Heat and Thermodynamics

परिचय (Introduction)

शुरुआती दिनों में, ऊष्मा के कैलोरी सिद्धांत के अनुसार, ऊष्मा को "कैलोरी" नामक एक अदृश्य और भारहीन तरल पदार्थ के रूप में माना जाता था। अलग-अलग तापमानों पर संपर्क में आने वाली दो वस्तु कैलोरिक विनिमय द्वारा ऊष्मीय संतुलन प्राप्त करते थे । जब तक उनका तापमान बराबर नहीं हो जाता, तब तक गर्म वस्तु से ठंडी वस्तु की ओर कैलोरी प्रवाहित होती थी । हालांकि, यह सिद्धांत कोर्ट रुमफोर्ड द्वारा किए गए प्रयोगों में घर्षण के कारण ऊष्मा के उत्पादन की व्याख्या करने में विफल रहा । हाथों को एक दूसरे के विरुद्ध रगड़ने से गर्मी पैदा होती है । जूल के पैडल व्हील प्रयोग ने बताया कि घर्षण के कारण से भी ऊष्मा का उत्पादन होता है । इन अवलोकनों ने ऊष्मा के गतिशील सिद्धांत को प्रतिपादित किया, जिसके अनुसार ऊष्मा ऊर्जा का एक रूप है जिसे उष्मीय ऊर्जा कहा जाता है ।

प्रत्येक शरीर अणुओं से बना है। इसकी प्रकृति और तापमान के आधार पर, अणुओं में ऋजुरेखीय गति,वृतीय गति और घूर्णन घूर्णी गति हो सकती है । प्रत्येक प्रकार की गति अणुओं को कुछ गतिज ऊर्जा प्रदान करती है। शरीर के पास मौजूद ऊष्मा, शरीर की कुल उष्मीय ऊर्जा है, जो शरीर के सभी अणुओं की गतिज ऊर्जा का योग है ।

वस्तु का तापमान यह बताता है कि वस्तु में गर्माहट है या ठंडक । जब दो वस्तु एक-दूसरे के संपर्क में होती हैं तो ऊष्मा उच्च तापमान वाली वस्तु से निम्न तापमान वाली वस्तु की ओर प्रवाहित होती है। तापमान की आधुनिक अवधारणा ऊष्मागतिकी के शून्य नियम से आती है। तापमान शरीर की ऊष्मीय स्थिति है, जो ऊष्मा के प्रवाह की दिशा तय करती है। तापमान को अब मौलिक मात्राओं में से एक माना जाता है ।

उष्मा एवं ताप ( Heat and Temperature)

विस्तृत अध्ययन के लिए निम्न विडियो देखें :-

ऊष्मा का संचरण (Transmission of Heat)

ऊष्मा चालन का नियम, जिसे फूरियर के नियम के रूप में भी जाना जाता है, कहता है कि किसी वस्तु में ऊष्मा स्थानांतरण की दर, तापमान प्रवणता के ऋणात्मक के अनुपात (समानुपाती) में होती है और उस क्षेत्र के आनुपातिक भी होती है जिस क्षेत्र से ऊष्मा प्रवाहित हो रही हो । इस नियम को इस प्रकार व्यक्त किया जा सकता है:

q = - k.A.∇T

जहॉ, q = ऊष्मा फ़लक्स (heat flux) (w)

k = ऊष्मा चालन (thermal conductivity) (W·m−1·K−1)

A = संकर अनुभागीय क्षेत्रफ़ल (cross-sectional area) (m2)

∇T = तापमान प्रवणता (temperature gradient = = dT/dx ) (K·m−1)

ऊष्मा के प्रवाह के संदर्भ में किसी सामग्री की उष्मीय चालकता का वर्णन करने वाला चित्र 3.3 ऊपर दिया गया है। इस उदाहरण में, तापमान-1 का मान तापमान-2 से अधिक है। उष्मीय फ़लक्स निम्न समीकरण के माध्यम से प्राप्त की जा सकती है:

उष्मीय फ़लक्स= - k ×[ (तापमान)2 - ( तापमान)2 )] / (मोटाई )


फूरियर के समीकरण में ऋणात्मक चिन्ह इंगित करता है कि ऊष्मा प्रवाह ऋणात्मक तापमान प्रवणता की दिशा में है और यह ऊष्मा प्रवाह को धनात्मक बनाने का कार्य करता है।

उष्मीय चालकता 'k' परिवहन गुणों में से एक है। अन्य गुण सम्वेग से जुड़ा श्यनाता, द्रव्यमान के परिवहन के साथ जुड़े प्रसार गुणांक है ।

ऊष्मीय चालकता 'k' बताती है कि चालन विधि द्वारा ऊष्मा ऊर्जा के प्रवाह की दर क्या है ।


उष्मीय चालकता का गुणांक (Coefficient of thermal conductivity)

भौतिकी में, ऊष्मा चालकता पदार्थों का वह गुण है जो बताती है कि किसी पदार्थ से ऊष्मा आसानी से प्रवाहित हो सकती है या नहीं । एक ठोस पदार्थ की उष्मीय चालकता गुणांक, ठोस के पार ऊष्मा के प्रति इकाई क्षेत्रफ़ल व प्रति इकाई ताप प्रवणता के प्रवाह की दर के बराबर होती है ।

