धन्वन्तरि ई-समाचार पत्र Dhanvantari E-Newsletter

Volume 1, Issue 1, 2019

Available Online from: 5th September 2019

विभागीय समाचार

"यज्ञोपैथी - एक आध्यात्मिक उपचार क्रम" पुस्तक का विमोचन

लेखिका: डॉ० वंदना श्रीवास्तव

संदर्भ: वंदना श्रीवास्तव. यज्ञोपैथी - एक आध्यात्मिक उपचार क्रम. हरिद्वार, उत्तराखण्ड, भारत: देव संस्कृति विश्वविद्यालय, 2019. [ISBN: 819339167-5]

इस पुस्तक का विमोचन 16 जुलाई 2019 को शांतिकुंज में गुरु पूर्णिमा पर्व आयोजन के दौरान श्रद्धेय कुलाधिपति डॉ० प्रणव पण्ड्या जी एवं श्रद्धेया जीजी श्रीमती शैलबाला पण्ड्या जी द्वारा किया गया।

इस पुस्तक के बारे में जानकारी प्राप्त करने एवं इसकी प्रति प्राप्त करने हेतु कृपया आयुर्वेद एवं समग्र स्वास्थ्य विभाग से सम्पर्क करें

देव संस्कृति विश्वविद्यालय में मार्च के चतुर्थ सप्ताह में 2 दिवसीय मर्म चिकित्सा कार्यशाला का आयोजन ' आयुर्वेद एवं समग्र स्वास्थ्य विभाग ' द्वारा किया गया, जिसमें विषय विशेषज्ञ मर्म चिकित्सक डॉ० सुनील जोशी जी थे। कार्यशाला का शुभारम्भ दिनाँक 26 मार्च 2019 को श्रीराम भवन के प्रार्थना सभागार में आदरणीय कुलपति महोदय श्री शरद पारधी जी के कर कमलों द्वारा हुआ । इस कार्यशाला में 300 से ज्यादा लोगों ने अपनी प्रतिभागिता की, जिसमें विश्वविद्यालय के हर संकाय के विद्यार्थी व शिक्षक गणों ने बढ़ - चढ़ कर हिस्सा लिया। इसके अलावा बाहरी कॉलेज, विद्यालय के छात्र - छात्राओं तथा विश्वविद्यालय में चिकित्सा सुविधा प्राप्त कर रहे रोगियों व उनके सहयोगियों ने भी इस वैदिक चिकित्सा ज्ञान का लाभ उठाया।

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Session started for new batch of Certificate Program in Holistic Health Management (Regular Mode)

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Research @ DAHH

(Source: http://ijyr.dsvv.ac.in/index.php/ijyr/article/view/24 )

As per the classical texts of Ayurveda, Apasmara is a disease that has similar symptoms as those found in epilepsy; it is of four types wherein either one of the three Doshas, i.e. Vata, Pitta, and Kapha, is predominantly vitiated, or there is an imbalance of all the three Doshas. Hence, the medicinal herbs that balance the respective doshas, are used in the Ayurvedic treatment of epileptic seizures.

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(Source: http://ijyr.dsvv.ac.in/index.php/ijyr/article/view/28 )

As per the classical texts of Ayurveda, the disease that resembles the symptoms associated with OCD, is Atatvaabhinivesha; It is caused by Dhi Vibhransh, i.e. vitiation of the Dhi element of Buddhi (intellect), and is characterized by the vitiation of one or more of the three Doshas, i.e. Vata, Pitta and Kapha. As per the classical texts of Ayurveda, the disease that resembles the symptoms associated with PCOD, is characterized by the vitiation of Kapha Dosha, along with Vata Dushti (vitiation). Hence, treatments that balance these Doshas, as well as have Rasayan (provide rejuvenation and nourishment to the body tissues) properties, are recommended for the management of the symptoms associated with these diseases.

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(Source: https://sites.google.com/dsvv.ac.in/shodhamala-dahh/asssm11/asssm111)

Osteoarthritis of knee (Janu sandhigata vata) is a major cause of mobility impairment, particularly among females. Osteopenia (Asthi kshaya) is a common musculoskeletal disorder, characterized by below normal bone mineral density, resulting in an increased risk of fragile fractures, and associated physical disability, pain, degradation in quality of life, etc. Effective and simultaneous management of symptoms associated with these disorders, in a short duration of time, is not readily achieved. Panchakarma therapy of Ayurveda has shown noticeable effectiveness in the individual management of these disorders.

