने कृष्णिका (Black Body) रेडियेशन पर कार्य करते हुए एक नियम दिया जिसे वीन-प्लांक नियम के नाम से जाना जाता है। बाद में उन्होने पाया कि बहुत से प्रयोगों के परिणाम इससे अलग आते हैं। उन्होने अपने नियम का पुनर्विश्लेषण किया और एक आश्चर्यजनक नई खोज पर पहुंचे, जिसे प्लांक की क्वांटम परिकल्पना कहते हैं।

प्लैंक ने बताया कि किसी धातु के द्वारा विकिरण ऊर्जा का शोषण (absorption) अथवा उत्सर्जन (emission) असतत् (discontinuous) होता है, जबकि क्लासिकल भौतिकी के अनुसार यह सतत् (continuous) माना जाता था।ऊर्जा का शोषण अथवा उत्सर्जन निश्चित ऊर्जा के पैकेटों (bundles) के रूप में होता हैlऊर्जा के पैकेटको क्वाण्टा (quanta) अथवा फोटॉन (photon) कहते हैं।

हर क़्वान्टा की ऊर्जा निश्चित होती है तथा केवल प्रकाश (विकिरण) की आवृत्ति (रंग) पर निर्भर करती है।एक क्वाण्टा की ऊर्जा होगी

E= hν ..........(1)

जहॉ,h =प्लांक नियतांक (Planck’s constant)

ν =आपतित प्रकाश की आवृत्ति (frequency)

हमें ज्ञात है कि

ν= c/λ ……………(2)

अतः समीकरण (2) का मान समीकरण (1) में रखने पर

E= hν = hc/λ …………………(3)

जहाँ h = प्लांक नियतांक = 6.62607×10-34 जूल-सेकेण्ड

c = प्रकाश का वेग = 3×108 m/s

λ = प्रकाश का तरंगदैर्ध्य

क्वांटा / फोटॉन के गुण (Properties of Quanta / Photon)

फोटॉन के मूल गुण हैं:

  • उनके पास शून्य द्रव्यमान और विराम ऊर्जा (Rest energy) है। वे केवल गतिमान कणों के रूप में मौजूद होतेहैं।

  • विराम द्रव्यमान (Rest mass) होने के बावजूद वे प्राथमिक कण (elementary particles) हैं।

  • उनके पास कोई इलेक्ट्रिक चार्ज नहीं होताहै।

  • वे स्थिर होतेहैं।

  • वे स्पिन -1 कण हैं जो उन्हें बोसॉन बनाते हैं।

  • उनके पास ऊर्जा और सम्वेगहोता है जो कि आवृत्ति पर निर्भर करता हैं।

  • वे अन्य कणों जैसे इलेक्ट्रॉनों, जैसे कॉम्पटन प्रभाव के साथ अर्न्तक्रिया(interaction) कर सकते हैं।

  • जब विकिरण अवशोषित या उत्सर्जित होतीहै, तो उन्हें कई प्राकृतिक प्रक्रियाओं द्वारा नष्ट किया जा सकता है या निर्मित किया जा सकता है।

  • निर्वात में वे प्रकाश के वेग से गति करते हैं।

क्वाण्टम सिद्धांत के अनुप्रयोग (Application of Quantum Theory)

क्वांटम भैतिकीने ब्रह्मांड की कई विशेषताओं को समझाने में भारी सफलता प्राप्त की है। क्वांटम भैतिकीएकमात्र सिद्धांत है जो उप परमाण्विक कणों (sub-atomic particles) के व्यवहार की व्याख्या करती है,जो सभी प्रकार के पदार्थ (इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन, न्यूट्रॉन, फोटॉन और अन्य) कोबनाते हैं। इसके मुख्य अनुप्रयोग निम्न हैं-

  • कई आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों क्वांटम यांत्रिकी का उपयोग कर डिजाइन किए गए हैं। उदाहरणों के रुप मे लेजर, ट्रांजिस्टर (और इस प्रकार माइक्रोचिप), इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप, और चुंबकीय अनुनाद इमेजिंग (MRI) शामिल हैं। अर्धचालक (semiconductor) के अध्ययन से डायोड और ट्रांजिस्टर का आविष्कार हुआ, जो आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक्स सिस्टम, कंप्यूटर और दूरसंचार उपकरणों के अनिवार्य हिस्सों है।

