Laser


परिचय (Introduction)

लेज़र का संक्षिप्त नाम विकिरण के उद्दीप्त उत्सर्जन द्वारा प्रकाश प्रवर्धन (अंग्रेज़ी में Light Amplification by Stimulated Emission of Radiation) है। ‘लेज़र’ शब्द को पहली बार सार्वजनिक रूप से गोउल्ड के 1959 के सम्मलेन पत्र ‘द लेज़र, लाइट एम्प्लिफिकेशन बाई स्टिम्युलेटेड एमिशन ऑफ़ रेडिएशन’ में उपयोग किया था। 6 मई 1960 में पहले क्रियागत लेज़रका आविष्कार अमेरिका के थियोडोर एच. मैमेन के द्वारा किया गया था । माईमेन ने 694 नैनोमीटर वेवलेंथ पर लाल लेज़रप्रकाश को उत्पन्न करने के लिए एक ठोस क्षेत्र फलैश लैम्प-सिंथेटिक पम्प लाल क्रिस्टल को काम में लिया था । इसके बाद 1960 में ही ईरान के भौतिकविद अली जावन ने विलियम आर. बेनेट व डोनाल्ड हैरोइट के साथ पहला गैस लेज़रहीलियम और नियोन का उपयोग करके बनाया था। इसके लिए वर्ष 1993 में अली जावन को 'अल्बर्ट आइन्सटीन पुरस्कार' मिला।

यह ऐसा उपकरण है जो सुसंगत / संसक्त प्रकाश की एक संकीर्ण और निम्न-विचलन वाली बीम बनाता है, जबकि अधिकांश अन्य प्रकाश स्रोत असंगत प्रकाश का उत्सर्जन करते हैं, जिसकी कला समय और स्थिति के साथ यादृच्छिक रूप से बदलती है। अधिकांश लेज़र एक संकीर्ण तरंग दैर्ध्य स्पेक्ट्रम के साथ लगभग "एकवर्णीय (monochromatic)" प्रकाश का उत्सर्जन करते हैं।

लेज़र की संकल्पना (Concept of Laser )

जब किसी पदार्थ को उच्च ऊर्जा देते है तो उसकी बाहरी कक्षा में उपस्थित इलेक्ट्रोन उच्च ऊर्जा स्तर में चले जाते हैं और कुछ समय पश्चात वे इलेक्ट्रोन वापस निम्न ऊर्जा स्तर में आ जाते हैं, और ऊर्जा का उत्सर्जन करते हैं। अतः मूल ऊर्जा स्तर में ऊर्जा अंतर उत्पन्न होने के कारण ऊर्जा का उत्सर्जन होता है और यह ऊर्जा उत्सर्जन सतत् रूप से होता है तो यह विकिरण कहलाता है और लेज़र(Laser) का निर्माण करता है।

लेज़र का सिद्धांत (Principle of Laser)

लेज़र का सिद्धांत तीन अलग-अलग विशेषताओं पर आधारित है:

  • एम्पलीफायरिंग माध्यम के भीतर प्रेरित उत्सर्जन (stimulated emission within an amplifying medium)

  • जनसंख्या व्यतुक्रम (population inversion)

  • ऑप्टिकल रेसोनेटर (optical resonator)

उत्सर्जन (Emission)

फ़ोटोन या ऊर्जा अवशोषण के पश्चात परमाणु उच्च ऊर्जा स्तर पर पहुंच जाता है व कुछ समय पश्चात दो स्तरों के बीच ऊर्जा अंतर के बराबर ऊर्जा को छोड़ते हुए वापिस निम्न ऊर्जा स्तर या किसी मध्यम ऊर्जा स्तर पर आ जाता है । इस प्रक्रिया को उत्सर्जन के रूप में जाना जाता है।

उत्सर्जन दो तरह के होतेहैं:-

(1) स्वतः उत्सर्जन (Spontaneous emission)

(2) प्रेरित उत्सर्जन (Stimulated emission)