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आयुर्वेद एवं समग्र स्वास्थ्य संबंधी अन्य समाचार एवं जानकारी

भारत में जलवायु परिवर्तन होता है। हमारी भौगोलिक स्थिति ऐसी है, जिसमें सूर्य और चन्द्रमा के साथ धरती के तापक्रम एवं वातावरण में परिवर्तन, तथा मौसम में बदलाव होता रहता है। इसका प्रभाव मनुष्य के ऊपर पड़ता है, जिसके कारण स्वास्थ्य में उतार-चढ़ाव लगा रहता है। ॠतुओं का हमारे स्वास्थ्य से गहरा संबंध होने के कारण हमारे ॠषियों ने आयुर्वेद में इसे ॠतुचर्या के नाम से उद्धृत किया है, और कहा है कि ॠतु के, अर्थात मौसम के अनुसार ही हमारा आहार-विहार, यानि खाना-पीना, तौर-तरीका, व्यवहार-आचरण होना चाहिए, नहीं तो स्वास्थ्य पर इसका विपरीत प्रभाव पड़ता है। अगर हम ॠतु के विपरीत चलते हैं, तो उसका परिणाम हमें बीमारी/रोग के रूप में मिलता है। अत: अच्छे स्वास्थ्य हेतु यह आवश्यक है कि हम मौसम के विपरीत न चलें।

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औषधीय पौधे

हमारी वाटिका से

आमलकी

(संदर्भ: ब्रह्मवर्चस. जड़ी-बूटियों द्वारा स्वास्थ्य संरक्षण. मथुरा, उत्तर प्रदेश, भारत:युग निर्माण योजना विस्तार ट्रस्ट, गायत्री तपोभूमि, 2017.)

आँवला त्रिदोषहर, अग्निदीपक और पाचक है। वमन में यह विशेष लाभकारी है। यह मेध्य है, एवं नाड़ियों तथा इन्द्रियों का बल बढ़ाने वाला पौष्टिक रसायन है।

हमारे आस-पास उगने वाले

कालमेघ

(संदर्भ: ब्रह्मवर्चस. वनौषधि: एक संक्षिप्त मार्गदशिका. मथुरा, उत्तर प्रदेश, भारत:युग निर्माण योजना विस्तार ट्रस्ट, गायत्री तपोभूमि, 2012.)

यकृत रोगों में इसका क्वाथ बहुत प्रभावी है। यह एक उत्तम रक्त विकार नाशक एवं शोथ हर द्रव्य है। कृमि रोग में इसका चूर्ण प्रयोग करते हैं।

शांतिकुंज फार्मेसी द्वारा निर्मित

अश्वगंधा

(संदर्भ: ब्रह्मवर्चस. जड़ी-बूटियों द्वारा स्वास्थ्य संरक्षण. मथुरा, उत्तर प्रदेश, भारत:युग निर्माण योजना विस्तार ट्रस्ट, गायत्री तपोभूमि, 2017.)

यह बलवर्धक रसायन है। यह किसी भी प्रकार की दुर्बलता में गुणकारी है। वातशामक होने के कारण थकान का निवारण कर, शक्ति प्रदान करता है।

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Ayurveda @ Literature of All World Gayatri Pariwar (www.awgp.org)

अखण्ड ज्योति पत्रिका - अप्रैल 1999 अंक से

आयुर्वेद एक विज्ञान सम्मत चिकित्साशास्त्र होने के साथ-साथ सम्पूर्ण जीवन विज्ञान भी है, जो प्राचीन-काल से इस देश में मानव जीवन को आधिदैविक, आधिभौतिक और आध्यात्मिक रूप से आरोग्य प्रदान करता आ रहा है। चिकित्सा विज्ञान के रूप में आयुर्वेद की जड़ें जितनी गहरी फैली हुई हैं, उतनी किसी अन्य चिकित्सा विज्ञान की नहीं हैं। वस्तुतः सच कहा जाए तो आयुर्वेद एक यशस्वी बनाने वाला शास्त्र है। यह चिकित्सा पद्धति मानव जीवन की सर्वविध समस्याओं का समाधान प्रस्तुत करती है।

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From Akhand Jyoti English magazine - July-August 2003 issue

Ayurveda - the ancient Indian medical science is believed to be the oldest repository of diagnostic, pharmaceutical and therapeutic knowledge. This Vedic science draws upon an integral approach to health-care by considering the physical, mental and deep emotional well being simultaneously. It encompasses thorough knowledge of the Adhibhautik (physical, pertaining to the gross body), Adhidaivik (mental, emotional and pranic, pertaining to the subtle body) and Adhyatmik (spiritual, pertaining to the astral body) aspects of health. No other branch of ancient or modern disciplines of medical sciences, perhaps, has such deep and expanded foundations as Ayurveda has. This ancient science of medicine enfolds the secrets of youthful longevity and is therefore also referred as a comprehensive science of happy and hearty life.