माना कि सामांतर सतह वाली किसी प्लेट का क्षेत्रफ़ल A और मोटाई d है । दोनों सतहों को स्थिर तापमान θ1 व θ2 पर रखा जाता है (θ1 > θ2) और ऊष्मा सतह के लम्बवत प्रवाहित हो रही है । यह प्रायोगिक तौर पर पाया गया है कि समय T में बहने वाली ऊष्मा Q की मात्रा होगी |

    1. प्लेट के संकर अनुभागीय क्षेत्रफ़ल के समानुपाती

    2. प्लेट के दोनों सतहों के तापांतर के समानुपाती

    3. प्लेट में ऊष्मा प्रवाह के समय के समानुपाती

    4. प्लेट की मोटाई के व्यतुक्रमानुपाती

अतः

Q α [A(θ1- θ2 )t] / d = K. [A(θ1- θ2 )t] / d

जहॉ, 'K' एक नियतांक है, जिसे उष्मीय चालकता का गुणांक कहा जाता है । इसकी इकाई होती है: J / m s 0C या watt m-1 k-1

समीकरण (6) में m2, = 1 oC, = 1 sec व = 1 m है, तो

इस प्रकार, ऊष्मा चालकता गुणांक को किसी प्लेट की प्रति इकाई मोटाई, इकाई क्षेत्रफ़ल से प्रति इकाई सेकंड में ऊष्मा प्रवाह की मात्रा के रूप में परिभाषित किया जाता है जब प्लेट के दोनों सतहों के बीच तापमान का अंतर 10C हो और ऊष्मा का प्रवाह प्लेट के लम्बवत हो रहा हो । का मान जितना अधिक होगा, पदार्थ की चालकता उतनी ही अधिक होगी । आदर्श ऊष्मा चालक के लिए का मान अनंत होगा व आदर्श कुचालक के लिए का मान शून्य होगा ।

उष्मीय चालकता को प्रभावित करने वाले कारक

किसी पदार्थ की उष्मीय चालकता को निम्न कारक प्रभावित करते हैं:

  1. मुक्त इलेक्ट्रॉनों – द्रव और गैसों की तुलना में धातुओं में अधिक मुक्त इलेक्ट्रॉन होते हैं, इसलिए मुक्त इलेक्ट्रॉनों के प्रवाह के कारण धातु ऊष्मा के अच्छे संवाहक होते हैं ।

  2. सामग्री की शुद्धता - शुद्ध सामग्री की उष्मीय चालकता, मिश्र धातु सामग्री की तुलना में अधिक है। धातुओं को मिश्रित करने से व अशुद्धियों के मिलाने से उष्मीय चालकता में कमी आती है ।

  3. सामग्री को बनाने की विधि – उष्मीय उपचार और धातु को मोड़्ने, खीचने और फोर्जिंग जैसे उपचार सामग्री की उष्मीय चालकता कम हो जाती है ।

  4. क्रिस्टलीय संरचना - एक नियमित क्रिस्टलीय संरचना वाली सामग्री में अनाकार (अमॉर्फस ) संरचना वाली सामग्री की तुलना में उष्मीय चालकता अधिक होती है ।

निष्कर्ष :- इस प्रकार, हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि विभिन्न सामग्रियों में अलग-अलग उष्मीय चालकता होती है । विभिन्न प्रकार की सामग्रियों के लिए उष्मीय चालकता का अवरोही क्रम निम्नानुसार है

  1. शुद्ध धातु

  2. मिश्र (विभिन्न धातुओं का संयोजन)

  3. गैर-धातु क्रिस्टलीय संरचनाएं

  4. द्रव पदार्थ

  5. गैस

परम ताप (Absolute Temperature)

परम ताप या परम शून्य ताप या उष्मागतिक ताप वह ताप होता है जिस पर गैस के अणुओं की गति शून्य हो जाती है यह सबसे न्यूनतम संभावित ताप होता है । इससे कम ताप संभव नहीं होता । क्वाण्टम यांत्रिकी की भाषा में, परम ताप पर पदार्थ अपनी निम्नतम अवस्था (ground state) में होता है जो इसकी न्यूनतम ऊर्जा की अवस्था है। इस कारण ही ऊष्मागतिक तापक्रम को 'परम ताप' भी कहा जाता है। 0 K या -273.15℃ ताप परम शून्य ताप कहलाता है परम ताप नयुनतम ताप है। इससे कम कोई ताप समंभव नही है । इस ताप पर गैसों के अणुओं की गति शून्य हो जाती हैं।

तापमान का केल्विन पैमाना (Kelvin scale of temperature)

केल्विन तापमान पैमाना दुनिया में सबसे अधिक इस्तेमाल किया जाने वाला निरपेक्ष तापमान पैमाना है । कैल्विन, तापमान की एस.आई. मापन इकाई है। यह सात मूल इकाईयों में से एक है। कैल्विन पैमाना ऊष्मगतिकीय तापमान पैमाना है, जहाँ, परिशुद्ध शून्य, पूर्ण ऊर्जा की सैद्धांतिक अनुपस्थिति है, जिसे शून्य कैल्विन (0 K)भी कहते हैं। कैल्विन पैमाना और कैल्विन के नाम ब्रिटिश भौतिक शास्त्री और अभियाँत्रिक विलियम थामसन, प्रथम बैरन कैल्विन (1824–1907) के नाम पर रखा गया है, जिन्होंने विशुद्ध तापमानमापक पैमाने की आवश्यकता बतायी थी।