स्वतः उत्सर्जन(Spontaneous emission) - स्वतः उत्सर्जन वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा उच्च ऊर्जा स्तर के परमाणु फोटॉन / ऊर्जा का उत्सर्जिन कर निम्न या मध्यम ऊर्जा स्तर में लौट आते हैं। उच्च ऊर्जा अवस्था में परमाणु केवल कुछ समय के लिए रह सकते हैं। जिस समय तक एक उत्साहित इलेक्ट्रॉन उच्च ऊर्जा स्थिति (E 2) पर रह सकता है, उसे उत्साहित इलेक्ट्रॉनों के जीवनकाल के रूप में जाना जाता है। उच्च ऊर्जा स्तर में परमाणु का जीवनकाल 10-6 सेकंड है ।

इस प्रकार, उत्साहित परमाणु जीवनकाल के बाद, फोटॉनों के रूप में ऊर्जा का उत्सर्जन कर निम्न ऊर्जा स्तर में लौटते हैं । स्वतः उत्सर्जन में, इलेक्ट्रॉन स्वाभाविक रूप से या अनायास एक स्तर (उच्च ऊर्जा अवस्था) से दूसरे स्तर (निम्न ऊर्जा अवस्था) में चले जाते हैं, इसलिए फोटॉन का उत्सर्जन भी स्वाभाविक रूप से होता है। इसलिए, जब एक उत्साहित परमाणु प्रकाश के रूप में ऊर्जा का उत्सर्जन कर रहा होता है, तो हमारा कोई नियंत्रण नहीं होता है। स्वतः उत्सर्जन प्रक्रिया में उत्सर्जित फोटोन साधारण असंगत प्रकाश का निर्माण करते हैं। । दूसरे शब्दों में, स्वतः उत्सर्जन प्रक्रिया में उत्सर्जित फोटोन किसी समान दिशा में प्रवाहित नहीं होते हैं।

प्रेरित उत्सर्जन (Stimulated emission)- प्रेरित उत्सर्जन वह प्रक्रिया जिसके द्वारा उच्च ऊर्जा स्तर के परमाणु आपतित फोटॉन के संघट्ट के कारण निम्न या मध्यम ऊर्जा स्तर में लौट जाते हैं व ऊर्जा को उत्सर्जित करते हैं । प्रेरित उत्सर्जन में, ऊर्जा या फ़ोटोन को सीधे निम्न ऊर्जा स्तर के परमाणु को देने के बजाय उत्साहित इलेक्ट्रॉन को दी जाती है । सहज उत्सर्जन के विपरीत, प्रेर्रित उत्सर्जन एक प्राकृतिक प्रक्रिया नहीं है यह एक कृत्रिम प्रक्रिया है।

सहज उत्सर्जन में, उत्तेजित अवस्था में परमाणु तब तक बने रहते हैं, जब तक उनका जीवनकाल समाप्त नहीं हो जाता। अपने जीवनकाल को पूरा करने के बाद ही , वे प्रकाश के रूप में ऊर्जा का उत्सर्जन कर, निम्न ऊर्जा स्तर पर लौट आते हैं । हालांकि, प्रेरित उत्सर्जन में, उच्च अवस्था में परमाणु अपने जीवनकाल के पूरा होने के पूर्व ही, एक वैकल्पिक तकनीक का उपयोग से निम्न ऊर्जा स्तर में लौट आते हैं व इस संक्रमण के दौरान उर्जा का उत्सर्जन भी करते है । जब आपतित फोटॉन उत्तेजित परमाणु के साथ अर्न्तक्रिया(interaction) करता है, तो यह उत्तेजित परमाणु को निम्न ऊर्जा स्तर में लौटने के लिए मजबूर करता है। यह उत्तेजित परमाणु, निम्न ऊर्जा स्तर में लौटते समय प्रकाश के रूप में ऊर्जा छोड़ता है।

प्रेरित उत्सर्जन में, दो फोटोन उत्सर्जित होते हैं (एक अतिरिक्त फोटॉन उत्सर्जित होता है), एक आपतित फोटॉन के कारण होता है और दूसरा परमाणु के निम्न ऊर्जा स्तर में लौटने के कारण उत्सर्जित होता है । इस प्रकार, दो फोटोन उत्सर्जित होते हैं। स्वतः उत्सर्जन प्रक्रिया की तुलना में प्रेरित उत्सर्जन प्रक्रिया बहुत तेज होती है । प्रेरित उत्सर्जन में सभी उत्सर्जित फोटॉनों में समान ऊर्जा, समान आवृत्ति और समान कला होती हैं। इसलिए, समस्त उत्सर्जित फ़ोटोन एक ही दिशा में चलते हैं । प्रेरित उत्सर्जन में उत्सर्जित फोटॉनों की संख्या उच्च ऊर्जा स्तर में परमाणु की संख्या और आपतित फ़ोटोन / ऊर्जा की मात्रा पर निर्भर करती है।