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आयुर्वेद से संबंधित पुस्तक

(संदर्भ: श्रीराम शर्मा आचार्य. तुलसी के चमत्कारी गुण. मथुरा, उत्तर प्रदेश, भारत:युग निर्माण योजना विस्तार ट्रस्ट, गायत्री तपोभूमि, 2015.)

जब तुलसी के निरंतर प्रयोग से ॠषियों ने यह अनुभव किया कि यह वनस्पति एक नहीं सैकड़ों छोटे-बड़े रोगों में लाभ पहुंचाती है और इसके द्वारा आसपास का वातावरण भी शुद्ध और स्वास्थ्यप्रद रहता है तो उन्होंने विभिन्न प्रकार से इसके प्रचार का प्रयत्न किया। उन्होंने प्रत्येक घर में तुलसी का कम से कम एक पौधा लगाना और अच्छी तरह से देखभाल करते रहना धर्म कर्त्तव्य बतलाया। खास-खास धार्मिक स्थानों पर ‘तुलसी कानन’ बनाने की भी उन्होंने सलाह दी, जिसका प्रभाव दूर तक के वातावरण पर पड़े।

तुलसी कटु, तिक्त, हृदय के लिए हितकर, त्वचा के रोगों में लाभदायक, पाचन शक्ति को बढ़ाने वाली, मूत्रकृच्छ के कष्ट को मिटाने वाली है; यह कफ और वात संबंधी विकारों को ठीक करती है।

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यज्ञ का ज्ञान - विज्ञान

गायत्री - यज्ञ : उपयोगिता और आवश्यकता

गायत्री और यज्ञ का युग्म है। एक को भारतीय संस्कृति की जननी और दूसरे को भारतीय धर्म का पिता कहा गया है। दोनों अन्योन्याश्रित माने गए हैं। गायत्री जप का अनुष्ठान यग़्य का समन्वय हुए बिना पूरा नहीं हो सकता।

उपासना कृत्य में बलिवैश्र्व विधि भी जुड़ी हुई है, जिसका अर्थ होता है - संक्षिप्त हवन। कठिनाई के दिनों में यह बलिवैश्र्व इतना संक्षिप्त हो गया था कि महिलाएँ चूल्हे में से अग्नि निकाल कर, उस पर प्रथम सिकी रोटी के पाँच कण, गायत्री मंत्र का पाँच बार उच्चारण करते हुए, हवन कर लेती थीं। नैष्ठिक उपासक भी ऐसा ही करते थे। वे भोजन के समय, सामने परोसे भोजन के पाँच छोटे-छोटे ग्रास, पास में अग्नि मँगा कर, हवन कर लियुआ करते थे।

भारतीय परम्पराओं के प्रचलन में तत्वदर्शी ॠषियों ने बुद्धिमत्ता, सूक्ष्म दृष्टि, उपयोगिता एवं तथ्य स्थिति को पग-पग पर ध्यान में रखकर ही कदम उठाए हैं। यज्ञ को धर्मकृत्यों में प्रधानता मिलने में भी उसकी भौतिक एवं आत्मिक उपलब्धियों को ही ध्यान में रखा गया है।

(संदर्भ: ब्रह्मवर्चस (सम्पादक). यज्ञ का ज्ञान-विज्ञान - पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य वांगमय - खण्ड 25. मथुरा, उत्तर प्रदेश, भारत:अखण्ड ज्योति संस्थान, 1998, पृष्ठ 1.1.)

