पृष्ठ तनाव किसी मुक्त सतह का वह गुण है, जिसके द्वारा वह न्यूनतम पृष्ठीय क्षेत्रफल पाने के लिए अपनी सतह में खिचॉव करती है | माना कि द्रव के मुक्त सतह पर एक काल्पनिक रेखा AB खीचीं गई है । (जैसा कि चित्र में दिखाया गया है)। पृष्ठ तनाव का बल को इस काल्पनिक रेखा AB के दोनों ओर प्रति इकाई लंबाई में कार्य के रूप में मापा जाता है। •यह बल, काल्पनिक रेखा के लंबवत है और द्रव के सतह पर स्पर्शरेखा के रुप में रहता है ।
𝑇 = 𝐹/𝑙
पृष्ठ तनाव को इस रूप में परिभाषित किया जा सकता है कि तरल के मुक्त सतह पर खींचीं एक काल्पनिक रेखा के दोनों ओर इकाई लंबाई पर लम्बवत दिशा में आरोपित बल।
द्रव में मौजूद अशुद्धताएं पृष्ठ तनाव को काफ़ी प्रभावित करती हैं। नमक जैसा अत्यधिक घुलनशील पदार्थ सतह के तनाव को बढ़ाता है, जबकि कम घुलनशील पदार्थ जैसे साबुन पृष्ठ तनाव को कम करता हैं।
तापमान में वृद्धि के साथ पृष्ठ तनाव कम हो जाता है। जिस तापमान पर किसी द्रव पृष्ठ तनाव शून्य हो जाता है उसे द्रव का क्रांतिक ताप कहा जाता है।
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जब द्रव का औसत वेग एक निश्चित मान से कम होता है तो यह प्रवाह धारारेखीय प्रवाह कहलाता है । जब द्रव का औसत वेग एक निश्चित मान से अधिक हो जाता है तो प्रवाह विक्षुब्ध प्रवाह कहलाता है । औसत वेग के इस निश्चित मान को क्रांतिक वेग कहा जाता है । यह अवस्थांतर, धारारेखीय प्रवाह को विक्षुब्ध प्रवाह से चिन्हित करता है । रेनॉल्ड्स संख्या एक शुद्ध संख्या है और यह अनुपात है प्रति इकाई क्षेत्र में जड़त्वीय बल तथा प्रवाहित होने वाले द्रव में प्रति इकाई क्षेत्र में शयान बल का । इसकी कोई इकाई और आयाम नहीं होता हैं ।
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सभी द्रव प्रवाह को दो श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है:
धारारेखीय प्रवाह
विक्षुब्ध प्रवाह
धारा रेखीय प्रवाह - द्रव का प्रत्येक कण अपने पूर्ववर्ती कण के पथ का अनुसरण कर्ता है | प्रत्येक कण का वेग प्रत्येक बिंदु पर, अपने पूर्ववर्ती कण के वेग के बराबर होता है। एक प्रवाह को धारारेखीय प्रवाह के रुप में परिभाषित किया जा सकता है जब वह सीधा या घुमावदार हो और किसी भी बिंदु पर स्पर्शरेखा उस बिंदु पर द्रव के प्रवाह की दिशा बताती है । दो धारारेखीय एक दूसरे को पार नहीं कर सकती हैं और जिस स्थान पर अधिक धारा रेखीय तरग होंगी, उस स्थान पर द्रव का वेग अधिक होती है ।
विक्षुब्द प्रवाह - एक विक्षुब्द प्रवाह में, प्रवाह को बनाए रखने वाली अधिकांश बाह्य ऊर्जा, द्रव में बवंडर बनाने में खर्च व्यया हो जाती है और द्रव के प्रवाह को बनाए रखने के लिए एक छोटा अंश उपलब्ध होता है।
क्रांतिक वेग - जब द्रव का औसत वेग एक निश्चित मान से कम होता है तो यह प्रवाह धारारेखीय प्रवाह कहलाता है । जब द्रव का औसत वेग एक निश्चित मान से अधिक हो जाता है तो प्रवाह विक्षुब्ध प्रवाह कहलाता है । औसत वेग के इस निश्चित मान को क्रांतिक वेग कहा जाता है । यह अवस्थांतर, धारारेखीय प्रवाह को विक्षुब्ध प्रवाह से चिन्हित करता है ।
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“श्यानता" एक लैटिन शब्द है जिसका अर्थ "विस्कोम अल्बा" है। बर्डक्लाइम नामक एक शयान गोंद मिस्टलेटो बेरीज से बनाया गया था और पक्षियों को पकड़ने के लिए चूने की टहनियों के लिए इस्तेमाल किया जाता था। द्रव का वह गुण जिसके कारण वह अपने विभिन्न परतों के बीच सापेक्ष गति का विरोध करती है, श्यानता कहलाती है। द्रव व गैस, दोनों के पास श्यानता का गुण होता है, परंतु गैस कि तुलना में द्रव अधिक श्यान होते हैं | एक संकीर्ण ट्यूब से बहने वाले द्रव पर विचार करें। द्रव के सभी भाग एक ही वेग के साथ ट्यूब में नहीं चलते हैं। कल्पना