जनसंख्या का ह्रास या जनसंख्या व्यतुक्रम (Population Inversion)

अवशोषण के कारण परमाणु निम्न ऊर्जा स्तर से उच्च ऊर्जा स्तर पर पहुंचते हैं । जब एक उत्तेजित अवस्था में परमाणुओं की संख्या निम्न ऊर्जा अवस्था में स्थित परमाणुओं की संख्या से अधिक हो जाती है, तो इसे जनसंख्या का ह्रास (population inversion) कहते हैं । इस कारण से सिस्टम से उत्सर्जित प्रकाश तीव्रता में वृद्धि होती है । लेकिन यह प्रक्रिया केवल दो स्तरों से प्राप्त नहीं की जा सकती है, क्योंकि परमाणु अंततः स्वतः और प्रेरित उत्सर्जन प्रक्रियाओं के कारण संतुलन की स्थिती में आ जाते हैं ।

इसके बजाय, तीन ऊर्जा स्तरों (E 1 < E 2 < E 3) और इनमें जनसंख्या N 1, N 2 और N 3 के साथ एक अप्रत्यक्ष तरीका अपनाया जाता है ।प्रारंभ में, प्रणाली थर्मल संतुलन पर है, और इलेक्ट्रॉनों के अधिकांश जमीन राज्य में रहते हैं। फिर उन्हें पंपिंग के रूप में संदर्भित करने के लिए बाहरी ऊर्जा को स्तर 3 तक पहुंचाने के लिए प्रदान किया जाता है। पंपिंग ऊर्जा का स्रोत अलग-अलग लेज़र माध्यमों के साथ भिन्न होता है, जैसे कि विद्युत निर्वहन और रासायनिक प्रतिक्रिया, आदि।

जनसंख्या ह्रास या जनसंख्या व्यतुक्रम दो ऊर्जा स्तर प्रणाली में प्राप्त नहीं किया जा सकता है। सामान्य परिस्थितियों में, निम्न ऊर्जा अवस्था (E1) में इलेक्ट्रॉनों की संख्या (N1) की तुलना में उच्च ऊर्जा अवस्था (E2) में इलेक्ट्रॉनों (N2) की संख्या हमेशा कम होती है । N1 > N2 होता है, परंतु जब जब तापमान बढ़ता है, तब उच्च ऊर्जा स्तर में परमाणुओं की संख्या (N2) भी बढ़ जाती है । हालांकि, उच्च ऊर्जा स्तर में (N2) की जनसंख्या कभी भी निम्न ऊर्जा स्तर (N1) की जनसंख्या से अधिक नहीं होगी । सबसे अच्छी स्थिति में दोनों स्तरों में अधिकतम एक समान जनसंख्या प्राप्त की जा सकती है (N1 = N2 ), जिसके परिणामस्वरूप कोई ऑप्टिकल लाभ नहीं होता है । इसलिए, जनसंख्या व्युत्क्रम प्राप्त करने के लिए 3 या अधिक ऊर्जा स्तरों की आवश्यकता होगी । अधिक ऊर्जा स्तरों की संख्या, अधिक ऑप्टिकल लाभ प्रदान करेगा । ऐसे कुछ पदार्थ हैं जिनमें परमाणु एक बार उत्तेजित होकर उच्च ऊर्जा स्तर पर पहुंच जाते हैं, जिनका जीवन काल अधिक रहता है, तो वे उस ऊर्जा स्तर के जीवन काल तक उसी ऊर्जा स्तर में रहेंगें । ऐसी प्रणालियों को सक्रिय सिस्टम कहा जाता है जो आम तौर पर विभिन्न तत्वों का मिश्रण होते हैं। जब ऐसे मिश्रण बनते हैं, तो उनके ऊर्जा स्तर को संशोधित किया जाता सकता है और उनसे कुछ विशेष गुण प्राप्त किए जा सकते हैं । इस तरह की सामग्रियों का उपयोग 3-स्तरीय लेज़र या 4-स्तरीय लेज़र बनाने के लिए किया जाता है ।