यज्ञ - एक समग्र उपचार प्रक्रिया

यज्ञ में मंत्र-शक्ति का महत्व

यज्ञ विज्ञान की समग्रता शब्द-ब्रह्म से यज्ञ प्रक्रिया के समन्वय पर निर्भर है। वेदों में वर्णित मंत्र-सूक्त जब विशिष्ट क्रम में गाए जाते हैं तो वांछित परिणाम उत्पन्न करते हैं। जितना महत्व यजन की जाने वाली औषधि, अध्वर्यु-होता याजक-गणों एवं कर्मकाण्डों का है, उससे कुछ अधिक ही गाए जाने वाले मंत्रों का है।

यज्ञों में मंत्र विज्ञान की अपनी विशिष्ट भूमिका होती है। यज्ञों में सामर्थ्य शब्द-शक्ति से ही उत्पन्न होता है।

शब्द या मंत्र दूसरे रूपों में परिवर्तित किए जा सकते हैं, तथा मध्यवर्ती की सहायता से सफर भी करते हैं। वह स्थूल भी है और सूक्ष्म भी। स्थूल कार्य है और सूक्ष्म कारण। अत: शब्द से कार्य विधान निकलता है।

(संदर्भ: ब्रह्मवर्चस (सम्पादक). यज्ञ : एक समग्र उपचार प्रक्रिया - पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य वांगमय - खण्ड 26. मथुरा, उत्तर प्रदेश, भारत:अखण्ड ज्योति संस्थान, 1998, पृष्ठ 1.1.)

(संदर्भ: उद्यान विभाग शांतिकुंज, संपादन. गमलों में स्वास्थ्य. मथुरा, उत्तर प्रदेश, भारत: युग निर्माण योजना विस्तार ट्रस्ट, गायत्री तपोभूमि; 2015.)

“अब आवश्यकता इस बात की है मनुष्य आधुनिकता के अंधे दौर में, जीव-वनस्पति जगत एवं पर्यावरण के बीच तारतम्य को नष्ट न करे, अन्यथा उसकी भौतिक प्रगति उसकी जीवन-रक्षा न कर सकेगी। इसलिए पुन: नए सिरे से उपयोगी जीवनदायी वनस्पतियों का आरोपण तथा विकास प्रक्रिया आरंभ करे। इससे दुहरा लाभ है - एक तो मनुष्य को शक्ति व सामर्थ्यों से युक्त नया जीवन मिलेगा और दूसरा वातावरण में संव्याप्त प्रदूषण की समस्या सुधरेगी। आयुर्वेद का पुनर्जीवन इस माध्यम से यदि संभव हो सके तो यह मानवता की सबसे बड़ी सेवा होगी।" - परम पूज्य गुरुदेव पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य जी

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(संदर्भ: श्रीराम शर्मा आचार्य. मसाला वाटिका से घरेलू उपचार. गायत्री तपोभूमि, मथुरा, उत्तर प्रदेश, भारत: युग निर्माण योजना विस्तार ट्रस्ट, गायत्री तपोभूमि; 2018.)

भोजन के समय दाल, शाक आदि में मिलाए जाने वाले मसालों में से अधिकांश ऐसे होते हैं, जिनमें किसी न किसी रोग के निवारण की क्षमता भी है। कई मसालों को एक साथ मिला देने पर उनसे रुचिकर स्वाद बनता है, पर औषधि की दृष्टि से उस सम्मिश्रण का प्रभाव गुणहीन हो जाता है। ऐसी स्थिति में वह औषधि के स्थान पर प्रयोग करने योग्य भी नहीं रह जाते।

मसालों को सामान्यतया स्वादवर्धक एवं पाचक माना जाता है। उनका आम प्रयोग-प्रचलन इसी रूप में है, पर उन्हें निरापद घरेलू चिकित्सा के रूप में भी प्रयुक्त किया जा सकता है।

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शांतिकुंज एवं विश्वविद्यालय समाचार

Renaissance

E-Newsletter of Dev Sanskriti Vishwavidyalaya (DSVV)

(News published in the April-June 2019 issue, Page 8)

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पत्रकारिता एवं जन संचार विभाग का समाचार पत्र

देव संस्कृति विश्वविद्यालय, हरिद्वार (देसंविवि) व किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी, लखनऊ (केजीएमयू) के बीच समझौता (MOU)

10 दिसम्बर2018: विगत दिनों अपने लखनऊ प्रवास के दौरान देसंविवि के प्रति-कुलपति डॉ चिन्मय पण्ड्या ने किंग जार्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी, लखनऊ के कुलपति प्रो. एमएलबी भट्ट के साथ ग्यारह सूत्रीय कार्यों को गति देने के लिए मिलकर कार्य करने पर समझौता किया। इस समझौते में हर्बल गार्डन के डेवलपमेंट, एक्सटर्नल रिसर्च प्रोजेक्ट, पीएचडी रिसर्च प्रोजेक्ट, पोस्ट डॉक्टोरल रिसर्च प्रोजेक्ट सहित 11 विभिन्न विषयों पर आदान-प्रदान किया जायेगा।