Light and Optics

परिचय ( Introduction )

प्रकाशिकी भौतिकी की वह शाखा है जो प्रकाशीय घटनाओं के अध्ययन से संबंधित है। प्रकाश ऊर्जा का एक रूप है, जो हमें वस्तुओं को देखने में सक्षम बनाता है और जिस सीधी रेखा पर वह चलता है उसे ‘प्रकाश की किरण’ कहते हैं। प्रकाश सीधी रेखा पर चलता है,जिसे परावर्तित या अपवर्तित किया जा सकता है । प्रकाशिकी को दो श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है, जो कि किरण प्रकाशिकी (ray optics)और तरंग प्रकाशिकी (wave optics) हैं। किरण प्रकाशिकी प्रकाश की तरंगों और किरणों के अध्ययन से संबंधित है। इसका उपयोग तब किया जाता है जब प्रकाश की तरंग विशेषताओं का अध्ययन करना हो । तरंग प्रकाशिकी में प्रतिबिंब, अपवर्तन, व्यतिकरण, विवर्तन, ध्रुवीकरण आदि जैसे प्रकाश के विभिन्न व्यवहारों का अध्ययन किया जाता है, इसे अन्यथा भौतिक प्रकाशिकी के रूप में भी जाना जाता है । उदाहरण के लिए, एक कॉम्पैक्ट डिस्क पर विचार करें। डिस्क से जो रंग परिलक्षित होता है वह अलग कोण के साथ बदलता रहता है। यह प्रकाश के तरंग व्यवहार का उदाहरण है । यह प्रकाश तरंगों के व्यतिकरण के कारण होता है जिसे तरंग प्रकाशिकी की अवधारणा द्वारा वर्णित किया जा सकता है। यह वही अवधारणा है जो हम देखते हैं, जब हम साबुन के बुलबुले और तेल की एक पतली फिल्म को देखते हैं जो पानी की सतह पर तैर रही है। प्रतिबिंब की इस घटना को प्रकाश के तरंग सिद्धांत के द्वारा समझाया जा सकता है।

तरंग प्रकाशिकी बताता है कि आकाश नीला क्यों है। सूर्य द्वारा उत्सर्जित की गई सफेद प्रकाश में सभी रंग सम्मलित होते हैं और यही रंग इंद्रधनुष में दिखाई देते हैं । प्रकाश के तरंग सिद्धांत के अनुसार, प्रकाश तरंगों के रुप में गति करती है । कुछ प्रकाश, लंबी तरंगों में गति करते हैं, जबकि कुछ अन्य छोटी तरंगों के रूप में गति करते हैं। चूकिं नीली प्रकाश तरंगें, लाल प्रकाश तरंगों की तुलना में कम तरंगदैर्ध्य की होती हैं और उनमें आसानी से आसमान में विवर्तन हो जाता है । इस कारण से आसमान नीले रंग का दिखाई देता है।


प्रकाश का परावर्तन (Reflection of Light)

जब कोई प्रकाश की किरण किसी प्रकाशीय स्त्रोत से निकल कर किसी चमकदार सतह से टकराकर वापस उसी माध्यम लौट जाती है तो इसे प्रकाश का परावर्तन कहते है । यह घटना एक ही माध्यम में होती है । जो किरण प्रकाशीय स्त्रोत से निकलकर सतह पर टकराती है उसे आपतित किरण (Incident ray ) कहते है और जो किरण सतह से टकराकर वापस जाती है, उसे परावर्तित किरण (Reflected ray‌) कहते है । सतह और आपतित किरण के बीच बनने वाले कोण को आपतन कोण (Angle of Incidence ) कहते है । सतह और परावर्तित किरण के बीच बनने वाले कोण को परावर्तन कोण ( Angle of Reflection ) कहते है । आपतित किरण सतह पर जिस बिंदु पर पड़ती है उसे आपतन बिंदु कहते है । सतह पर काल्पनिक रेखा भी खीची जाती है जो कि एक लम्ब के रुप होती है, उसे अभिलंब (Normal) कहते है ।

प्रकाश के परावर्तन के दो नियम होते हैं:-

परावर्तन का पहला नियमः पहले नियम के अनुसार,आपतित किरण, परावर्तित किरण और अभिलम्ब तीनों एक ही तल में होते हैं।

परावर्तन का दूसरा नियमः दूसरे नियम के अनुसार, आपतित किरण क कोण हमेशा परावर्तित कोण के बराबर होता है।

आपतित किरण जब परावर्तित होती है तो परावर्तित किरण दर्पण के पीछे से आती हुई प्रतीत होती है। इससे जो प्रतिबिंब बनता है वह आभासी प्रतिबिंब होता है जो दर्पण के पीछे उतनी ही दूरी पर दि‍खता है जितनी दूरी पर वस्तु दर्पण के सामने होती है। आभासी होने के कारण इस प्रतिबिंब को पर्दे पर नहीं देखा जा सकता।

समतल दर्पण से बना प्रतिबिंब यद्यपि सीधा होता है परंतु वस्तु का दांया हिस्सा बांई ओर, और बांया हिस्सा दांई ओर दिखता है। ऐसा इसीलिये होता है कि परावर्तित किरण की दिशा बदल जाती है। इसे हम दर्पण के सामने खड़े होकर देख सकते हैं। जब हम अपना दायां हाथ हिलाते हैं तो प्रतिबिंब का बायां हाथ हिलता प्रतीत होता है। इसे पार्श्व परिवर्तन कहा जाता है। एक कागज़ पर वर्णमाला के अक्षर लिखकर उसे दर्पण के सामने रखने पर भी सह बात स्पष्ट हो जाती है।

समतल दर्पण द्वारा बनाए गए प्रतिबिम्ब की विशेषताएं (Properties of image formed by plane mirror)

  • समतल दर्पण द्वारा बनाया गया प्रतिबिम्ब आभासी होता है ।

  • समतल दर्पण द्वारा बनाया गया प्रतिबिम्ब सीधाी होता है ।

  • समतल दर्पण द्वारा बनाए गए प्रतिबिम्ब का आकार वह होता है जो बिम्ब का होता है ।

  • समतल दर्पण द्वारा बनाय गए प्रतिबिम्ब की दर्पण के पीछे दूरी वही होगी जो बिम्ब की दर्पण के आगे होगी ।

  • समतल दर्पण द्वारा बनाया गया प्रतिबिम्ब पाश्व रुप से व्यतुक्रमित होती है

गोलीय दर्पण द्वारा बनाया प्रतिबिम्ब (Images formed by circular mirrors)