  • क्वांटम क्रिप्टोग्राफी को और अधिक विकसित करने के प्रयास किए जा रहे हैं, जिससे सैद्धांतिक रूप से सुचना का निश्चित रूप से सुरक्षित संचरण होगा।

  • क्वाण्टम कम्प्यूटर का विकास की भी कोशिश हो रही है जिससे कई कार्यों को कई गुना तेजी से करने की आशा की जा रही है।

  • अन्य सक्रिय शोध विषय क्वांटम टेलीपोर्टेशन है, जो मनचाही दूरी पर क्वांटम जानकारी संचारित करने के लिए तकनीकों से संबंधित है।

विस्तृत अध्ययन के लिए निम्न विडियो देखें :-

प्रकाश-विद्युत प्रभाव (Photo-electric Effect )

परिभाषा (Definition)

1887 में हेनरिक हर्ट्ज प्रकाश-विद्युत प्रभाव की खोज की गई । जब भी प्रकाश या विद्युत चुम्बकीय विकिरण एक धातु की सतह पर आपतित होते हैं, तो धातु से इलेक्ट्रॉनों का उत्सर्जन होता है | जब उपयुक्त आवृत्ति के विकिरण एक धातु की सतह पर आपतित होते है तो इलेक्ट्रॉन के उत्सर्जन की इस घटना है को प्रकाश विद्युत प्रभाव कहा जाता है । उत्सर्जित इलेक्ट्रॉनों को फ़ोटो ईलेक्ट्रॉन कहा जाता है । जिंक, कैडमियम आदि जैसी धातुयें पराबैंगनी किरणों के प्रति संवेदनशील है, जबकि सोडियम, पोटेशियम, क्षार आदि धातुयें दृश्य प्रकाश के प्रति संवेदनशील हैं ।

प्रकाश विद्युत प्रभाव के नियम ( Laws of Photoelectric Effect )

  1. उत्सर्जित फोटो इलेक्ट्रॉनों की अधिकतम गतिज ऊर्जा, आपतित प्रकाश की आवृत्ति के समानुपाती होती है, परंतु यह गतिग ऊर्जा आपतित प्रकाश की तीव्रता पर निर्भर नही करती है ।

  2. फोटोइलेक्ट्रिक उत्सर्जन एक तात्कालिक प्रक्रिया है। यानी आपतित प्रकाश और फोटो इलेक्ट्रॉनों के उत्सर्जन के बीच कोई समय अंतराल नहीं होता है ।

  3. किसी प्रकाश सम्वेदंशील पदार्थ से प्रकाशीय ईलेक्ट्रॉन उत्सर्जन की दर आपतित प्रकाश की तीव्रता के समानुपाती होती है , बशर्ते आपतित प्रकाश की आवृत्ति, देहली आवृत्ति से अधिक हो ।

  4. किसी प्रकाश संवेदनशील पदार्थ के लिए, एक न्यूनतम आवृत्ति जिसे देहली आवृत्ति कहा जाता है, जिसके नीचे फोटोइलेक्ट्रॉनों का उत्सर्जन पूरी तरह से बंद हो जाता है, चाहे आपतित प्रकाश की तीव्रता कितनी भी रहे ।

विस्तृत अध्ययन के लिए निम्न विडियो देखें :-

प्रकाश विद्युत सैल एवं उनके अनुप्रयोग (Photo-electric Cell and their Applications)

प्रकाश विद्युत सेल वह उपकरण है जो प्रकाश को विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित करता है । प्रकाश विद्युत सेल तीन तरह के होते हैं :

  • प्रकाश उत्सर्जन सेल (Photo-emission cell)

  • प्रकाश वॉल्टिक सेल (Photovoltaic Cell)

  • प्रकाश चालक सेल ( Photoconductive Cell)