3-स्तरीय लेज़र प्रणाली पर विचार करें, जिसमें तीन ऊर्जा स्तर E1, E2, E3 में क्रमशः परमाणुओं की संख्या N1 , N2 व N3 है । हम मानते हैं कि E1 का ऊर्जा स्तर E2 और E3 से कम है, E2 का ऊर्जा स्तर E1 से अधिक है और E3 से कम है, और E3 का ऊर्जा स्तर E1 और E2 से अधिक है। परंतु ऊर्जा स्तर E2 का जीवनकाल ऊर्जा स्तर E3 से अधिक है । सामान्य परिस्थिति में परमाणु ऊर्जा स्तर E1 में रहते हैं । अवशोषण प्रक्रिया के कारण ऊर्जास्तर E1 के परमाणु ऊर्जा स्तर E3 में पहुंच जाते हैं । ऊर्जा स्तर E2 का जीवन काल करीब 10-6 सेकेंड का होता है । गैर विकिरण उत्सर्जन के कारण परमाणु , ऊर्जा स्तर E3 से ऊर्जा स्तर E2 में चले जावेंगें । चूकिं ऊर्जा स्तर E2 का जीवन काल अधिक है, अतः E2 में परमाणु अधिक समय तक रहेंगें । कुछ समय पश्चात ऐसी स्थिति आवेगी जब ऊर्जा स्तर E2 में परमाणुओं की संख्या ऊर्जा स्तर E1 से अधिक हो जावेगी, अर्थात N2 > N1 । इस प्रकार हम जनसंख्या ह्रास या जनसंख्या व्यतुक्रम प्राप्त करेंगें ।

ऑप्टिकल रेज़ोनेटर (Optical Resonator)

हालाँकि जनसंख्या ह्रास या जनसंख्या व्यतुक्रम के कारण हमारे पास, उत्तेजित उत्सर्जन के कारण सिग्नल को बढ़ाने क्षमता (amplification of signal) है, लेकिन ‘समग्र एकल पास लाभ’ (signle pass gain) काफी छोटा होता है, और अधिकतर उत्सर्जित परमाणओं द्वारा स्वतः उत्सर्जन किया जाता है जो कि समग्र उत्पादन में योगदान नहीं करते हैं। फिर एक सकारात्मक प्रतिक्रिया तंत्र (positive feedback mechanism) बनाने के लिए ऑप्टिकल रेज़ोनेटर यंत्र को लगाया जाता है। एक ऑप्टिकल रेज़ोनेटर में आमतौर पर दो समतल या अवतल दर्पण होते हैं, जोकि दोनों सिरों पर होते हैं, जो लेज़िंग फोटॉनों को आगे और पीछे परावर्तित करते रहते है ताकि प्रेरित उत्सर्जन द्वारा अधिक से अधिक लेज़र लाइट का निर्माण किया जा सके । अन्य दिशाओं में सहज क्षय द्वारा उत्पन्न फोटॉन अक्ष से अलग हो जाते है और उन्हें प्रेरित उत्सर्जन द्वारा अक्ष पर प्रतिस्पर्धा करने के लिए प्रवर्धित नहीं किया जा सकता । एक दर्पण को 100% परावर्तक बनाया जाता है व दूसरे दर्पण को केवल 95 - 99% परावर्तक बनाया जाता है ताकि बाकी प्रकाश इस दर्पण द्वारा संचरित हो सके और लेज़र किरण का निर्माण कर सके ।

लेज़र की विशेषतायें व अनुप्रयोग (Properties and Applications of Laser)

विशेषताएं (Properties)

लेज़र प्रकाश की चार विशिष्ट विशेषताएं हैं जो इसे साधारण प्रकाश से अलग करती हैं और ये हैं :