यह दर्पण किसी गोल सतह को चमकदार और चिकना करके बनाया जाता हैं।एक गोलाकार दर्पण की प्रतिबिंबित सतह अंदर की ओर या बाहर की ओर घुमावदार हो सकती है। एक गोलाकार दर्पण, जिसकी परावर्तक सतह अंदर की ओर मुड़ी होती है ।उसे अवतल दर्पण कहलाता है। एक गोलाकार दर्पण जिसकी परावर्तक सतह बाहर की ओर मुड़ी होती है, उत्तल दर्पण कहलाता है। इन दर्पणों का चित्र नीचे दिखाया गया है:

गोल सतह के मध्य बिंदु को दर्पण का ध्रुव (pole) कहते हैं। ध्रुव पर यदि कोई लंब बनाया जाये तो उसे दर्पण का मुख्य अक्ष (principal axis) कहा जाता है। दर्पण को यदि किसी गोले का भाग मान लिया जाये तो उस गोले का केंद्र जिस बिन्दु पर होगा उसे दर्पण का वक्रता केंद्र (centre of curvature) और वक्रता केंद्र की ध्रुव से दूरी को दर्पण की वक्रता त्रिज्या (radius of curvature) कहा जाता है। अवतल दर्पण पर यदि समानान्तर प्रकाश किरणें डाली जायें तो वे एक बिंदु पर केंद्रित हो जाती हैं। इसी प्रकार उत्तल दर्पण पर समानान्तर प्रकाश किरणे डालने से वे एक केंद्र बिंदु से दूसरे से दूर जाती हैं, और दर्पण के पीछे एक बिन्दु से आती हुई प्रतीत होती हैं। इस बिन्दु को दर्पण का फोकस (focus) कहते हैं। ध्रुव से फोकस की दूरी को फोकल लंबाई कहते हैं। फोकल लंबाई हमेशा वक्रता त्रिज्या की आधी होती है।

चूकिं अवतल दर्पण में समानांतर किरणें फोकस पर एकत्रित हो जाती हैं इसलिये यदि किसी अवलल दर्पण को धूप मे रखा जाये और उसके फोकस के स्थान पर कागज़ रख दिया जाये तो कुछ देर में उष्मा एकत्रित हो जाने के कारण कागज़ जल उठेगा । अवतल दर्पण के फोकस पर किसी प्रकाश स्रोत को रखने से ठीक इसका उल्टा होगा और इस प्रकाश स्रोत से निकलने वाली किरणें दर्पण से परावर्तित होकर समानांतर हो जायेंगी।

अवतल दर्पण में प्रतिबिंब – क्योंकि हम यह देख चुके हें कि आपतन कोण और परावर्तन कोण एक दूसरे के बराबर होते हैं, और क्योंकि किसी गोल वस्तु में लंब बराबर बदलता रहता है इसलिये अवतल दर्पण में अलग-अलग कोण से गिरने वाली किरणें अलग-अलग कोण पर परावर्तित होंगी। प्रतिबिंब किस प्रकार का बनेगा यह बात पर निर्भर करेगा कि वस्तु दर्पण से कितनी दूरी पर है। इसे देखने के लिये एक लकड़ी के गुटके में दर्पण को फंसाकर रखने के लिये जगह बना लें। प्लास्टिसिन या मोल्डिंग क्ले से भी दर्पण को गुटके पर चिपका कर रखा जा सकता है। अब लकड़ी के एक दूसरे गुटके पर एक सफेद कागज़ चिपकाकर पर्दा बना लें। इसके बाद एक तीसरे गुटके पर एक मोमबत्ती को जलाकर रखें । अब कमरे को अंधेरा करके मोमबत्ती और पर्दे को आगे-पीछे खिसकाकर पर्दे पर बनने वाले प्रतिबिंब पर क्या प्रभाव पड़ता है इसका अध्ययन किया जा सकता है। इसे नीचे के चित्रों में समझाया गया है –

वस्तु वक्रता केंद्र पर – प्रतिबिंब वक्रता केंद्र पर बनेगा और वस्तु के आकार के बराबर, उल्टा और वास्तविक होगा, अर्थात् इसे पर्दे पर देखा जा सकता है –

वस्तु दर्पण के वक्रता केंद्र से बाहर – प्रतिबिंब वक्रता केंद्र और फोकस के बीच बनेगा, तथा उल्टा, वस्तु के आकार से छोटा तथा वास्तविक होगा, अर्थात् इसे पर्दे पर देखा जा सकता है -

वस्तु वक्रता केंद्र और फोकस के बीच – प्रतिबिंब वक्रता केंद्र के बाहर बनेगा और आकार में वस्तु से बड़ा तथा उल्टा एवं वास्तविक होगा, अर्थात् इसे पर्दे पर देखा जा सकता है –

वस्तु फोकस और ध्रुव के बीच - प्रतिविंब दर्पण के पीछे बनेगा, और सीधा तथा वस्तु के आकार से बड़ा होगा। यह प्रतिबिंब आभासी होगा, अर्थात् इसे पर्दे पर नहीं देखा जा सकता –

वस्तु फोकस पर – यदि किसी वस्तु् को अवतल दर्पण के फोकस पर रखा जाये तो उससे निकलने वाली प्रकाश किरणें दर्पण से टकराकर समानांतर हो जायेंगी, अर्थात् कभी आपस में नहीं मिलेंगी या फिर दूसरे शब्दों में अनंत पर जाकर मिलेंगी। अत: फोकस पर रखी वस्तु का प्रतिबिंब अनंत पर बनेगा।

उत्तल दर्पण में प्रतिबिंब– उत्तल दर्पण के सामने किसी वस्तु को कहीं पर भी रखा जाये उसका प्रतिबिंब बड़ा, सीधा तथा आभासी ही बनता है

दर्पण सूत्र एवं आवर्धन क्षमता ( Lens Formula and Magnification Power )

दर्पण में ध्रुव से वस्तु की दूरी (), ध्रुव से प्रतिबिम्ब की दूरी () तथा मुख्य फोकस की दूरी ()कहलाती है । इन तीनों राशियों के बीच बीच संबंध को निम्नांकित तरीके से दर्शाया जाता है:

1/f= 1/v+ 1/u

यह सम्बंध सभी प्रकार के गोलीय दर्पणों के लिये, सभी स्थितियों के लिये मान्य है।

आवर्धन क्षमता (magnification power) का अर्थ होता है कि प्रतिबिम्ब का आकार,वस्तु से कितना बड़ा या छोटा है और रेखीय आवर्धन की परिभाषा है दर्पण या लेंस से बने किसी वस्तु के प्रतिबिम्ब की लंबाई और वस्तु की लंबाई काअनुपात ।यह परिभाषा उत्तल दर्पण ,अवतल दर्पण और लेंस के लिए मान्य है आवर्धन को m से दर्शाते है

