द्रव्य एक पदार्थ है, जिसमें कुछ द्रव्यमान और आयतन होता है । द्रव्य की तीन अवस्थायें होती हैं - ठोस, द्रव और गैस । नाभिक के आयनित पदार्थ से मिलकर बने पदार्थ की चौथी अवस्था को प्लाज्मा कहा जाता है। हालाँकि, हमारी आगामी चर्चाओं में, हम खुद को द्रव्य के पहले तीन अवस्थाओं तक ही सीमित रखेंगें । पदार्थ की प्रत्येक अवस्था में कुछ विशिष्ट गुण होते हैं। उदाहरण के लिए, एक ठोस में आयतन और आकार दोनों होते हैं। इसमें प्रत्यास्थ गुण होते हैं। एक गैस उस कंटेनर का आकार / आयतन ले लेती है जिसमें वह रखी हो । एक निश्चित तापमान पर द्रव की एक निश्चित मात्रा होती है, लेकिन कोई निश्चित आकार नहीं। ये अलग-अलग गुण दो कारकों के कारण होते हैं: (i) अंतर-आण्विक बल (ii) तापमान के कारण अणुओं की यादृच्छिक गति ।
ठोस पदार्थों में, परमाणु और अणु अपने औसत स्थान के आस-पास कंपन करने के लिए स्वतंत्र होते हैं। यदि यह कंपन पर्याप्त रूप से बढ़ जाता है, तो अणु अलग हो जाएंगे और यादृच्छिक दिशाओं में कंपन करना शुरू कर देंगे। इस अवस्था में पदार्थ या सामग्री का आकार निश्चित नही होता परंतु यह उस कंटेनर का आकार लेता है जिसमें वह रखा हो । यह द्रव अवस्था है । परमाणुओ की उर्जा में यदि और अधिक वृद्धि की जावे तो इनमें और अधिक कम्पन्न होने लगेगा व यह अंतर-आण्विक बल को तोड़ते हुए एक – दूसरें से काफ़ी दूर हो जावेंगें और इस अवस्था को गैसीय अवस्था मान सकते हैं । अवस्था परिवर्तन को समझनें के लिए पानी सबसे अच्छा उदाहरण है। बर्फ पानी का ठोस रूप है। तापमान में वृद्धि के साथ, आणविक कंपन में वृद्धि के कारण बर्फ पानी में परिवर्तित हो जाती है। यदि पानी को और अधिक उर्जा दी जावे यानि कि गर्म किया जाता है, तो पाने के अणुओं के मध्य कम्पन्न बढ़ जावेगा व इनके बीच का अंतर-आण्विक बल भी टूट जावेगा व अणु उन्मुक्त तरीके से किसी भी दिशा में विचरण के लिए स्वतंत्र रहेंगें व भाप का उत्पादन करेंगें । पदार्थ की इस अवस्था को गैस कहा जावेगा ।
दो अलग-अलग हाइड्रोजन परमाणुओं पर विचार करें जो एक दूसरे की ओर बढ़ते हैं,जैसा कि चित्र 2.1 में दिखाया गया है । जैसे-जैसे वे एक-दूसरे के करीब आते हैं, उनके मध्य निम्नलिखित अर्न्तक्रिया (interaction) देखी जा सकती है ।
एक परमाणु के नाभिक और दूसरे के इलेक्ट्रॉन के मध्य आकर्षकण बल A । यह आकर्षकण बल परमाणु प्रणाली की स्थितिज ऊर्जा (potential energy) को कम करता है।
एक परमाणु के नाभिक (nucleus) और दूसरे परमाणु के नाभिक व इनके इलेक्ट्रॉनों के मध्य लगने वाला प्रतिकर्षण बल R । यह प्रतिकर्षण बल हमेशा परमाणु निकाय की ऊर्जा को बढ़ाते हैं ।
सभी अवस्थाओं / निकायों की एक सार्वभौमिक प्रवृत्ति होती है कि उनकी स्थितिज ऊर्जा न्यूनतम हो । न्यूनतम स्थितिज ऊर्जा का यह चरण अधिकतम स्थिरता प्रदान करता है । यदि आकर्षण और प्रतिकर्षण बलों का प्रभाव निकाय की कुल ऊर्जा में कमी करता है तो, दोनों परमाणु अपने-अपने इलेक्ट्रॉनों के साझाकरण द्वारा सहसंयोजक बंधन बनायेंगे और एक दूसरे के करीब आ जावेंगें । दूसरी ओर, यदि प्रतिकर्षण बल अधिक हैं तो निकाय की कुल ऊर्जा में वृद्धि होगी व परमाणु एक दूसरे से दूर होगें व किसी तरह का बंधन नहीं बनाएंगे ।
परमाणुओं के बीच अंतर-आण्विक दूरी व स्थितिज ऊर्जा का ग्राफ़ चित्र में दिखाया गया है | इस ग्राफ से स्पष्ट है कि जैसे-जैसे परमाणु करीब आते हैं यानी जब उनके बीच की अंतर-आण्विक दूरी कम होती जाती है, तब स्थिति ऐसी पहुँच जाती है कि निकाय की स्थितिज ऊर्जा कम हो जाती है । जब दो हाइड्रोजन परमाणु पर्याप्त रूप से करीब होते हैं, तो इनके मध्य इलेक्ट्रॉनों का साझाकरण होता है और उनकी स्थितिज ऊर्जा न्यूनतम होती है। यह सहसंयोजक बंधन के गठन का परिणाम है और अंतर-आण्विक दूरी r0 है । ठोस पदार्थों में अंतर-आण्विक दूरी r0 है, द्रव में यह r0 से अधिक होती है और गैस में r0 से बहुत अधिक होती है ।