  1. कला सम्बद्ध (Coherence ) - लेज़र में, परमाणु उत्सर्जन प्रेरित होता है, जिस कारण उत्सर्जित सभी फोटॉनों में समान ऊर्जा, आवृत्ति या तरंग दैर्ध्य होता है। इसलिए, लेजर प्रकाश कला सम्बद्ध होते हैं । इस प्रकार लेजर द्वारा उत्पन्न प्रकाश अत्यधिक सुसंगत होता है । इस सुसंगतता के कारण, बड़ी मात्रा में शक्ति, एक संकीर्ण स्थान में केंद्रित हो सकती है ।

  2. दिशात्मकता (Directionality) - लेज़र में, सभी फोटॉन एक ही दिशा में गमन करते हैं । इसलिए, लेज़र केवल एक दिशा में प्रकाश उत्सर्जित करता है। इसे लेजर प्रकाश की दिशात्मकता कहा जाता है। लेजर किरण काफ़ी संकीर्ण होती है, इसलिए, एक लेजर किरण, बगैर किसी फ़ैलाव के लंबी दूरी तक गमन कर सकती है।

  3. एकरंगा (Monochromatic) - मोनोक्रोमैटिक प्रकाश का मतलब एकल रंग या तरंग दैर्ध्य से युक्त प्रकाश है। साधारण प्रकाश स्रोतों से उत्सर्जित फोटॉनों में विभिन्न ऊर्जाएँ, आवृत्तियाँ, तरंग दैर्ध्य या रंग होते हैं। इसलिए, साधारण प्रकाश विभिन्न आवृत्तियों या तरंग दैर्ध्य वाली तरंगों का मिश्रण होता है । दूसरी ओर, लेजर में, सभी उत्सर्जित फोटॉनों में समान ऊर्जा, आवृत्ति या तरंग दैर्ध्य होता है। इसलिए, लेजर की प्रकाश तरंगों में एकल तरंग दैर्ध्य या एकल रंग होता है। इसलिए, लेजर प्रकाश आवृत्तियों या तरंग दैर्ध्य की एक बहुत ही संकीर्ण सीमा को कवर करता है।

  4. उच्च तीव्रता (High Intensity ) – लेजर किरण में, उत्सर्जित प्रकाश में तरंग दैर्ध्य में फ़ैलाव कम होता है। इसलिए, साधारण प्रकाश की तुलना में लेजर प्रकाश की तीव्रता अधिक होती है।

उपयोग (Applications) -

लेज़र के कई उपयोग हैं जैसे कि

  1. मिलिट्री अनुप्रयोग – मुख्य रुप से लेजर सैन्य अनुप्रयोगों के लिए समर्पित हैं जैसे कि दूरी को मापना, रेंज फाइंडिंग, लक्ष्य पदनाम और लक्ष्य सिमुलेशन आदि।

  2. औद्योगिक अनुप्रयोग - लेजर के औद्योगिक अनुप्रयोगों में लेजर कटिंग, उष्मा उपचार, ड्रिलिंग, वेल्डिंग, अंकन आदि शामिल हैं।

  3. चिकित्सा अनुप्रयोग - लेजर के चिकित्सा अनुप्रयोगों में हाथ की सर्जरी, कान की सर्जरी, आंतरिक सर्जरी, कैंसर, एंडोस्कोपी आदि शामिल हैं।

  4. वैज्ञानिक अनुप्रयोग - लेजर के वैज्ञानिक अनुप्रयोग स्पेक्ट्रोस्कोपी, खगोल विज्ञान, फोटो-रसायन, संलयन, होलोग्राफी आदि शामिल हैं ।

हीलियम-नियॉन लेजर का निर्माण (Construction of He-Ne Laser)

हीलियम-नियॉन लेजर में तीन आवश्यक घटक होते हैं: पंप स्रोत (उच्च वोल्टेज पॉवर सप्लाई ) लाभ माध्यम, ऑप्टिकल रेज़ोनेटर ।