या

m= I/O

जहां पर I प्रतिबिम्ब की लंबाई और O वस्तु की लंबाई है ।

अवतल लेंस के लिए रेखीय आवर्धन क्षमता m का मान 1 से कम होता है तथा धनात्मक होता है और उत्तल लेंस के लिए रखीय आवर्धन का मान 1 से कम या ज्यादा या बराबर हो सकता है यदि उत्तल लेंस से बना प्रतिबिम्ब वास्तविक है तो m ऋणात्मक और आभासी प्रतिबिम्ब के लिए मान धनात्मक होता है । वस्तु के सापेक्ष बने प्रतिबिम्ब का आवर्धन धनात्मक और उलटी दिशा में बना प्रतिबिम्ब को ऋणात्मक लिखा जाता है । आवर्धन को m से ही दर्शाया जाता है चाहे वह रेखीय हो यानि लम्बाई के लिए हो या फिर मोटाई या चौड़ाई के लिए हो इसे m से ही लिखते है तभी क्षेत्रफल का आवर्धन m×m लिखेंगे |

प्रकाश का अपवर्तन (Refraction of Light)

जब प्रकाश किरण एक माध्यम से दूसरे माध्यम में प्रवेश करती हैं तो वे अपने मार्ग से विचलित हो जाती हैं । प्रकाश किरणें या तो अभिलम्ब की तरफ़ झुक जाती हैं या अभिलम्ब से दूर हो जाती हैं । प्रकाश के किरण द्वारा अपने मार्ग से विचलित हो जाना प्रकाश का परावर्तन कहलाता है ।

उदाहरण: जब एक पेंसिल को पानी से भरे ग्लास में रखा जाता है, तो पेंसिल टेढ़ा दिखता है। ऐसा प्रकाश के अपवर्तन के कारण होता है। इसी प्रकार, जब एक सिक्के को पानी से भरे टब में रखा जाता है, तो सिक्का टब की तलहट्ठी से थोड़ा उपर दिखता है। यह भी प्रकाश के अपवर्तन के कारण होता है।

प्रकाश के अपवर्तन का कारण: अपवर्तन, प्रकाश के एक पारदर्शी माध्यम से दूसरे पारदर्शी माध्यम में प्रवेश करने पर प्रकाश की चाल में परिवर्तन के कारण होता है ।

प्रकाश के अपवर्तन का नियम (Law of Refraction)

जब एक प्रकाश किरण एक समांगी माध्यम से दूसरे समांगी माध्यम में प्रवेश करती है, तब

  • आपतित किरण (incident ray), अभिलम्ब (normal) और आवर्तित किरण (refracted ray) एक ही तल में स्थित होतें हैं ।

  • एक ही रंग की प्रकाश किरण के लिए, दो सीमांत माध्यमों के आपतन कोण के ज्या (sine) और अपवर्तन कोण का ज्या (sine) का अनुपात एक स्थिरांक होता है । इस स्थिरांक को अपर्वतांक ( refractive index) कहतें हैं ।

अपवर्तन के समय प्रकाश का मार्ग:- जब प्रकाश की किरण विरल माध्यम से सघन माध्यम में प्रवेश करती है तो यह अभिलम्ब की ओर मुड़ जाती है और जब यही प्रकाश की किरण सघन माध्यम से विरल माध्यम में प्रवेश करती है तो यह अभिलम्ब से दूर हट जाती है ।

प्रकाशिक घनत्व (Optical Density) - किसी माध्यम को प्रकाश को अपवर्तित करने की क्षमता को इसके प्रकाशिक घनत्व द्वारा भी व्यक्त किया जा सकता है। यह प्रकाशिक घनत्व द्रव्यमान के समान नहीं है।सघन माध्यम का अर्थ प्रकाशिक सधन माध्यम तथा विरल माध्यम का अर्थ प्रकाशिक विरल माध्यम है।

सधन माध्यम (Denser Medium):माध्यम जिसका अपवर्तनांक सापेक्ष रूप से बड़ा या ज्यादा हो, प्रकाशिक रूप से सघन या प्रकाशिक सघन माध्यम कहलाता है।

विरल माध्यम (Rarer Medium):माध्यम जिसका अपवर्तनांक सापेक्ष रूप से कम या छोटा हो को प्रकाशिक विरल माध्यम या विरल माध्यम कहा जाता है। उदाहरण: कैरोसीन तेल का अपवर्तनांक 1.44 है तथा बर्फ का अपवर्तनांक 1.31 है। अत: कैरोसीन तेल, बर्फ की तुलना में सघन माध्यम हुआ तथा बर्फ, कैरोसीन तेल की तुलना में विरल माध्यम हुआ।

विभिन्न माध्यम में प्रकाश की गति(Velocity of light in different media):

प्रकाश की गति निर्वात में अधिकतम है, जो 3×108 m/s है। प्रकाश की गति अपवर्तनांक के बढ़ने के साथ घटती है तथा अपवर्तनांक के घटने के साथ बढ़ती है। अर्थात प्रकाश की गति अपेक्षाकृत विरल माध्यम में ज्यादा होती है तथा अपेक्षाकृत सघन माध्यम में अपेक्षाकृत कम होती है । उदाहरण: क्राउन ग्लास (crown glass) का अपवर्तनांक (refractive index) 1.52 तथा संगलित क्वार्ज (fused quartz) का 1.46 है । इसका अर्थ यह है कि प्रकाश की गति क्राउन ग्लास (crown glass) की तुलना में संगलित क्वार्ज (fused quartz) में ज्यादा है।चूँकि अपेक्षाकृत सधन माध्यम में प्रकाश की गति कम हो जाती है, इसलिय जब प्रकाश विरल माध्यम से सघन माध्यम में जाती है तो वह अभिलम्ब की ओर मुड़ जाती है। और चूँकि विरल माध्यम में प्रकाश की गति ज्यादा होती है इसलिये सघन माध्यम से विरल माध्यम में प्रवेश करने पर प्रकाश की किरणें अभिलम्ब से दूर मुड़ जाती है।अत: प्रकाश की गति के बढ़ने या कम होने के कारण ही बिभिन्न माध्यमों में प्रकाश का अपवर्तन होता है।

आंतरिक कोण एवं पूर्ण आंतरिक परावर्तन ( Critical Angle and Total Internal Reflection )

क्रांतिक कोण (Critical Angle) - जब प्रकाश किरण, सघन माध्यम विरल से माध्यम में प्रवेश करती है, तो आवर्तित किरण अभिलम्ब से दूर हट जाती है । इस अवस्था में आपतन कोण, आवर्तन कोण से कम होता है | जैसे-जैसे आपतित कोण का मान बढ़ाते है, अपवर्तित कोण का मान भी बढ़ जाता है | आपतित कोण का मान बढाने पर एक ऐसी स्थिती आती है, जब अपवर्तित कोण का मान 900 जाता है, इस आपतित कोण को क्रांतिक कोण कहतें है