केल्विन तापमान पैमने को उष्मागतिकी के तीसरे नियम का उपयोग करके परिभाषित किया गया है । चूकिं यह एक पूर्ण पैमाना है, इस कारण केल्विन में दर्ज तापमान में डिग्री नहीं होती है । केल्विन स्केल का शून्य बिंदु पूर्ण शून्य है, जो तब होता है जब कणों में न्यूनतम गतिज ऊर्जा होती है और उन्हें उससे अधिक ठंडा नहीं किया सकता है । प्रत्येक इकाई पूर्ण शून्य और पानी के ट्रिपल बिंदु के बीच अंतर के 273.16 भागों में 1 हिस्सा है। यह सेल्सियस डिग्री के समान आकार की इकाई है।

केल्विन स्केल का उपयोग

वैज्ञानिक अनुप्रयोगों में केल्विन पैमाना लोकप्रिय है क्योंकि इसमें ऋणात्मक संख्या नही होती हैं । उदाहरण के लिए, द्रव हीलियम और द्रव नाइट्रोजन के बहुत कम तापमान को रिकॉर्ड करने के लिए यह पैमाना सुविधाजनक है। ऋणात्मक संख्याओं की कमी से तापमान के बीच अंतर की गणना करना भी आसान हो जाता है, जैसे कि एक तापमान दूसरे तापमान का तीन गुना है।

केल्विन का उपयोग कर तापमान के रंग का अध्ययन भी किया जाता है और आमतौर पर प्रकाश व्यवस्था में इसका उपयोग किया जाता है। एक प्रकाश अनुप्रयोग में, केल्विन तापमान रंग तापमान का प्रतिनिधित्व करता है, जैसे सफेद, नीला या चमकीला लाल, जो किसी वस्तु के भौतिक तापमान से संबंधित होता है।

तापमान पैमाने के बीच रूपांतरण

केल्विन सेल्सियस डिग्री के समान आकार है, इसलिए माप आसानी से एक से दूसरे में परिवर्तित हो जाते हैं। पानी का हिमांक 0 ° C = 273.15 K है; पानी का क्वथनांक 100 ° C = 373.15 K है। केल्विन और सेल्सियस स्केल निम्नानुसार हैं:

T (in °C) + 273.15 = T (in K)

T (in K) − 273.15 = T (in °C)

सामान्य गैस समीकरण (General Gas Equation)

आदर्श गैस नियम, विविध परिस्थितियों में कई गैसों के व्यवहार का एक सुव्यवस्थित अनुमान है। आदर्श गैस समीकरण चार्ल के नियम, बॉयल के नियम, गे-लुसाक के नियम और अवोगाद्रो के नियम जैसे अनुभवजन्य नियमों का संयोजन है । आदर्श गैस समीकरण वह समीकरण है जो अनुभवजन्य (empirical) और भौतिक राशियों के संयोजन द्वारा गणितीय रूप से व्यक्त काल्पनिक गैसों के अवस्थाओं को परिभाषित करता है। इसे सामान्य गैस समीकरण भी कहा जाता है। इसे इस प्रकार परिभाषित किया जा सकता है:

“आदर्श गैस नियम एक काल्पनिक आदर्श गैस की स्थिति का समीकरण है। यह कई परिस्थितियों में कई गैसों के व्यवहार का एक अच्छा अनुमान है, हालांकि इसकी कई सीमाएं हैं । ”

समीकरण

एक आदर्श गैस की स्थिति को दबाव, मात्रा, तापमान जैसे सूक्ष्म मापदंडों द्वारा निर्धारित किया जाता है । इस प्रकार, आदर्श गैस समीकरण को निम्नानुसार व्यक्त किया जाता है:

PV = nRT

जहॉ,

  • P = आदर्श का दाब

  • V = आदर्श का आयतन

  • n = मोल के संदर्भ में मापी गई आदर्श गैस की मात्रा है।

  • R = गैस नियतांक

  • T =तापमान

आदर्श गैस अवधारणा उपयोगी है क्योंकि आदर्श गैस नियम, अवस्था के एक सरलीकृत समीकरण का पालन करता है, और सांख्यिकीय यांत्रिकी के तहत विश्लेषण के लिए उत्तरदायी है।

सीमाएं (Limitations):

आदर्श गैस समीकरण की कई सीमाएँ हैं । यह समीकरण तब तक सही रहता है जब तक घनत्व कम रखा जाता है। यह समीकरण एकल गैस या यहां तक कि कई गैसों के मिश्रण के लिए लागू होता है जहां n दिए गए मिश्रण में गैस कणों के कुल मोल होगा।

मोलर या सार्वत्रिक गैस नियतांक या गैस स्थिरांक (Molar or universal gas constant)

सार्वत्रिक गैस नियतांक (या गैस नियतांक, या मोलर गैस नियतांक, या आदर्श गैस नियतांक) एक भौतिक नियतांक है जो विज्ञान के कई मूलभूत समीकरणों में सम्मिलित है (जैसे, आदर्श गैस समीकरण में) । इसे R से निरूपित करते हैं।

मोलर गैस नियतांक, (प्रतीक R), सामान्य गैस नियम के निर्माण में उत्पन्न होने वाला मूलभूत भौतिक स्थिरांक है । एक आदर्श गैस के लिए दबाव ‘P’ गैस के आयतन ‘V’ को उसके पूर्ण तापमान ‘T’ से विभाजित करने पर जो एक नियतांक मिलता है उसे सार्वत्रिक गैस नियतांक कहा जाता है । जब गैस के द्रव्यमान के लिए इन तीनों में से एक को बदल दिया जाता है, तो कम से कम अन्य दो में से एक में परिवर्तन होता है व अभिव्यक्ति PV / T नियत रहती है । स्थिरांक सभी गैसों के लिए समान रहता है, बशर्ते कि तुलना की जा रही गैस का द्रव्यमान एक ग्राम या एक आणविक भार ग्राम में हो ।