इस प्रसंग में हम प्रकाश उत्सर्जन सेल की चर्चा करेंगे । इस पर कांच या Quartz का बना एक बल्ब होता है, जिसके अंदर पूर्णतः निर्वात होता है । इसे चित्र में प्रदर्शित किया गया है । बैटरी के ऋणात्मक टर्मिनल से जुड़ा अर्द्ध- गोलाकार सेल कैथोड का कार्य करता है । इस प्लेट पर कम कार्यफ़लन का पदार्थ लगाया जाता है जैसे कैल्शियम ऑक्साइड । बैटरी के धनात्मक टर्मिनल से एक पतला प्लैटिनम तार 'A' एनोड का कार्य करता है । जब उचित तरंगदैर्ध्य की किरण आपतित होती है, तो प्रकाश इलेक्ट्रॉन उत्सर्जित होते हैं और यह 'A' ही तरफ आकर्षित होते हैं । उत्पन्न धारा को माइक्रोएमीटर से मापा जाता है । किसी आवृत्ति के लिए उत्पन्न धारा का मान आपतित प्रकाश की तीव्रता पर निर्भर करता है ।

रचना (Construction)–

फोटोसेल में एक खाली ग्लास ट्यूब होता है जिसमें दो-इलेक्ट्रोड उत्सर्जक (emitter) (E) और संग्राहक (collector) (C) होते हैं। उत्सर्जक को एक अर्ध–खाली सिलेंडर के रूप में आकार दिया गया है। इसे हमेशा ऋणात्मक पर रखा जाता है। संग्राहक एक धातु की छड़ के रूप में है और अर्ध-बेलनाकार उत्सर्जक के अक्ष पर लगाया जाता है। संग्राहक को हमेशा धनात्मक पर रखा जाता है। ग्लास ट्यूब को गैर-धातु आधार पर लगाया जाता है और बाहरी कनेक्शन के लिए आधार पर पिन प्रदान की जाती है।

कार्यप्रणाली (Working)–

उत्सर्जक, ऋणात्मक से जुड़ा है और संग्राहक बैटरी के धनात्मक टर्मिनल से जुड़ा है। उत्सर्जक पर देहली आवृति से अधिक आवृति की के विकिरण को डाला जाता है। फोटो ईलेक्ट्रॉन के उत्सर्जन का कार्य होता । उत्सर्जित फोटो ईलेक्ट्रॉन, उत्सर्जक की ओर आकर्षित होते हैं जो कि संग्राहककी तुलना में धनात्मक होता है। इस प्रकार सर्किट में धारा प्रवाहित होती है। यदि आपतित प्रकाश की तीव्रता बढ़ जाती है, तो प्रकाश-विद्युत धारा का मान बढ़ जाता है।

अनुप्रयोग (Applications)–

  1. प्रकाश विद्युत सैल का उपयोग छायांकन में ध्वनि उत्पन्न करने में किया जाता है ।

  2. भट्टियों के ताप को नियंत्रित करने में इअनका उपयोग किया जाता है ।

  3. तारों के ताप व स्पेक्ट्रा के अध्ययन के लिए इनका उपयोग किया जाता है ।

  4. अंतरिक्ष यात्रा के दौरान, विद्युत ऊर्जा प्राप्त करने के लिए इनका उपयोग किया जाता है ।

  5. स्वचालित दरवाजों को खोलने के लिए या बंद करने के लिए इनका उपयोग किया जाता है।

  6. दैनिक जीवन में इनका इस्तेमाल आमतौर पर होने लगा है ।

X - किरणें ( X - Rays )

विलियम रॉन्टगन ने 1895 में एक्स- किरणों की खोज | रॉन्टगन को 1901 में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया |जब कैथोड किरणों उच्च गलनांक की भारी धातुओं पर प्रहार करती हैं तो, उनकी ऊर्जा का एक बहुत छोटा सा अंश एक नई प्रकार की तरंग के रूप में परिवर्तित हो जाता है जिन्हे एक्स -किरणें कहा जाता है | एक्स-किरणें 0.5 Å से 10 Å की सीमा की कम तरंग दैर्ध्य की विद्युत चुम्बकीय तरंगें हैं ।

उत्पादन / Production (Modern Coolidge tube)