पूर्ण आंतरिक परावर्तन (Total Internal Reflection) - यदि आपतित कोण के मान को क्रांतिक कोण के मान से और अधिक बढ़ा दिया जावे तो प्रकाश किरण विरल माध्यम में प्रवेश नही कर पाती व वापिस सघन माध्यम में लौट आती है.इसे पूर्ण आंतरिक परावर्तन कहतें है | पूर्ण आंतरिक परावर्तन की शर्तें इस प्रकार हैं:

  1. प्रकाश किरण सघन माध्यम से विरल माध्यम में प्रवेश करनी चाहिए

  2. आपतित कोण, क्रांतिक कोण से अधिक होना चाहिए

पूर्ण आंतरिक परावर्तन के उदाहरण (Examples of Total Internal Reflection)

  1. हीरे का चमकना पूर्ण आंतरिक परावर्तन का उदाहरण है - हीरा बहुत ज्यादा पूर्ण आंतरिक परावर्तन के कारण ही चमकता है हीरे के लिए क्रांतिक कोण का मान 24.41° होता है जो कि बहुत ही कम है जब कोई प्रकाश की किरण हीरे से टकराती है तो हीरे का क्रांतिक कोण का मान कम होने के कारण उस किरण का पूर्ण आंतरिक परावर्तन होता है । हीरे से टकराया हुए प्रकाश केवल उन्हीं बिंदुओं से बाहर निकलता है जहां उसे आपतन कोण का मान क्रांतिक कोण के मान से कम मिलता है और बचा हुए प्रकाश का पूर्ण आंतरिक परावर्तन होता रहता है इसलिए हीरे की चमक बढ़ जाती है ।

  2. मरीचिका - गर्मियों के दिनों में रेगिस्तान में किसी पेड़ का प्रतिबिंब हमें नीचे दिखाई पड़ता है जैसे कि वह है पेड़ पानी में दिख रहा हो ऐसा इसलिए होता है गर्मियों के दिनों में रेगिस्तान में रेत गर्म हो जाती है जिससे जमीन के पास वाली बाई की परतें बेल माध्यम का काम करती हैं इन जमीन के पास वाली वायु की परतों का घनत्व ऊपर की परतों से कम होता है जमीन के पास की वायु की पर्दे विरल माध्यम और ऊपर सघन माध्यम हो जाता है तब किसी वस्तु से चलने वाली किरण नीचे की और आती है । तब उसे सघन माध्यम से विरल माध्यम में प्रवेश करना होगा ऐसे में किरणे अभिलंब से दूर हटेगी ।आपतन कोण का मान बढ़ने पर अपवर्तन कोण का मान बढ़ता है और आपतन कोण का मान क्रांतिक कोण के मान से अधिक होने पर इन किरणों का पूर्ण आंतरिक परावर्तन हो जाता है । यानी यह किरण वापस उसी माध्यम में लौटने लगती हैं हमारी आंखों की ओर तब उन्हें विरल माध्यम से सघन माध्यम में प्रवेश करना होता है जिसमें अभिलंब की ओर झुकती हैं हो सकती हैं जब यह किरण है आंखों मैं प्रवेश करती हैं तो वह पेड़ हमें उल्टा दिखाई पड़ता है

  3. प्रकाशिक तंतु यानी ऑप्टिकल फाइबर केबल - प्रकाशिक तंतु एक ऐसी डिवाइस है जिससे प्रकाश सिग्नल को बिना कम कीजिए यानी उसी तीव्रता से लंबी दूरी तक भेजा जा सकता है प्रकाशिक तंतु सिग्नल को पूर्ण आंतरिक परावर्तन से ही एक जगह से दूसरी जगह पहुंच आती है ।

विस्तृत अध्ययन के लिए निम्न विडियो देखें :-

फ़्रिंज ( Fringes )

फ्रिंजेस, विवर्तन या व्यतिकरण से उत्पन्न दीप्त क्षेत्र या अदीप्त क्षेत्र बैंड होते हैं । स्क्रीन पर प्राप्त एकान्तरिक दीप्त या अदीप्त बैंड को फ्रिंज पैटर्न के रूप में जाना जाता है। विवर्तनिक फ्रिंज तब बनती हैं जब किसी बिंदु स्रोत से या एक संकीर्ण स्रोत से उत्पन्न प्रकाश किसी भी आकार की अपारदर्शी वस्तु से गुजरता है। एक सामान्य स्रोत से उत्पन्न प्रकाश के दो या अधिक किरणों को एक साथ लाकर व्यतिकरण फ्रिंज प्राप्त की जाती है ।

विस्तृत अध्ययन के लिए निम्न विडियो देखें :-

तरंगाग्र ( Wavefront )

जब हम कमरे की खिड़की को खोलते हैं तो हम देखते हैं कि सूर्य का प्रकाश खिड़की से आता है और फ़िर पूरे कमरे में फ़ैल जाता है,जिस कारण पूरे कमरे में उजाला हो जाता है । यह घटना हमें सोचने में मजबूर करती है कि प्रकाश तरग के रुप में संचरित होती है व इसी कारण से खिड़की से आती तरंग पूरे कमरे में फ़ैल जाती है । तरंग सिद्धांत को पढ़ने के पहले हमें तरंगाग्र (wavefront) को समझना होगा ।

तरंगाग्र (wavefront) से आशय है कि समान कला में दोलन करने वाले कणों की निधि अर्थात वह तल जिसमें मौजूद प्रत्येक कण समान कला में दोलना करता है,तरंगाग्र कहलाता है । कोई प्रकाश स्त्रोत, माध्यम में सभी दिशाओं में विक्षोभ (vibration) भेजता है,जो तरंगों के रूप में आगे बढ़ते हैं । किसी समागम माध्यम (homogeneous medium) में ये विक्षोभ समान वेग से सभी दिशाओं में आदे बढ़ते हैं । स्त्रोत से समान दूरी पर स्थित कणों तक यह वोक्षोभ एक साथ पहुंचते हैं । स्त्रोत से समान दूरे पर स्थित कण समान रुप से दोलन करते हैं व इन्हें तरंगाग्र कहते हैं ।

प्रकाश स्त्रोत की आकृति के आधार पर तरंगाग्र तीन प्रकार के होतें हैं :-

  1. गोलाकार तरंगाग्र ( spherical wavefront) – जब प्रकाश स्त्रोत,एक बिंदु प्रकाश स्त्रोत की भांति कार्य करे तो इससे चलने वाली तरंगाग्र की प्रकृति गोलाकार होती है ।

