आयुर्वेद के अनुसार भारत में छ: ऋतुएँ पाई जाती हैं। बसन्त ऋतु इन छ:ऋतुओ में से एक ऋतु है। आगे क्रम में हम बसन्त ऋतु में आयुर्वेद के अनुसार किस प्रकार का बदलाव मौसम में आता है तथा इस ऋतु में हमारा आहार, हमारी दिनचर्या कैसी होनी चाहिए, जिससे कि इस मौसम में स्वस्थ कैसा रहा जा सके, इस बारे में जानेंगे।
भारतीय साहित्य में बसन्त ऋतु को ऋतुओं का राजा भी कहा गया है। बंसत ऋतु का आगमन शिशिर ऋतु के समाप्त होने के बाद होता है। शिशिर ऋतु बीतते - बीतते सूर्यदेव उत्तरायण हो जाते हैं। उत्तरायण काल मकर राशि में सूर्य के सक्रंमण के साथ ही शुरु हो जाता है। यह पर्व आमतौर पर उतर भारत में खिचड़ी एवं दक्षिण भारत में पोंगल और देश के विभिन्न भागों में अलग-अलग रुपों एवं नामों से मनाया जाता है। यह सर्दी का अन्तिम काल होता है। अँग्रेजी मास के अनुसार जनवरी-फ़रवरी के बाद मार्च माह के बीच तक शिशिर ऋतु रहती है। भारतीय पचांग के अनुसार माघ - फ़ागुन का महीना होता है। इसके बाद चैत्र मास का प्रारम्भ हो जाता है और इसके साथ ही बसन्त ऋतु का आगमन हो जाता है।
बसन्त ऋतु का प्राणियों के शरीर पर प्रभाव -
आयुर्वेद के अनुसार यह आदान काल कहा जाता है। आदान काल के प्रभाव के कारण प्राणियों के बल में धीरे-धीरे कमी आने लगती है। इसका कारण सूर्य की किरणों को तेजी से हवा में नमी का कम होना है। बसन्त में प्राणियों का बल मध्यम होता है।
इस काल में सूर्य की किरणों की गरमी से हेमन्त और शिशिर ऋतु में प्राणियों में जमा कफ़ पिघल कर बाहर आने लगता है। इसके कारण व्यक्तियों के भीतर कफ़ दोष का प्रकोप होने लगता है। इस ऋतु में कफ़ से होने वाली बीमारियाँ होने लगती है। शरीर की अग्नि मन्द हो जाती है। इस कारण कई तरह के रोग होने लगते है।
इस ऋतु में वायु दक्षिण की ओर चलती है। वातावरण में शुध्दता छा जाती है। जंगलो में तथा बगीचों में एक अभूतपूर्व सौन्दर्य छा जाता है। पलाश, कमल, आम और अशोक के पेड़ों पर फ़ूल और मंजरी आ जाते हैं। पेड़ों पर नए-नए पत्ते और कोपलें आने लगते है। कोयल और भौरें की गुजंन सुनाई देने लगती है। वातावरण में एक उल्लास और मादकता छा जाती है। इस बसन्त ऋतु की सुन्दरता का वर्णन हिन्दी और सस्कृंत के साहित्यों में बहुत अच्छे ढंग से मिलता है।
बसन्त ऋतु में आहार -
बसंन्त ऋतु में पुराने जौ से बने आहार का सेवन करना हितकर होता है। गेहूँ, शहद, हल्के-रुखे आहार तथा आसव आरिष्ठ आदि आयुर्वेद की औषधियों के रुप में लेना हितकर होता है। इन सबके साथ शहद, सोंठ, खादिर, मुस्तादि का प्रयोग करना चाहिए। इस ऋतु में भारी, ठण्डा, तेल, घी आदि चिकनाई वाले आहार, मीठे एवं खट्टे आहार का सेवन नहीं करना चाहिए। ये आहार पहले से बढ़े कफ़ दोष को और बढ़ा कर रोगों का कारण बन जाते हैं। नीम की कोमल पत्तियों का सेवन कफ़ दोष का नाश करता है।
बसन्त ऋतु में किए जाने वाले अन्य कार्य -
इस ऋतु में बढ़े हुए कफ़ को शान्त करने के लिए व्यक्ति को उपयुक्त कठोर व्यायाम करके उबटन, बलपूर्वक मालिश और शरीर पर कपूर, चन्दन, कुंकुम से शरीर पर लेप करके स्नान करना चाहिए। दिन में सोना नहीं चाहिए, यह कफ़ दोष की वृध्दि करता है।
बसन्त ऋतु में दिए जाने योग्य चिकित्सा कर्म -
बढ़े हुए कफ़ दोष को तीक्ष्ण वमन के द्वारा बाहर निकाल दिया जाना स्वास्थ्य के लिए अच्छा रहता है। नाक में नस्य के रुप में तैल का प्रयोग कफ़ नाश के लिए करना चाहिए।
बढ़े कफ़ के रोगों जैसे - खाँसी, दमा, ज्वर को शान्त करने के लिए त्रिकटु चूर्ण का शहद के साथ प्रयोग वैद्य के मार्ग दर्शन में करना चाहिए।
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