डॉ विलियम कॉलेज, ने 1913 में, एक्स-रे के उत्पादन के लिए एक ट्यूब का डिजाईन किया । इस ट्यूब को कूलिज ट्यूब या आधुनिक एक्स रे ट्यूब के रूप में जाना जाता है। जब तेज गति के इलेक्ट्रॉन एक उच्च परमाणु संख्या के ठोस लक्ष्य पर प्रहार करते है, जैसे प्लैटिनम, टंगस्टन, मोलिब्डेनम आदि, तो एक्स-किरणों का उत्पादिन होता हैं। एक ग्लास ट्यूब G जिसमें निर्वात पारे के 10-5 मिमी के लगभग रहता है व एक कैथोड और लक्ष्य T भी होता है । फ़िलामेंट F को उचित विद्युत धारा द्वारा गरम किया जाता है। कैथोड और एनोड के बीच बेहद उच्च विभावंतर की वजह से, इलेक्ट्रॉनों उच्च गति के साथ लक्ष्य पर पहुंचते हैं। एनोड पर आपतित होते ही, इलेक्ट्रॉन स्थिर अवस्था में आ जाते हैं । लगभग 98% इलेक्ट्रान उष्मीय ऊर्जा में परिवर्तित हो जाती हैं। शेष ऊर्जा एक्स-किरणों के रूप में प्रकट होती है। एनोड में होना चाहिए:

  • उच्च परमाणु भार - कठोर एक्स-रे का उत्पादन करने के लिए

  • उच्च गलनांक - ताकि यह तेजी से बढ़ने वाले इलेक्ट्रॉनों की बमबारी के कारण पिघल न जाए, जिससे बहुत अधिक गर्मी उत्पन्न होती है।

  • उच्च तापीय चालकता - उत्पन्न उष्मा को दूर करने के लिए।

तीव्र उर्जा धातु के लक्ष्य को पिघला सकती है। इसलिए, लक्ष्य को ठंडा किया जाना चाहिए। सामान्य विधि है कि लक्ष्य को खोखले तांबे की ट्यूब पर लगाया जावे व ठंडे पानी लगातार वितरित किया जावे ।

X - किरणों के प्रकार (Types of X – Rays)

X - किरणें दो प्रकार की होती हैं :-

  • नरम एक्स – किरणें / Soft X- Ray

  • कठोर एक्स – किरणें / Hard X – Ray


नरम एक्स – किरणें / Soft X- Ray :- 4 Å या इससे अधिक की तरंग दैर्ध्य जिनके पास कम आवृत्ति और कम ऊर्जा होती है। उन्हें कम विभेदन क्षमता के कारण नरम एक्स - किरणें कहा जाता है। वे अपेक्षाकृत कम विभवांतर पर उत्पादित हो जाती हैं।

कठोर एक्स – किरणें / Hard X – Ray :- 1Å या कम तरंगदैर्ध्य की एक्स-किरणें जिनके पास उच्च आवृत्ति और उच्च ऊर्जा होती है। उनके पास अधिक विभेदन क्षमता होती है अतः उन्हें कठोर एक्स- किरणें कहा जाता है । वे अपेक्षाकृत अधिक विभवांतर पर उत्पादित होती हैं।

X – किरणें स्पेक्ट्रा ( X – Ray Spectrum)

जैसा कि हमने पढ़ा कि X – किरणों का उत्पादन कूलिज ट्यूब द्वारा किया जाता है। उत्पन्नX – किरणों के दो प्रकार को होती हैं - निरंतर (जो प्रदान किए गए त्वरित वोल्टेज पर निर्भर करती हैं) और विशेषता (जो कि केवल प्रकृति या उपयोग किए गए लक्ष्य की प्रकृति पर निर्भर करती है) ।

(i) निरंतर X – किरणें स्पेक्ट्रा

इसमें सभी संभावित तरंग दैर्ध्य के विकिरण होते हैं, जो कि निरंतर रूप से निचली सीमा से उच्च सीमा तक होते हैं जैसाअ कि प्रकाश के मामले में होता है।

उत्पत्ति - एक्स-रे उत्पन्न होती हैं, जब उच्च वेग इलेक्ट्रॉन उच्च परमाणु संख्या के लक्ष्य पर प्रहार करते हैं। एक्स-रे के उत्पादन में यह भी उल्लेख किया गया है, कि इलेक्ट्रॉनों की अधिकांश ऊर्जा लक्ष्य सामग्री के ताप बढ़ाने में व्यया हो जाती है ।