  2. बेलनाकार तरंगाग्र (cylindrical wavefront) -जब प्रकाश स्त्रोत, रेखीय होता है (जैसे स्लिट) तो उससे चलने वाली तरंगाग्र की प्रकृति बेलनाकार होती है ।

  3. समतल तरंगाग्र(plane wavefront) --जब प्रकाशीय बिंदु या रेखीय स्त्रोत अत्याधिक दूर होतें हैं तो उनसे चलने वाली क्रमशः गोलीय या बेलनाकार तरंगाग्रों का एक छोटा भाग हमें समतल दिखाई प्रतीत होता है ।

विस्तृत अध्ययन के लिए निम्न विडियो देखें :-

हाइगेंज सिद्धांत – तरंग का परावर्तन ( Huygens Theory: Reflection of Wave )

हाईगेंस के सिद्धांत के अनुसार तरंगाग्र का प्रत्येक बिंदु, द्वितीयक तरंग के स्रोत के रूप में कार्य करता है। जब तक द्वितीयक तरंग बिंदु B से दूरी BC तय करती हैं, तब तक द्वितीयक तरंग बिंदु A से परावर्तक होकर समान दूरी BC तय कर लेती है ।

विस्तृत अध्ययन के लिए निम्न विडियो देखें :-

हाइगेंज का प्रकाश का तरंग सिद्धांत ( Huygens Wave Theory of Light )

1678 में हाईगेंस ने प्रकाश के तरंग सिद्धांत को प्रतिपादित किया | किसी तरंगाग्र का प्रत्येक बिंदु, द्वितियक गोलाकार तरंगों का स्रोत माना जा सकता है, जो प्रकाश के वेग से गति करता हैं। नया तरंगाग्र इन सभी द्वितीयक तरंगों की स्पर्शरेखा होती है । यह हमें किसी भी पल, तरंग की नई स्थिति और आकार को ज्ञात करने में मदद करता है, यदि हमें तरंग की पूर्व की स्थिति और आकार ज्ञात हो । दूसरे शब्दों में, यह किसी माध्यम में तरंगग्रा की गति का वर्णन करता है।

विस्तृत अध्ययन के लिए निम्न विडियो देखें :-

हाइगेंज सिद्धांत – तरंग का अपवर्तन ( Huygens Theory : Refraction of Wave )

हम जानते हैं कि जब कोई प्रकाश एक पारदर्शी माध्यम से दूसरे पारदर्शी माध्यम में जाता है तो उसका मार्ग बदल जाता है। अपवर्तन का नियम कहता हैं कि:

  1. आपतित किरण, अपवर्तित किरण और माध्यमों के इंटरफेस पर खींचा गया अभिलम्ब, तीनों एक ही तल पर स्थित रहते हैं ।

  2. आपतित कोण की ज्या (sine) और अपवर्तन कोण की ज्या (sine) का अनुपात एक स्थिरांक होता है। इस स्थिरांक को अपवर्तनांक ‘𝜇’ के रूप में जाना जाता है।

विस्तृत अध्ययन के लिए निम्न विडियो देखें :-

प्रकाश का वर्ण- विक्षेपण ( Dispersion of Light )

सन 1666 में आईजैक न्यूटन ने प्रकाश के वर्ण विक्षेपण खोज की थी । उन्होने पाया कि जब कोई भी सफ़ेद प्रकाश किसी भी ग्लास प्रिज्म से गुजरता है तो यह सात अलग अलग रंगों में विभक्त हो जाता है तथा इसी प्रक्रिया को प्रकाश का वर्ण विक्षेपण कहते है । इन्ही रंगों की इस बैंड को स्पेक्ट्रम (spectrum) कहते है तथा सात रंग इस प्रकार से क्रम्बद्ध होते हैं :- VIBGYOR जो कि इस प्रकार है:

V से बैंगनी (violet)

I से आसमानी (indigo)

B से नीला (blue)

G से हरा (green)

Y से पीला (yellow)

O से नारंगी (orange)

R से लाल (red)

इन रंगों में बैंगनी रंग की किरण का विचलन सबसे अधिक होने के कारण आधार की ओर तथा लाल रंग की किरण का विचलन सबसे कम होने के कारण सबसे ऊपर है।इस तरह के वर्ण क्रम को, जिसमें समस्त सातों रंग अलग-अलग स्पष्ट रुप से दिखाई दे रहें हैं, शुद्ध स्पेक्ट्रम (pure spectrum) कहते हैं ।

वर्ण विक्षेपण का कारण (Reason of dispersion) - किसी रंग की किरण का विचलन उसके अपवर्तनांक पर निर्भर करता है।अपवर्तनांक का मान अधिक होने पर विचलन अधिक होगा।अपवर्तनांक उसके तरंगदैर्ध्य पर निर्भर करता है।तरंगदैर्ध्य का मान अधिक होने पर अपवर्तनांक का मान कम होगा।

  1. बैंगनी रंग की किरण के लिए:- इसकी तरंगदैर्ध्य सबसे कम होती है अतः इसका अपवर्तनांक सबसे अधिक होगा और इस कारण इसका विचलन सबसे अधिक होगा।

  2. लाल रंग की किरण के लिए:- इसकी तरंगदैर्ध्य सबसे अधिक होती है अतः इसका अपवर्तनांक सबसे कम होगा और इस कारण इसका विचलन भी सबसे कम होगा।

अशुद्ध स्पेक्ट्रम (Impure spectrum) - व्यवहार में, एकल किरण प्राप्त करना संभव नहीं है क्योंकि प्रकाश की एक बहुत ही संकीर्ण पेंसिल में भी किरणों की संख्या होती है और प्रत्येक किरण अपने स्वयं का स्पेक्ट्रम बनाती है । स्लिट S से दो किरणों को चित्र में दिखाया गया है। एक किरण का रंग R1दूसरी किरण के रंग V2को ओवरलैप करता है। इसी तरह, अन्य रंग भी ओवरलैप करते हैं। इस प्रकार रंगों के ओवरलैपिंग के कारण, स्पेक्ट्रम अशुद्ध हो जाता है और इस तरह के स्पेक्ट्रम को अशुद्ध स्पेक्ट्रम कहा जाता है।

शुद्ध स्पेक्ट्रम (Pure spectrum):

यदि रंगों का मिश्रण नहीं होऔर हर रंग विशिष्ट रूप से दिखाई दे,तो स्पेक्ट्रम को शुद्ध स्पेक्ट्रम कहा जाता है।