करें कि द्रव बड़ी संख्या में पतली बेलनाकार समाक्षीय परतों से बना हुआ है । वे परतें जो ट्यूब की दीवारों के संपर्क में हैं, लगभग स्थिर रहती हैं । •जब हम दीवार से ट्यूब के केंद्र की ओर बढ़ते हैं, तब तक बेलनाकार परतों का वेग केंद्र की तरफ़ बढ़ता है व केंद्र में अधिकतम होता है । यह एक पर्णदलीय ‘लेमिनर’ प्रवाह कहलाता है । यह एक प्रकार का प्रवाह है, जिसमें द्रव का वेग एक परत से दूसरी परत तक जाने में नियमित रुप से परिवर्तित होता है । जैसे-जैसे हम ट्यूब के केंद्र से ट्यूब की दीवारों की ओर बढ़ते हैं, परतों का वेग कम होता है । दूसरे शब्दों में, हर परत, अपने ऊपर- नीचे वाली परतों में कुछ प्रतिरोध या घर्षण प्रदान करती है।
श्यानता को प्रभावित करने वाले कारक (Factors affecting viscosity)
किसी पदार्थ की श्यानता निम्न कारकों पर निर्भर करती है:-
तापमान: द्रव और गैस की श्यानता के लिए तापमान का प्रभाव विपरीत होता है । द्रव पदार्थों में, जब तापमान बढ़ता है कणों मे गति बढ़ जाती है और कणों के बीच की दूरी भी बढ़ जाती है जिस कारण द्रव का प्रवाह बढ़ जाता है व श्यानता कम हो जाती है । गैसों में, कण दूर होते हैं इसलिए तापमान में वृद्धी के साथ उनकी ऊर्जा व वेग बढ़ जाता है और कण एक - दूसरे से टकराने लहते हैं और श्यानता में वृद्धि होती है ।
सांद्रता: किसी द्रव में विशिष्ट मात्रा में घुलने वाले पदार्थ की मात्रा को सांद्रता कहते है । द्रव में मिलावट में वृद्धि से आमतौर पर श्यानता में वृद्धि होती है । क्या आपको पता है कि सब्जी की ग्रेवी की श्यानता को बढ़ाने के लिए शेफ क्या करते हैं ? शेफ, सब्जी की ग्रेवी में कॉर्नस्टार्च को मिला देते हैं जिस कारण ग्रेवी की श्यानता बढ़ जाती है ।
आकर्षण बल: एक ही पदार्थ के कण एक-दूसरे पर आकर्षकण बल लगाते हैं । कुछ पदार्थों में अधिक आकर्षण बल होता है जबकि कुछ पदार्थों में कमजोर आकर्षण बल होता है । कणों के मध्य आकर्षण जितना अधिक होगा, उनमें श्यानता उतनी ही अधिक होगी ।
कण आकार: पदार्थ के कणों का आकार उसकी श्यानता को बहुत प्रभावित करते हैं । छोटे कण अधिक आसानी से व तेजी से प्रवाह कर सकते हैं, जिसका अर्थ है कि उनके पास कम श्यानता होती है । बड़े कणों वाले द्रव की श्यानता अधिक होती है ।
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जब कोई गोलाकार वस्तु किसी श्यान द्रव में गिरती है तो प्रारम्भ में गुरुत्वीय त्वरण के कारण उसका वेग बढ़ता है, परंतु उसकी गति की दिशा के विपरीत द्रव द्वारा आरोपित श्यान बल के कारण, कुछ क्षण पश्चात वह वस्तु एक निश्चित वेग से नीचे की ओर गिरने लगती है । इस निश्चित व नियत वेग को वस्तु का सीमांत वेग (terminal velocity) कहा जाता है ।
सीमांत वेग को प्रभावित करने वाले कारक (Factors affecting Terminal Velocity)
द्रव्यमान - अधिक द्रव्यमान वाली वस्तु अधिक सीमांत वेग से नीचे की ओर गिरेगी ।
पृष्ठीय क्षेत्रफ़ल - यदि किसी वस्तु का पृष्ठीय क्षेत्रफल ज्यादा है तो उसकी सीमांत वेग कम होगा ।
आकार – वस्तु का आकार गिरने वाली वस्तु के सीमान्त वेग को प्रभावित करता है या उदाहरण के लिए,यदि पैराशूट पहने एक ही वजन के दो लोग हैं अलग-अलग तरीके से (एक फ्लैट स्थिर और एक सिर नीचे की ओर ) स्काइडाइव करते हैं, तो वे अलग-अलग वेग से गिरेंगे। फ्लैट स्थिर स्काइडाइवर, सिर नीचे की ओर स्काइडाइवर की तुलना में धीमी गति से गिरेगा, और उसका सीमांत वेग भी कम होगा । यह इस कारण होता है कि स्काइडाइवर का सतहीय क्षेत्रफ़ल और इस क्षेत्रफ़ल के विरूद्ध वायु प्रतिरोध के कारण वेग कम हो जाता है ।