लेजर बीम का उत्पादन करने के लिए, जनसंख्या व्युत्क्रम को प्राप्त करना आवश्यक है। जनसंख्या का ह्रास या जनसंख्या व्युत्क्रम, निम्न ऊर्जा अवस्था की तुलना में उच्च ऊर्जा अवस्था में अधिक इलेक्ट्रॉनों को प्राप्त करने की प्रक्रिया है। सामान्य तौर पर, निम्न ऊर्जा राज्य में उच्च ऊर्जा राज्य की तुलना में अधिक इलेक्ट्रॉन होते हैं। हालाँकि, जनसंख्या व्युत्क्रम को प्राप्त करने के बाद, निम्न ऊर्जा की तुलना में उच्च ऊर्जा स्तर में अधिक इलेक्ट्रॉन रहेंगें। जनसंख्या व्युत्क्रम प्राप्त करने के लिए, हमें लाभ माध्यम या सक्रिय माध्यम में ऊर्जा की आपूर्ति करने की आवश्यकता होती है । विभिन्न प्रकार के ऊर्जा स्रोतों का उपयोग लाभ माध्यम को ऊर्जा की आपूर्ति करने के लिए किया जाता है। हीलियम-नियॉन लेजर के गैस मिश्रण के माध्यम में, पंप स्रोत के रूप में उच्च वोल्टेज डी.सी. का उपयोग किया जाता है ।

हीलियम-नियॉन लेज़र का लाभ माध्यम हीलियम और नियॉन गैस के मिश्रण से बना होता है, जो कम दबाव पर कांच की नली में निहित होता है । जनसंख्या व्यतुक्रम प्राप्त करने के लिए, हमें मुख्य रूप से नियॉन परमाणुओं के इलेक्ट्रॉनों को निम्न ऊर्जा स्तर से उत्तेजित करने की आवश्यकता है । He-Ne लेजर में, नियॉन परमाणु सक्रिय केंद्र होते हैं और लेजर संक्रमण के उनके पास उपयुक्त ऊर्जा स्तर होते हैं जबकि हीलियम परमाणु, नियॉन परमाणुओं को उत्तेजित करने में मदद करते हैं । गैस मिश्रण के माध्यम में विद्युत प्रवाहित करने के लिए ग्लास ट्यूब में इलेक्ट्रोड (एनोड और कैथोड) प्रदान किए जाते हैं। ये इलेक्ट्रोड एक डी.सी. पॉवर सप्लाई से जुड़े होते हैं ।

ऑप्टिकल रेज़ोनेटर (Optical resonator) - ग्लास ट्यूब (हीलियम और नियॉन गैस के मिश्रण से युक्त) को दो समानांतर दर्पणों के बीच रखा गया है। इन दो दर्पणों को चांदी या वैकल्पिक रूप से लेपित किया जाता है । बाईं ओर का दर्पण आंशिक रूप से परावर्तक होता है, जबकि दाईं ओर का दर्पण पूर्ण रुप से परावर्तक होता है । यह दर्पण पूरी तरह से प्रकाश को प्रतिबिंबित करेगा जबकि बाईं ओर का दर्पण आंशिक रूप से प्रकाश के अधिकांश भाग को प्रतिबिंबित करेगा व एक छोटे हिस्से को लेजर बीम के रुप में उत्पादित करेगा ।

हीलियम-नियॉन लेजर की कार्य विधि (Working of He-Ne Laser)

जनसंख्या व्यतुक्रम प्राप्त करने के लिए, हमें लाभ माध्यम को ऊर्जा की आपूर्ति करने की आवश्यकता होती है। हीलियम-नियोन लेजर में, हम पंप स्रोत के रूप में उच्च वोल्टेज डी.सी. का उपयोग करते हैं। एक उच्च वोल्टेज 10 kV डी.सी. से उत्पन्न इलेक्ट्रॉनों के पास अधिक ऊर्जा होती है । गैस माध्यम में गति के दौरान यह इलेक्ट्रॉन अपनी ऊर्जा को हीलियम परमाणुओं में स्थानांतरित करते हैं । नतीजतन, हीलियम परमाणुओं के निम्न ऊर्जा स्तर वाले इलेक्ट्रॉन पर्याप्त ऊर्जा प्राप्त करते हैं और उच्च ऊर्जा स्तर या मेटास्टेबल स्तरों में चले जाते हैं । हम मान लें कि ये मेटास्टेबल स्तर F3 और F5 हैं।