शुद्ध स्पेक्ट्रम प्राप्त करने की शर्तें (Conditions for obtaining pure spectrum):

एक शुद्ध स्पेक्ट्रम प्राप्त करने के लिए, निम्नलिखित शर्तों को संतुष्ट किया जाना चाहिए।

1. स्लिट यथा सम्भव संकीर्ण होना चाहिए ।

2. आपतित किरण समानांतर होनी चाहिए, फिर अपवर्तित किरण में एक ही रंग की सभी किरणें समानांतर होंगी और अलग-अलग फ़ोकसहोंगी।

3. प्रिज्म को न्यूनतम विचलन स्थिति में रखा जाना चाहिए। इस स्थिति में, सभी रंग विशिष्ट रूप से फ़ोकस होगें ।

4. स्क्रीन पर विभिन्न रंगों की किरणों को फ़ोकस करने के लिए उत्तल लेंस का उपयोग किया जाना चाहिए।

विस्तृत अध्ययन के लिए निम्न विडियो देखें :-

प्रकाश का ध्रुवण ( Polarisation of Light )

ध्रुवण प्रकाश संबंधी ऐसी घटना है, जो अनुदैर्ध्य तरंग (Longitudinal Wave) और अनुप्रस्थ तरंग (Transverse wave) में अन्तर स्पष्ट करती है। अनुदैर्घ्य तरंग में ध्रुवण की घटना नहीं होती, जबकि अनुप्रस्थ तरंग में ध्रुवण की घटना होती है। यदि प्रकाश तरंग के कम्पन प्रकाश संचरण की दिशा के लम्बवत् तल में एक ही दिशा में हों, प्रत्येक दिशा में सममित न हों, तो इस प्रकाश को समतल ध्रुवित प्रकाश कहते हैं। प्रकाश संबंधी यह घटना ध्रुवण कहलाती है। साधरण प्रकाश में विद्युत् वेक्टर के कम्पन प्रकाश संचरण की दिशा के लम्बवत् तल में प्रत्येक दिशा में समान रूप से अथवा सममित रूप से होते हैं; ऐसे प्रकाश को अध्रुवित प्रकाश (Unpolarised Light) कहते हैं। प्रकाश स्रोतों जैसे विद्युत् बल्ब, मोमबत्ती, टयूब-लाइट, आदि से उत्सर्जित प्रकाश अधुवित प्रकाश होते हैं।

साधारण प्रकाश (Normal light ray) - जब साधारण प्रकाश को एक ही घूमने वाले टूमलाइन क्रिस्टल से जांचा जाता है, तो उद्भव प्रकाश की तीव्रता में कोई भिन्नता नहीं देखी जाती है। इसका मतलब है कि साधारण प्रकाश में ध्रुवीकरण नहीं दिखाता है। इसलिए, इसे अध्रुविकृत प्रकाश कहा जाता है। वास्तव में, प्रकाश की एक साधारण किरण को लाखों समतल ध्रुवीकृत तरंगों से युक्त माना जा सकता है, प्रत्येक में कंपन की अपनी दिशा होती है। प्रत्येक दिशा के साथ कंपन की घटना की संभाव्यता(probability) समान होती है, जो वास्तव में टूमलाइन क्रिस्टल के रोटेशन पर दिखती है ।

कंपन का तल (Plane of vibration)- एक ध्रुवित प्रकाश में, कंपन की दिशा (direction) और प्रसार (propagation) की दिशा वाले तल को कंपन का तल कहा जाता है(चित्र- 4.17) ।

ध्रुवीकरण का तल (Plane of polarisation) - बिना किसी कंपन के,प्रसार की दिशा से गुजरने वाला तल ध्रुवीकरण का तल कहलाता है। चूंकि, कंपन के पास अपनी दिशा के लम्ब पर कोई घटक नहीं होता है, इसलिए यह स्पष्ट है कि ध्रुवीकरण का तल, कंपन के तल के लम्बवत होना चाहिए ।

विस्तृत अध्ययन के लिए निम्न विडियो देखें :-

न्यूटन का कणिका सिद्धांत ( Newton's Corpuscular Theory of Light )

विख्यात वैज्ञानिक न्यूटन ने सन्‌ 11704 में कणिका सिद्धांत प्रतिपादित किया | कणिका सिद्धांत कहता है कि प्रकाश छोटे कणों से बना होता है जिन्हें कॉर्पसपर्स ’(छोटे कण) कहा जाता है जो हमेशा एक सीधी रेखा में गमन करते हैं।

विस्तृत अध्ययन के लिए निम्न विडियो देखें :-

तरंगों का अध्यारोपण ( Superposition of Light )

जब किसी माध्यम में दो या दो से अधिक तरंगें साथ चलती हैं तो, माध्यम के प्रत्येक कण का किसी भी क्षण परिणामी विस्थापन सभी तरंगों के द्वारा उत्पन्न अलग –अलग विस्थापनों के सदिश योग के बराबर होता है ।

विस्तृत अध्ययन के लिए निम्न विडियो देखें :-

कला सम्बन्ध स्रोत ( Coherent Sources)

दो स्रोतों को कला सम्बंध कहा जाता है जब उनसे निकलने वाली तरंगों में समान आवृत्ति और नियत कलांतर होता है। दो स्वतंत्र स्रोतों में कभी भी समान तरंगदैर्ध्य, समान आवृत्ति और एक ही कला या स्थिर कलांतर नहीं हो सकता है। इसलिए, प्रकाश के दो स्वतंत्र स्रोतों का उपयोग कला सम्बंध स्रोतों के रूप में नहीं किया जा सकता है ।•मारे आस-पास के अधिकांश प्रकाश स्रोत - दीपक, सूरज, मोमबत्ती आदि प्रकाश के कला असम्बंध स्रोतों हैं। लेजर एक कला सम्बंध स्रोत है ।

विस्तृत अध्ययन के लिए निम्न विडियो देखें :-

तरंगों का व्यतिकरण ( Interference of Light Waves )

जब समान आव्रत्ति की दो प्रकाश तरंगे किसी माध्यम में एक ही दिशा में गमन करती हैं तो उनके अध्यारोपण के फलस्वरूप प्रकाश की तीव्रता में परिवर्तन हो जाता है. इस घटना को प्रकाश का व्यतिकरण कहते हैं । जब समान आव्रत्ति और लगभग समान आयाम की दो प्रकाश तरंगे किसी माध्यम में एक साथ एक ही दिशा में गमन करती हैं तो अध्यारोपण के सिद्धांत के अनुसार परिणामी तरंग का निर्माण करती हैं. परिणामी तरंग का आयाम मूल तरंगों के आयाम से भिन्न होता है. चूकी प्रकाश की तीव्रता आयाम के वर्ग के अनुक्रमानुपाती होती है, प्रकाश की तीव्रता में परिवर्तन हो जाता है । कुछ स्थानों पर प्रकाश की तीव्रता अधिकतम और कुछ स्थानों पर न्यूनतम अथवा शून्य होती है । इस घटना को प्रकाश का व्यतिकरण कहते हैं ।

उदाहरण- वर्षा ऋतु में विभिन्न मोटर वाहनों से टपकी तेल की बूंदें सड़क पर पतली फिल्म के रूप में बिखर जाती है । सूर्य के प्रकाश में यह फिल्म विभिन्न रंगों की दिखाई देती है । इसी तरह जल की सतह पर तेल की बूंदों से बनी पतली फिल्म भी रंगीन दिखाई देती है । साबुन के रंगहीन बुलबुले भी सूर्य के प्रकाश में रंगीन देखाई देते हैं, इन सबका कारण प्रकाश का व्यतिकरण ही तो है.