इसलिए, एक मोल के लिए,

PV / T = R

सार्वभौमिक गैस निरंतर ‘R’ की इकाई J / mol K हैं । ‘R’ का मान निम्नानुसार है 8.3144598 जूल प्रति किल्विन (के) प्रति मोल है।

R = 8.3144598 J / mol K

मानक और सामान्य तापमान और दबाव (S.T.P. व N.T.P.) [Standard and Normal Temperature and Pressure (S.T.P. and N.T.P.)]

S.T.P. का उपयोग आमतौर पर तापमान और दबाव के लिए मानक स्थितियों को परिभाषित करने के लिए किया जाता है जो रासायनिक और भौतिक प्रक्रियाओं के मापन और प्रलेखन के लिए महत्वपूर्ण है:

मानक तापमान और दबाव (STP) - IUPAC (इंटरनेशनल यूनियन ऑफ प्योर एंड एप्लाइड केमिस्ट्री) द्वारा 0o C (273.15 K, 32o F) और 105 पास्कल (1 बार) पर हवा के रूप में परिभाषित किया गया है । इन स्थितियों में, गैस के 1 मोल का आयतन 22.4136 लीटर है |

सामान्य तापमान और दबाव (NTP) - 20oC (293.15 K, 68oF) और 1 atm (101.325 kN / m2, 101.325 kPa, 14.7 psia, 0 psig, 292) Hg में 407, H2O में 760 torr) पर हवा के रूप में परिभाषित किया गया है। घनत्व 1.204 Kg / m3 | इन स्थितियों में, एक गैस के 1 मोल का आयतन 24.0548 लीटर है ।

गैसों की विशिष्ट ऊष्मा ( Specific Heat of Gas)

ऊष्मा की वह मात्रा जो इकाई द्रव्यमान में एक डिग्री सेल्सियस ताप बढ़ाने के लिए आवश्यक होती है उसे विशिष्ट कहतें हैं । ठोस और द्रव के लिए जब इनके ताप में बहुत कम परिवर्तन किया जाता है तो, ताप के कारण इनके आयतन में नगण्य परिवर्त्न होता है और चूकिं आयतन में परिवर्तन नगण्य है इसलिए इसके द्वारा किया गया कार्य भी नगण्य होगा । अतः ठोस व द्रव को दी गई ऊष्मा का मान इनके ताप को बढ़ाने में काम आता है इसलिए ठोस व द्रव की विशिष्ट ऊष्मा का मान एक होता है ।

जब किसी गैस को हल्का सा भी ताप देने पर इसके आयतन व दाब मे6 परिवर्तन अधिक होता है,इसलिए गैस के लिए विशिष्ट ऊष्मा का मान शून्य से अनंत तक कुछ भी मान हो सकता है । यही कारण है कि गैस की विशिष्ट ऊष्मा का मान निश्चित करने के लिए या तो आयतन को स्थिर रखा जावे या फ़िर दाब को स्थिर रखा जावे । इसलिए हम कह सकतें हैं कि गैस की विशिष्ट ऊष्मा दो प्रकार की होती है :-

  1. स्थिर आयतन पर गैस के विशिष्ट ऊष्मा

  2. स्थिर दाब पर गैस के विशिष्ट उष्मा

विस्तृत अध्ययन के लिए निम्न विडियो देखें :-


विशिष्ट ऊष्मा, ऊष्मीय धारिता और गुप्त ऊष्मा ( Specific Heat, Heat Capacity and Latent Heat )


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ऊष्मा चालन ( Heat Conduction )



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ऊष्मामापी ( Calorimeter )



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ऊष्मागतिकीय चर (Thermodynamic Variables)

सामान्यतः हम किसी वस्तु या वस्तुओं के समूह को अन्य भागों से पृथक कर उनमें परिवर्तन का अध्ययन करते हैं ।इस वस्तु अथवा वस्तुओं के समूह को निकाय कहा जाता है एवं निकाय (system) को जिस भाग से पृथक कइया जाता है उस भाग को वातावरण / परिवेश (surrounding) कहा जाता है । ऊष्मागतिकीय चर, निकाय का वह गुण है जिसमें किसी भी प्रक्रिया में परिवर्तन केवल प्रारंभिक और अंतिम अवस्था पर निर्भर करता है । इस के लिए एक और शब्द अवस्था चर या अवस्था फ़लन (state variable) हो सकता है । एक उदाहरण तापमान T है । एक कप कॉफी का तापमान ΔT है जो कि बहुत गर्म है, इसे प्रारंभिक अवस्था कहा जा सकता है । आप इसे कुछ घंटों के लिए अपने टेबिल के रखा देने दें तो आप पायेंगें कि कुछ समय पश्चात कॉफ़ी का तापमान, कमरे के तापमान के बराबर हो जावेगी, इस अवस्था अंतिम अवस्था कहा जा सकता है । या, आप सुबह कभी-कभी इसे वापस गर्म करने का फैसला करते हैं और माइक्रोवेव में रखते हैं परंतु पुनः दूसरी बार आप इसे पीना भूल जातें हैं, जिस कारण इस कॉफ़ी का तापमान पुनः कमरे के ताप के बराबर हो जाता है । दोनों स्थितियों में कॉफ़ी के कप का तापमान, जिस पथ से अपने अंतिम तापमान तक पहुंचा था, वह दोनों मामलों में अलग-अलग है, लेकिन ΔT बिल्कुल समान है, इस प्रकार T एक उष्मागतिकी चर है। चर (Variables) जो पथ पर निर्भर करते हैं उन्हें पथ चर (path variables)के रूप में जाना जाता है।