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स्टोक का नियम एक गणितीय समीकरण है जो एक द्रव माध्यम में छोटे गोलाकार कणों के स्थायिकृत (नियत) होते वेग को व्यक्त करता है। जब कोई कण किसी द्रव माध्यम में डूबता है तो यह नियम इस कण पर आरोपित बलों पर विचार करने के लिए व्युत्पन्न किया गया है | यह नियम केवल धारारेखीय प्रवाह में ही लागू होता है, विक्षुब्द प्रवाह में नही । •जब कोइ पिंड श्यान द्रव में गिर जाता है, यह श्यान बल ‘F’ अनुभव करता है |यह बल, श्यान द्रव के माध्यम से गिरते हुए गोले या कण पर गतिरोध डालता है और गोले या कण वेग के आनुपातिक होता है; गोले या कण की त्रिज्या के आनुपातिक और द्रव पदार्थ की श्यानता के भी आनुपातिक होता है ।
स्टोक ने निष्कर्ष निकाला कि श्यान बल ‘F’ निर्भर करता है:
द्रव की श्यानता गुणांक ‘η’ के
गोलाकार की त्रिज्या ‘r’ के
वेग ‘v’ के
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इसका अध्ययन सर्वप्रथम आर्कमिडीज ने किया था । किसी वस्तु को द्रव में पूर्ण या आंशिक रुप से डुबोने पर, तरल द्वारा वस्तुओं पर ऊपर की ओर एक बल लगाता है, उसे उत्प्लावक बल कहते हैं । एक द्रव स्तंभ में दबाव गहराई से बढ़ता है। द्रव में डूबी किसी वस्तु के तल पर दबाव शीर्ष पर उससे अधिक होता है। इस दबाव का अंतर के कारण उस वस्तु पर कुल बल ऊपर की ओर होता है, जिसे ही हम उत्प्लावक बल के रुप में जानते हैं । इस बल का मान, विस्थापित द्रव की मात्रा या भार के बराबर होता है।
उत्प्लावक बल का केंद्र ( Centre of Buoyant Force ) - •यह वह बिंदु है जहां उत्प्लावक बल आरोपित होता है या वस्तु पर वह बिंदु जहां बल कार्य करता है। यह बल एक ऊर्ध्वाधर बल है, और इस प्रकार, उत्प्लावन का केंद्र बिंदु, विस्थापित द्रव के गुरुत्वाकर्षण के केंद्र पर स्थित होता है ।
उत्प्लावक बल के प्रकार ( Types of Buoyant Force ) -
धनात्मक उत्प्लावक बल ( Positive Buoyant Force )
ऋणात्मक उत्प्लावक बल ( Negative Buoyant Force )
तटस्थ उत्प्लावक बल ( Neutral Buoyant Force )
धनात्मक उत्प्लावक बल तब कार्य करता है जब किसी वस्तु का घनत्व, उस द्रव से कम हो जिससे वह विस्थापित कर रहा हो । वस्तु तैरेगी क्योंकि उत्प्लावक बल, वस्तु के भार से अधिक है।
ऋणात्मक उत्प्लावन बल तब कार्य करता है जब वस्तु का घनत्व, विस्थापित द्रव के घनत्व से ज्यादा हो । वस्तु डूब जाएगी क्योंकि इसका भार, उत्प्लावक बल से अधिक है।
तटस्थ उत्प्लावक बल तब कार्य करता है, जब वस्तु का भार उस द्रव के भार के बराबर हो जिसे विस्थापित किया गया है । वस्तु द्रव में मँडराएगी ।
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माना कि एक पाइप में एक तरल बह रहा है और पाइप में एकल प्रवेश और एकल निकास है, पाइप में बहने वाला द्रव गैर- श्यान है, प्रवाह असंगत है और प्रवाह एक-समान है ।
जब किसी नली में द्रव का प्रवाह नियत हो तो, एक निश्चित समयान्तराल में नली में प्रवेश करने वाले द्रव का द्रव्यमान, उसी समयान्तराल में नली से निकलने वाले द्रव के द्रव्यमान के बराबर होता है ।
a1 v1=a2 v2
निष्कर्ष - एक द्रव पदार्थ की गति उस स्थान पर सबसे अधिक होगी बड़ी, जहां संकर अनुभागीय क्षेत्रफ़ल सबसे कम हो । जिस स्थान पर वेग अधिक होगा वहॉ, द्रव की धारा रेखाऐं अधिक होंगी ।
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बर्नौली का सिद्धांत व्याख्या करता है कि किस प्रकार द्रव की गति उसके दाब पर निर्भर करती है । इस सिद्धांत का नाम स्विस गणितज्ञ और भौतिक विज्ञानी डैनियल बर्नोली के नाम पर रखा गया है। जब अश्यान और असंपडीय द्रव (या गैस) एक स्थान से दूसरे स्थान पर धारारेखीय रुप सए प्रवाहित होती है, तो इसके पथ के प्रत्येक बिंदु पर, इसकी इकाई मात्रा की कुल ऊर्जा अर्थात् दबाव ऊर्जा, गतिज ऊर्जा और संभावित ऊर्जा नियत रहती है।
P+ ½ (ρv)2+ ρgh = constant
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