व्यतिकरण दो प्रकार के होते हैं:

  1. संपोषी व्यतिकरण (Constructive interference)- जब दो तरंगों में अध्यारोपण के कारण दो तरंगों के परिणामी तरंग की तीव्रता जिस स्थान पर अधिकतम होती है, उन स्थानों पर हुए व्यतिकरण को संतोषी व्यतिकरण कहते हैं ।

  2. विनाशी व्यतिकरण (Destructive interference) - जब दो तरंगों में अध्यारोपण के कारण दो तरंगों के परिणामी तरंग की तीव्रता जिस स्थान पर न्यूनतम होती है, उन स्थानों पर हुए व्यतिकरण को विनाशी व्यतिकरण कहते हैं ।

प्रकाश के व्यतिकरण के लिए आवश्यक शर्तें निम्नलिखित हैं:

  1. दोनों प्रकाश स्त्रोत ‘कला सम्बद्ध’ (coherent source) होने चाहिए, अर्थात दोनों स्त्रोतों से प्राप्त तरंगों के बीच कलांतर समय के साथ स्थिर रहना चाहिए ।

  2. दोनों तरंगों की आवृतियॉ ( या तरंगदैर्ध्य ) बराबर होना चाहिए ।

  3. दोनों तरंगों के आयाम बरबर होना चाहिए ।

  4. प्रकाश के दोनों स्त्रोतों के बीच दूरी बहुर कम होना चाहिए जिससे दोनों तरांग्र एक ही दिशा में चलें और फ़्रिंज अधिक चौड़ी न बने ।

  5. प्रकाश के दोनों स्त्रोत बहुत संकीर्ण होने चाहिए ।

  6. प्रकाश के स्त्रोत व स्क्रीन में दूरी अधिक होना चाहिए ।

संतोषी व्यतिकरण के लिए आवश्यक शर्तें (Conditions for obtaining constructive interference)

माध्यम के जिस बिन्दु पर दोनों तरंगें समान कला में मिलती हैं अर्थात दोनों तरंगों के शीर्ष या गर्त एक साथ पड़ते हैं, उस बिन्दु पर दोनों तरंगे एक-दूसरे के प्रभाव को बढ़ाती हैं । अत: प्रकाश की परिणामी तीव्रता अधिकतम होती है । इस प्रकार के व्यतिकरण को संपोषी व्यतिकरण कहते हैं.

यदि दो तरंगों की तीव्रता क्रमशः I1 व I2 हो और परिणामी तीव्रता I हो तो,

I= I1+ I2+ 2√(I1 I2 ) cos∅

जहॉ ∅ = कालांतर है ।

किसी बिंदु पर संतोषी व्यतिकरण अर्थात अधिकतम तीव्रता के लिए cos∅= +1 अर्थात ∅=0,2π,4π,…

अथवा ∅=2mπ (जहॉ m=0,1,2….)

परंतु, कालांतर ∅= 2π/λ ×पथांतर (∆x)

पथांतर (∆x)= ( λ)/2π ×∅= ( λ)/2π ×2mπ

∆x=mλ (जहॉ m=0,1,2….)

∆x=0,λ,2λ,3λ………

अतः संतोषी व्यतिकरण के लिए आवश्यक है, कि

a. दोनों तरंगों के लिए कलांतर शून्य अथवा π का सम गुणक होना चाहिए, अर्थात तरंगे एक ही कला में मिलनी चाहिए

b. दोनों तरंगों के बीच पथांतर शून्य अथवा तरंगदैर्ध्य λ/2 का सम गुणक होना चाहिए ।


विनाशी व्यतिकरण के लिए आवश्यक शर्तें (Conditions for obtaining destructive interference)

माध्यम के जिस बिन्दु पर तरंगें विपरीत कला में मिलती हैं अर्थात एक तरंग के शीर्ष पर दूसरी तरंग का गर्त या एक तरंग के गर्त पर दूसरी तरंग का शीर्ष पड़ता है , उस बिन्दु पर दोनों तरंगें एक-दूसरे के प्रभाव को नष्ट कर देती हैं । अत: उस बिन्दु पर प्रकाश की परिणामी तीव्रता न्यूनतम या शून्य होती है । इस प्रकार के व्यतिकरण को विनाशी व्यतिकरण कहते हैं ।

यदि दो तरंगों की तीव्रता क्रमशः I1 व I2 हो और परिणामी तीव्रता I हो तो,

I= I1+ I2+ 2[√(I1 I2 )]cos∅

जहॉ ∅ = कालांतर है ।

किसी बिंदु पर विनाशी व्यतिकरण अर्थात अधिकतम तीव्रता के लिए cos∅= -1 अर्थात ∅=π,3π,5π,…

अथवा ∅=(2m-1)π (जहॉ m=1,2,3….)

परंतु, कालांतर ∅= 2π/λ ×पथांतर (∆x)

पथांतर (∆x)= ( λ)/2π ×∅= ( λ)/2π ×(2m-1)π

∆x=(2m-1)λ/2 (जहॉ m=1,2,3 ….)