आंतरिक ऊर्जा (Internal Energy) U - आंतरिक ऊर्जा एक अवस्था चर है जिसे निकाय की ऊर्जा (गुप्त उष्मा, रासायनिक बंधन, परमाणु उर्जा आदि) के रूप में माना जा सकता है । ऊष्मागतिकी में, किसी निकाय में अंतर्विष्‍ट (contained) ऊर्जा को उस निकाय की आन्तरिक ऊर्जा (internal energy) कहते हैं । यह सिस्टम में संग्रहीत कुल ऊष्मा ऊर्जा है। यदि तापमान को गर्म करने के दौरान यह बढ़ जाता है तो आंतरिक ऊर्जा भी बढ़ जाती है। आंतरिक ऊर्जा केवल तापमान पर निर्भर करती है । संक्षेप में यह केवल तापमान में परिवर्तन से प्रभावित होती है और दबाव और आयतन में परिवर्तन से नहीं।

अर्थात कहा जा सकता है कि आंतरिक ऊर्जा, निकाय के सभी अणुओं की सूक्ष्म ऊर्जा के योग के बराबर है । यह कई जटिल रूपों में प्रकट हो सकती हैं। इन रूपों में शामिल हो सकते हैं

  • अंतर-आणविक स्थितिज ऊर्जा, अणुओं के मध्य लगने वाले बल के कारण

  • अणुओं के ऋजुरेखीय और घूर्णी वेग के कारण आणविक गतिज उर्जा

  • आणविक / परमाणु संरचनाओं के अंदर अन्तर-आण्विक बल के कारण ऊर्जा

आंतरिक ऊर्जा मुख्य रूप से और तापमान का कार्य है। आंतरिक ऊर्जा शब्द का इस्तेमाल पहली बार रुडोल्फ क्लॉउसियस और विलियम रैनकिन ने 1852 में किया था।

'कुल' आन्तरिक ऊर्जा U को नहीं मापा जा सकता किन्तु आन्तरिक ऊर्जा में परिवर्तन ΔU को मापा जा सकता है।

ΔU = Q + U

जहाँ

ΔU = U2 – U1

Q = निकाय को दी गयी ऊष्मीय ऊर्जा,

W = निकाय पर किया गया यांत्रिक कार्य = p. ΔV

आन्तरिक ऊर्जा मे परिवर्तन एक बीजीय राशि है। अर्थात इसका मान धनात्मक या ऋणात्मक हो सकता है। यदि मान धनात्मक हो तो अभिक्रिया ऊष्माशोषी और ऋणात्मक हो तो अभिक्रिया ऊष्माक्षेपी होती है। किसी चक्रीय प्रक्रम के लिये आन्तरिक ऊर्जा परिवर्तन का मान शुन्य होता है। आन्तरिक ऊर्जा का S.I मात्रक J / mol या KJ / mol होता है।

पूर्ण ऊष्मा (Enthalpy) H – पूर्ण ऊष्मा एक अवस्था चर है जिसे उष्मीय ऊर्जा के रूप में माना जाता है, हालांकि कड़ाई से कहें तो यह केवल निकाय में उष्मीय ऊर्जा है जो नियत दबाव में रहती है और जो किसी अन्य प्रकार के कार्य का अनुभव नहीं करती है । इसे ‘H’ से इंगित किया हाता है ।

यह द्रव पदार्थ की आंतरिक ऊर्जा और दबाव ऊर्जा का गणितीय संयोजन है। इसे निम्नानुसार व्यक्त किया जाता है ।

H = U + PV

जहॉ, H = पूर्ण ऊष्मा (Enthalpy)

U = निकाय की आंतरिक उर्जा

P = निकाय का दाब

V = निकाय का आयतन

S.I प्रणाली में इकाई है - KJ/mol

पूर्ण ऊष्मा / एंथेल्पी को जर्मन वैज्ञानिक आर. मोलियर द्वारा व्यक्त किया गया था, जो मोलियर चार्ट के लिए स्टेम के गुणों को व्यक्त करने के लिए भी प्रसिद्ध है।

चूंकि P और V दोनों ही ऊष्मागतिक निकाय के अवस्था (state) के फलन है, इसलिये पूर्ण ऊष्मा भी अवस्था का फलन है।

एन्ट्रॉपी (Entropy) S - ऊष्मागतिकी में, एन्ट्रॉपी एक भौतिक राशि है जो सीधे मापी नहीं जाती बल्कि गणना (कैल्कुलेशन) द्वारा इसका मान निकाला जाता है। इसका प्रतीक S है । यह सूक्ष्म स्तर की अनिश्चितता के विकार का प्रतिनिधित्व करता है, यहां तक कि इसका उपयोग स्थूल स्तर पर, निकाय की विशेषता के रूप में किया जाता है। इसे ‘S’ से इंगित किया जाता है ।