हीलियम परमाणुओं के इलेक्ट्रॉन स्वतः उत्सर्जन द्वारा मेटास्टेबल स्तर से निम्न स्तर में वापस नहीं आ सकते हैं। हालांकि, वे अपनी ऊर्जा को निम्न ऊर्जा स्तर में रखे नियॉन परमाणुओं के इलेक्ट्रॉनों में स्थानांतरित करके निम्न ऊर्जा स्तर में वापिस लौट सकते हैं। नियॉन परमाणुओं के कुछ ऊर्जा स्तर हीलियम परमाणुओं के मेटास्टेबल ऊर्जा स्तरों के समान हैं। आइए हम मान लें कि ये समान ऊर्जा स्तर F3 = E3 और F5 = E5 हैं । E3 और E5 नियॉन परमाणुओं के मेटास्टेबल स्तर हैं।

जब हीलियम परमाणुओं के उत्तेजित इलेक्ट्रॉन नीयॉन परमाणुओं के निम्न ऊर्जा अवस्था वाले इलेक्ट्रॉनों से टकराते हैं, तो वे अपनी ऊर्जा को नियॉन परमाणुओं में स्थानांतरित कर देते हैं। नतीजतन, नीयॉन परमाणुओं के निम्न ऊर्जा स्तरीय इलेक्ट्रॉनों को हीलियम परमाणुओं से पर्याप्त ऊर्जा प्राप्त होती है और उच्च ऊर्जा स्तर या मेटास्टेबल स्तरों (E3 और E5) में चले जाते हैं, जबकि हीलियम परमाणुओं के उत्साहित इलेक्ट्रॉनों निम्न ऊर्जा स्तर में स्थांतरित हो जाते हैं । इस प्रकार, हीलियम परमाणु जनसंख्या व्युत्क्रम को प्राप्त करने में नियॉन परमाणुओं की मदद करते हैं।

कुछ अवधि पश्चात, नियॉन परमाणुओं के मेटास्टेबल स्तरीय इलेक्ट्रॉनों (E3 और E5) अनायास फोटॉन या लाल प्रकाश उत्सर्जित कर अगले निचले ऊर्जा स्तरों (E2 और E4) में गिर जाएंगे। इसे सहज उत्सर्जन कहा जाता है। नियॉन उत्तेजित इलेक्ट्रॉन विकिरण और गैर-विकिरण उत्सर्जन के माध्यम से निम्न ऊर्जा स्तर पर चले जावेंगे । यह निरंतर तरंग के संचालन के लिए महत्वपूर्ण है।

नियॉन परमाणुओं से उत्सर्जित प्रकाश या फोटॉन दो दर्पणों के बीच परावर्तित होंगे जब तक कि यह नीयॉन परमाणुओं के अन्य उत्साहित इलेक्ट्रॉनों को उत्तेजित नहीं करता और उन्हें प्रकाश के उत्सर्जन करने का कारण नही बनाता है। इस प्रकार, ऑप्टिकल लाभ प्राप्त किया जाता है। फोटॉन उत्सर्जन की इस प्रक्रिया को विकिरण का उत्तेजित उत्सर्जन कहा जाता है। उत्तेजित उत्सर्जन के कारण उत्सर्जित प्रकाश या फोटॉन लेजर प्रकाश का उत्पादन करने के लिए आंशिक रूप से प्रतिबिंबित दर्पण या आउटपुट युग्मक के माध्यम से बाहर निकलेंगें ।

हीलियम-नियॉन लेजर के लाभ (Advantages of He-Ne Laser)

  • हीलियम-नियॉन लेजर स्पेक्ट्रम के दृश्य भाग में लेजर प्रकाश का उत्सर्जन करता है।

  • उच्च स्थिरता व कम लागत

  • उच्च तापमान पर क्षति के बिना कार्य करने की क्षमता

हीलियम-नियॉन लेजर के नुकसान (Disadvantages of He-Ne Laser)

  • कम दक्षता

  • कम लाभ

  • He-Ne लेजर कम बिजली के कार्यों तक सीमित हैं |

हीलियम-नियॉन लेजर के अनुप्रयोग (Applications of He-Ne Laser)

  • हीलियम-नियॉन लेजर का उपयोग उद्योगों में किया जाता है।

  • हीलियम-नियोन लेजर का उपयोग वैज्ञानिक उपकरणों में किया जाता है।

  • कॉलेज की प्रयोगशालाओं में हीलियम-नियॉन लेजर का उपयोग किया जाता है।

विस्तृत अध्ययन के लिए निम्न विडियो देखें :-