∆x=λ/2,3λ/2,5λ/2,………

अतः विनाशी व्यतिकरण के लिए आवश्यक है, कि

1. दोनों तरंगों के लिए कलांतर π का विषम गुणक होना चाहिए, अर्थात तरंगे विपरीत कला में मिलनी चाहिए

2. दोनों तरंगों के बीच अर्द्ध तरंगदैर्ध्य λ/2 का विषम गुणंक होना चाहिए ।

विस्तृत अध्ययन के लिए निम्न विडियो देखें :-

प्रकाश का विवर्तन ( Diffraction of Light )

यदि किसी प्रकाश-स्रोत व पर्दे के बीच कोई अपारदर्शी अवरोध (obstacle) रख दिया जाए, तो हमें पर्दे पर अवरोध की स्पष्ट छाया (shadow) दिखलायी पड़ती है। इससे स्पष्ट होता है कि प्रकाश का संचरण सीधी रेखा में होती है। लेकिन यदि अवरोध का आकार बहुत छोटा हो, तो प्रकाश अपने सरल रेखीय संचरण से हट जाता है, वह अवरोध के किनारों पर मुड़कर छाया में प्रवेश कर जाता है। प्रकाश के इस प्रकार अवरोध के किनारों पर थोड़ा मुड़कर उसकी छाया में प्रवेश करने की घटना को प्रकाश का विवर्तन कहते हैं। विवर्तन के कारण अवरोध की छाया के किनारे तीक्ष्ण (sharp) नहीं होते हैं। प्रकाश के विवर्तन के कारण ही दूरदर्शी में तारों के प्रतिबिम्ब तीक्ष्ण बिन्दुओं की तरह दिखायी न देकर अस्पष्ट धब्बों की तरह दिखायी देते हैं। प्रकाश का विवर्तन अवरोध के आकार पर निर्भर करता है। यदि अवरोध का आकार प्रकाश की तरंगदैर्ध्य की कोटि (order) का है, तो विवर्तन स्पष्ट होता है और यदि अवरोध का आकार प्रकाश की तरंगदैर्ध्य की तुलना में बहुत बड़ा है, तो विवर्तन उपेक्षणीय होता है ।प्रकाशतरंगों का तरंग दैर्ध्य बहुत छोटा होता है, अर्थात् 4 × 10-7 मीटर से 7 × 10 -7 मीटर तक। यदि बाधा का आकार इस सीमा के निकट है, तभी हम विवर्तन की घटना दिखाई देगी । प्रकाश का विवर्तन इसके तरंग प्रकृति की पुष्टि करता है। ध्वनि तरंगों की तरंगदैर्घ्य प्रकाश के तरंगदैर्घ्य की तुलना में बहुत अधिक होती है, इस कारण से ध्वनि तरंगों में विवर्तन की घटना आसानी से देखने को मिलती है। ध्वनि तरंगें अवरोधों पर आसानी से मुड़कर हमें सुनाई देती हैं, जबकि प्रकाश तरंगों का तरंगदैर्घ्य हमारे जीवनोपयोगी वस्तुओं के आकार की तुलना में बहुत छोटी होती है, जिसके कारण हमें प्रकाश के विवर्तन की घटना साधारणतया देखने को नहीं मिलती है।

विवर्तन को दो प्रकारों में विभाजित किया जा सकता है:

  • फ्राउनहोफर विवर्तन (Fraunhofer Diffraction)

  • फ्रेस्नेल विवर्तन (Fresnel Diffraction)

फ्राउनहोफर विवर्तन में:

  • स्रोत और स्क्रीन एक दूसरे से बहुत दूर हैं।

  • विवर्तक पर समतल तरंगाग्र (plane wavefront) आपतित होतीहैं।

  • विवर्तक भीसमतल तरंगाग्र (plane wavefront) उत्पन्न करते हैं।

  • समतल तरंगाग्र कोउत्तल लेंस के माध्यम से अभिसरित (converge) कर विवर्तन पैटर्न बनाया जाता है ।


फ्रेस्नेल विवर्तन में:

  • स्त्रोत और स्क्रीन एक दूसरे से ज्यादा दूर नहीं होते हैं।

  • विवर्तक पर गोलाकार तरंगाग्र (spherical wavefront) आपतित होतीहैं।

  • विवर्तक भीगोलाकार तरंगाग्र (plane wavefront) उत्पन्न करते हैं।

  • गोलाकार तरंगाग्र को अभिसरित (converge) कर विवर्तन पैटर्न बनाने के लिए उत्तल लेंस की अवश्यकता नही पड़ती है ।

सूर्योदय व सूर्यास्त के समय सूर्य का लाल दिखाई देना - सूर्योदय एवं सूर्यास्त के समय सूर्य की किरणें पृथ्वी के वायुमंडल में अधिक दूरी तय करती है जिसके कारण सूर्य के प्रकाश का विवर्तनहो जाता है चूँकि लाल रंग का विवर्तन बहुत कम होता है अतः हमें सूर्य लाल रंग का दिखता है।

आसमान का नीला रंग दिखाई देना - सूर्य से जो प्रकाश निकलता है उसका रंग सफेद होता है, इसमें सात रंग समाहित होते है जिनमे लाल, नारंगी, पीला, हरा, नीला, जामुनी, बैंगनी रंग शामिल होते है जब सूर्य की सफ़ेद किरण पृथ्वी के वायुमंडल से होकर गुजरती है तो ये हवा में मौजूद विभिन्न कणों और अणुओं के कारण इनमें विवर्तन होता है । नीले रंग की तरंग दैर्ध्य कम होती है अतः यह सबसे ज्यादा बिखरता है जबकि लाल रंग की तरंग दैर्ध्य ज्यादा होती है इसलिए ये कम बिखरता है । इसीकारण सए आसमान नीला दिखाई देता है ।

खतरे के निशान लाल रंग के होते हैं - क्योंकि लाल रंग की तरंग दैर्ध्य सबसे ज्यादा होती है इसलिए लाल रंग का विवर्तन सबसे कम होता है और हवा के अणुओं द्वारा लाल रंग को कम फैलाया जाता है । इसलिए लाल रंग ज्यादा दूरी तक देखा जा सकता है ।

विस्तृत अध्ययन के लिए निम्न विडियो देखें :-

यंग का व्यतिकरण प्रयोग ( Young's Interference Experiment )

सन 1801 में महान वैज्ञानिक यंग ने प्रकाश के व्यतिकरण को द्विझिरी प्रयोग द्वारा समझाया । उन्होने अपने प्रयोग में एक तरंगाग्र को दो स्लिट तरंग्रों में विभक्त किया और ये स्लिट तरंग्रा इस तरह से व्यवहार करती हैं जैसे कि वे दो अलग-अलग स्त्रोतों से उत्पन्न हुई हों । जब इस दो तरंग्रों में व्यतिकरण किया जाता है तो वे सतत व्यतिकरण ( sustainable interference ) पैटर्न बनाती हैं । उन्होने अपने मूल प्रयोग में एक रेखा छिद्र S को एकवर्णीय प्रकाश से प्रकाशित किया । इस रेखा छिद्र के आगे दो रेखा छिद्र S1 व S2 हैं जो एक – दूसरे के बहुत समीप व सामांतर हैं तथा उससे समान दूरी पर स्थित हैं ।

विस्तृत अध्ययन के लिए निम्न विडियो देखें :-