किसी निकाय की कुल ऊर्जा का वह भाग जिसे उपयोग में नहीं लाया जा सकता (दूसरे शब्दों में, कार्य में नहीं बदला जा सकता), उस निकाय की एन्ट्रॉपी कहलाती है। एण्ट्रॉपी के बारे में मुख्य बातें नीचे दी गयीं हैं-

  1. एन्ट्रॉपी एक भौतिक राशि है, जिसकी गणना की जा सकती है।

  2. मोटे तौर पर यह किसी ऊष्मागतिक निकाय के अव्यवस्था (disorder) की माप है।

  3. किसी विलगित निकाय की एण्ट्रॉपी समय के साथ बढती ही रहती है, कभी घटती नहीं है। (अविलगित निकायों की एंट्रॉपी घट सकती है।)

  4. एंट्रॉपी, निकाय के स्टेट का एक फलन है।

  5. एण्ट्रॉपी एक विस्तारात्मक गुण (extensive properties) है।

ऊष्मागतिकीय रूप से व्युत्क्रमणीय किसी निकाय के लिये एन्ट्रॉपी में परिवर्तन (ΔS) निम्नलिखित सम्बन्ध द्वारा पारिभाषित है-

∆S= ∫(dQrev)/T

जहाँ T निकाय का परम ताप है, dQ निकाय को दी गयी ऊष्मा है।

सरल रूप में, इसे लिखा जा सकता है

गिब्स मुक्त उर्जा (Gibbs Free Energy) G - गिब्स मुक्त ऊर्जा को रासायनिक प्रतिक्रियाओं से संबंधित ऊर्जा के रूप में सोचा जा सकता है, और इस प्रकार इसमें एंथैल्पी और एन्ट्रॉपी दोनों शामिल हैं। गिब्स मुक्त ऊर्जा एक मात्रा है जो रासायनिक प्रतिक्रिया के दौरान ऊर्जा में परिवर्तन के स्तर को इंगित करती है, और परिणामस्वरूप रासायनिक प्रतिक्रियाओं की संभावना के बारे में सवाल का जवाब मिलता है। ऐसी क्षमता को निकाय की कुल रासायनिक ऊर्जा (तरल, क्रिस्टल, आदि) के रूप में लिया जा सकता है। गिब्स मुक्त ऊर्जा का व्यापक रूप से रसायन शास्त्र और उष्मागतिकी में उपयोग किया जाता है । इसे ‘G’ से इंगित किया जाता है ।

G = H – TS

जहॉ, G = गिब्स मुक्त ऊर्जा (Gibbs Free Energy)

H = पूर्ण ऊष्मा (Enthalpy)

T = तापमान (Temperature)

S = एन्ट्रॉपी (Entropy) S

परिभाषा के अनुसार गिब्स मुक्त ऊर्जा ‘गैर - PV’ कार्य की कुल राशि है जिसे निकाय से निकाला जा सकता है। ‘गैर - PV’ कार्य, उस कार्य को संदर्भित करता है जो निकाय के आयतन और दबाव दोनों में परिवर्तन की अनुमति नहीं देता है। ‘गैर - PV’ कार्य का एक उदाहरण विद्युत कार्य है जो सैल और बैटरी के सिरों पर विभावंतर उत्पन्न करता है ।

अब ‘PV’ कार्य, निकाय के अणुओं की गतिज ऊर्जा से संबंधित है। हम इसे दो तरीकों से देख सकते हैं। पहला यह है कि दबाव और आयतन दोनों अणुओं की गति पर निर्भर करते हैं। इसलिए नियत आयतन पर दाब बढ़ाने पर गैस की गतिज ऊर्जा बढ़ जाती है, जिस कारण इसके अणुओं के मध्य अधिक संघट्ट होने लगता है । इसी प्रकार नियत दबाव में आयतन में वृद्धि का भी अर्थ है निकाय की गतिज ऊर्जा में वृद्धि करना । दूसरा यह है कि दबाव और आयतन दोनों गैस के ताप पर निर्भर करते हैं जो कि सीधे तौर पर गैसीय निकाय की गतिज ऊर्जा से संबंधित है। इसलिए जब भी निकाय पर या निकाय द्वारा कार्य ‘PV’ किया जाता है तो निकाय के अणुओं की गतिज ऊर्जा में परिवर्तन होता है न कि स्थितिज ऊर्जा (potential energy) में । इसलिए जब भी निकाय पर या निकाय द्वारा ‘गैर - PV’ कार्य किया जाता है तो , निकाय की केवल स्थितिज ऊर्जा में परिवर्तन होता है । इसलिए गिब्स मुक्त ऊर्जा, निकाय की स्थितिज ऊर्जा के समान है।

उष्मीय ऊर्जा (Heat energy) Q – किसी निकाय और उसके वातावरण में अवस्था में कुछ परिवर्तन के लिए ऊष्मा का आदान-प्रदान पथ पर निर्भर करता है । यह कार्य के साथ-साथ आंतरिक ऊर्जा का भी योग है जिसे किसी निकाय को दिया जाता है या लिया जाता है । हम धनात्मक Q को निकाय में दी गई ऊष्मा के रूप में परिभाषित करेंगे । दो निकायों के मध्य उर्जा का स्थानतरण तापांतर के कारण होता है तो स्थान्तरित होने वाली ऊर्जा को ऊष्मा कहते हैं ।

