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Department of Ayurveda and Holistic Health
Dev Sanskriti Vishwavidyalaya, Haridwar
Dev Sanskriti Vishwavidyalaya, Haridwar
स्वास्थ्य जीव मात्र की अनिवार्य आवश्यकता है; उसमें भी समग्र स्वास्थ्य प्राणिमात्र का आदिकाल से ही अभीष्ट रहा है। लेकिन आज की विडम्बना यह है कि सृष्टा का राजकुमार यह मनुष्य, वेद और विज्ञान के अन्तर को भुला कर, विज्ञान को ही समग्र मान बैठा है। युग व्यास पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने इस भेद को स्पष्ट करते हुए ही, स्वास्थ्य को एक क्रांति का नाम देकर, आयुर्वेद को जन-जन तक स्थापित करने का बीज बोया।
स्वास्थ्य सम्पूर्ण मानव जाति की मूल आवश्यकता है, जो स्वयं में स्वयं से है, यह किसी धर्म-सम्प्रदाय या जातिगत नहीं है, और सम्पूर्ण प्रकृति में व्याप्त है। मनुष्य का जीवन प्रकृति के बिना संभव नहीं। जैसे-जैसे हम प्रकृति से दूर होते गये, स्वास्थ्य का संकट बढ़ता गया। आज स्थिति यह है कि तरह-तरह की बीमारियों के जाल में इस तरह फंस चुके हैं कि निकल पाना मुश्किल हो रहा है।
सबसे बड़ा धन कहलाने वाला 'स्वास्थ्य', धन कमाने का सबसे बड़ा माध्यम बन गया है। भारत रोग एवं स्वास्थ्य हानि के मामले में निरंतर आगे बढ़ रहा है - कारण - स्वास्थ्य का व्यवसायीकरण एवं भोग की वृत्ति, जिननेे हमारी स्वास्थ्य व्यवस्था को इतना विकृत कर दिया है कि अगर अभी हम नहीं सम्हले तो स्थिति गंभीर से और गंभीरतम होती जाएगी। इसके लिए हमें अपनी सभ्यता, संस्कृति और वेदों की शरण में, प्रकृति की शरण में पुन: लौटना ही पड़ेगा, क्योंकि मशीनों के पास प्राणवायु का, मिट्टी का, जल का, खुले आकाश का कोई विकल्प है ही नहीं।
स्वास्थ्य की ही खातिर ॠषियों ने दीर्घायुष्य, शतायु, जीवेम् शरद: शतम् और वेदों की प्रार्थना में सर्वप्रथम आयु को रखा, और कहा 'शरीरमाध्यम् खलु धर्म साधनम्', तथा 'पहला सुख निरोगी काया' का पाठ पढ़ाया। साथ ही उन्होंने जीवन की पूर्णता हेतु पुरुषार्थ चतुष्ट्य का मार्ग प्रशस्त किया, और उसी के साथ सूत्र दिया - 'धर्मार्थ काममोक्षणामारोग्यं मूलमुत्तमम्'। परन्तु हम केवल शरीर धर्म ही निभा पाये; चेतना के अन्य महत्वपूर्ण आयाम - मन, विचार, भावना, अध्यात्म, सामाजिकता, नैतिकता और पर्यावरण को पीछे छोड़ आए। जब तक हम इन सभी का ध्यान नहीं रखेंगे, इनसे जुड़े सिद्धांतों का, नियमों का पालन नहीं करेंगे, तब तक समग्र स्वास्थ्य (होलिस्टिक हेल्थ) की कल्पना साकार नहीं होगी।
रोग और स्वास्थ्य मात्र देह तक सीमित नहीं होता; मन, प्राण सभी प्रभावित होते हैं। रोगों से मुक्त रहने का उपाय दिया हमारे ॠषियों ने - एक–दूसरे का सहयोगी बन, साथ–साथ रक्षण पालन की आदर्श व्यवस्था बनाई, यत् पिण्डे तत् ब्रह्माण्डे का सूत्र दिया, ताकि जीवन में समग्रता का विकास हो, और हम चेतना के उच्च सोपान तक पहुँच सकें, मनुष्य लक्ष्य को हासिल कर सकें। परन्तु हम उपयोग और सदुपयोग, तथा सहयोग सहकार का भाव भूलकर, भोग और दुरुपयोग में फंसते गये, और दीर्घायु, सुखायु, हितायु को क्षीण कर बैठे। परिणाम - शरीर रोग का वाहक बन गया। वास्तव में शरीर वह रथ है जिस पर बैठकर जीवन की यात्रा करनी होती है। शरीर एक चलता फिरता देव मन्दिर है, जिसमें स्वयं भगवान अपनी विभूतियों के साथ विराजते हैं। मन की निर्मलता और बुद्धि की शुद्धता का साधन शरीर से ही प्रारंभ होता है। अत: शरीर को स्वस्थ रखना अति आवश्यक है। स्वस्थ शरीर से स्वास्थ्य विकास की यात्रा प्रारम्भ होती है, जिसकी रक्षा हेतु - "शरीर को भगवान का मंदिर समझकर, आत्म-संयम और नियमितता द्वारा आरोग्य की रक्षा करेंगे" - नियम का पालन अनिवार्य है।
केवल दवा और अस्पतालों से रोगों का समूल नाश नहीं हो सकता। रोगों का समूल नाश तो इन्द्रिय संयम और मन की शुद्धि होने पर होता है। समग्र स्वास्थ्य का अधिकार क्षेत्र मात्र शरीर नहीं हो सकता - यह मन, आत्मा, समाज, भावना, अध्यात्म और पर्यावरण से पूर्ण होता है, एवं इन सब से संबंधित दिशा निर्देशों के पालन से ही स्वास्थ्य रूपी अनमोल सम्पदा का रक्षण संभव है।
शारीरिक, मानसिक स्वास्थ्य हेतु समाज में प्रचलित छोटी-छोटी उक्तियों, जैसे - 'स्नान ध्यान हुआ', 'पूजा पाठ हुआ' - में निहित गूढ़ अर्थ को समझकर जीवन में उतारना पड़ेगा, और युगॠषि पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी द्वारा प्रदत्त स्वर्णिम सूत्रों का भी समावेश अनिवार्य रूप से करना होगा। तब वास्तव में हम सभ्य, स्वस्थ, सुखी समाज की स्थापना का उद्देश्य पूरा कर पाएंगे। वास्तव में सारे रोगों की जड़ मन है, विचार हैं - सबसे पहले इन्हें ठीक करना होगा, और मन को संयमित करने से ही शरीर सधता है। मन की एकाग्रता और उत्कृष्टता हेतु ही कहा गया है - "मन को कुविचारों एवं दुर्भावनाओं से बचाए रखने के लिए, स्वाध्याय एवं सत्संग की व्यवस्था रखे रहेंगे"।
आयुर्वेद एवं समग्र स्वास्थ्य विभाग, देव संस्कृति विश्वविद्यालय द्वारा समग्र स्वास्थ्य की दिशा में, शिक्षण-प्रशिक्षण की दिशा में, यह धन्वन्तरि ई - समाचार पत्र एक और प्रयास है, एक और अध्याय है।