धरती हमारी माता है, हम धरती पुत्र हैं। धरती के अनुदानों वरदानों के क्रम में जब मनुष्य के जीवन यापन, आहारों का क्रम आता है तो सर्वप्रथम अन्न की बात आती है। यह इसलिए कि मनुष्य के जीवन का सर्वश्रेष्ठ रत्न अन्न को ही माना गया है क्योंकि मानव का जन्म, जीवन, स्वास्थ्य एवं मृत्यु - अन्न पर ही आधारित है।
भगवान श्री कृष्ण ने भी यही कहा है कि मनुष्य की उत्पत्ति अन्न से हुई है, इसी का सर्मथन आयुर्वेद के प्रणेता महर्षि चरक भी करते हैं। महर्षि चरक का कहना है कि मनुष्य शरीर की उत्पत्ति एवं पोषण, वृध्दि, विकास सब अन्न के अधीन हैं, शरीर को धारण करने वाले धातु, दोषों का निर्माण भी अन्न से ही होता है (च०सं०)।
M.A. / M.Sc. Program in
"Yogic Science and Ayurveda"
started from Academic Year 2022-2023
( For details, see page 37 of https://dsvv.ac.in/downloads/Prospectus(2022-23).pdf )
दिनाँक 26 नवम्बर 2022 को हरमिलाप मिशन जिला चिकित्सालय, हरिद्वार द्वारा पैलिएटिव देखभाल संगोष्ठी कार्यक्रम आयोजित किया गया, जिसमें विभाग प्रमुख डॉ वंदना श्रीवास्तव जी ने सहभागिता की तथा गायत्री परिवार शान्तिकुँज एवं देव संस्कृति विश्वविद्यालय द्वारा चिकित्सा के क्षेत्र में जन सामान्य हेतु किये जा रहे कार्यों से अवगत कराया।
दिनाँक 28, 29 नवम्बर 2022 को देहरादून में आयोजित मानसिक स्वास्थ्य संगोष्ठी में उत्तर भारत के समुदायों द्वारा मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के लिये किये जा रहे कार्यक्रमों पर विचार विमर्श किया गया। इस संगोष्ठी में 29 नवम्बर को डॉ वन्दना श्रीवास्तव जी द्वारा मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ाने हेतु शांतिकुंज एवं विश्वविद्यालय द्वारा दिये जा रहे योगदान पर प्रकाश डाला गया।
देव संस्कृति विश्वविद्यालय में दिनाँक 12, 13 दिसम्बर 2022 को International Conference on Yoga, Yagya and Ayurveda आयोजित हुई, जिसमें डॉ वन्दना श्रीवास्तव द्वारा 'यज्ञोपैथी' एवं डॉ अल्का मिश्रा द्वारा 'मर्म चिकित्सा' पर व्याख्यान देकर देश विदेश से आने वाले प्रतिभागियों को लाभान्वित किया गया।
Dr. Alka Mishra gave a lecture on the topic "Ancient Indian Wisdom For Womens Health" on 17 December2022 in the Youth Camp on Women's Empowerment - organized by South East Asia Gayatri Pariwar
यज्ञ चिकित्सा हेतु परामर्श के लिए ऊपर दिया गया फॉर्म प्राप्त होने के उपरांत, आपके द्वारा दी गई जानकारी की जाँच की जाएगी, एवं उसके अनुसार शीघ्र ही आपसे सम्पर्क किया जाएगा
After receiving the Form given above for Yagya Therapy Consultancy, the information provided by you will be reviewed, and you will soon be contacted accordingly
(Source: Mishra, Alka; Shrivastava, Vandana (2022), “Management of Janu Sandhigata Vata through an integrative approach including Marma Therapy with Janu Basti – A Case Study”, in Proceedings of the International Conference on Science and Philosophy in Indian Knowledge Systems (जिज्ञासा-2022) (Editors - Rohit Omar, Rishi Mohindru, Karan Chandra, Suresh Bhalla; ISBN: 978-93-5777-660-8), organized by Institute for Science and Spirituality Delhi, in partnership with Noida International University and IKS Division, Ministry of Education, Govt. of India, 17-18 December, New Delhi, pp. 72-78 (Paper ID - IKS220034)).
Janu Sandhigata Vata (a condition that closely resemble Osteoarthritis of Knee) is one of the most disabling musculoskeletal disorder. Its symptoms include Shoola (pain), Shotha (swelling), Stabdhata (stiffness), and Atopa (crepitus). Ayurvedic texts recommend repeated use of Snehana (oleation) and
Swedana (sudation) for its management. Marma Therapy has also been found effective in various Vata disorders. Therefore, in the present study Marma Therapy (on four Marma points of the legs, i.e. Kshipra, Gulpha, Indravasti and Janu) with Janu Basti (with Ksheerbala Taila) were administered to a
60 year old female patient (suffering from Janu Sandhigata Vata in the Left Knee) for 9 days, with one month followup wherein the patient self-administered Marma Therapy and massage at home. There was significant improvement in the subjective parameters (Shoola, Shotha, Stabdhata, Atopa) and objective parameters (WOMAC Index, Range of Motion, Walking Time) analyzed during the study, illustrating the efficacy of the therapeutic intervention.