कार्य (Work) W किसी निकाय व उसके वातावरण के मध्य अवस्था परिवर्तन हेतु हस्तांतरित कार्य एक पथ चर है। जब किन्ही दो निकायों के मध्य ऊर्जा का स्थानंतरण उनके तापांतर पर निर्भर नही करता है तो उनके बीच स्थांतरित होने वाली ऊर्जा को कार्य कहते हैं । हम धनात्मक W को प्रणाली पर किए गए कार्य के रूप में परिभाषित करेंगे।

ऊष्ममागतिकी का प्रथम नियम ( First Law of Thermodynamics )

परिचय (Introduction) - ऊष्मागतिकी, ऊष्मा से संबंधित प्राकृतिक विज्ञान की शाखा है और इसका ऊर्जा और कार्य से संबंध है। •यह संपूर्ण ब्रह्मांड को शामिल करने वाले नियमों से बना है। यह संपूर्ण प्रणाली के विवरणों से संबंधित है न कि व्यक्तिगत कणों के स्तर से । तो, हम कह सकते हैं, यह ऊष्मा, यांत्रिक कार्य और ऊर्जा हस्तांतरण के अन्य पहलुओं से जुड़े रिश्तों का अध्ययन है

निकाय ( System) - यह ब्रह्मांड के उस हिस्से को संदर्भित करता है जिसमें अवलोकन किए जाते हैं।

परिवेश (Surroundings) - प्रणाली के अलावा अन्य ब्रह्मांड का हिस्सा परिवेश के रूप में जाना जाता है।

ब्रह्मांड (Universe) = निकाय + आसपास।

दीवार (Boundary - वह दीवार जो सिस्टम को परिवेश से अलग करती है, सीमा कहलाती है।

निकाय के प्रकार (Types of System) -

  • Open system / खुला निकाय

  • Closed system / बंद निकाय

  • Isolated system / विलगित निकाय

खुला निकाय

एक खुला निकाय वह है जिसमें आप द्रव्य जोड़ सकते हैं / निकाल सकते हैं (जैसे एक खुला बीकर जिसमें हम पानी डाल सकते हैं)। जब आप द्रव्य को जोड़ते हैं- तो आप ऊष्मा को भी समाहित कर देते हैं (जो उस द्रव्य में निहित होती है)।

बंद निकाय

वह प्रणाली जिसमें द्रव्य को जोड़ा या हटाया नहीं जा सकता है, उसे बंद निकाय कहा जाता है। हालाँकि आप किसी बंद निकाय में द्रव्य को जोड़ या हटा नहीं सकते हैं, फिर भी उसमें ऊष्मा को जोड़ा जा सकता है या हटाया जा सकता है । (आप फ्रिज में पानी की बंद बोतल को ठंडा कर सकते हैं)।

विलगित निकाय

वह निकाय जिसमें न तो द्रव्य को और न ही ऊष्मा को जोड़ा या हटाया जा सकता है, विलगित निकाय कहलाता है । एक बंद ‘थर्मस फ्लास्क’ को विलगित निकाय माना जा सकता है ।

ऊष्मागतिकी गुण (Thermodynamic Properties )

  • Intensive Properties / अविस्तारात्मक गुण

  • Extensive Properties / विस्तारात्मक गुण

अविस्तारात्मक गुण

निकाय का वह गुण जो केवल द्रव्य की प्रकृति पर निर्भर करता हैं लेकिन पदार्थ की मात्रा पर नहीं, उन्हें अविस्ताराक्मक गुण कहा जाता है, जैसे दबाव, तापमान, विशिष्ट ऊष्मा, आदि ।

विस्तारात्मक गुण

Øनिकाय का वह गुण जो केवल द्रव्य की प्रकृति पर निर्भर नही करता हैं बल्कि पदार्थ की मात्रा पर निर्भर करता है, उन्हें विस्ताराक्मक गुण कहा जाता है, जैसे आंतरिक ऊर्जा, आयतन, एंथैलपी, आदि ।

आंतरिकक ऊर्जा (Internal Energy) - किसी निकाय / पदार्थ के अन्दर की कुल ऊर्जा को निकाय/पदार्थ की आंतरिक ऊर्जा कहा जाता है और इसमें निम्न ऊर्जा सम्मलित होती हैं:-

  • गतिज ऊर्जा

  • स्थितिज ऊर्जा

  • रसायानिक ऊर्जा

  • अणुओं की परमाणु ऊर्जा

किसी निकाय में ऊष्मा देने पर या निकाय पर कार्य होने पर उसकी आंतरिक ऊर्जा में वृद्धि होती है ।

•उष्मागतिकी का प्रथमपहला नियम किसी प्रणाली के ताप, यांत्रिक कार्य और आंतरिक ऊर्जा से संबंधित है ।

•इसे ऊर्जा संरक्षण का नियम भी कहा जाता है।

•"ऊर्जा न तो बनाई जा सकती है और न ही विनाश / नष्ट की जा सकती है; ऊर्जा केवल एक रूप से दूसरे रूप में स्थानांतरित की जा सकती है या बदली जा सकती है"

विस्तृत अध्ययन के लिए निम्न विडियो देखें :-

ऊष्ममागतिकी का द्वितीय नियम ( Second Law of Thermodynamics )

उष्मागतिकी का द्विुतीय नियम :केल्विन का कथन (Second Law of Thermodynamics: Kelvin's Statement )

ऐसी मशीन का निर्माण करना असंभव है जो 100% दक्षता के साथ ऊष्मा को में कार्य परिवर्तित कर सके ।

उष्मागतिकी का द्विुतीय नियम : क्लॉसियस का कथन (Second Law of Thermodynamics: Clausius's Statement )