कुछ तेज गति वाले इलेक्ट्रॉन लक्ष्य सामग्री के परमाणुओं के आंतरिक भाग में गहराई से प्रवेश करते हैं और उन इलेक्ट्रॉन के नाभिक के आकर्षक बलों द्वारा नाभिक की ओर आकर्षित होते हैं। इन बलों के कारण, इलेक्ट्रॉनों अपने मूल पथ से विक्षेपित हो जाता है। इसके परिणामस्वरूप, इलेक्ट्रॉनों का त्वरण कम हो जाताहै, और इसलिए इलेक्ट्रॉन की ऊर्जा लगातार घटती जाती है। घटता त्वरण उनकी ऊर्जा कोएक्स-रे में परिवर्तित कर देता है जिसकी तरंग दैर्ध्य में निरंतर रुप से परिवर्तन होता रहता है । एक्स - रे में अधिकतम आवृत्ति या न्यूनतम तरंग दैर्ध्य तक की एक निरंतर श्रृंखला होती है। इसे निरंतर X –किरणें कहा जाता है। न्यूनतम तरंग दैर्ध्य एनोड केवोल्टेज पर निर्भर करता है। यदि एनोड और कैथोड के बीच विभावांतरहै तो,

eV = hνmax = hc / λmin

या

λmin = hc⁄eV

जहां प्लैंक नितांक,प्रकाश का वेग है और , इलेक्ट्रॉन का आवेश है। उपरोक्त समीकरण में ज्ञात मूल्यों को प्रतिस्थापित करनेपर, हमें प्राप्त होगा

λmin = [(1.24× (10) -4 ] /V A0

दिए गए ऑपरेटिंग वोल्टेज के लिए, सभी धातुओं की न्यूनतम तरंगदैधर्य लंबाई समान होगी।

ii) विशेषता एक्स-रे स्पेक्ट्रा

इसमें निश्चित व स्प्ष्ट तरंग दैर्ध्य होती हैं जो निरंतर स्पेक्ट्रम पर अधिरोपित होती हैं। ये वर्णक्रमीय लाइनें आम तौर पर छोटे समूहों के रूप में प्राप्तहोती हैं और लक्ष्य की सामग्री की विशेषता होती हैं।प्रकाश के वेग के बारे में (1/10) वें के वेग वाले तीव्र गति वाले इलेक्ट्रॉनों में से कुछ लक्ष्य सामग्रियों के सतह परमाणुओं में प्रवेश कर जातेहैं और आंतरिक शैल(जैसे L, K shell) से कसकर बंधे इलेक्ट्रॉनों को बाहर निकालतेहैं। चित्र5.5(a) दर्शाता है कि, जब तेजी गति वाला वाले इलेक्ट्रॉनों K -shell से एक इलेक्ट्रॉन को निकाल लेते हैं तो, इस रिक्त स्थान को पास के L -shellके इलेक्ट्रॉन द्वारा भरा जाता है। इस अवस्थांतर (transition) के दौरान, ऊर्जा अंतर बहुत छोटी तरंग दैर्ध्य के एक्स-रे के रूप में निकलती है । यह श्रृंखला की Kα - लाइन से मेल खाती है। इस लाइन की आवृत्ति ν1 संबंध (EK – EL = hν1) द्वारा दी गई है। मान लीजिए, M -shellसे इलेक्ट्रॉन K -shellमें जाता है, तो यह Kβलाइन उत्सर्जित करता है । यदि L-Shell का कोई इलेक्ट्रॉन M-Shell के खाली अवस्था में जाता है, तो यह Lαलाइन में योगदान करेगा और यदि L-Shell में रिक्त स्थान N–Shellके इलेक्ट्रॉन द्वारा भरा जाता है, तो यह Lβके लिए योगदान करेगा(चित्र 5.5b) । उत्सर्जितविकिरण की आवृत्ति लक्ष्य कीसामग्री पर निर्भर करती है। एक्स-रे स्पेक्ट्रा में विविक्तरेखाएं (sharp lines)होती हैं और यह लक्ष्य सामग्री की विशेषता है। इसलिए इस स्पेक्ट्रा को विशेषता स्पेक्ट्रा के रूप में जाना जाता है।


निरंतर और विशिष्ट एक्स रे के बीच अंतर


विस्तृत अध्ययन के लिए निम्न विडियो देखें :-

De Broglie’s Matter Waves

De Broglie’s Matter Waves - Secured.pdf

Group Velocity and Phase Velocity of Matter Waves

Group velocity and Phase velocity - Secured.pdf

Heisenberg's Uncertainty Principle

Uncertainty Principle (secured).pdf