Bentur SA, Mishra A, Kumar Y, Thakral S, Sanjiv, Mishra S, Garg R. Personalized Integrative AYUSH Intervention for COVID: Black Box Approach - Accomplishments, Challenges and Future Directions. In 24th International Conference on Frontiers in Yoga Research and its Applications (INCOFYRA), 26-29 May 2022, Prashanti Kutiram, Swami Vivekananda Yoga Anusandhana Samsthana (S-VYASA), Bengaluru, India.
पंचकर्म कोई नई विधा नहीं है। यह आयुर्वेद के प्राचीन ऋषियों जैसे आचार्य चरक, आचार्य सुश्रुत, आचार्य वाग्भट आदि जैसे अनेक मनीषियों द्वारा अपनी-अपनी संहिताओं में उल्लेखित है। सभी संहिताकारों ने अपनी-अपनी कृतियों में विभिन्न रोगों में इस चिकित्सा के उपयोग का वर्णन किया है। उत्तर भारत में यह चिकित्सा पिछले कुछ दशकों से विलुप्त होने की कगार पर थी। परंतु फिर भी इसे दक्षिण भारत, विशेष रूप से केरल में, व्यापक रूप से प्रयोग किया जाता रहा है। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि पंचकर्म चिकित्सा को पुनर्जीवित करने में केरल के वैद्यों का अनुपम योगदान रहा है। इस विद्या की पुनः वापसी हो रही है।
आयुर्वेद के अनुसार भारत में छ: ऋतुएँ पाई जाती है। बसन्त ऋतु इन छ:ऋतुओ में से एक ऋतु है। आगे क्रम में हम बसन्त ऋतु में आयुर्वेद के अनुसार किस प्रकार का बदलाव मौसम में आता है तथा इस ऋतु में हमारा आहार, हमारी दिनचर्या कैसी होनी चाहिए, जिससे कि इस मौसम में स्वस्थ कैसा रहा जा सके, इस बारे में जानेंगे।
बंसत ऋतु का आगमन शिशिर ऋतु के समाप्त होने के बाद होता है। शिशिर ऋतु बीतते -बीतते सूर्यदेव उत्तरायण हो जाते हैं। उत्तरायण काल मकर राशि में सूर्य के सक्रंमण के साथ ही शुरु हो जाता है। यह पर्व आमतौर पर उतर भारत में खिचड़ी एवं दक्षिण भारत में पोंगल और देश के विभिन्न भागों में अलग-अलग रुपों एवं नामों से मनाया जाता है। यह सर्दी का अन्तिम काल होता है। अँग्रेजी मास के अनुसार जनवरी-फ़रवरी के बाद मार्च माह के बीच तक शिशिर ऋतु रहती है। भारतीय पचांग के अनुसार माघ - फ़ागुन का महीना होता है। इसके बाद चैत्र मास का प्रारम्भ हो जाता है और इसके साथ ही बसन्त ऋतु का आगमन हो जाता है।
वानस्पतिक नाम – Boerhavia diffusa (बोर्हेविया डिफ्युजा)
सामान्य नाम – गदहपुरना
कुल – Nyctaginacae (निक्टेजिनेसी) - पुनर्नवा कुल
स्वरूप – बहुवर्षायु, प्रसरणशील क्षुप
लवंग- लौंग
• वनस्पतिक नाम - सिजिगियम एरोमेटिकम ( Syzygium aromaticum)
• सामान्य नाम - लवंग लौंग
• कुल- मिटेंसी - (Myrtaceae)
• स्वरूप – इसका सदाहरित वृक्ष 30-40 फ़ीट ऊँचा होता है। काण्ड से चारों और कोमल और अवनत शाखायें निकल कर फ़ैली रहती हैं।
ब्रह्मवर्चस (सम्पादक). यज्ञ का ज्ञान-विज्ञान - पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य वांगमय - खण्ड 25. मथुरा, उत्तर प्रदेश, भारत:अखण्ड ज्योति संस्थान, 1998.
ब्रह्मवर्चस (सम्पादक). यज्ञ : एक समग्र उपचार प्रक्रिया - पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य वांगमय - खण्ड 26. मथुरा, उत्तर प्रदेश, भारत:अखण्ड ज्योति संस्थान, 1998.
पूर्ण पाठ्यक्रम इस वेब-लिंक पर देखें - https://sites.google.com/view/adhyatmik-kayakalp/antarik-utkrishtata-ka-vikas
नीचे दिए गए वेब-लिंक पर दिए गए उद्बोधन (.mp3 फाइल) को सुनें, एवं उस पर आधारित प्रश्नोत्तरी को हल करें
चैत्र नवरात्रि 2022 में श्रद्धेय डॉ० प्रणव पण्ड्या जी की रामचरितमानस पर कक्षाएँ