ऐसी मशीन का निर्माण करना असंभव है जो बाह्य कार्य के बगैर ऊष्मा को कम ताप वाली वस्तु से उच्च ताप वाली वस्तु की ओर ह्स्तांतरित कर सके ।

ऊष्मा इंजन (Heat Engine )

वह यंत्र है, जो ऊष्मा को कार्य में परिवर्तित कर्ता है । उदाहरण: भाप इंजन । उच्च ताप पर ऊष्मा को ग्रहण करता है और उसके कुछ भाग को कार्य में परिवर्तित करता है व निम्न ताप पर शेष ऊष्मा का निकास कर देता है ।

कार्नो का ऊष्मा ईंजन कार्नो चक्र ( Carnot’s Heat Engine: Carnot’s Cycle )

•१८२४ में फ़्रांस के इंजीनियर निकोलसलियोनार्ड साडि कार्नो द्वारा विकसित किया गया । दिए गए दो तापमान के बीच कार्य कर रहा कोई भी ऊष्मीय इंजन उन्ही दो तापमान के बीच कार्य कर रहे एक प्रतिवर्ती इंजन की तुलना में अधिक कुशल नही हो सकता है। इसमें मुख्य भाग होते हैं :

  • Source / स्रोत

  • Sink / सिंक

  • Cylinder / सिलेंडर

  • Insulating Stand / कुचालक स्टैंड

स्रोत (Source ) -

  • गर्म वस्तु जिसका ताप नियत रहता है

  • नियत ताप T1 पर कितनी भी ऊष्मा ली जा सकती है

  • कितनी भी ऊष्मा ग्रहण करने के बावजूद ताप हमेशा स्थिर रहता है

सिंक (Sink )

  • ठंडी वस्तु जिसका ताप निम्न T2 नियत रहता है

  • कितनी भी ऊष्मा देने के बावजूद ताप हमेशा स्थिर रहता है

सिलेंडर ( Cylinder )

  • कुचालक दीवार व चालक तल

  • कुचालक व घर्षणहीन पिस्टन लगा रहता है।

कुचालक स्टैंड ( Insulating Stand )

• कुचालक पदार्थ से बना होता है व रूदोष्म प्रक्रिया करता है ।

कार्नो के ऊष्मीय इंजन का कार्य ( Working of Carnot’s Heat Engine )

कार्नो इंजन के संचालन के निम्नलिखित चार चरणों होते है।

  1. Isothermal expansion / समतापीय प्रसार

  2. Adiabatic expansion / रूद्धोष्म प्रसार

  3. Isothermal compression / समतापीय संपीडन

  4. Adiabatic compression / रूद्धोष्म संपीडन

Cycle 1: Isothermal Expansion / समतापीय प्रसार

  • सिलेंडर को स्त्रोत पर रखा गया है

  • कार्यकारी पदार्थ (गैस) स्रोत से T1 ताप पर से ऊष्मा अवशोषित करता है और समतापीय प्रसार करता है। आयतन में परिवर्तन V1 से V2 होता है और दाब में परिवर्तन P1 से P2 होता है ।

  • इंडीकेटर चित्र में प्रदर्शित रेखा AB

  • स्त्रोत से अवशोषित ऊष्मा = Q1

  • किया गया कार्य = W1

Cycle 2: Adiabatic Expansion / रूद्धोष्म प्रसार

  • सिलेंडर को कुचालक पैड पर रखा जाता है व निकाय को रूद्धोष्म प्रसार की अनुमती दी जाती है ।

  • निकाय को ऊष्मा दी जाती है जिस कारण तापमान गिरकर T2 हो जाता है,जो कि सिंक का ताप है ।

  • इंडीकेटर चित्र में इस स्थिती को बिंदु C से प्रदर्शित किया गया है व वक्र को BC से प्रदर्शित किया गया है ।

Cycle 3: Isothermal Compression / समतापीय संपीडन

  • सिलेंडर को सिंक पर रखा जाता है व पिस्टन पर लोड बढ़ाया जाता है, निकाय में सम्तापीय संपीडन होता है ।

  • सिंक में ऊष्मा का त्याग किया जाता है।

  • इंडीकेटर चित्र में इस स्थिती को बिंदु D से प्रदर्शित किया गया है व वक्र को CD से प्रदर्शित किया गया है

Cycle 4: Adioabatic Compression / रूद्धोष्म संपीडन

  • सिलेंडर को कूचालक पैड पर रखा जाता है व पिस्टन पर लोड और बढ़ाया जाता है, निकाय में रूद्धोष्म संपीडन होता है ।

  • पैड में ऊष्मा का त्याग किया जाता है जब तक ताप T1 न हो जावे ।

  • इंडीकेटर चित्र में इस स्थिती को बिंदु A से प्रदर्शित किया गया है व वक्र को DA से प्रदर्शित किया गया है ।

प्रति चक्र किया गया कार्य ( Work done by the engine per cycle )

गैस द्वारा किया गया कूल कार्य = W1 + W2

गैस पर किया गया कूल कार्य = W3 + W4

कुल कार्य = W = W1 + W2 - (W3 + W4)

चूंकि W2 = W4

इसलिए , W = W1 – W3 = Q1 – Q2

Also, W = Area ABGEA + Area BCHGB –

Area CDFHC - Area DAEFD

W = Area ABCDA

कार्नो इंजन की दक्षता स्रोत्र व सिंक के ताप पर निर्भर करती है ।