परमाणुओं के मध्य लगने वाला बल इनके के आवेशं के मध्य विद्युत्स्थैतिक अर्न्तक्रिया (interaction) के कारण उत्पन्न होता है, इस कारण इसे अंतर- आण्विक बल कहा जाता है। इस प्रकार, अंतर- आण्विक बल प्रकृति में विद्युतीय हैं । यदि दो परमाणुओं के बीच की दूरी परमाणु आकार ~ 10 -10 m के बराबर हो तो, अंतर-आण्विक बल सक्रिय होते हैं। अणुओं (molecules) के मामले में, अंतर-आण्विक बल की सीमा 10–9 m है।
प्रत्यास्थता किसी पदार्थ का वह गुण है,जिसके कारण वस्तु, विरूपण बलों को हटाने पर अपने मूल लंबाई, आकार और आयतन में लौट आती है । विरुपक बल – वह बल जो किसी वस्तु के विन्यास में परिवर्तन पैदा करता है, विरुपक बल कहलाता है।
प्रत्यास्थता का कारण :- एक ठोस पदार्थ में, परमाणुओं / अणुओं को इस तरह से व्यवस्थित रहते है कि प्रत्येक परमाणु/ अणु पर पड़ोसी परमाणुओं / अणुओं द्वारा बल लागाया जाता है । इन बलों को अंतर-आणविक बल के रूप में जाना जाता है।
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किसी पदार्थ में उत्पन्न प्रतिबल तथा विकृति के बीच सम्बन्ध उस पदार्थ का प्रतिबल – विकृति वक्र (stress–strain curve) कहलाता है। यह वक्र, प्रत्येक पदार्थ के लिए अद्वितीय होता है। इस ग्राफ को बनाने के लिए उस पदार्थ के एक नमूने पर अलग-अलग बल आरोपित किया जाता है अर्थात अलग-अलग बल लटकाया जाता है । इस वक्र की सहायता से उस पदार्थ के कई गुणधर्म प्राप्त हो जाते हैं, जैसे यंग मापांक(Modulus of Elasticity, E) ।
एक तार को दृढ़ सिरे से बॉधकर लटकाया जाता है । तार के मुक्त सिरे पर विभिन्न भार लटकाते हैं और विभिन्न भार स्थितियों के तहत तार के व्यवहार का अध्ययन किया जाता है । तार में उत्पन्न विकृति के अध्ययन हेतु इसकी लम्बाई में विस्तार को मापा जाता है और प्रतिबल-विकृति वक्र बनाया जाता है जैसा कि चित्र में दिखाया गया है ।
ग्राफ़ की व्याख्या
बिंदु O से P तक तार को प्रत्यास्थता की सीमा के अंदर है व इस दौरान हुक के नियम का पालन भी होता है, जिसके अनुसार विकृति, प्रतिबल के समानुपाती होती है और हमें बिंदु O से P तक सीधी रेखा प्राप्त होती है । बिंदु P को प्रत्यास्थता सीमा बिंदु (elastic limit) कहा जाता है । यदि तार (वस्तु) पर इस सीमा से अधिक बल लगाया जावे तो तार (वस्तु) अपनी मूल अवस्था में लौटकर नही आती,बल्कि नवीन आकार धारण कर लेती है ।
बिंदु P से Q तक को भंजक प्रतिबल (breaking stress) कहा जाता है । इसका आशय यह हुआ कि यदि तार (वस्तु) पर आरोपित बल को प्रत्यास्थता सीमा वाले बल से अधिक बल आरोपित किया जावे तो विकृति तेजी से उत्पन्न होगी । तार की लम्बाई में वृद्धि आरोपित भार के समानुपाती नही होती अर्थात विकृति, प्रतिबल के समानुपाती नही होती है । इस कारण वक्र में अधिक परिवर्तन हो रहा है । क्षेत्र PQ में सामग्री आंशिक रूप से प्रत्यास्थ (partly elastic) और आंशिक रूप से प्लास्टिक ( partly plastic) है । यदि हम भार को कम करना शुरू करते हैं, तो ग्राफ Q से, O के माध्यम से P तक नहीं आता है, लेकिन एक सीधी रेखा QA का बनाता है। इस प्रकार तार में स्थायी विकृति ( permanent strain) OA उत्पन्न हो जावेगी ।
बिंदु Q के पश्चात, बहुत छोटे भार को भी आरोपित करने के बाद भी तार में बहुत अधित मात्रा में विकृति उत्पन्न हो जावेगी । क्षेत्र QR प्लास्टिक रेंज है।
बिंदु R के बाद भी भार को बढ़ाया जावे तो तार टूट जावेगा, प्रतिबल के जिस मान पर तार टूट जाता है उसे भंजक प्रतिबल (breaking stress) कहा जाता है ।
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•तार को खींचने में उसके अंदर उत्पन्न आंतरिक पुनर्स्थापना बलों के विरूद्ध कार्य किया जाता है । यह कार्य तार में प्रत्यास्थ स्थितिज ऊर्जा या विकृति ऊर्जा के रूप में संग्रहीत हो जाती है ।
•लंबाई ‘L’ के एक तार पर विचार करें और क्रॉस सेक्शन के क्षेत्रफ़ल ‘a’ है । माना कि तार पर बल ‘F’ लग रहा है और तार की लंबाई में परिवर्तन ‘Δl’ होता है ।
•प्रारम्भ में आंतरिक पुनर्स्थापना बल शून्य था लिकिन जब लंबाई ‘Δl’ से बढ़्ती है तो, इस बढ़ी हुई लम्बाई ‘Δl’ के लिए आंतरिक बल होगा
𝐴𝑣𝑒𝑟𝑎𝑔𝑒 𝐹𝑜𝑟𝑐𝑒= (0+𝐹)/2= 𝐹/2
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